कोरोना की दूसरी लहर से देश बदहाल हो चला है. राज्यों की बदइंतजामी से लोग बेहाल हैं. कोरोना संक्रमित मरीज अस्पताल-दर-अस्पताल भटकने को मजबूर हैं. अस्पताल में बेड नहीं हैं. वेंटिलेटर और आईसीयू बेड नहीं हैं. एंबुलेंस नहीं मिल रही हैं. पूरे देश में दवाओं की कालाबाजारी की खबरें हैं. ऑक्सीजन के लिए मारपीट तक हो रही है. सप्लाई चेन ध्वस्त हो चुकी है. मरीजों से या उनके परिजनों से कहा जा रहा है कि ऑक्सीजन खुद लेकर आओ. रेमिडेसिविर खुद लाओ. दूसरी कई जरूरी दवाएं नहीं मिल रही हैं. राजधानी दिल्ली से लेकर मुंबई तक, सब जगह अस्पतालों में बेड नहीं हैं. लोगों को टेस्ट रिपोर्ट के लिए हफ्ते भर तक इंतजार करना पड़ रहा है. अस्पताल के बाहर लोग जीवन की एक एक सांस गिन रहे हैं. श्मशान के बाहर लाशों की कतारें लगी हैं. पूरे देश में हाहाकार है. लोग फोन और ट्वीट करते करते जान गवां दे रहे हैं. मजदूर फिर से पलायन कर रहे हैं.

लेकिन हमारे प्रधानमंत्री हमसे कहते है कि आक्सीजन पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है. हमारे प्रधानमंत्री हमसे कहते है कि जिन्होंने अपनों को खोया है, वे उनके प्रति संवेदना रखते हैं. वो कहते है कि मैं परिवार के सदस्य के रूप में आपके दुख में शामिल हूं. लेकिन क्या जब वो बंगाल में चुनावी रैलियां कर रहे थे तो लोगों की चित्कार उनके कानों तक पहुंची थी और अगर पहुंची तो उन्होंने कोई सुध ली?

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