लेखक- हेमंत कुमार

तकरीबन 2.4 लाख बच्चे कोविड-19 महामारी के चलते अनाथ हो गए. कई राज्य और केंद्रशासित सरकारों ने अनाथ हुए बच्चों के पक्ष में सराहनीय कदम उठाए लेकिन क्या उन बच्चों को केवल आर्थिक सहायता की जरूरत है या फिर... कुछ दिनों पहले यों ही मेरी नजर बालकनी से सामने के पेड़ पर बने एक चिडि़या के घोंसले पर पड़ी. मैं ने देखा कि घोंसले में कुछ चूजे चिल्लाचिल्ला कर गरदन उचकाए घोंसले से बाहर किसी की राह देख रहे थे कि तभी एक चिडि़या अपने मुंह में अपनी क्षमतानुसार कहीं से दाने भर कर लाई और अपने भूखे बच्चों की चोंच में अपनी चोंच से रखने लगी. शायद वह काम उस चिडि़या के अलावा और किसी के बस का नहीं. अपने बच्चों को कितना व कैसे खिलाना है,

यह शायद उस चिडि़या से बेहतर कोई नहीं जानता था. पर, अब वह चिडि़या कुछ दिनों से गायब थी. मैं ने उसे 2 दिनों से घोंसले पर आते नहीं देखा. हो सकता है वह चल बसी हो. उस के बच्चे 2 दिनों से गरदन उचकाए, टकटकी लगाए अपनी मां की राह देख रहे थे. उन की कराहती आवाज सुन मैं ने कई बार उन के घोंसले में दाना रखा परंतु वह दाना खाना कहां जानते थे. अब मैं उन की मां की तरह दाना उन की चोंच में तो नहीं रख सकता था, सो, मैं ने खूब सोचविचार कर उन बच्चों को उठा कर दूसरी चिडि़या के घोंसले में दूसरे चूजों के साथ रख दिया और अब मैं यह देख काफी खुश था कि अब उन का भी भरणपोषण बाकी बच्चों के साथ हो रहा है. उन चूजों को नया जीवन मिलता देख सोचा कि यह अनुभव यहां सा?ा किया जाए क्योंकि आज उन चूजों की जगह हमारे देश के मासूम बच्चे और उस चिडि़या की जगह उन मासूम बच्चों के पालक, महामानवतुल्य उन के मातापिता हैं.

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