17 अप्रैल की रात को 29 साल की एक यूट्यूबर स्वाति ने आत्महत्या कर ली. स्वाति ने अपने पीजी के सैकंडफ्लोर से कूद कर जान दी. वह पिछले 10 सालों से दिल्ली के मुखर्जी नगर में रह रही थी और यूपीएससी की तैयारी कर रही थी लेकिन एग्जाम में क्वालीफाई नहीं कर पाई थी. स्वाति ने कई सालों तक एसएससी की भी तैयारी की लेकिन उस में भी सफलता नहीं मिली. वह बारबार फेल हो रही थी. वैसे, खुदकुशी की स्पष्ट वजह का अभी पता नहीं चल पाया है. हां, यह बात सामने आ रही है कि एग्जाम क्लियर न कर पाने की वजह से वह काफी समय से परेशान चल रही थी.
इसी तरह झांसी में रहने वाला मयूर बीटैक पास था और यूपीएससी की तैयारी कर रहा था. वह पढ़ने में काफी होशियार था. उस ने 2019 में सोनीपत के एक इंस्टिट्यूट से फूड टैक्नोलौजी में बीटैक पास की थी. उस के बाद दिल्ली जा कर यूपीएससी की तैयारी करने लगा. मयूर लगातार 3 बार से यूपीएससी की परीक्षा में असफल हो रहा था. बारबार वह एकदो नंबरों से रह जाता था जिस कारण काफी मायूस रहता था. 14 जनवरी की रात को उस ने पहले स्कूटी में पैट्रोल भरवाया, फिर खुद को आग लगाई और चौथी मंजिल से नीचे कूद गया. तुरंत ही उस की मौत हो गई.
इस तरह की घटनाएं आएदिन सुनने को मिलती रहती हैं. युवा पूरी मेहनत से कईकई साल आईएएस की तैयारी में लगाते हैं, अफसर बनने का सपना देखते हैं मगर बारबार असफल होने पर हिम्मत खो बैठते हैं.
दरअसल, संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) परीक्षा को भारत की सब से कठिन परीक्षाओं में से माना जाता है. इस एग्जाम को पास करने के बाद आईएएस, आईपीएस, आईआरएस या आईएफएस अधिकारी बनने का मौका मिलता है. इन सरकारी अफसरों का अलग ही रुतबा होता है. इस रुतबे को हासिल करने के लिए ही हर साल लाखों युवा यूपीएससी परीक्षा देते हैं. हालांकि, उन में से कुछ ही परीक्षा पास कर पाते हैं.
इस बार के घोषित यूपीएससी परिणामों पर नज़र डालें तो;
यूपीएससी 23-24 के लिए करीब 13 लाख छात्रों ने आवेदन किया था. कुल मिला कर 14,624 यूपीएससी मेन्स के लिए योग्य हुए और 2,916 को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया. लेकिन केवल 1,016 छात्रों को शौर्टलिस्ट किया गया और प्लेसमैंट के लिए अनुशंसित किया गया.
यूपीएससी के नियमानुसार, सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों को परीक्षा में 6 प्रयास या 32 वर्ष का होने तक बैठने की अनुमति है. ओबीसी के लिए यह 9 प्रयास या उम्र 35 वर्ष है. एससी/एसटी के लिए यह 37 वर्ष है और प्रयासों की कोई सीमा नहीं है. इतने सारे प्रयासों की अनुमति देने का मतलब है कि कई छात्र अपनी जिंदगी के प्रमुख वर्ष परीक्षा की तैयारी और उसे क्रैक करने की कोशिश में लगा देते हैं. उन में से कई लोग इन परीक्षाओं की तैयारी के अलावा कुछ नहीं करते. हर राज्य में ऐसे उम्मीदवारों के लिए कोचिंग हब भी हैं.
साल 2020 से 2023 (4 वर्ष) में परीक्षार्थियों की संख्या
2020 से 2023 (4 वर्ष) तक कुल 46.03 लाख छात्रों ने यूपीएससी सिविल के लिए आवेदन किया था. उन में से कुल 48,214 छात्र मुख्य परीक्षा के लिए उत्तीर्ण हुए. इस के बाद अगले पड़ाव में करीब 10,000 छात्र चयनित हुए और उन्हें साक्षात्कार के लिए बुलाया गया. इन 4 सालों में कुल रिक्तियां 3,823 थीं. यानी, 2020-23 के बीच 1,204 छात्र एक रिक्त पद के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे थे.
पिछले करीब 15 वर्षों में सिविल सेवक बनने के लिए प्रतिस्पर्धा 1:365 से बढ़ कर 1:1,204 हो गई. यानी, प्रतिस्पर्धा 3.3 गुना बढ़ चुकी है.
क्या यह प्रतिभा की भारी बरबादी नहीं है? जिन का सिलैक्शन नहीं होता है उन में योग्यता की कोई खास कमी नहीं होती वरना वे मेंस तक कैसे पहुंचते. रिक्तियां कम हैं, इसलिए बहुत से छात्रों को न चाहते हुए भी रेस से हटाना पड़ता है.
परीक्षा प्रक्रिया में सुधार जरूरी
हमें इस बात पर पुनर्विचार करना चाहिए कि क्या हम अपने युवाओं को 6 साल (ओबीसी के लिए 9) तक यूपीएससी पद के लिए तैयारी और प्रयास करते रहने दें. क्या कुछ ऐसा नियम नहीं होना चाहिए कि एक न्यूनतम अंक से कम लाने वाले परीक्षार्थियों को दोबारा बैठने न दिया जाए यानी उन उम्मीदवारों को बाहर करना शुरू किया जाए ताकि वे अपने प्रमुख वर्षों को उस परीक्षा की तैयारी में बरबाद न करें जिस में उन के सिलैक्शन की कोई संभावना नहीं है. इस के साथ ही किसी भी कैटेगरी का छात्र हो, 4 या 5 से अधिक अटैम्प्ट की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए. वैसे ही, इस की तैयारी छात्र कालेज के दिनों में ही शुरू कर देते हैं.
इस एग्जाम के सिस्टम में भी कुछ सुधार की जरूरत है. कहीं न कहीं इस के पेपर कठिन तो होते ही हैं, साथ ही, पूरी प्रक्रिया भी टाइम टेकिंग है. आप पूरे एक साल तक और कुछ नहीं कर पाते. बस, इसी में लगे रहते हैं क्योंकि आप को पहले प्रीलिम्स देना होता है, फिर मेंस देना होता है और फिर इंटरव्यू की तैयारी करनी होती है. इस सिस्टम को चेंज करना चाहिए. कहीं न कहीं इस के पूरे प्रोसीजर को थोड़ा छोटा बनाना चाहिए.
छात्रों को औप्शन रखना चाहिए
आप इस की तैयारी कर रहे हैं, तो ठीक है दोतीन साल पूरी मेहनत से एग्जाम दीजिए. लेकिन सफलता हासिल न हो तो अपने पास एक औप्शन रखें. आप जिस भी फील्ड के हैं उस फील्ड में काम शुरू कीजिए, ताकि आप उस में थोड़ा व्यवस्थित हो सकें और फिर साथसाथ इस की तैयारी करें. ऐसा न करें कि 8 -10 साल तक आप ने और कुछ नहीं किया और अंत तक आप को सफलता नहीं मिली. और तब, आप के पास करने के लिए कुछ खास न हो क्योंकि आप की उम्र निकल गई हो या आप के अंदर की ऊर्जा व उत्साह खत्म हो चुका हो.
इसलिए बेहतर यह होगा कि आप पहले किसी भी फील्ड में अपना एक मुकाम बना लें. आप इंजीनियरिंग की फील्ड में जाना चाहते हैं या डाक्टरी की फील्ड में, लौयर बनना चाहते हैं या सीए- जो भी बनना चाहते हैं, किसी एक फील्ड को चुन कर उस में आगे बढ़ें और कुछ नहीं तो बिजनैस शुरू कीजिए. आईएएस में सफल न होने पर आप एसएससी या दूसरे गवर्नमैंट या प्राइवेट एग्जाम दे सकते हैं या फिर आप मीडिया या एजुकेशन की फील्ड में आ सकते हैं. औप्शन रहेगा, तो आप बेफिक्र हो कर कई साल तक भी एग्जाम की तैयारी कर सकेंगे. यानी, जब तक एग्जाम देने हैं, देते रहिए मगर पूरी तरह खुद को इस के लिए झोंक देना उचित नहीं है.
एक स्टूडैंट को समझना होगा कि 8-10 साल उस की जिंदगी के सब से खूबसूरत होते हैं, शरीर में सब से ज्यादा एनर्जी है और कुछ कर गुजरने की सोच है. यही वह समय है जब इंसान अपना कैरियर बनाता है, जब एक जीवनसाथी की कल्पना उस के मन में उमड़ती है, जब वह शादी करता है और उस का मन उत्साह से भरा होता है. लेकिन यही 10 साल सिर्फ एग्जाम कंपीट करने की कोशिश और फ्रस्ट्रेशन में निकल जाएं तो इंसान चाह कर भी अपनी जिंदगी को इतनी खूबसूरती से नहीं जी सकता जितना वह जी सकता था अगर वह इस तैयारी में अपना समय बरबाद न करता. आप ऊंचे सपने जरूर देखें. कुछ बड़ा बनने के सपने भी जरूर देखें. मगर इस तरह देखें कि आप की लाइफ में केवल वही न रह जाए. आप पैरेलल में कुछ और काम या बिजनैस करते रहिए ताकि आप किसी एक फील्ड में तो व्यवस्थित हो सकें और आगे अगर सिलैक्शन न हो, तो भी अच्छे से जी सकें.
इतनी एनर्जी कहीं और लगाई जाए तो हालात जुदा होंगे
अधिकतर युवा इस परीक्षा को पास करने के लिए विभिन्न शहरों में कोचिंग लेते हैं और मोटी धनराशि भी ख़र्च करते हैं. यही नहीं, इतने साल जो वे बिना रोजगार के रहते हैं तो वह संभावित सैलरी की राशि, जो उन की हो सकती थी, वह भी खर्च में ही शामिल की जाएगी. वे सालों रातदिन एक कर के करीब 17-18 घंटे रोज की पढ़ाई करते हैं. लेकिन इतनी मेहनत और खर्च के बावजूद पास होने वाली युवाओं की संख्या बेहद सीमित है. लगभग एक फीसदी ही सफलता प्राप्त करते हैं. सीट हजार में होती हैं उम्मीदवार लाखों में होते हैं. बाकी के युवा फ़्रस्ट्रेशन और स्ट्रैस का शिकार बनते हैं. इसी समस्या को ले कर अभी हाल ही में ‘12वीं फेल’ फिल्म आई थी जिस में इस परीक्षा को ले कर युवाओं की कोशिशों, उन के तनाव और आर्थिक हालात का चित्रण करने की कोशिश की गई.
इन परीक्षाओं को पास करने के लिए युवा जितनी एनर्जी खर्च कर रहे है अगर उसे किसी और क्षेत्र में लगाया जाए तो परिणाम अलग ही मिलेगा. लाखों लोग एक परीक्षा पास करने की कोशिश में अपनी जिंदगी के बेहतरीन साल निकाल देते हैं. जबकि, वास्तव में वहां कुछ हजार लोगों की छोटी संख्या की ही जरूरत है. अगर युवा अपनी ऊर्जा को कुछ और करने में लगाते हैं तो हम ज्यादा ओलिंपिक गोल्ड मैडल जीतेंगे. बेहतर फिल्में बनते देखेंगे. बेहतर डाक्टर देखेंगे. ज्यादा उद्यमी और वैज्ञानिक सामने आएंगे.