देश की सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी का वरदान कि भारत 2025 तक दुनिया की चंद 5 ट्रिलियन डौलर अर्थव्यवस्थाओं में से हो एक जाएगा, आम सडक़छाप पंडित की तरह का है जो चंद रुपए के बदले एक अच्छी पत्नी, एक अच्छी नौकरी और घर में गड़े सोने के घड़े का वरदान दे देता है, क्योंकि 2025 तक तो भारत बंगलादेश ही नहीं, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, मालदीव, थाईलैंड जैसे देशों से भी कहीं पीछे रह जाएगा.

कुछ वर्षों पहले हमें अपनी बढ़ती जनसंख्या पर गर्व हो रहा था कि इस से जवानहाथ ज्यादा तैयार हो रहे हैं, लेकिन मोदी और योगी के जनसंख्या नियंत्रण कानूनों को लागू किए बिना ही जनसंख्या वृद्धि लगभग रुक गई है. भारत का औसत आदमी अब हर रोज अपने पड़ोसियों से भी पिछड़ रहा है और दुनिया के आमीर देशों के मुकाबले में देश कहीं का भी नहीं रह गया है. हम तो अब सोमालिया और यमन की गिनती में आते हैं.

इस की वजह यह नहीं है कि भारतीयों में कुशलता नहीं है या उन में योग्यता और कर्मठता की कमी है. इस की वजह, दरअसल, यह है कि पिछले 20-25 सालों से देश का सारा फोकस मंदिर में लग रहा है और जो जमा पूंजी हर गांव, कसबे और शहर में उद्योग, रहायशी मकान, स्कूल, बाग, जंगल, पानी की सुविधा, सीवर, व्यापार लगाने में लगनी चाहिए, वह धड़ाधड़ बनते मंदिरों में लग रही है. हर गली, बाजार, कालोनी, और यहां तक कि नदियों के किनारे, समुद्र के किनारे, पहाड़ों की चोटियों, जंगलों, स्कूलों की जगह और औद्योगिक क्षेत्रों में धड़ाधड़ मंदिर बन रहे हैं. जो पंडित पहले छोटेमोटे कार्य करते थे, आज इन मंदिरों के स्वामी बन गए हैं और बहका, फुसला व अतिभ्रम कर के उन्होंने पूरी 2 पीढिय़ों को तकरीबन नष्ट कर के उन्हें पाखंडों, अंधविश्वासों और कट्टरपंथ का गुलाम बना डाला है.

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सरकारी आंकड़े कहते हैं कि 15 साल से अधिक आयु के 96.9 प्रतिशत लोगों के पास कोई हुनर इस देश में नहीं है, सिवा कीर्तन करने, पूजापाठ करने और चढ़ावा चढ़ाने के. देश में नींव टैक्निकल स्कूलों के लिए नहीं, सरस्वती शिक्षा मंदिरों के लिए रखी जा रही है जहां ऊटपटांग इतिहास के अंशों के सहारे भविष्य निर्माण की बात होगी. यह साफ दिखता है कि प्रधानमंत्री कैमरों के साथ काशी विश्वनाथ कौरिडोर का उद्घाटन करते हैं, गंगा में स्नान करते हैं, रामलला के सामने पसर जाते हैं. यही नहीं, वे  सफेद दाढ़ी बढ़ा कर महर्षि बनने की चेष्टा भी कर रहे हैं.

ऐसा देश कभी प्रगति नहीं कर सकता क्योंकि आज प्रगति का अर्थ ज्यादा साफ सडक़ें, ज्यादा संतोषजनक नौकरियां हैं, पिछले जन्मों के पापों को धोने के लिए पूजापाठ और अगले जन्म में ऊंची जाति में जन्म लेने का मार्ग प्रशस्त करना नहीं है.

विश्व पैमानों पर चाहे वह हंगर यानी भूख से संबंधित हो, खुशी से संबंधित हो, स्वंतत्रताओं से संबंधित हो, हर सूची में भारत का स्थान पिछले 7 सालों के दौरान लगातार गिर रहा है. अगर कहीं वर्ल्ड रिलीजियस रैंकिंग होती तो शायद हम सऊदी अरब और अफगानिस्तान के बाद तीसरे नंबर पर अवश्य होते. हमें तो 2000 साल पुराना पौराणिक राज ही याद रहता है जब दशरथ ने एक वृद्ध के बेटे को मार डाला था और उसे कोई सजा नहीं मिली, केवल श्राप मिला.

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