हर इंसान को किसी न किसी चीज से एलर्जी होती हैं, किसी को भीड़ व गर्द से एलर्जी है तो वहीं सैकड़ों लोग हर साल दवाओं की एलर्जी से जान गंवा बैठते हैं. कई लोगों को ठंड से शरीर पर दाने हो जाते हैं, किसी को सूरज की रोशनी में जाने पर एलर्जी हो जाती है. यानी किसी व्यक्ति को किसी भी पदार्थ से एलर्जी हो सकती है.

फूलों के छोटेछोटे परागकणों के कारण भी कई लोगों को एलर्जी हो जाती है. यह एलर्जी वसंत ऋतु में फूल खिलने के समय बहुत आम होती है. भारत में यह आम नहीं है लेकिन अमेरिका व यूरोप जैसे ठंडे देशों में इस का काफी असर देखा गया है.

अमेरिका में 4 करोड़ लोगों में यह एलर्जी पाई जाती हैं. यूरोप में हर 5वें शख्स में यह एलर्जी है. दरअसल, पश्चिमी देशों में सर्दी शुरू होने से पहले ही पतझड़ आ जाता है. सर्दी के खत्म होने पर जब वसंत ऋतु आती है तो पेड़ों पर लगे रंगबिरंगे नए फूल देखने में बहुत सुंदर लगते हैं लेकिन मन को लुभाने वाले इन फूलों में से निकलते हैं छोटेछोटे बीज जिन्हें पौलेन ग्रेन या परागकण कहा जाता है. ये हवा में मिल कर चारों तरफ फैल जाते हैं. इन के कारण नाक और गले में जलन व सांस लेने में दिक्कत आने लगती है.

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पौलेन सीधा फेफड़ों पर जम कर असर करता है. पौलेन वास्तव में इतने बारीक होते हैं कि ये कब मुंह में सांस लेते वक्त चले जाते हैं, इस का किसी को भी पता नहीं चल पाता और ये अत्यधिक बारीक होने के कारण फेफड़ों पर परत बना देते हैं जिस से अचानक ही सांस लेने में दिक्कत होने लगती है. इस के अलावा, पौलेन फेफड़ों में पहुंच कर या गले में संक्रमण कर सकता है. इस से खासकर एलर्जी वाले मरीजों को दिक्कत होती है.

ऐसा भी माना जाता है कि ज्यादा साफसफाई वाले देशों में इस बीमारी का ज्यादा असर होता है. इस की वजह यह है कि साफ वातावरण में रह कर शरीर की बीमारी से लड़ने की क्षमता यानी इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है. जिस के कारण शरीर बीमारियों का मुकाबला करने में बेबस महसूस करने लगता है.

शायद यही वजह है कि भारत में यह एलर्जी उतनी आम नहीं है. हां, बड़े शहरों में जहां लोग अपना सारा दिन एयरकंडीशंड कमरों में बिताते हैं, वे आसानी से इस एलर्जी के शिकार हो जाते हैं.

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क्यों होती है एलर्जी

सवाल यह उठता है कि कुछ लोगों को परागकण से एलर्जी क्यों होती है और यह एलर्जी किस तरह से हमारे शरीर को प्रभावित करती है? इस बारे में डाक्टर कोचर का कहना है कि ये छोटेछोटे परागकण नाक में घुस कर उस के अंदर की श्लेष्मा की परत से चिपक जाते हैं, इस के बाद ये नाक से गले तक पहुंच जाते हैं, जहां इन्हें या तो निगल लिया जाता है या फिर खांस कर बाहर निकाल दिया जाता है. इस से कोई नुकसान नहीं होता है लेकिन कभीकभी परागकण, रोग प्रतिरक्षा तंत्र यानी बीमारियों से लड़ने की शरीर की ताकत पर असर करते हैं.

दरअसल, समस्या की जड़ पराग में पाया जाने वाला प्रोटीन है, जिन लोगों को पराग से एलर्जी होती है, उन के शरीर का रोग प्रतिरक्षा तंत्र कुछ खास किस्म के पराग के प्रोटीन को खतरा समझने लगता है. इसलिए जब उन के शरीर में ये परागकण घुस आते हैं, तो ऐसा चक्र शुरू हो जाता है कि जिस से शरीर के उतकों में पाई जाने वाली मास्ट कोशिकाएं फट जाती हैं और ये बड़ी तादाद में हिस्टामीन नाम का पदार्थ छोड़ती हैं.

हिस्टामीन की वजह से खून की नलियां फैल जाती हैं और उन में से पदार्थों के आरपार जाने का रास्ता खुल जाता है. इस वजह से बीमारियों से लड़ने वाली कोशिकाओं से भरा द्रव्य बह कर बरबाद हो जाता है. नतीजनन, नाक बहने लगती है और उस में खुजली होने लगती है, ऊतक फूल जाते हैं और आंखों से पानी आने लगता है.

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फूलों में मौजूद पौलेन की वजह से लोगों को अस्थमा की एलर्जी भी हो जाती है. बच्चों का इम्यून सिस्टम पूरी तरह से विकसित नहीं होता है, इसलिए उन्हें एलर्जी की समस्या ज्यादा होती है. कुछ बच्चों की सांस की नली असाधारण रूप से संवेदनशील होती है, जो वातावरण में मौजूद धूल के कणों की वजह से सिकुड़ जाती है और उस में सूजन आ जाती है, इसी वजह से बच्चों को सांस लेने में तकलीफ और खांसी की समस्या होती है. आमतौर पर फूलों के परागकणों से यह एलर्जी होती है. इसलिए जहां तक संभव हो, बच्चों को इन से दूर रखने की कोशिश करें.

लक्षण पहचानें

–       छींकें और आंखों से पानी आना.

–       आंखों का लाल होना.

–       खांसी, जुकाम और नजला होना.

–       कन्जेशन और गले में खारिश.

–       शरीर में जगहजगह चकत्ते पड़ना.

–       सांस लेने में दिक्कत होना.

–       तालू, नाक या आंखों में खुजली होना.

–       फूलों के परागकण के संपर्क में आने के कारण अस्थमा का अटैक भी आ सकता है.

वनस्पति विज्ञान के विशेषज्ञों का कहना है कि शहरों की हवा में घुले हुए फफूंद और परागकण एलर्जी के लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं. यह बात पर्यावरण मंत्रालय की ओर से 2008 में विभिन्न शहरों पर किए गए एक सर्वे में भी सामने आ चुकी है. सर्वे में फफूंद के 40 और अन्य 70 प्रकार के परागकण एलर्जी के लिए विशेष कारण बताए गए थे.

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कैसे करें बचाव

–       पौलेन प्रभावित क्षेत्रों में जाने से बचें.

–       धुएं से बचें.

–       पौलेन से बचने के लिए अपने पास रूमाल रखें.

–       हवा चलने के साथ यदि पौलेन उड़ रहा हो तो रूमाल से अपना मुंह ढक लें.

–       यदि परागकणों से एलर्जी है तो दोपहर के वक्त, जब परागकणों की संख्या बढ़ जाती है, तो बाहर काम करने या खेलने से परहेज करें.

–       बगीचे या पत्तियों के ढेरों में भी काम न करें.

–       पौलेन से बचने के लिए मास्क पहनना चाहिए. उन लोगों को जरूर मास्क का प्रयोग करना चाहिए जिन्हें श्वास से संबंधित समस्या है.

–       घर में जाते ही अपने हाथपांवमुंह जरूर धोने चाहिए.

–       आंखों को बचाने के लिए चश्मा  लगाएं.

–       छोटे बच्चों को परागकणों के संपर्क में आने से बचाएं.

–       जिन लोगों को इस से एलर्जी है वे डाक्टर के निर्देशानुसार एंटी एलर्जिक दवा हर वक्त अपने पास रखें.

–       धुले हुए सूती कपड़े पहनें.

–       अस्थमा और एलर्जी के मरीज दवाइयों का सेवन करते रहें.

–       अधिक परेशानी होने पर तुरंत डाक्टर से संपर्क करें.

–       एलर्जी का कारण जानने के लिए सब से पहले इस का टैस्ट कराएं और फिर डाक्टर के निर्देशानुसार इस का इलाज करें.

(यह लेख ईएनटी स्पैशलिस्ट डा. हरप्रीत सिंह कोचर और स्किन स्पैशलिस्ट डा. प्रदीप सेठी से बातचीत पर आधारित है.)

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