जयश्री बिरमी घर में बेरोजगार बैठे एक शख्स को इश्क का बुखार चढ़ा और लड़की उसे मिल भी गई लेकिन जब वह उस से मिलने गया तो सिर मुड़ाते ही ओले पड़ गए… यों ही मैं घूमने निकला तो बस स्टौप पर एक सुंदर सी कन्या को देख रुक सा गया. वह बेहद सुंदर थी. साड़ी पहने उस की लंबी सी चोटी, सुंदर आंखें, छरहरे बदन को मैं बस देखता ही रह गया. तभी एक बस आई और वह उस में बैठ कर चली गई. मैं हक्काबक्का बस को जाते देखता रह गया. ?ट से अपनेआप को संभाला और घड़ी देखी तो 11 बजे थे. वहां से चल तो दिया लेकिन दूसरे दिन इसी वक्त यहां फिर आने के इरादे के साथ.

वैसे भी पढ़ाई पूरी हो गई थी मगर नौकरी या कामधंधा नहीं था तो इस दौरान इश्क की पींगें ही चढ़ा ली जाएं, यह सोच कर दूसरे दिन बनठन कर बस स्टौप पर पहुंचा तो वह भी बस में चढ़ने की कतार में खड़ी थी. उसे देख कर दिल बहुत जोर से धड़का जैसे गले से बाहर ही आ जाएगा. मैं भी कतार में खड़ा हो उस की ओर देख उस के सौंदर्य का नजरों से ही पान करने लगा. कल जो सुंदरता देखी थी वह और भी ज्यादा दिखनी शुरू हो गई और खयालों की दुनिया में जाने से ज्यादा उस के हुस्न का अवलोकन करना ज्यादा बेहतर सम?ा. बस आई तो हाथ में टिफिन ले वह बस में जा बैठी. हम भी पीछे हो लिए. एक ही सीट खाली देख थोड़ी उदारता का प्रदर्शन करते हुए उसे बैठने दे पास में खड़े हो कर आंखों से उस के सौंदर्य का हवाई अवलोकन करने लगा. अब वह भी थोड़ी बेतकल्लुफ सी बैठीबैठी मेरी गतिविधियों से अवगत होते हुए भी मु?ो नजरअंदाज कर रही थी.

मगर अब मेरी हिम्मत खुल गई थी और अब तो बेधड़क देखता रहा उस की सुहानी मूरत को. बस, एक ही बात का दुख था कि जब से देखा है उसे, इतनी बार बस में मिला उस से, लेकिन उस की आवाज नहीं सुनी जो मेरे हिसाब से चांदी की घंटी सी मीठी होनी चाहिए थी. उस का स्टैंड आ गया था तो वह उतर गई. पीछेपीछे मैं भी उतर गया और कुछ खुल कर उस के सामने हंस दिया. जवाब में उस के भी होंठ हलके से फड़फड़ाए थे. दूसरे दिन मिलने की आशा के साथ मैं भी घर की ओर चल पड़ा. सुबह उठते ही उसी के खयालों से दिनचर्या शुरू की और 10 बजते ही बस स्टौप पहुंच इंतजार में लग गया. सामने से होंठों पर मुसकान लिए वह आ गई और बस की लाइन में खड़ी हो गई तो मैं भी पीछे जा कर खड़ा हो गया. थोड़ी देर में बस आई तो आगे वह और पीछे मैं बस में चढ़ गए. संयोग से आज एक सीट पूरी खाली थी. मैं ने भी नारी सम्मान को मान देते हुए उसे बैठ जाने के लिए इशारे से बोला.

वह खिड़की के पास बैठ गई और मैं उस के साथ में बैठ इतरा रहा था. कंडक्टर आया तो उस ने अपने पर्स से पैसे निकाले तो कंडक्टर ने बिना पूछे ही टिकट पकड़ा दिया. इस पर वह मुसकरा कर रह गई. मेरा उस की आवाज सुन पाने का जो ख्वाब था वह टूट गया. टिकट के पैसे दे उस ने पर्स हम दोनों के बीच में रख दिया तो अपनी भी हिम्मत बढ़ी और पर्स को छू कर ऐसा महसूस होने लगा जैसे उस के गरम हाथों को छू लिया हो. मैं ने हिम्मत इकट्ठी की और जेब में से पैन निकाला व एक छोटी सी परची पर लिखा और उसे दूसरे दिन बस स्टौप के पास वाले बगीचे में मिलने बुला लिया. चिट्ठी उस के पर्स के बाहर वाले पौकेट में डाली और उस के उतरने से पहले ही बस से उतर गया. सारी रात सो नहीं पाया मैं कि पता नहीं वह आएगी भी या नहीं. दूसरे दिन समय होते ही बगीचे की ओर चल दिया जहां वह पहले से ही बैठी थी. सुंदर साड़ी, बालों में गजरा लगाए और होंठों पर हलकी सी लाली शायद कुदरती ही थी. मैं भी इधरउधर देख उस की ओर चल दिया और जा कर उस की बगल में बैंच पर बैठ गया तो वह थोड़ी अदा से मुसकराई.

मैं भी जवाब में हंस दिया. मैं अपनी ओर से पता नहीं क्याक्या पूछता रहा और बताता रहा लेकिन वह हंस कर सिर हलके से हां या न कहती रही. इस से मेरे सब्र ने जवाब दे दिया. मैं ?ां?ाला कर बोल ही पड़ा, ‘‘आप जवाब क्यों नहीं दे रही हो, गूंगी हो क्या?’’ इस पर उस ने उंगली से मेरी जेब की ओर इशारा किया जहां पैन था. मैं ने उसे वह दे दिया. उस ने अपने बैग में से एक छोटा सा कागज का टुकड़ा निकाल कुछ लिखा और मेरी ओर बढ़ा दिया. उस में लिखा था, ‘मैं पूर्णतया सुन सकती हूं लेकिन बोल पाने में असमर्थ हूं. क्या आप मु?ा से शादी करेंगे?’

अपनी तो बैंड बज गई, सोचा, वैसे भी बेकार हूं, दोस्त लोग ताना मारेंगे कि गूंगी ही मिली. मैं एक ?ाटके से उठ कर बिना पूछे, बिना देखे चल पड़ा. मैं वहां से जल्द से जल्द भाग जाना चाहता था. पैन लेने को भी नहीं रुका. तभी पीछे से एक मधुर चांदी की घंटी सी आवाज आई, ‘‘अपना पैन तो लेते जाएं, जनाब.’’ मैं जड़वत वहीं खड़ा रह गया. काटो तो खून नहीं. मगर अब कर भी क्या सकता था. उस ने मेरी परीक्षा ली थी, जिस में मैं फेल हो चुका था. पैन लेने की हिम्मत नहीं थी. कैसे करता उस का सामना और अब तो मुट्ठियां बांध पहले धीरेधीरे और बाद में ?ाट से दौड़ बगीचे से बाहर भागा और बाहर आ कर देखा तो कलेजा गले को आया हुआ था और पसीने से कपड़े गीले हो गए थे. इश्क का बुखार उतर चुका था.

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