हर नजर

तुम रहे

सादगी भी रही

तुम को देखा था कभी

कनखियों से बारबार

जब हर नजर में

तुम ही नहीं थे

असंख्य स्वप्न साथ लिए

हृदय आल्हादित

हुआ करता था

क्या हो तुम

कैसे कहूं

असहज कर्म से

रचित काव्य में छिपे

मर्म से हो तुम.

 

– मनोज शर्मा

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