गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स यानी जीएसटी कानून को देश के कर ढांचे में सुधार का एक बहुत बड़ा कदम माना जा रहा है. सरकार का मानना है कि एक देश, एक कर वाले जीएसटी कानून से कर चोरी रुकेगी, महंगाई कम होगी और कर ढांचे से उत्पीड़न व कानूनी केस कम होंगे.

जीएसटी को इस तरह प्रचारित किया जा रहा है मानो इस के लागू होते ही समूचे देश में नैतिकता कायम हो जाएगी. इस बिल में लिखित हर नियमकायदे को गीता का श्लोक मान कर लोग बड़ी श्रद्धा, ईमानदारी, सत्य भाव से पालन करते हुए टैक्स अदा करने लगेंगे. बेईमानी खत्म हो जाएगी. टैक्स अधिकारी ईमानदार की प्रतिमूर्ति बन जाएंगे. सवाल है कि जो दावे किए जा रहे हैं  क्या जीएसटी लागू होने के बाद वे वास्तव में खरे उतरेंगे?

जीएसटी है क्या

जीएसटी एक अप्रत्यक्ष कर कानून है. यह एक एकीकृत कर है जो वस्तुओं एवं सेवाओं दोनों पर लगेगा. जीएसटी लागू होने पर पूरा देश एक एकीकृत बाजार में तबदील हो जाएगा और ज्यादातर अप्रत्यक्ष कर जैसे केंद्रीय उत्पाद कर, सेवा कर, वैट, मनोरंजन कर, विलासिता कर, लौटरी टैक्स जैसे 25 से अधिक कर जीएसटी में समाहित हो जाएंगे. इस से समूचे भारत में एक ही कर लगेगा.

वैसे, संविधान के मुताबिक केंद्र और राज्य सरकारें संविधान में दी गई सूचियों के अनुसार अपने हिसाब से वस्तुओं और सेवाओं पर टैक्स लगा सकती हैं. पर इस कानून को लाभदायक मान कर सारे राज्य सहमत हो गए हैं कि करों के जंजाल से शायद देश को मुक्ति मिल जाए.

आज अगर कोई कंपनी या कारखाना एक राज्य में अपने उत्पाद बना कर दूसरे राज्य में बेचता है तो उसे कई तरह के टैक्स दोनों राज्यों को चुकाने होते हैं जिस से उत्पाद की कीमत बढ़ जाती है.

जीएसटी एक जुलाई से लागू करने की पूरी तैयारी है. जीएसटी परिषद ने 500 सेवाओं और 1,200 से ज्यादा वस्तुओं की कर की दरें तय की हैं. उस ने कर की दरों के 5,12,18 और 28 प्रतिशत के 4 स्लैब निर्धारित किए हैं. इन में कई वस्तुओं के महंगी होने की आशंका है तो कई के सस्ती होने के दावे किए गए हैं.

ताजा मीट, अंडा, दूध, दही, शहद, फल, सब्जियां, आटा, बेसन, बटर मिल्क, ब्रैड, नमक, बिंदी, स्टांप, किताबें, अखबार, चूडि़यां, सिंदूर, हैंडलूम आइटम जैसी चीजों के अलावा दैनिक जरूरतों के सामान को इस कर के दायरे से बाहर रखा गया है. पेंट और सीमेंट सस्ता होंगी. सिगरेट, ब्रैंडेड ज्वैलरी, ट्रक जैसे व्यावसायिक वाहन महंगे होंगे. एसी, रैफ्रीजरेटर, टीवी, वाश्ंिग मशीन, महंगे होंगे जबकि स्मार्टफोन, छोटी कारें सस्ती होंगी. शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं कर मुक्त रहेंगी. फोन बिल, इंश्योरैंस व अन्य वित्तीय सेवाओं और ब्रैंडेड कपड़ों पर टैक्स बढे़गा. एसी रेल टिकट पर 5 प्रतिशत टैक्स लगेगा. इकोनौमी श्रेणी की विमानसेवा सस्ती जबकि बिजनैस क्लास महंगी होगी. रेस्तरां में खाना महंगा होगा. पूजा सामग्री, मैडिकल उपकरण भी सस्ते होंगे.

इन के अलावा क्रीम, मिल्क पाउडर, पैक्ड सब्जियां, कौफी, चाय, पिज्जा ब्रैड, कैरोसिन, कोयला, दवाएं, ब्रैंडेड पनीर, साबूदाना जैसी वस्तुओं को 5 प्रतिशत टैक्स के दायरे में रखा गया है. मिठाई, खा- तेल, चीनी भी इसी टैक्स स्लैब में होंगी. हेयर औयल, टूथपेस्ट, साबुन जैसी वस्तुओं पर 18 प्रतिशत टैक्स लगेगा.

शराब पूरी तरह से जीएसटी से बाहर रहेगी यानी इस पर टैक्स लगाने के लिए राज्य सरकारें स्वतंत्र होंगी. पैट्रोल, एलपीजी और रसोई गैस को भी जीएसटी से बाहर रखने का फैसला लिया गया. केंद्र और राज्य दोनों मिल कर इन पर टैक्स लगाते रहेंगे.

महंगाई पर असर

जीएसटी के 3 अंग होंगे, केंद्रीय जीएसटी, राज्य जीएसटी और इंटीग्रेटेड जीएसटी. केंद्रीय और इंटीग्रेटेड जीएसटी केंद्र लागू करेगा जबकि राज्य जीएसटी राज्य सरकारें लागू करेंगी. शराब, सिगरेट पर अधिक टैक्स लगेगा. सरकार को उम्मीद है कि इस से महंगाई 2 फीसदी कम होगी.

यह संविधान में 122वां संशोधन है. इसे भारत में टैक्स सुधारों को ले कर आजादी के बाद से अब तक का सब से महत्त्वपूर्ण संवैधानिक संशोधन माना जा रहा है.

बताया गया है कि कुछ सामान ऐसे हैं जिन्हें इन दरों के भी दायरे से बाहर रखा गया है. कुछ अन्य मामलों में म्युनिसिपल कौर्पोरेशन जैसी स्थानीय संस्थाएं भी कर थोप सकती हैं. इस तरह देश में अप्रत्यक्ष करों की समान दर की दिशा में जीएसटी आधाअधूरा कदम है.

आंकड़ों के अनुसार, देश के करीब 132 करोड़ लोग सेवाओं और वस्तुओं पर सिर्फ एक तरह का टैक्स देंगे.  मुख्यरूप से वस्तुओं की बिक्री पर कर लगाने का संवैधानिक अधिकार राज्य सरकार और वस्तुओं के उत्पादन व सेवाओं पर कर लगाने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है. इस कारण देश में अलगअलग प्रकार के कर लागू हैं. कंपनियों और छोटे व्यवसायों के लिए विभिन्न प्रकार के कर कानूनों का पालन करना मुश्किल होता है.

जीएसटी लागू होने से केंद्र को तो फायदा होगा पर राज्यों को इस बात का डर था कि उन्हें नुकसान होगा क्योंकि इस के बाद वे कई तरह के टैक्स नहीं वसूल पाएंगे जिस से उन की कमाई कम हो जाएगी.

जीएसटी बिल पर कांग्रेसी राज के दौरान काम शुरू हुआ था. यह बिल लोकसभा में मई 2015 में पारित हो गया था पर राज्यसभा में इस बिल को पास कराने के लिए बड़ी मशक्कत करनी पड़ी. इस के लिए केंद्र सरकार को कई संशोधन करने पड़े.

कांग्रेस ने शुरू में विरोध किया था पर कुछ संशोधनों के बाद वह सहमत हो गई. कांग्रेस ने बिल को समर्थन तब दिया जब सहमति बनाने के लिए जीएसटी बिल में कुछ बड़े बदलाव किए गए. इन में 1 प्रतिशत इंटरस्टेट ट्रांजैक्शन टैक्स हटाया गया है. मूल विधेयक में राज्यों के बीच व्यापार पर 3 साल तक 1 प्रतिशत अतिरिक्त टैक्स लगाना था.

विवादों का फेर

बदलाव के बाद अब राज्यों को 5 वर्षों तक 100 प्रतिशत नुकसान की भरपाई की जाएगी. पहले 3 साल तक 100 फीसदी, चौथे साल 75 फीसदी और 5वें साल में 50 फीसदी भरपाई का प्रावधान है.

विवाद सुलझाने के लिए नई व्यवस्था की गई है जिस में राज्यों की आवाज बुलंद होगी. पहले विवाद सुलझाने की व्यवस्था मतदान आधारित थी जिस में दोतिहाई वोट राज्यों के और एकतिहाई केंद्र के पास थे. विधेयक में जीएसटी के मूल सिद्धांत को परिभाषित करने वाला एक नया प्रावधान जोड़ा जाएगा जिस में राज्यों और आम लोगों को नुकसान नहीं होने का भरोसा दिलाया जाएगा.        देश के ज्यादातर राज्य जीएसटी के समर्थन में हैं. देश के कई राज्यों को अपनीअपनी विधानसभाओं में इसे पास कराना होगा.

दुनिया के कई देशों में इस तरह की कर व्यवस्था है. यह करीब 165 देशों में है. इन में फ्रांस, जरमनी, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, स्वीडन, डेनमार्क जैसे देश हैं पर ये सभी देश छोटे हैं चाहे अमीर हों. मोदी सरकार के सामने 2 साल में जीएसटी को समुचित तरीके से लागू कराने की चुनौती है. कालेधन और बेनामी संपत्ति के कानूनों का असर अभी तक दिखना शुरू नहीं हुआ है. नवंबर 2016 में सरकार ने हजार और 5 सौ रुपए के नोट बंद करने का फैसला लिया था.

नोटबंदी से आर्थिक विकास पर भले ही फर्क न दिखा हो पर सूक्ष्म व लघु उद्योगों की हालत बिगड़ी है. बैंकों का एनपीए एक लाख करोड़ रुपए बढ़ा है और बड़े कर्जदारों से कर्जवसूली नहीं हो पाई है. आर्थिक विकास के साथ रोजगार के पर्याप्त अवसर नहीं बढ़ रहे हैं. देश में हर साल करीब एक करोड़ युवा पढ़ाईर् पूरी कर के नौकरी की तलाश में जुट जाते हैं. सरकार का हर साल 1 से 2 करोड़ रोजगार देने का वादा फिलहाल हकीकत से दूर नजर आ रहा है.

कर व्यवस्था

रोजगार वृद्धि में रुकावट का एक बड़ा कारण कर व्यवस्था भी माना जाता है. हमारे यहां जौबलैस ग्रोथ के कारणों में बताया जाता है कि जीडीपी में बड़ी हिस्सेदारी वाले सर्विस सैक्टर जैसे कई क्षेत्रों में नौकरियों की वृद्धि का अनुपात समान नहीं है. मैन्युफैक्चरिंग, कृषि जैसे अधिक रोजगार देने वाले क्षेत्र अर्थव्यवस्था की गति के हिसाब से पीछे हैं. जीडीपी में भारतीय मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी केवल 16 प्रतिशत है जबकि चीन में यह 35 प्रतिशत है.

छोटे व खुदरा व्यापारियों के संगठन सरकार से माल एवं सेवा कर के तहत विभिन्न वस्तुओं की दर पर पुनर्विचार करने की मांग कर रहे हैं. बौलीवुड भी जीएसटी के विरोध में उतर रहा है. शराब और रीयल एस्टेट को जीएसटी के दायरे से बाहर रखे जाने के चलते सरकार पर राजनीतिबाजों और प्रभावशाली लोगों की लौबी के दबाव में काम करने के आरोप लग रहे हैं.

आईटी कंपनियों को नुकसान होने का अंदेशा है. वर्कफोर्स से ले कर उत्पादन की लागत तक सब बढ़ जाएगी.

दरअसल, जीएसटी का जितना प्रशंसागान हो रहा है उतना फायदा होगा नहीं. बिचौलिए खत्म नहीं होंगे. टैक्स ज्यादा है तो चोरी रुकेगी नहीं. अगर कर कम होता तो गुंजाइश कम रहती.

सिनेमा चाहे थिएटर में जा कर देखें या घर पर, दोनों ही जगह 18 प्रतिशत टैक्स लगने से पायरेसी का धंधा बढे़गा.

जीएसटी के दायरे में वे दुकानदार भी आएंगे जो वर्तमान में नकद में माल बेचते हैं और ऐक्साइज व वैट चुकाने से बचते हैं. जब आप टैक्स नहीं देते हैं तो वस्तु या सेवा की कीमत टैक्स के बराबर कम हो जाती है. यह बात हर ग्राहक जानता है. आमतौर पर दुकानदार उस से यही कहता है कि पक्का बिल चाहिए तो टैक्स चुकाना होगा और बिल की राशि उतनी ही बढ़ जाएगी.

जीएसटी के अमल में आने पर अब इस पर रोक लगेगी तब महंगाई दर का बढ़ना तय है. आखिर यह टैक्स जनता की जेब से ही तो जाएगा.

देश के तमाम राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एक बाधारहित प्लेटफौर्म पर लाना इतना आसान नहीं होगा. रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया, रिटर्न फाइलिंग, मौनीटरिंग और सैटलमैंट जैसी व्यवस्था पुख्ता करना टेढ़ी खीर होगा. टैक्स चोरी पर नियंत्रण के लिए स्पष्ट तंत्र नहीं है.

टैक्स चोरी कैसे हो सकती है? माल आपूर्तिकर्ता कर का भुगतान बिल के अनुसार करेगा, न कि माल की वास्तविक आपूर्ति के हिसाब से. माल आपूर्ति और इनवौयस में अंतर किए जाने की बेईमानी बढे़गी. सरकार के लिए इस पर अंकुश लगाना मुश्किल होगा.

मान लीजिए एक व्यापारी ने ट्रक में माल भरने से पहले खाली ट्रक का वजन कराया. फिर 20 टन माल भरवा दिया लेकिन बिल में उस ने 15 टन ही दर्शाया है. अब वह 5 टन माल का टैक्स बचा लेगा. अगर माल तुलवाया गया और बेईमानी पकड़ में आ गई तो भी वह ऊपर के माल पर इंस्पैक्टर को घूस दे कर कर चोरी से बच जाएगा. सरकार यहां क्या कर लेगी? ऐसे में इंस्पैक्टर राज बढ़ जाएगा. इसे रोक पाना सरकार के सामने पहले की तरह चुनौती होगी.

जाली बिलों का चलन बढ़ जाएगा. सरकार को लगता है कि जीएसटी लागू होने से गलत लोग बाजार से खुद ही बाहर हो जाएंगे, पर ऐसा होगा नहीं. पाप करेंगे, तो दानपुण्य कर के बचने के उपाय भी तो हैं. चोरी, बेईमानी हमारी रगरग में बसी हुई है.

अर्थशास्त्रियों के अनुसार, जीएसटी लागू होने से नए घर खरीदने की कीमत बढ़ जाएगी और घर खरीदने वालों में कमी आएगी. जानकार कह रहे हैं कि जीएसटी एक भ्रम है. एक कर के नाम पर 2 तरह के कर, एक सैंट्रल टैक्स और दूसरा राज्य टैक्स लगेगा. इन के अलावा एक इंटरस्टेट जीएसटी भी लागू हो सकता है. इस के नियमों के बारे में अभी साफतौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता.

जीएसटी का मतलब यह नहीं है कि यह कानून प्रकृति के डीएनए की तरह होगा कि हर पीपल का पेड़ एकजैसा होगा. इसे अफसरों ने बनाया है और अफसरशाही ने पंडों की तरह गलती होने पर यहां भी चढ़ावे का दस्तूर बनाया हुआ है.

यहां तो लोग घोर धार्मिक होते हुए भी धर्म के बताए रास्ते पर नहीं चलते. अगर चलते तो कालाधन, करचोरी, बेईमानी, चोरी होती ही नहीं. इस से चोरी, बेईमानी, भ्रष्टाचार, कालेधन पर रोक बदस्तूर जारी रहेगी. क्या जिन देशों में ऐसी कर व्यवस्था है वहां ईमानदारी का राज स्थापित हो गया है?

राजा के राजधर्र्म से ले कर राज कर्मचारियों की बेईमानी को रोकने के लिए सैकड़ों साल पहले लिखी गईं चाणक्य नीति से ले कर कौटिल्य की अर्थनीति तक की सीख के बावजूद करों को ले कर न व्यापारियों, न जनता और न ही राज की बेईमानी रुक पाई है.

जीएसटी से भी ऐसा नहीं लग रहा है. हां, चाणक्य नीति, कौटिल्य नीति के बाद अब जीएसटी बिल मोदी नीति के रूप में जरूर शुमार हो जाएगा.  

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