सवाल 

हमारा अपने पड़ोसियों से काफी मेलजोल था. कोरोना क्या आया सबकुछ बदल गया. घर में आनाजाना बंद हुआ, बातचीत फोन पर होने लगी. पिछले साल अगस्त माह के बाद स्थिति थोड़ी सुधरी तो फिर माहौल कुछ खुशगवार सा बनने लगा था. किंतु इस वर्ष मार्च के अंत तक आते ही जैसे सब तबाह हो गया. पड़ोसी, मेरे दोस्त को इतना तेज बुखार और औक्सीजन लैवल इतना डाउन हुआ कि उसे अस्पताल में भर्ती होना पड़ा. 2 दिन बाद पता चला कि भाभीजी (उन की पत्नी) भी अस्पताल में हैं और गंभीर हालत है. उन के बच्चे (लड़की 8 साल और लड़का  5 साल) घर पर अकेले रह गए. उन के खानेपीने और अन्य जरूरतों का हम खयाल रख रहे थे. हम उम्मीद कर रहे थे कि भाभीजी या दोस्त जल्दी ठीक हो कर घर वापस आ जाएंगे, लेकिन कोरोना का ऐसा वज्रपात हुआ कि दोनों को अपने लपेटे में ले गया. अस्पताल से मु?ो फोन आया और मैं आंखों में आंसू और 2 मासूम बच्चों की चिंता साथ में ले कर उन के अंतिम संस्कार के लिए गया. अब मेरे आगे उन बच्चों के भविष्य का सवाल है. मैं एक मध्यवर्गीय सरकारी मुलाजिम हूं. मेरे भी 2 बच्चें हैं जो स्कूल जाते हैं. मेरी पत्नी भी उन बच्चों के लिए चिंतित है. बताएं हम करें तो क्या करें?

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जवाब

बहुत अच्छी बात है कि आप उन बच्चों को ले कर चिंतित हैं. पड़ोसी होने के नाते आप ने अपना फर्ज निभाया है. अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी ली और दोस्त के बच्चों का पूरापूरा ध्यान रख रहे हैं. आज कोरोना ने लोगों में दूरी बढ़ा दी है लेकिन यह दूरी मन की दूरी नहीं बननी चाहिए. वे बच्चे अभी बहुत छोटे हैं. उन्हें पूरी देखभाल और प्यार की जरूरत है जो काम अब आप ही कर सकते हैं.

हम मानते हैं कि कहना आसान है क्योंकि 2 बच्चों की जिम्मेदारी लेना बहुत बड़ा काम है लेकिन यह सोचिए कि 2 जिंदगियां संवार कर कितना नेक काम आप करेंगे. इस मुसीबत की घड़ी में जब नजदीकी रिश्तेदार भी पीठ दिखा रहे हैं तो पड़ोसी होने के नाते आप जो कुछ भी कर रहे हैं वह इंसानियत है.

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बच्चों को तसल्ली दें कि आप उन के साथ हैं, फिक्र की कोई बात नहीं. मातापिता का न रहना बच्चों के लिए वज्रपात है लेकिन उन्हें अब आप को संभालना है. दोस्त की जो भी सेविंग्स वगैरह है वही अब उन बच्चों के भविष्य में काम आएगी, तो सारे कागजात वगैरह देखें और गलत हाथों में जाने से बचाएं. लालची रिश्तेदारों से बच्चों को सावधान रहने की हिदायत दें कि किसी की बातों में न आएं और कुछ भी गलत अंदेशा होने पर आप से बात करें.

माना कि वक्त ने बहुत बुरा किया है लेकिन हर रात के बाद सुबह होती है, यही सोच कर अपनी जिम्मेदारी निभाएं. बच्चों की हिम्मत बनिए और खुद भी हिम्मत रखें. खुद को स्वस्थ और सुरक्षित रखिए.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

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