जिस तरह से कोरोना महामारी ने अपना रौद्र रूप देश में दिखाया है उससे लोग कह रहे हैं लोगों की जान किसी मच्छर …मक्खी की तरह जा रही है. अव्यवस्था का आलम है कि एक साधारण सी चीज… ऑक्सीजन भी देश में कम पड़ जा रही है. ऐसी स्थितियों में बड़े ही खेद के साथ लोग अब यह कह रहे हैं कि आखिर उनका महान भारत राष्ट्र आज किस मुकाम पहुंच गया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने जिस तरह का संबोधन देशवासियों को बीते दिवस 20 अप्रेल की रात 8:45 पर दिया है उसकी प्रतिक्रिया स्वरुप यह कहा जा सकता है कि सब कुछ भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है. भारत सरकार नमक चिड़िया अपने घोसले में बैठ कर के गाने सुन रही है …और दाना चुग रही है. बाहर लोग कैसी बुरी हालत में अपने स्वास्थ्य को लेकर डॉक्टरों और हॉस्पिटल में दौड़ रहे हैं… श्मशान घाट में लंबी लाइन लगी हुई है. यह देख कर के कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री जी 56 इंच के सीने वाले हमारे प्रधानमंत्री जी आपको यह शोभा नहीं देता कि आप लोक कल्याण मार्ग में चुपचाप मौन साधना में रत हो जाए. आंखें बंद कर ले दाढ़ी बढ़ा ले, आगे गेरूवे कपड़े पहन लें. नहीं नहीं.. आपको देश की जनता ने इसे नहीं चुना है कि आप आम लोगों को उनके हालात पर छोड़ कर के ऊंची ऊंची देते रहें, आज आवश्यकता है जमीन पर आकर के काम करने की. लोगों के दुख सुख को साझा करने की.
आम लोगों को यह देखना चाहिए कि हमारा प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जैसा गुदड़ी का लाल है.
ये भी पढ़ें- क्या अब भी आप अपने प्रधानमंत्री से किसी तरह के मदद की उम्मीद करते है?
मोदी ! किसी हॉस्पिटल, शमशान पहुंच जाते…..
कोरोना वायरस के चलते जिस तरीके से देश में आज तबाही का मंजर है, उसे सारी दुनिया देख रही है. हम नीचे के पायदान से धीरे-धीरे आज चौथे, तीसरे, दूसरे नंबर के बाद आज इस संक्रमण काल को प्रथम पंक्ति में आ गए हैं और यह त्रासदी झेल रहे हैं.
आज सारी दुनिया की नजर भारत पर है .प्रतिदिन तीन लाख के आसपास कोरोना मरीज सामने आ रहे हैं और जाने कितने लोग हलाक हो रहे हैं. लोगों का तड़प तड़प के मरना हम देख रहे हैं. सारे समाचारों में श्मशान घाट की एक एक पल की घटनाएं सामने आ रही हैं. किस तरह लाइन लगी हुई है, मरने के बाद भी परिजनों से पैसे लिए जा रहे हैं.ऐसी दारुण दशा में हमारे देश में आपकी सरकार अगर आंख मुंदे हुए है और सिर्फ सांत्वना दे रही है तो यह दुर्भाग्य नहीं तो क्या है.
अफसोस! “संसद” में किसी दो दशक पुरानी बात पर आप के आंसू बहने लगते हैं…! गला रूंध जाता है… आप पानी पी पी कर के देश और दुनिया को दिखाते हैं कि आप कितने संवेदनशील हैं. मगर जब आज देश में कोरोना कोविड-19 के कारण हॉस्पिटलों की दुर्दशा है सिटी स्कैन नहीं है, ऑक्सीजन नहीं है तो आप ढांढस बंधा रहे हैं. क्या यह दोहरा चरित्र नहीं है.
ये भी पढ़ें- कोरोना की मार,पढ़ाई का हो रहा बंटाधार
आपको सारे प्रोटोकॉल तोड़ कर के यह दिखा देना चाहिए कि सचमुच आप 56 इंच के सीने के मालिक हैं.आपका दिल दिमाग इस देश की आम गरीब जनता के लिए रो रहा है और आप रातों को जाग रहे हैं. आप अगर कभी अचानक बिना बताए सारे नियम कानूनों को धता बताते हुए किसी हॉस्पिटल पहुंच जाते और कोरोना मरीज और परिजनों से मिलकर उन्हें हिम्मत देते , डॉक्टरों से बात करते तो शायद इसका संदेश पूरे देश में बेहतर चला जाता. रेमडेसिवर आदि जीवन रक्षक दवाओं को लेकर के जिस तरह लूट मची हुई है वह शायद बंद हो जाती.
आप अगर किसी श्मशान घाट में अचानक पहुंच जाते और लोगों को देखते किस तरह रो रहे हैं आंसू बहा रहे हैं और उन्हें किस तरह सरकारी करिंदो द्वारा लूटा जा रहा है तो शायद आपके एक जगह पहुंच जाने से सारे देश में संदेश चले जाता कि हमें संवेदनशील बनना है और प्रधानमंत्री हमें देख रहे हैं. हमें याद है लाल बहादुर शास्त्री का व कार्यकाल जब उन्होंने देश की आत्म गौरव को जगाया था और सारा देश एक दिन, एक वक्त का उपवास करने लगा था.
ये भी पढ़ें- बेहाल लखनऊ: ना लकड़ी, ना ऑक्सीजन