उत्तर प्रदेश के मेरठ के नौचंदी पुलिस थाने के एसएचओ ने पौराणिक न्याय करने के लिए एक नई जुगत निकाली है. वे हर शिकायतकत्र्ता को खुद अशुद्ध मानते हैं और उसे गंगाजल से धोते हैं. गनीमत है कि गंगाजल का असर इतना ज्यादा माना जाता है कि कुछ बूंढ़ों से ही पाप धुल सकते हैं. इसलिए उन की छिडक़ी बूंदों पर शिकायतकत्र्ता सिर झुका लेता है.
जो समाचार छपा है उस में वहीं लिखा नहीं है कि गंगाजल के प्रताप की वजह से वहां नौचंदी में अपराध कम हो गए हैं या अपराधी खुदबखुद जेल में आ कर बंद हो गए हैं. वहां यह भी नहीं लिखा कि उस थाने में रिश्वतखोरी बंद हो गई है. पर यह पक्का है कि जब हरिद्वार का हर की पौंड़ी पर जजमानों और पंडों को झगड़ते देखा जा सकता है और पदों के बीच जजमान पकडऩे के लिए छीनाछपटी देखी जा सकती है तो इस थाने में गंगा जल के छीटों से कोई फर्क नहीं पड़ता होगा.
यह अफसोस की बात है कि कूढ़भगज पूजापाठी लोग रात के हर पायदान पर आ बैठे और आज जम कर पाखंड का बाजार जम रहा है. इस के सब से बड़े शिकार गरीब हैं जो समझ नहीं पा रहे कि कम सच है और क्या बेइमानी. उन्हें बातों के सहारे हजारों सालों गुलाम रखा गया है पर पिछले 100-150 सालों में जो नई लहर आई थी बराबरी की सोच की वह बड़ी सफाई से तरहतरह के बांध बना कर कंट्रोल में की जा रही है.
गरीबों को कांवड़ ढ़ोने पर लगा दिया गया है. गरीबों को उन के अपने गली के किनारे पेड़ के नीचे बने पत्थर के देवता का मंदिर बना दिया गया है जहां वे ऊंचे सवर्गों की तरह पूजापाठ कर अपना कल्याण चाह सकते हैं. उन की जो भी थोड़ीबहुत कमाई बढ़ी थी उसे गंगाजल बहा कर ले जाने लगा है.
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इन गरीबों को बहका कर सत्ता पर तो कब्जा किया गया ही है, इन गरीबों को जाति, गोत्र, धर्म, गुरू के हिस्सों में बांट दिया गया है और हरेक को दूसरे का दुश्मन बना डाला गया है. रामायण के राम और रावण न कोई देशीविदेशी थे, न ङ्क्षहदू और विधर्मी. फिर भी राम को ले कर सारे देश में हो हत्या की जा सकती है और लाखोंकरोड़ों को बहकाया ही नहीं बहलाया भी जा सकता है. महाभारत के कृष्ण ने सीता का पाठ उस अर्जुन को दिया था जो अपने दादा, चचेरे भाईयों, गुरूओं, मामा, दोस्तों के साथ लडऩे को मना कर रहा था. कृष्ण ने बड़ी तरकीब से अर्जुन को मारपीट के लिए मना लिया और 17 दिन बाद सब खात्मा करा दिया, दुर्योधन को भी, अर्जुन का भी.
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गंगाजल छिडक़ना इसी तरह के लाखों कामों में से एक है. यह रावण की हत्या या गीता के पाठ की तरह है जो शिकायतकत्र्ता को कहता है कि तुम्हारी गति तो पहले से ही तय है. पुलिस स्टेशन में तो सिर्फ हवनपूजन सा बेकार का कर्म होगा, न अपराधी पकड़ा जाएगा, न हक दिलवाया जाएगा. रामायण, महाभारत, पौराणिक कहानियों की तरह असली पौबारह तो इस नौचंदी के कब्जे में भी, विश्वमियों और दुर्वासओं की होगी. भक्त तो पापी है, पापी रहेगा.