दुनिया के सारे देश आज चीन से भयभीत हैं. जून 14 के ब्रसलैस में हुई नाटो की एक मीङ्क्षटग में अब जो बाइडेन ने रूस से खतरा इतना बड़ा नहीं बताया जितना चीन से है. चीन ने कहना शुरू कर दिया है कि वह इंग्लैंड, जर्मनी, फ्रांस, इटली जैसे देशों की ङ्क्षचता नहीं करता, उसे तो रूस और अमेरिका को संभालना है. हालांकि इस से पहले जी-7 की हुई मीङ्क्षटग में नरेंद्र मोदी का वर्चुअयी सुना गया था पर किस ने कितने ध्यान से शुना कह नहीं सकते. भारत अब दुनिया की नजरों से ओझल हो गया है.
अभी कुछ साल पहले अमेरिकी कंपनियों के सीनीयर जूनियर कर्मचारी डरे रहने लगे थे कि न जाने कब उन की जौब का बंगलौरी करण हो जाए. लोग चीनडिया की बातें कर रहे थे. ब्राजील, साऊथ अफ्रीका और ….के साथ भारत और चीन ने जो ब्रिक्स नाम से गुट बनाया था. उस से भयभीत हो रहे थे.
अब सब कुछ चीनमय हो गया है. पिछले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनेल्ड ड्रंप ने भारत को अपनी खुद की कूटती खरपच्चियों से खड़ा करने की कोशिश की थी पर भारत को ऐसा धुन लग चुका था कि वह चीन से पीछे रहने लगा और अमेरिका और पश्चिमी देशों ने भारत का कोई महत्व देना छोड़ दिया.
1987 में भारत और चीन का सकल उत्पादन बराबर था यानि प्रति व्यक्ति आय चीन की कम थी क्योंकि आबादी ज्यादा थी, अब 2019 में चीन भारत से साढ़े चार गुना ज्यादा अमीर है और 2020 और 2021 में भारत को और ज्यादा चपेटे लगी हैं. भारत की कहीं कोई कीमत नहीं रह गई है. पीपीई किट जो बरसाती की तरह सिला कपड़ा हे बना कर ढोल पीटने वाले देश को दूसरे देशों में कोई कद्र नहीं है.
चीन दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है. वह खुद के हथियार बना रहे है. बैक्सीन भी खुद की बनाई है और 2 करोड़ लोगों को रोज वैक्सीन लगा रहे है. भारत जैसे देश को कोई क्यों भाव देगा जो बांग्लादेश से भी पिछड़ता नजर आ रहा है और जहां के नेताओं को ट्विटर के कान खींचने तक में मेहनत करनी पड़ती है.
जी-7 की मीङ्क्षटग में भारत की चर्चा कहीं नहीं थी, रूस और चीन की थी, इजरायल की थी, सीरिया की थी. भारत में हुए भयंकर कोविड असर पर भी किसी ने कोई भाव पर शिकन नहीं डाली क्योंकि जब हम हल्ला ज्यादा करेंगे तो हम पर कौन भरोसा करेगा.
जी-7 के सदस्यों की ङ्क्षचता दुनिया में संतुलन कायम रखने की है और वे चाहते है कि 1945 के बाद जो वर्चस्व उन देशों का रहा जिसे सोवियत रूस और फिर एशिया भी तोड़ न पाए, बना रहे. चीन से ये देश डरते हैं क्योंकि जहां रूस केवल कम्युनिस्ट बेच रहा था, चीन अरबों खरबों डौलर का सामान अपनी विशाल फैक्ट्रियों में बना कर बेच रहा है. भारत में तो सरकार अपने ही पिठलगगुओं को देश की जनता की संपत्ति बेच रही है, उसे बाहर के देशों को सिर्फ योगासन बेलने आते हैं जिस के खरीदार भी अब कम हो गए हैं.