आमतौर पर यही माना जाता है कि बच्चे को जन्म देने के बाद महिलाओं में अजीब सी चिंता, अवसाद, झुंझलाहट और तनाव की अनुभूति होती है, जिसे पोस्टपार्टम डिप्रैशन कहते हैं. लेकिन समाजशास्त्रियों, मनोविज्ञानियों और व्यवहार विशेषज्ञों का मानना है कि पिता बनने के बाद बहुत सारे पुरुष भी पैनिक अटैक और डिप्रैशन के शिकार हो जाते हैं.
‘पीडिएट्रिक्स जर्नल’ में एक अध्ययन के मुताबिक 25 वर्ष की उम्र के आसपास पिता बनने वाले पुरुषों में शिशु के जन्म के बाद डिप्रैशन बढ़ने के चांस 68 फीसदी ज्यादा होते हैं. अध्ययन के मुखिया डा. क्रैग गारफील्ड कहते हैं, ‘‘बच्चे के जन्म के बाद महिलाओं की तरह पुरुषों को भी भावनात्मक सहारे की जरूरत होती है, लेकिन उन की जरूरत को कोई महसूस नहीं करता.’’
उदासी और ऊर्जाहीनता
2 बच्चों के पिता रिकी शेट्टी पिता बनने के बाद अपने जीवन में आए बदलावों से बहुत परेशान हो गए. उन्हें बेहद बुरी भावनात्मक उथलपुथल का सामना करना पड़ा. इस बुरे दौर से उबरने के बाद उन्होंने अपने अनुभवों को उजागर किया और इन पर आधारित एक किताब ही लिख डाली, ‘विजडम फ्रौम डैडीज.’ शेट्टी कहते हैं, ‘‘बहुत सारे युवक पिता बनने के बाद डिप्रैशन और ऐंग्जाइटी की चपेट में आ जाते हैं. उन्हें कई तरह की चिंताएं सताती हैं जैसे बढ़ी हुई आर्थिक जिम्मेदारियां, उन के वैवाहिक जीवन पर पड़ने वाला प्रभाव, सैक्स का कम या बिलकुल भी मौका न मिलना, कई प्रकार की अतिरिक्त जिम्मेदारियां और रात को बच्चे की चिल्लपों के कारण ठीक से सो न पाना.’’
‘जर्नल औफ द अमेरिकन मैडिकल ऐसोसिएशन’ में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक सब से ज्यादा डिप्रैशन 3 से 6 महीने के नवजात शिशु के पिताओं में पाया जाता है. बच्चे के आगमन के बाद इन्हें अपना महत्त्व कम होता लगता है, क्योंकि पत्नी की दिलचस्पी इन में घट जाती है. इस दौर में वे हर वक्त रात को नींद पूरी न होने, थकान, उदासी और ऊर्जाहीनता की शिकायत करते हैं.
लाइफस्टाइल में बदलाव
फोर्टिस अस्पताल, कोलकाता के मनोविज्ञानी संजय गर्ग कहते हैं, ‘‘आजकल एकल परिवारों का जमाना है. इसलिए बच्चे को संभालने के लिए दादी, बूआ, ताई या चाची तो होती नहीं, न ही जरूरत पड़ने पर डाक्टर वगैरह के पास जाने के लिए घर में कोई दूसरा पुरुष होता है. ऐसे में सारी जिम्मेदारी पतिपत्नी को ही निभानी पड़ती है और इस से उन की आजादी और मस्ती पूरी तरह छिन जाती है. युवा दंपती अचानक आए इस दबाव से घबरा जाते हैं और भावनात्मक रूप से परेशान हो जाते हैं.’’
डा. संजय गर्ग बताते हैं कि जब भी कोई पुरुष पहली बार पिता बनता है, तो उस की जिंदगी पूरी तरह बदलने लगती है. इस की वजह यह है कि एक तो साल 2 साल पूर्व ही पत्नी के रूप में उस पर निर्भर रहने वाला एक व्यक्ति उस की जिंदगी में आ चुका होता है, फिर जल्द ही ऐसा दूसरा इनसान भी संतान के रूप में आ जाता है. इस से पति का खुद पर बढ़ती जिम्मेदारियों और खर्चों से चिंतित होना स्वाभाविक बात है. 3 महीने पहले ही पिता बने नीतेश अग्रवाल कहते हैं, ‘‘बच्चे के आने से पहले मन में बड़ा रोमांच था. पहली बार मुझे कोई पापा और मेरी पत्नी को मम्मी बोलने वाला होगा, यह सोच कर ही मन खुशी के 7वें आसमान पर था. हम दोनों रोज होने वाले बच्चे के नामकरण पर चर्चा करते, उस के बारे में तरहतरह की प्लानिंग करते. लेकिन जैसे ही मेरे बेटे का जन्म हुआ, मेरा लाइफस्टाइल ही बदल गया. पत्नी को मेरे होने या न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता. दिन भर बेटे की केयर करती है. कभी चाइल्ड स्पैशलिस्ट के पास ले कर जाते हैं, तो 2-3 घंटे इसी में खत्म हो जाते हैं. कभी ये लाओ, कभी वह लाओ, सचमुच दिमाग भन्ना जाता है.’’ व्यवहार विशेषज्ञ और काउंसलर रेखा श्रीवास्तव कहती हैं, ‘‘अगर किसी पुरुष की जिंदगी में विवाह एक महत्त्वपूर्ण घटना है तो पिता बनना उस से भी बड़ी घटना है. पिता बनने के बाद वे स्ट्रैस के उस दौर से गुजरते हैं, जिस के लिए वे मानसिक रूप से तैयार नहीं होते. पिता बनने के बाद जब परिस्थितियां तेजी से बदलती हैं, तो पुरुषों को सब कुछ अपने हाथ से निकलता नजर आता है और वे तेजी से डिप्रैशन की स्थिति में चले जाते हैं.’’
इमोशनल स्विंग
गाइनोकोलौजिस्ट डा. स्मिता गुटगुटिया बताती हैं, ‘‘पुरुषों में पोस्टपार्टम डिप्रैशन की मूल वजह है उन के हारमोंस में परिवर्तन. उन में दबाव के कारण टेस्टोस्टेरौन लैवल गिर जाता है, जबकि ऐस्ट्रोजन, प्रोलैक्टिन और कोर्टिसोल का लैवल बढ़ जाता है. इस से उन में स्ट्रैस की समस्या हो जाती है.’’ ‘कमांडो डैड रौ रिक्रुइट्स’ के लेखक नील सिंक्लेयर कहते हैं, ‘‘कमांडो के रूप में मैं ने खाड़ी युद्घ में जांबाजी के साथ मोरचा संभाला, लेकिन पिता बनना मेरे जीवन का सब से तनाव देने वाला वक्त रहा. माना कि मैं अपने बच्चे से बेइंतहा प्यार करता था, लेकिन पता नहीं क्यों एकक अनजानी चिंता मुझे सताती थी. मुझे लगता था कि नई सिचुएशन को ठीक से हैंडल नहीं कर पा रहा और इस स्थिति में खुद को सैटल नहीं कर पा रहा. मुश्किल यह है कि पुरुषों को हर कोई स्ट्रौंग समझता है, इसलिए न तो उन की मनोस्थिति को महसूस करता है, न ही उन्हें किसी प्रकार की सपोर्ट देता है.’’
मनोविज्ञानी, अमरनाथ मलिक कहते हैं कि पुरुषों में यह डिप्रैशन लगातार उदासी या ऐंग्जाइटी के रूप में नहीं होता, बल्कि एक प्रकार का इमोशनल स्विंग होता है, जो अचानक बहुत खुशी की स्थिति से बहुत उदासी की स्थिति में बदल जाता है. समाजशास्त्री, रेखा श्रीवास्तव बताती हैं कि पुरुषों में पोस्टपार्टम स्ट्रैस की एक बड़ी वजह यह भी है कि हर कोई उन से एक अच्छा पति और पिता होने की उम्मीद रखता है. आजकल के पापा ऐसा काम भी करते हैं, जिन्हें करने की पहले सिर्फ मम्मियों से उम्मीद की जाती थी. जैसे नैपी बदलना, बच्चे को बोतल से दूध पिलाना, टीका लगवा कर लाना आदि.
‘न्यू डैड्स सर्वाइवल गाइड’ के लेखक रोब कैंप कहते हैं, ‘‘हम औफिस वर्क और पापा बनने के बाद घरेलू कामों की डिमांड के बीच संतुलन बनाना सीख रहे हैं. ज्यादातर युवा घर में पत्नी के सहायक और एक अच्छे पिता बनने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देते हैं, फिर भी वे जब वांछित उत्साहवर्द्धन नहीं पाते या आत्मसंतुष्टि महसूस नहीं करते तो डिप्रैशन स्वाभाविक है.’’
क्या करें नए डैडी
भले ही प्रैगनैंसी को महिलाओं का मामला माना जाता हो, लेकिन यह पुरुष और महिला की सम्मिलित जिम्मेदारी होती है. इसलिए जैसे महिलाएं एक सफल और जिम्मेदार मां बनने के लिए तत्पर रहती हैं ठीक उसी प्रकार पुरुषों को भी एक सफल, समझदार और जिम्मेदार डैडी बनने के लिए निम्न बातों पर अमल करना चाहिए: – परिवार के सदस्यों, मित्रों और सहयोगियों से बातचीत करें. उन से भावनात्मक सहयोग लें व कुछ कार्यों में भी हाथ बंटाने की मदद मांगें.
– स्ट्रैस महसूस हो, तो मनोविज्ञानी की मदद लेने में न हिचकें.
– मन में किसी प्रकार का अपराधबोध महसूस न करें. धीरेधीरे खुद को नई भूमिका में ऐडजस्ट करने की कोशिश करें.
– पलायन करने के बजाय अपने कर्तव्य का पालन करें.
लक्षण पोस्टपार्टम डिप्रैशन के
आप बहुत जल्दी गुस्सा हो जाते हैं या किसी भी बात से चिढ़ जाते हैं.
अपनी पत्नी और बच्चे से दूर जाने के बहाने ढूंढ़ते हैं.
पहले से ज्यादा स्मोकिंग और ड्रिंकिंग करने लगे हैं.
कभी अपने बच्चे को देख कर खूब इमोशनल हो जाते हैं और उसे चूमतेदुलारते हैं और कभी अचानक चिढ़ कर उस से दूर हो जाते हैं.
जानबूझ कर औफिस से लेट आते हैं या दूसरे शहर में जाने का असाइनमैंट खोजते हैं ताकि घर पर न रहना पड़े.