पुलिस की वरदी का अपराधियों पर खौफ रहता है, लेकिन हरियाणा में खनन माफिया ने प्रदेश पुलिस के डीएसपी सुरेंद्र सिंह बिश्नोई को जिस निर्दयता के साथ डंपर से कुचला है, उस से यही लगता है कि खनन माफिया को जरूर प्रशासनिक या राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ है, वरना एक ड्राइवर का इतना साहस नहीं हो सकता कि वह…
राजधानी दिल्ली एनसीआर के गुरुग्राम से सटे नूंह जिले के तावडू थाने की पुलिस को 18 जुलाई, 2022 की रात में सूचना मिली थी कि पचगांव के पहाड़ी इलाके में अवैध खनन का काम चल रहा है. यह
सूचना उसी वक्त डीएसपी सुरेंद्र सिंह बिश्नोई को भी भेज दी गई थी.
बगैर समय गंवाए डीएसपी बिश्नोई ने छापेमारी के लिए टीम बनाई और अगले रोज 19 जुलाई की पूर्वाह्न साढ़े 11 बजे अपनी टीम के साथ मेवात के पचगांव के पहाड़ी इलाके में जा पहुंचे. टीम में 2 पुलिसकर्मी, एक ड्राइवर और एक गनमैन था.
सूचना सही थी. इलाके में खनन का काम चल रहा था. पुलिस टीम को देख कर पहाड़ी के पास खड़े पत्थरों से भरे डंपर, उन के चालक और खनन में लगे लोग भागने लगे.
डीएसपी उन के वाहन रोकने के लिए आगे आए और अपनी गाड़ी डंपर से सटा दी और गाड़ी से उतर कर उन्होंने डंपर के ड्राइवर से उस के कागजात मांगे, लेकिन बेखौफ ड्राइवर ने डंपर के ब्रेक से एक पैर हटाया और दूसरे पैर से एक्सीलेटर को एक झटके में दबा दिया. पलक झपकते ही डंपर गति में आ गया, जिस से उस के बिलकुल पास खड़े डीएसपी वहीं गिर गए.
बेलगाम डंपर उन को रौंदता हुआ आगे निकल गया. यह सब इतनी जल्दी में हुआ कि डीएसपी खुद को नहीं संभाल पाए और डंपर के मोटे टायरों के नीचे आ गए. उन की गाड़ी में बैठे पुलिसकर्मी देखते रह गए और ड्राइवर डंपर ले कर भागने में सफल हो गया.
मौजूद पुलिसकर्मियों ने यह सूचना विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. इस के बाद तो प्रदेश के पुलिस अधिकारियों के अलावा सैकड़ों पुलिसकर्मी वहां पहुंच गए. अपने अधिकारी की दर्दनाक हत्या किए जाने पर सभी हैरान थे.
उस इलाके में पुलिस ने तुरंत सर्च औपरेशन शुरू कर दिया. तब तक यह खबर तेजी से पूरे प्रदेश से ले कर दिल्ली तक पहुंच गई. हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर समेत गृहमंत्री अनिल विज ने कड़ी काररवाई के आदेश दे दिए. उन्होंने कहा कि जितनी फोर्स लगानी पड़े, लगाई जाए खनन माफियाओं को नहीं बख्शा जाए. फरार डंपर चालक और खनन माफिया को गिरफ्तार करने के आदेश दिए.
इस का असर भी हुआ. घटना के 4 घंटे बाद ही हरियाणा के नूंह में डीएसपी सुरेंद्र बिश्नोई की हत्या के आरोपियों की धरपकड़ शुरू हो गई. घटनास्थल से कुछ दूरी पर ही आरोपियों संग पुलिस की मुठभेड़ भी हुई. इस में एक आरोपी को गोली लगी और उसे पकड़ लिया गया. पकड़ा गया व्यक्ति डंपर का क्लीनर था, जिस ने अपना नाम इकरार बताया.
टायरों के नीचे आने से डीएसपी की मौके पर ही मौत हो गई. इस घटना की सूचना मिलते ही एसपी (नूंह) वरुण सिंगला मौके पर पहुंचे. उन्होंने डीएसपी को अस्पताल पहुंचाया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
दरअसल, डीएसपी बिश्नोई ने यह छापेमारी तावड़ू क्षेत्र में अरावली की पहाडि़यों में बड़े स्तर पर अवैध खनन को रोकने लिए बनाई गई योजना के तहत की थी.
प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के संदर्भ में 3 जून को ही उपमंडल स्तर पर एक स्पैशल टास्क फोर्स का गठन किया था. इस में कई विभागों के अधिकारी शामिल किए गए थे. इस की कमान डीएसपी सुरेंद्र सिंह बिश्नोई को दी गई थी.
एसडीएम तावड़ू सुरेंद्र पाल के अनुसार, टास्क फोर्स गठित कर अरावली के प्रतिबंधित क्षेत्र में अवैध खनन पर लगाम लगाने की काररवाई प्रशासन कर रहा था. टास्क फोर्स को सप्ताह में 2 बार अरावली क्षेत्र से
लगे गांवों का दौरा कर स्थिति का जायजा लेना था.
3 महीने बाद होने वाले थे रिटायर
डीएसपी सुरेंद्र सिंह बिश्नोई हिसार जिले के आदमपुर विधानसभा क्षेत्र में सारंगपुर गांव के रहने वाले थे. वह 12 अप्रैल, 1994 को हरियाणा पुलिस में एएसआई के पद पर भरती हुए थे. हालांकि पहले वह पशुपालन विभाग में क्लस्टर सुपरवाइजर के रूप में भरती हुए थे. यह पद वीएलडी के बराबर होता है. बाद में वर्ष 1993 में उन्होंने हरियाणा पुलिस में एएसआई पद के लिए आवेदन किया. शारीरिक और लिखित परीक्षा पास करने के बाद उन का चयन हो गया. लंबे समय तक वह कुरुक्षेत्र तथा यमुनानगर में तैनात रहे.
सुरेंद्र बिश्नोई ने कुरुक्षेत्र में अपना मकान बनाया हुआ है और करीब 10 साल पहले 2012 में उन की डीएसपी के पद पर पदोन्नति हुई थी. 3 महीने बाद ही पुलिस से 31 अक्तूबर, 2022 रिटायर होने की तारीख थी. परिवार में पत्नी कौशल्या के अलावा उन के 2 बच्चे हैं. एक बेटा और एक बेटी.
वह 8 भाई हैं, जिन में 2 भाई जीवित नहीं हैं. इसी साल फरवरी में उन की मां मन्नी देवी और मार्च में उन के पिता उग्रसेन बिश्नोई की मौत हो गई थी. कुल 23 दिनों के अंतराल में मातापिता की मौत होने के बाद सुरेंद्र बिश्नोई अपने पैतृक गांव सारंगपुर आ गए थे.
सब से बड़े भाई अजीत बिश्नोई की 2009 में मौत हो गई थी, जबकि दूसरे नंबर के भाई ओमप्रकाश गांव में ही खेतीबाड़ी का काम संभालते हैं. तीसरे भाई मक्खन राजकीय महाविद्यालय हिसार से रिटायर हो चुके हैं.
चौथे भाई जगदीश हाईकोर्ट में एएजी के पद से रिटायर हुए थे, उन का देहांत हो चुका है. पांचवें नंबर पर सुरेंद्र बिश्नोई थे. छठें भाई सुभाष राजकीय स्कूल में प्रधानाचार्य हैं. सातवें भाई कृष्ण हिसार शहर में डेयरी चलाते हैं. आठवें सब से छोटे भाई अशोक बिश्नोई सहकारी बैंक कुरुक्षेत्र में मैनेजर हैं.
अगले महीने बेटा कनाडा से अचानक आ कर देता सरप्राइज
घटना के दिन उन की छोटे भाई अशोक से ही 19 जुलाई की सुबह करीब 9 बजे बात हुई थी. उन की मौत की खबर सुन कर परिवार के सभी सदस्य और रिश्तेदार गुरुग्राम पहुंच गए. उन में बेटी प्रियंका और दामाद भी हैं.
प्रियंका बंगलुरु के एक बैंक में डिप्टी मैनेजर है, जबकि उन के दामाद भी बैंक मैनेजर हैं. बेटा सिद्धार्थ बीटेक के बाद मास्टर डिग्री के लिए कनाडा गया हुआ है. सिद्धार्थ की भी शादी हो चुकी है. उस के जुड़वां बेटे 11 सितंबर, 2020 को पैदा हुए थे.
सुरेंद्र की पत्नी कौशल्या गृहिणी हैं. घटना के दिन ही सुरेंद्र ने छोटे भाई अशोक से सुबहसुबह फोन कर कहा था, ‘‘3 महीने बाद रिटायरमेंट होनी है, फिर जल्द ही घर आऊंगा.’’
साथ ही अशोक ने उसी दिन सुरेंद्र के बेटे सिद्धार्थ से भी फोन पर बात होने की बात बताई. सिद्धार्थ ने उन्हें कहा था कि उस ने अगस्त में अपने पिता को सरप्राइज देने के लिए टिकट बुक करवा ली है.
उन की ड्यूटी पर हुई इस मौत से आहत मुख्यमंत्री खट्टर ने उन के परिवार को एक करोड़ रुपए की सहायता राशि और एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी देने के अलावा सुरेंद्र को शहीद का दरजा दिए जाने की घोषणा की.
हरियाणा में यह पहला मामला है, जब खनन माफिया ने किसी डीएसपी को डंपर से कुचल कर मार डाला हो. खनन माफिया गुरुग्राम और नूंह जिले में काफी समय से सक्रिय हैं, जिस के चलते अरावली की तलहटी में पेड़ों की कटाई और पत्थरों की खुदाई का काम लगातार हो रहा है.
इस से पर्यावरण के लिए खतरा बना हुआ है. साथ में जीवजंतुओं की प्रजातियों को भी नुकसान होने की आशंका बनी हुई है. बावजूद इस के खनन माफिया का दुस्साहस बना हुआ है.
हालांकि इस संबंध में नगीना पुलिस ने नांगल मुबारिकपुर, घागस कंसाली तथा झिमरावट, शेखपुर आदि गांवों के लोगों पर अवैध खनन के मुकदमे भी दर्ज किए हैं. अवैध खनन करने वालों के हौसले इतने बुलंद हैं कि पुलिस और खनन विभाग की सख्ती के बावजूद वे नहीं मानते हैं. इसी तरह से पेड़ों को काटने वालों ने भी जुरमाना भरने के बाद भी पेड़ों को काटना बंद नहीं किया है.
35 करोड़ साल पुरानी हैं अरावली पहाडि़यां
यानी कि नूंह जिले के खेड़लीकलां, झिमरावट, घागस कंसाली, फिरोजपुर झिरका, शेखपुर के अलावा कई स्थानों पर अवैध खनन और पेड़ों की लगातार कटाई चरम पर है.
दिल्ली से ले कर हरियाणा, राजस्थान और गुजरात तक फैली अरावली पर्वत शृंखला करीब 800 किलोमीटर लंबी है, जो करीब 35 करोड़ साल पुरानी बताई जाती हैं.
यहां तक कि इसे भूवैज्ञानिक हिमालय पर्वत से भी पुराना कहते हैं. ये पहाडि़यां सिर्फ थार के मरुस्थल को फैलने से ही नहीं रोकती हैं, बल्कि इस की बदौलत ही भूजल जमीन में जमा होता रहता है.
और तो और, इस में जैव विविधता के भंडार भरे हुए हैं. इस में से निकलने वाला खनिज तांबा है तो इन पहाडि़यों के जंगलों में 20 पशु अभयारण्य बने हैं.
यहां तक कि इन में होने वाले खनन से राजधानी दिल्ली तक पर असर होता है. कारण, दिल्ली से मात्र 40 किलोमीटर दूरी पर ही अरावली में खनन का काम अवैध तरीके से चल रहा है. स्टोन क्रशर, ट्रक, ट्रैक्टर ट्रौली और बड़ीबड़ी मशीनें इन पहाडि़यों को रौंदती रहती हैं. यहीं से भवन निर्माण की सामग्री आती है.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में ही पहाड़ी के इस 10 किलोमीटर लंबे इलाके में खनन पर रोक लगा दी थी, लेकिन यहां कई लोग अभी भी खनन का काम कर रहे हैं. स्थानीय ग्रामीणों कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की रोक का कोई असर नहीं है.
4-5 साल पहले यहां हरियाली से भरापूरा एक पहाड़ हुआ करता था, जिस का अब यहां बस नामोनिशान ही बचा है. पहाडि़यों की खुदाई करना दिल्ली के बाहर एक बड़ा व्यापार बन गया है. जबकि 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पर्वत की वर्तमान स्थिति को जानने के लिए एक केंद्रीय समिति का गठन किया था. समिति ने पाया कि अवैध खनन के चलते पिछले 50 सालों में 128 में से 31 पहाडि़यों का नामोनिशान खत्म हो चुका है.
ऐसा भी नहीं है कि अवैध खनन की शिकायतें खनन विभाग के आला अधिकारियों तक न पहुंचती हैं, फिर भी काररवाई नहीं होने से उन का मनोबल बढ़ा हुआ है. अरावली में वन विभाग द्वारा लगाए गए चौकीदार ही लोगों से अवैध खनन करवाते हैं. साथ में पेड़ों को काट कर आरा मशीन मालिकों को बेच देते हैं.
वन विभाग के चौकीदारों की माफियाओं से रहती है मिलीभगत
जबकि अरावली में हर साल वन विभाग लाखों पौधे पर्यावरण को स्वच्छ बनाने के लिए लगाता है, लेकिन यहां पर ये पौधे बड़े होने से पहले ही नष्ट कर दिए जाते हैं. वन विभाग को सालाना घाटा होने का एक कारण यह भी है.
इसी तरह से यहां रात में पत्थरों को तोड़ने काम होता है, उस के बाद उस की दिन में ट्रैक्टरों और ट्रकों में भर कर ढुलाई होती है. उन्हें गांवों में ही छिपा कर रखा जाता है, फिर वहां से जरूरतमंद लोगों और बिल्डरों को बेच दिया जाता है.
अरावली पर्वत शृंखला असोला से शुरू हो कर फरीदाबाद के सूरजकुंड, मांगर बणी, पाली बणी, बड़खल व गुड़गांव के दमदमा तक लगभग 180 वर्गकिलोमीटर के करीब है. पर्यावरण के जानकार एवं ‘सेव अरावली’ के सदस्य जितेंद्र भड़ाना का कहना है कि लकड़ी माफियाओं की नजर अरावली के कीमती पेड़ों पर है. अरावली में लकड़ी माफिया यहां की लकडि़यों को काट कर बाजार में बेचते हैं. पूरे इलाके में खनन भी तेजी से हो रहा है.
सुप्रीम कोर्ट ने दिए थे आदेश
अरावली में अवैध खनन को ले कर सरकार और प्रशासन को कोर्ट की फटकार भी लग चुकी है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी हरियाणा सरकार और जिला प्रशासन अरावली में अवैध रूप से हो रहे खनन रुकवाने में असफल रहा है. इस के विरोध में ‘न्यायिक सुधार संघर्ष समिति’ ने सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की है.
इस की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में 26 जुलाई, 2022 तय की गई. कथा लिखे जाने तक इस का फैसला नहीं आया था. इस में हरियाणा सरकार और जिला प्रशासन को अवैध खनन नहीं रुकवाने का जवाब मांगा गया है.
इस अवमानना याचिका में चीफ सेक्रेटरी हरियाणा, डीसी फरीदाबाद, खनन विभाग और कई अधिकारियों को पार्टी बनाया गया. कोर्ट का कहना है कि अरावली में सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंध के बावजूद वहां बड़े पैमाने पर खनन और अवैध निर्माण क्यों हो रहे हैं?
न्यायिक सुधार संघर्ष समिति के प्रधान एडवोकेट एल.एन. पाराशर ने बताया कि अरावली में अवैध खनन पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध होने के बाद भी हो रहे खनन को देख उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. उन्होंने अवैध खनन की कई तसवीरें और वीडियो कोर्ट को दिए. मामला मीडिया में आने के बाद कुछ खनन माफियाओं पर मामला दर्ज कर खानापूर्ति कर दी गई.
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि सरकार पिछले दिनों पंजाब लैंड प्रिजर्वेशन ऐक्ट (पीएलएपी) में संशोधन बिल लाने की तैयारी में जुटी थी. मामला कोर्ट के संज्ञान में आने के बाद सरकार ने संशोधन बिल पर रोक लगा दी थी. सरकार जो संशोधन बिल ला रही थी, उस से अरावली वन क्षेत्र से बाहर हो जाता. साथ ही यहां हो रहे निर्माण कार्य वैध हो जाते.
क्योंकि पीएलपीए ऐक्ट की धारा 4 व 5 लागू ही नहीं होगी. इस बारे में ‘सेव अरावली व फरीदाबाद एक्टिविस्ट ग्रुप’ का कहना है कि पीएलपीए ऐक्ट 1900 अंगरेजों के जमाने से चला आ रहा है.
इस का मकसद वन क्षेत्र को समाप्त होने से बचाना है. यदि सरकार इस में संशोधन करती है तो आने वाले दिनों में यहां कंक्रीट के जंगल खड़े हो जाएंगे.
इस संस्था की एक रिपोर्ट के मुताबिक हरियाणा में महज 3.5 फीसदी ही हरियाली बची है. वह भी अरावली पर्वत शृंखला के कारण है. अरावली में एक हेक्टेयर जमीन में प्रतिवर्ष 25 लाख लीटर भूजल रिचार्ज होता है. अरावली खत्म होने से पानी और पर्यावरण दोनों पर संकट पैदा हो जाएगा. द्य