कोविड के समय में मजबूरी में शुरू हुई औनलाइन पढ़ाई ने सभी बच्चों के हाथ में मोबाइल फोन दे दिए हैं. यह फोन अब उन के जीवन का अभिन्न अंग बन गया है. बच्चे फोन और लैपटौप पर औनलाइन पढ़ाई से ज्यादा औनलाइन गेम्स खेलना पसंद कर रहे हैं. इन औनलाइन गेम्स का नकारात्मक असर अब पूरी दुनिया के बच्चों और किशोरों में देखने को मिल रहा है.
ऋषभ आज कंप्यूटर इंजीनियरिंग के चौथे सैमेस्टर को कंपलीट कर रहा है. एक साल बाद किसी कंपनी में 12 से 15 लाख रुपए प्रतिवर्ष के पैकेज पर उस की जौइनिंग हो जाएगी. एक निम्नमध्यवर्गीय परिवार के 22 वर्षीय लड़के के लिए यह उत्साह की बात है. लाख से डेढ़ लाख रुपए महीने की आमदनी की कल्पना कर के वह ही नहीं, उस के मातापिता भी उत्साहित हैं. बेटे की पढ़ाई में वे अपनी सारी सेविंग ?ांक चुके हैं. अब बेटे से उन की सारी उम्मीदें बंधी हैं.
5 साल पहले जब ऋषभ एंट्रैंस की तैयारी कर रहा था तब उस का तनाव चरम पर था. मांबाप का बहुत पैसा उस की कोचिंग वगैरह पर खर्च हो रहा था. अपना पेट काटकाट कर वे बेटे के इंजीनियर बनने के सपने को पूरा करने में जुटे थे. ऋषभ को डर था कि अगर वह एंट्रैंस में फेल हो गया तो पिता द्वारा मुश्किल से कमाया जा रहा सारा पैसा बरबाद हो जाएगा.
इस डर में वह तनाव, अवसाद और गुस्से का पुतला बन चुका था. कभीकभी उस की इच्छा होती थी कि वह आत्महत्या कर ले. तनाव की हालत में पढ़ा हुआ कुछ भी ज्यादा देर तक याद नहीं रहता था. तब रात में वह अपने कंप्यूटर पर फीड किए हुए उस गेम को खेलने लगता था जिस में एक कैरेक्टर अपनी बंदूक से अपने तमाम दुश्मनों पर तड़ातड़ गोलियां बरसाता आगे बढ़ता जाता है और मंजिल पर पहुंच जाता है.
इस खेल में कई बार हीरो कैरेक्टर को भी दुश्मन की गोली लग जाती थी और वह ढेर हो जाता था. जब ऐसा होता तो ऋषभ का तनाव और बढ़ जाता था. वह गेम को फिर से स्टार्ट करता और फिर से तड़ातड़ गोलियां बरसाता, मंजिल तक पहुंचने की कोशिश करता था. इस गेम में बारबार जीतने से उस का तनाव काफी हद तक कम हो जाता था और वह फिर पढ़ाई में जुट जाता था.
साफ है मोबाइल फोन पर औनलाइन गेम या कंप्यूटर पर खेले जाने वाले गेम बच्चों के मस्तिष्क पर सीधा असर डालते हैं. यह असर सकारात्मक भी हो सकता है और नकारात्मक भी. ऋषभ के केस में कंप्यूटर गेम का सकारात्मक असर देखने को मिला, मगर 8 जून को लखनऊ के पीजीआई इलाके की यमुनापुरम कालोनी में एक 16 वर्षीय बच्चे ने जिस तरह रात के 2 बजे अपने फौजी पिता की लाइसैंसी पिस्टल से अपनी सोती हुई मां के सिर में तड़ातड़ गोलियां उतार दीं, उस घटना ने पुलिस को भी ?ाक?ार कर रख दिया.
यह बच्चा अपने मोबाइल फोन पर अकसर पबजी गेम खेलता था और उस की मां साधना सिंह अकसर उसे इस बात के लिए डांटती थी. गुस्से में आ कर उस ने मां की हत्या कर दी. यह हैरतअंगेज और बहुत भयभीत करने वाली घटना है और यह कोई अकेला मामला नहीं है. दुनियाभर से ऐसी घटनाओं की खबरें आएदिन आती रहती हैं. अमेरिका में युवा कहीं स्कूलों में घुस कर गोलियां चला रहे हैं तो कहीं किसी मौल में निर्दोष लोगों को गोलियों से भून रहे हैं. इन घटनाओं की तह में जाएं तो इन की जड़ें औनलाइन गेम्स में दबी मिलेंगीं.
कोविड के समय में मजबूरी में शुरू हुई औनलाइन पढ़ाई ने सभी बच्चों के हाथ में मोबाइल फोन दे दिए हैं. बीते
2 सालों से बच्चे घरों में कैद हैं. इन सालों में वे अपने दोस्तों से नहीं मिले, प्लेग्राउंड में जा कर अन्य बच्चों के साथ नहीं खेल सके, रिश्तेदारों के यहां भी आनाजाना बंद था. बच्चों का बस एक ही साथी रह गया था उन का मोबाइल फोन, जिस पर वे पढ़ाई भी कर रहे थे और मनोरंजन के लिए भी उसी पर आधारित थे. यह फोन अब उन के जीवन का अभिन्न अंग बन गया है.
बच्चे फोन और लैपटौप पर औनलाइन पढ़ाई से ज्यादा औनलाइन गेम्स खेलना पसंद कर रहे हैं. कार्टून फिल्म्स, इंटरनैट सर्च आदि में बच्चों का टाइम पास हो रहा था. औनलाइन गेम तो सभी बच्चे खेल रहे थे लेकिन इन औनलाइन गेम्स की लत बच्चों को इतनी बुरी तरह लग जाएगी कि न खेलने की बात कहने पर वे अपने पेरैंट्स की हत्या करने पर उतारू हो जाएं, ऐसा तो किसी ने नहीं सोचा था. यह खेल बच्चों में हिंसक प्रवृत्ति को बढ़ा रहा है. जिद्दी हो जाना, मनमाना व्यवहार करना, बड़ों की बातों को इग्नोर करना, गेम में रमे रह कर पढ़ाई को दरकिनार करना, पोर्न देखना, हिंसक फिल्में देखना, गालीगलौच सीखना आदि सब गलत चीजें बीते इन सालों में बच्चों के व्यवहार में देखने को मिल रही हैं. हिंसक होने के साथसाथ बच्चे औनलाइन ठगी का शिकार भी हो रहे हैं.
दरअसल औनलाइन गेम्स खेलने की लत बच्चों में इतनी बढ़ चुकी है कि वे अपने कंप्यूटर या मोबाइल में बिना सोचेसम?ो कोई भी औनलाइन गेम डाउनलोड कर लेते हैं. कुछ ऐसे गेम्स होते हैं जिन में लैवल अपग्रेड के नाम पर पैसों की मांग की जाती है. जिस कारण कई बच्चे गेम खेलने के लिए बिना अपने मातापिता से पूछे ही उन के क्रैडिटडैबिट कार्ड या यूपीआई से पैसों का ट्रांजैक्शन कर देते हैं. ऐसे केस अब आएदिन देखने को मिल रहे हैं. इस के चलते साइबर क्राइम के मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं.
मामले अनेक हैं
सऔनलाइन गेम में ठगी का एक मामला हाल ही में कानपुर में सामने आया, जहां 14 साल के बच्चे ने मोबाइल पर गेम खेलने की लत में अपने पिता के अकाउंट से 5 लाख रुपए ट्रांसफर कर दिए. जब इस की जानकारी परिवार वालों को हुई तो उन के होश उड़ गए. बच्चे के पिता ने फौरन पुलिस में शिकायत की, जिस के बाद क्राइम ब्रांच ने केस को रजिस्टर कर जांच शुरू की.
स ऐसा ही एक केस छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में भी हुआ, वहां के 12 साल के बच्चे ने औनलाइन गेम में हथियारों को खरीदने के लालच में आ कर अपनी मां के अकाउंट से 3.2 लाख रुपए का औनलाइन पेमैंट कर दिया. यह हरकत उस ने अपने औनलाइन गेम का लैवल बढ़ाने के लिए की थी.
मोबाइल फोन ने आम लोगों की जिंदगी आसान की है तो कुछ मानो में यह एक खतरा भी साबित हो रहा है. कुछ सकारात्मक तो कुछ नकारात्मक प्रभाव लोगों पर पड़ा है. यह नकारात्मक प्रभाव हर उम्र के लोगों पर देखने को मिल रहा है, चाहे वह बच्चा हो, युवा हो या फिर बुजुर्ग. यह एक तरह से अलार्मिंग स्थिति बनती जा रही है.
स दिल्ली के करोल बाग इलाके के निवासी 75 वर्षीय विजेंदर गुप्ता को यूट्यूब देखने का शौक अब एक बीमारी बन चुका है. सुबह दोदो घंटे वे बाथरूम में पौट पर बैठे यूट्यूब देखते रहते हैं. खाना खाते वक्त भी उन का यूट्यूब में ही सारा ध्यान होता है. सब खा कर उठ जाते हैं जबकि वे घंटों धीरेधीरे खाते हुए यूट्यूब में खोए रहते हैं. इस लत की वजह से अब वे न तो अपने कमरे से बाहर निकलना चाहते हैं और न ही किसी रिश्तेदार या दोस्त से मिलना चाहते हैं. यहां तक कि अपने पोतेपोती का आसपास रहना भी उन्हें नागवार गुजरता है और वे उन्हें बुरी तरह लताड़ कर कमरे से बाहर कर देते हैं. उन की इस लत से उन की पत्नी का बीपी बढ़ा रहता है और बेटाबहू भी तनाव में रहते हैं.
स 5 जून को आजमगढ़ के महुला बगीचा गांव में रहने वाला 8 साल का बच्चा धर्मवीर घर के पास बकरी चरा रहा था और मोबाइल फोन पर लूडो खेल रहा था. उस के पिता जितेंद्र ने उसे लूडो खेलते देखा तो उस को बुरी तरह पीट दिया और कमरे में ले जा कर बंद कर दिया. रात में बच्चे की मौत हो गई. जितेंद्र ने अपनी पत्नी बबीता को धमकाया कि वह इस बारे में किसी को न बताए और फिर अपने भाई उपेंद्र की मदद से उस ने बच्चे के शव को चुपचाप घाघरा नदी के किनारे दफना दिया. बच्चे की मां से नहीं रहा गया, उस ने अपने मायके में यह बात खोल दी. इस के बाद हत्यारे पिता को गिरफ्तार किया गया.
स 22 मई को गुजरात के खेड़ा में छोटे भाई ने मोबाइल फोन नहीं दिया तो गुस्से में बड़े भाई ने उसे पीटपीट कर मार डाला और उस के शव को कुएं में फेंक दिया. बड़े भाई की उम्र 17 साल और छोटे भाई की उम्र मात्र 11 साल थी. दोनों बारीबारी से मोबाइल फोन पर गेम खेलते थे. लेकिन उस दिन छोटे ने अपने बड़े भाई को फोन देने से मना किया तो बड़े भाई का गुस्सा इतना बेकाबू हो गया कि उस ने छोटे की जान ही ले ली.
ये सभी घटनाएं यह बताने के लिए काफी हैं कि घरघर में ज्वालामुखी आकार ले रहे हैं, जो कभी भी फूट सकते हैं और पूरे परिवार को तबाह कर सकते हैं.
हाथ में फोन आ जाने से इंटरनैट पर बच्चे बहुतकुछ देख रहे हैं. बहुतकुछ ऐसा भी है जो उन्हें इस नाजुक उम्र में नहीं देखना चाहिए. मातापिता हर समय उन पर नजर नहीं रख सकते. घर में बंद बच्चों की ऊर्जा, गुस्सा, इच्छाएं, सपने, प्रेम आदि को बांटने वाला कोई भी नहीं है. बस, वे हैं और उन का मोबाइल फोन है. औनलाइन गेम्स के लती हो चुके बच्चे इस कदर कुंठित और उग्र हो रहे हैं, इस को समय रहते सम?ाने की जरूरत है और जल्दी से जल्दी बच्चों को उन की स्वाभाविक गतिविधियों में वापस
लाए जाने की आवश्यकता है क्योंकि औनलाइन गेम्स बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरा बनते जा रहे हैं.
ओब्सेसिव कंपल्सिव डिसऔर्डर
यूट्यूब, इंटरनैट, औनलाइन गेम्स का लती होना, उस से दूर होने पर खुद पर काबू न रख पाना यह एक तरह की बीमारी है जिसे ओब्सेसिव कंपल्सिव डिसऔर्डर (ओसीडी) कहते हैं. इस में मरीज को जिस चीज से जुड़ाव हो जाता है उस से वह खुद को अलग नहीं कर पाता. यदि ऐसे रोगियों को मोबाइल गेम खेलना पसंद आ जाता है तो उन्हें उसी में आनंद मिलता है. उन्हें मोबाइल गेम का नशा हो जाता है. बाकी सब चीजें, यहां तक की परिजनों की मौजूदगी तक, उन के लिए असहनीय हो जाती है. ऐसे मरीज किसी से नहीं मिलते. वे किसी से कोई बात सा?ा नहीं करते. वे अपने में ही गुम हो जाते हैं और आगे चल कर कई अन्य प्रकार के मानसिक रोग व डिप्रैशन का शिकार हो जाते हैं.
बच्चों को सामान्य जीवन में वापस लाएं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में औनलाइन गेम्स के खतरों को ले कर एक ट्वीट किया है. उस में उन्होंने लिखा कि जितने भी डिजिटल या औनलाइन गेम्स मार्केट में मौजूद हैं उन में से ज्यादातर का कौन्सैप्ट भारतीय नहीं है. औनलाइन गेम्स के ज्यादातर कौन्सैप्ट या तो वायलैंस को बढ़ाते हैं या मैंटल स्ट्रैस का कारण बनते हैं.
बहुत जरूरी है कि अब बच्चों को उन के स्वाभाविक क्रियाकलापों में वापस लाया जाए. वे दोस्तों से मिलेंजुलें. रिश्तेदारों के घर जाएं. खेल के मैदानों में उन की वापसी हो और स्कूलों में अन्य बच्चों के साथ बैठ कर वे पढ़ाई करें. मातापिता के लिए यह समय बहुत नाजुक है. बीते 2 वर्षों से बच्चे जिस तरह के वातावरण में रह रहे थे उस से उन्हें बाहर निकालने में थोड़ी कठिनाई अवश्य होगी लेकिन अपने बच्चों के मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए हमें यह करना ही होगा.
पेरैंट्स निगाह रखें कि उन का बच्चा मोबाइल फोन पर पढ़ाई कर रहा है या गेम खेल रहा है. वे इस बात के लिए चौकन्ने रहें कि बच्चा अगर गेम का लती हो गया है तो किसी तरह प्रेमपूर्वक उस का ध्यान दूसरी तरफ लगाएं. वे मोबाइल फोन को ले कर बच्चों को पीटें नहीं, बल्कि उन्हें सम?ाएं कि यह लत बीमारी बन सकती है.
धीरेधीरे कर के उन्हें मोबाइल से अलग करें. इस के लिए स्कूलों को और शिक्षकों को भी भरपूर प्रयास करने होंगे ताकि हम अपने बच्चों को एक सामान्य जीवन में वापस ला सकें. बच्चे इस देश का भविष्य हैं. उन का कुंठित और गुस्सैल होना किसी भी तरह से देशहित में नहीं है.
पबजी गेम भारत में अब भी कैसे उपलब्ध : एनसीपीसीआर
8 जून की घटना, जिस में पबजी गेम के लती 16 वर्षीय किशोर ने अपने पिता की लाइसैंसी पिस्टल से रात के 2 बजे अपनी सोती हुई मां की हत्या कर दी, के बाद राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय से यह स्पष्टीकरण मांगा है कि भारत में प्रतिबंधित होने के बावजूद पबजी गेम नाबालिगों द्वारा इस्तेमाल किए जाने के लिए कैसे उपलब्ध है?
गौरतलब है कि वर्ष 2020 में सरकार ने लोकप्रिय ऐप पबजी और अन्य को राष्ट्र की संप्रभुता, अखंडता और सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए प्रतिबंधित कर दिया था. एनसीपीसीआर ने मंत्रालय के सचिव को पत्र लिख कर कहा कि इस घटना के मद्देनजर यह आयोग की सम?ा से परे है कि कैसे एक प्रतिबंधित खेल, जिसे सरकार द्वारा ब्लौक कर दिया गया है, अभी भी नाबालिगों के उपयोग के लिए उपलब्ध है. इसलिए आयोग आप के कार्यालय से ऐसे प्रतिबंधित ऐप की इंटरनैट पर उपलब्धता के कारणों को सूचित करने का अनुरोध करता है.
सिर्फ गेम नहीं, मोबाइल में कई चीजें बिगाड़ रहीं आप के बच्चे को
आजकल बच्चे पढ़ाई से ज्यादा समय मोबाइल पर बिताने लगे हैं. मोबाइल की दुनिया से कनैक्ट होते ही 40 प्रतिशत बच्चे अच्छी चीजों को सीखने के लिए ध्यान लगाते हैं जबकि 60 प्रतिशत बच्चे स्मार्टफोन के जरिए गलत चीजों की तरफ बढ़ने लगते हैं. हिंसा से भरी फिल्में और पोर्न उन्हें जल्दी अपनी गिरफ्त में ले लेते हैं. अगर आप को ऐसा लगता है कि आप के बच्चे मोबाइल गेम की वजह से गलत संगत में जा रहे हैं तो तुरंत सचेत हो जाइए और बच्चे को प्यार से सम?ाबु?ा कर उस से अलग करिए.
मोबाइल की दुनिया में ऐसी कई चीजें मौजूद हैं जो बच्चों का भविष्य खराब करने की वजह बनती जा रही हैं. मोबाइल की लत आप के बच्चों पर इस तरह असर कर रही है कि वे सिर्फ मानसिक रूप से बीमार नहीं, बल्कि शारीरिक बीमारी की चपेट में भी आ सकते हैं. ऐसे में आप को उन का खास ध्यान रखना होगा. उन्हें डांट से नहीं, प्यार से सम?ाने की जरूरत है. रोज मोबाइल की स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताना बच्चों की आंखों के लिए भी खतरनाक है. ऐसे में उन्हें प्यार से सम?ाएं कि इस का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है.
आउटडोर गेम्स के लिए करें प्रेरित
इनडोर गेम्स की जगह बच्चों को ऐसे आउटडोर गेम्स के लिए प्रेरित करें जो उन की सेहत के लिए बेहतर हों. इस के अलावा घर का माहौल ऐसा बनाने की कोशिश करें कि बच्चे अकेले न पड़ें. अकेलापन पा कर बच्चे मोबाइल में गेम खेलने लगते हैं या गलत गतिविधियों में लिप्त हो जाते हैं.
सोशल मीडिया से रखें दूर
बच्चे मोबाइल पर मूवी देख रहे हों या फिर गेम खेल रहे हों, उन्हें हिंसक दृश्यों से दूर रखें. वे कैसी मूवी देख रहे हैं, इस पर भी आप की नजर होनी चाहिए. उन्हें सम?ाएं कि इस का उन के मन और मानसिक स्वास्थ्य पर क्या असर पडे़गा. साथ ही, सोशल मीडिया की उकसाऊ बातों से भी बच्चों को दूर रखें.
हिंसक कंटैंट वाले कार्टून शो
‘चलो कार्टून लगा दे रहे हैं, खाना खा लो… अच्छा रो नहीं, यह लो कार्टून देखो और मु?ो काम करने दो…’ अगर आप भी कुछ इसी तरह अपने बच्चों को मनाने, खाना खिलाने या शरारतों से रोकने के लिए कार्टून शोज का सहारा लेते हैं तो अब सावधान हो जाइए क्योंकि सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर आने वाले ज्यादातर कार्टून शो हिंसात्मक कंटैंट से भरे हुए हैं. गालियां, गोलियां, मारपीट वाले कंटैंट से भरे ये कार्टून शो बच्चों के नाजुक मन पर गलत प्रभाव छोड़ते हैं.
बच्चे हमेशा जो देखते हैं उस की नकल करते हैं. गोलीबंदूक वाले शो देख कर वे उद्वेलित होते हैं और उन्हें भी उसी प्रकार की गतिविधियां करने का मन करता है. तमाम कार्टून शो शाब्दिक हिंसा, अपशब्द, धमकी, मारनेपीटने, आंखें तरेरने, क्रोध, मारने का इशारा करने, अनादर करने, बेईमानी, ?ाठ बोलने और गालियों आदि से भरे होते हैं.
जिस तेजी से मोबाइल फोन, गैजेट्स और कार्टून कैरेक्टर ने बच्चों की जिंदगी में पैठ बना ली है, उस पर लगातार निगरानी जरूरी है. इस के लिए जरूरी है कि बच्चों के सामने जो परोसा जा रहा है उसे हम समयसमय पर फिल्टर करते रहें. कार्टून का गहरा प्रभाव पड़ता है. बच्चों के व्यवहार में आने वाले परिवर्तनों के लिए कार्टून बहुत हद तक जिम्मेदार हैं. ऐसे में कोशिश करें कि हमेशा सकारात्मक कंटैंट ही उन के सामने हो.
बैन के बावजूद आसानी से सर्च कर लेते हैं पोर्न साइट
बता दें कि काफी समय पहले सरकार ने देश में इंटरनैट सेवा उपलब्ध करवाने वाले सर्विस प्रोवाइडर्स से कहा था कि वे 827 पोर्न वैबसाइट्स को ब्लौक कर दें. यह आदेश तब आया था जब उत्तराखंड के एक स्कूल में हुए रेप के बाद आरोपी ने खुलासा किया था कि उस ने रेप से पहले पोर्न साइट देखी थी. मामले की गंभीरता को देखते हुए उत्तराखंड हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि पोर्न साइट्स को बंद किया जाए.
सुप्रीम कोर्ट में पहले से इसे ले कर अर्जी है कि पोर्न साइट्स बंद की जाएं लेकिन अभी तक ये पूरी तरह से बंद नहीं की गई हैं. सरकार ने सिर्फ चाइल्ड पोर्नोग्राफी वाली साइट्स को बंद करने का आदेश जारी किया है. बावजूद इस के इंटरनैट पर मौजूद अन्य साधनों के जरिए कई लोग आसानी से ये साइटें सर्च कर लेते हैं जिन में सब से ज्यादा किशोरावस्था के लोग शामिल हैं.
ओटीटी प्लेटफौर्म्स भी बरबादी का कारण
अगर आप ओटीटी प्लेटफौर्म्स पर वैब सीरीज देखने के शौकीन हैं तो कृपया अपने बच्चों को उस से दूर रखें. वैब सीरीज में दिखाए गए अश्लील दृश्य और गालीगलौच भरे डायलौग भी आप के बच्चों पर बुरा असर डाल रहे हैं. वैब सीरीज के अधिकतर डायलौग युवाओं को सुनने में काफी अच्छे लगते हैं क्योंकि उन में सब से ज्यादा गालियों का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन उसे याद कर बच्चे अपनी भाषा में भी शामिल कर लेते हैं. यह कुछ और नहीं बल्कि बच्चों की बरबादी का कारण बनता जा रहा है –नसीम अंसारी द्य
गलत काम के लिए करते हैं एक खास ऐप का इस्तेमाल
एक सर्वे के मुताबिक कहा जाता है कि युवा गलत कामों के लिए एक खास ऐप का काफी इस्तेमाल कर रहे हैं. यह ऐप प्ले स्टोर में आसानी से उपलब्ध हो जाता है. बताया जाता है कि पूरे भारत में अब तक इस ऐप का इस्तेमाल एक बिलियन से ज्यादा लोग कर रहे हैं. इस ऐप में पोर्न साइट, पाइरेटेड मूवी, हाई ग्राफ के गेम आसानी से मिल जाते हैं.
इस के साथ ही इस ऐप में अब मैसेज के जरिए सट्टा लगाना भी शुरू हो गया है. बता दें कि कभी यह ऐप व्हाट्सऐप की तरह एक मैसेंजर के तौर पर यूज किया जाता था, लेकिन अब यह सिर्फ गलत कामों का प्लेटफौर्म बन गया है.