‘‘क्यातुम ने प्रैस के कपड़ों में अंडरवियर भी डाल दिया था?’’ शिखा ने पति शेखर से पूछा.
‘‘शायद… गलती से कपड़ों के साथ चला गया होगा,’’ शेखर बोला.
‘‘प्रैस वाले ने उस के भी क्व5 लगा लिए
हैं. अब ऐसा करना कि कल अंडरवियर पहनो
तो उस पर पैंट मत पहनना क्व5 जो लगे हैं,’’
शिखा बोली.
‘‘तुम भी बस… हर समय मजाक के मूड में रहती हो. कभीकभी सीरियस भी हो जाया करो.’’
‘‘अरे, हम तो हैं ही ऐसे… इसीलिए तो आज भी 50 की उम्र में भी हम से कोई शादी
कर ले.’’
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बेटी नेहा बोली, ‘‘तो पापा आप मेरे लिए बेकार में लड़का ढूंढ़ रहे हो… मम्मी की शादी करवा दो. वैसे भी मु झे शादी नहीं करनी.’’
शेखर ने पूछा, ‘‘क्यों बेटा?’’
‘‘पापा, मैं ने अब तक की जो जिंदगी जी है उस में ऐसा महसूस किया है… मैं शादी कर के अपनी आजादी को खो दूंगी… शादी एक बंधन है और मैं बंधन में नहीं बंध सकती. इस बारे में मैं मम्मी से सारी बात शेयरकर लूंगी,’’ नेहा ने स्पष्ट सा जवाब दिया.
तभी शेखर की नजर दरवाजे पर पड़ी. एक कुत्ता घुस आया था. शेखर ने शिखा से कहा, ‘‘तुम ने बाहर का दरवाजा भी ठीक से बंद नहीं किया. देखो कुत्ता घुस आया.’’
‘‘अरे, ठीक से तो देख लिया करो. यह कुत्ता नहीं कुतिया है. शायद तुम से मिलने आई है. मिल लो. फिर इसे बाहर का रास्ता दिखा देना,’’ शिखा बोली.
‘‘तुम तो हर समय मेरे पीछे ही पड़ी रहती हो,’’ शेखर ने तुनक कर कहा.
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‘‘तुम्हारे पीछे नहीं तो क्या पड़ोसी के पीछे पड़ूंगी? वह भी तुम्हें अच्छा नहीं लगेगा और ऐसा तो होता ही आया है कि पति आगेआगे और पत्नी पीछेपीछे,’’ शिखा ने झट जवाब दिया.
‘‘खैर, छोड़ो मै तुम से जीत नहीं सकता.’’
‘‘शादी भी एक जंग है. उस में जीत कर ही तो तुम मु झे लाए हो. यही सब से बड़ी जीत है…ऐसी पत्नी ढूंढ़ने से भी नहीं मिलेगी,’’ शिखा बोली.
‘‘अच्छा छोड़ो, अपने गुण बहुत बखान कर लिए तुम ने. अब मेरी सुनो,’’ शेखर ने कहा.
‘‘तुम्हारी ही तो सुन रही हूं अब तक.’’
‘‘अपनी नेहा के लिए रिश्ता आया है… नेहा ने मु झ से कहा था कि वह शादी नहीं करना चाहती. तुम जरा उस से बात कर लेना.’’
‘‘ठीक है श्रीमानजी जो आप की आज्ञा… शादी की इस जंग में पत्नी को जीत लाए थे. तब से अब तक आप के ही इशारों पर नाच रही हूं,’’ शिखा बोली.
‘‘अच्छा बहुत जोर की भूख लगी है. अब कुछ खिलाओपिलाओ,’’ शेखर ने कहा.
‘‘देखोजी, खिलानेपिलाने की नौकरी मैं ने नहीं बजाई. अब तुम नन्हे बच्चे तो हो नहीं… लड़की के लिए लड़का ढूंढ़ रहे हो. वह उम्र तो तुम्हारी निकल चुकी.’’
‘‘ठीक है मेरी मां तू दे तो सही.’’
‘‘देखो मां शब्द का इस्तेमाल मत करो. घाटे में रहोगे. सोच लो फिर कुछ मिलने वाला नहीं. बस मां के प्यार पर ही आश्रित रहोगे.’’
‘‘अरे यार तेरे मांबाप ने तु झे क्या खा कर जना था?’’ शेखर के मुंह से निकला.
‘‘पूछूंगी जा कर उन से कि आप के दामाद को आप का राज पता करना है… इतने सालों बाद आज कुरेदन हो रही है उन को.’’
‘‘ठीक है, ठीक है. बस अब बहुत हो गया,’’ शेखर बोला.
‘‘अरे नेहा, बेटी मेरा चश्मा कहां है?’’ शेखर ने बेटी को आवाज दी.
‘‘अरे पापा, चश्मा आप के सिर पर ही
रखा है. इधरउधर क्यों ढूंढ़ रहे हो?’’ नेहा हंसते हुए बोली.
‘‘इन का हिसाब तो यह है कि बगल में छोरा शहर में ढिंढोरा,’’ शिखा बोली.
‘‘पूछूंगा बच्चू…’’ शेखर ने मुंह बनाते
हुए कहा.
‘‘वाहवाह, कभी बच्चू, कभी अम्मां, कभी मां. अरे जो रिश्ता है, उसी में रहो न?’’
‘‘तुम नहीं सम झोगी… वैसे भी चिराग तले अंधेरा… पूरी दुनिया में भी ढूंढ़ती, तो ऐसा पति नहीं मिलता. कल की ही बात लो. चीनी का डब्बा फ्रिज में रख दिया और जमाने में ढूंढ़ते हुए परेशान हो रही थी… बात करती है कि मैं जवान हूं…ये बुढ़ापे के लक्षण नहीं हैं तो और क्या है?’’
‘‘चलो, छोड़ो अब. बहुत हो गया. 1 कप चाय मिलेगी?’’
‘‘1 कप नहीं, एक बालटी भर लो,’’ शिखा ने कहा.
‘‘बस बहुत हो गया. शेर जब जख्मी हो जाता है न, तो ज्यादा खूंख्वार हो जाता है,’’ मेरी सहनशक्ति का इम्तिहान मत लो. जबान में मिस्री है ही नहीं.’’
‘‘हांहां, मेरी जबान में तो जहर घुला है.
कुएं के मेढक की तरह टर्रटर्र किए जाएंगे,’’ शिखा बोली.
‘‘कभी नहीं सम झोगी तुम… ये शब्द ही हैं, जो जिंदगी में उल झन पैदा करते हैं. मुसकराहट जिंदगी को सुल झाती है, सम झी?’’
‘‘अरे बेटी नेहा 1 कप चाय बना दे. 1 कप चाय मांगना गुनाह हो गया.’’
‘‘हांहां, चाय तो नेहा ही बनाएगी… सारी जिंदगी छाती पर बैठा कर रखना इसे… मेरे हाथों में तो जहर है,’’ शिखा हाथ नचाते हुए बोली.
‘‘न… न… तुम्हारे हाथों में नहीं, तुम्हारी जवान में जहर है,’’ शेखर ने कहा.
‘‘मेरे लिए तो प्यार के 2 बोल भी नहीं… अब क्या मैं इतनी बुरी हो गई?’’
‘‘मैं ने कब कहा? अरे पगली, तेरे से अच्छी तो दुनिया में कोई हो ही नहीं सकती… बस थोड़ा सा ज्यादा नहीं चुप रहना सीख ले. हर बात पर पलट कर वार मत किया कर… पगली अब इस उम्र में मैं कहां जाऊंगा?’’ शेखर बोला.
‘‘चाय पीयोगे?’’ शिखा ने दबे शब्दों में पूछा.
‘‘अरे, मैं तो कब से चाय के लिए तरस
रहा हूं.’’
‘‘अरे बेटी नेहा जरा आलू छीलना… सोच रही हूं चाय के साथ पकौड़े भी बना लेती. क्योंजी?’’ शिखा ने पूछा.
‘‘देर आए दुरुस्त आए,’’ शेखर ने हंसते
हुए कहा.