लेखिका- गायत्री ठाकुर
‘सोफी को अपने भविष्य के पति की दासी, मित्र, प्रेमिका बनने योग्य शिक्षा देनी है. स्त्री का धर्म अपने पति की सेवा करना और उसे प्रसन्न बनाए रखना है. स्त्री को पुरुष के आगे झुकने के लिए बनाया गया है. वह उस की दासी और सेविका है. यदि पति उस पर अत्याचार करे, तो भी वह अनुचित नहीं...’
रुसो की स्त्री के संबंध में यह अवधारणा पितृसत्तात्मक समाज की थी जो आज के समाज के लिए मान्य नहीं होनी चाहिए. इस संदर्भ में मुझे एक घटना याद आ रही है. बात कुछ वर्षों पहले की है जब मैं वर्तमान झारखंड राज्य के एक शहर चाईबासा में थी. मेरी सहेली, जिस का घर स्कूल के पास ही था, अकसर छुट्टी के बाद जिद कर के मुझे अपने घर ले जाया करती थी, जहां उस की दादी उस के साथ रहती थी. उस की दादी हाईस्कूल की टीचर थी. उस की दादी के कमरे तरहतरह की पुस्तकों से भरे होते थे जिन्हें उत्सुकतावश कभीकभार उलटपलट कर मैं देख लिया करती थी.
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