लेखक- रोहित और शाहनवाज
मोदी सरकार के पिछले 7 सालों के कार्यकाल में जिस चीज का सब से अधिक नुकसान आमजन और व्यापारियों को उठाना पड़ा है वह लगातार गिरती अर्थव्यवस्था है. सत्ता में आने के बाद से ही सरकार ने उन नीतियों पर जोर दिया जिस ने अर्थव्यवथा को मुट्ठी भर लोगों के हाथों में मोनोपोलाइज करने का काम किया और देश के बड़े हिस्से को दरकिनार कर दिया. लिहाजा मंझोले, लघु उद्योगी व उन से सीधे जुड़े करोड़ों मजदूर परिवारों व छोटेबड़े दुकानदारों, व्यापरियों को इन नीतियों का भारी खामियाजा लगातार भुगतना पड़ रहा है.
वैसे तो मोदी कार्यकाल में बिगड़ती अर्थव्यवस्था को ले कर कई नामी अर्थशास्त्रियों ने इस की शुरुआत 2016 में हुई नोटबंदी से बताई लेकिन सरकार इसे मानने को कभी तैयार ही नहीं हुई और इसे कालेधन व आतंकवाद पर नकेल कसने वाले हथियार के तौर पर स्वघोषित करती रही वहीँ इसे अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने वाला कदम बताया.नोटबंदी के बाद नई जीएसटी प्रक्रिया नेभी देश के छोटेबड़े सभी बाजारों को नुकसान पहुंचाने का काम ही किया. किन्तु सरकार लगातार जनता में यह भ्रम फैलाती रही कि इन कायदेकानूनोंसे दूरगामीफायदे मिलेंगे और यह नीतियां देशहित में मजबूत कदम साबित होंगे. इन्ही वायदों में समयसमय पर‘विश्व गुरु’,‘5 ट्रिलियन इकौनमी’ और ‘चाइना-अमेरिका की इकौनमी को टक्कर’ देने का सपना भी शामिल होता गया.
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किन्तुकटु सत्य रही है कि इन 7 सालों के मोदी कार्यकाल में आज देश की अर्थव्यवस्था ऐतिहासिक गिरावट झेल रही है. देश में रिकौर्ड बेरोजगारी दर्ज की गई है. लगातार बढ़ती महंगाई आमजन को त्रस्त कर रही है. ऐसे हालात में मोदी सरकार नेइन बिगड़ते हालातों का जिम्मेदार कोरोना को बताया है और अपने हाथ खड़े कर,जनता से कोई सरोकार ना रखते हुए उन्हें “आत्मनिर्भर” बनने को भी कह दिया है. लेकिन कुछमुख्य सवाल यह कि क्या देश में बिगड़ते हालातों की जिम्मेदार सिर्फ कोरोना है? क्या रोजगार की समस्या लौकडाउन के बाद ही देखने को मिली है? क्या इकौनोमी अभी से ही बर्बाद होनी शुरू हुई? और बड़ा सवाल यह कि महंगाई की जिम्मेदार कोरोना है या सरकार की पहले की वह नीतियां हैं जिस का परिणाम आज देश के लोगों को भुगतना पड़ रहा है?
एमएसएमई अर्थव्यवस्था की रीढ़
दिल्ली अपनेआप में सारा देश समेटे हुए है. यहां अमीर शिक्षित ही नहीं, गरीब वसताए हुए, लड़कियां, दलित, मुस्लिम विभिन्न राज्यों से आ कर बसे हुए हैं. देश को जानने के लिए दिल्ली का दिल परखना काफी कारगर है. दिल्ली के व्यापारी, मजदूर किन हालातों में हैं, यह पता करते ही देश की हालत पता चल जाती है.इन्हीउक्त सवालों को ले कर ‘सरिता पत्रिका’ की टीम ने दिल्ली के स्माल स्केल इंडस्ट्रियल इलाकों का दौरा किया. जो माइक्रो स्माल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज (एमएसएमई) सेक्टर के अंतर्गत आते हैं और अभी इस समय यह सेक्टरबिगड़ती अर्थव्यवस्था की भारी मार झेल रहा है.
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एमएसएमई का मतलब सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम है. दुनिया में एमएसएमई सेक्टर का सब से बड़ा जाल चीन में है, लेकिन इस लिस्ट में भारत दूसरे स्थान पर है. सूक्ष्म उद्यम का अर्थ, वे उद्यम जहां 10 से कम कर्मचारी काम करते हों. देश में ऐसे उद्यमों की संख्या करीब 6 करोड़ 3 लाख के आसपास है. ऐसे ही लघु उद्योग में 10 से ले कर 50 कर्मचारी काम करते हैं. इन की देश में कुल संख्या मौजूदा समय में 3 लाख 30 हजार के आसपास है. वहीँ मध्यम उद्योग में यह संख्या बढ़ कर 50 से 250 कर्मचारियों तक हो जाती है जिन की संख्या 5 हजार के आसपास है. यह सभी उद्यम मिल कर देश में पारंपरिक से ले कर हाई टेक आइटम की 6 हजार से ज्यादा उत्पादों के निर्माण में लगा हुआ है. जिस में कुल मिला कर 11 करोड़ भारतीय कार्यरत हैं.
7 दिसंबर 2020 को 3 दिवसीय टीआईई ग्लोबल समिट के उदघाटन सत्र में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा, “एमएसएमई सेक्टर वर्तमान में भारत के कुल निर्यात का 48 फीसदी निर्यात करता है. एमएसएमई भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है.” लेकिन यह रीढ़ आज किस हालत में है और इस की गिरती हालत की जिम्मेदार कौन है? इस की सुद सरकार को नहीं है.
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व्यापारियों में सरकारी नीतियों से निराशा
इसे ले कर ‘सरिता’ टीम सब से पहले नजफगढ़ रोड पर स्थित रामा रोड इंडस्ट्रियल इलाके में गई. इस इलाके में पहले बड़ेबड़े सरकारी और निजी प्लांट हुआ करते थे, जहां सैकड़ों कर्मचारी काम किया करते थे लेकिन आज यहां सरकारी प्लांट बंद कर दिए गए हैं और बड़े निजीप्लांट कहीं दूर शिफ्ट हो चुके हैं. यहां अब स्माल इंडस्ट्री ही बची हैं. समय के इस पड़ाव मेंदेखने में यह आया कि यहां मालिकों से ले कर मजदूरों की स्थिति काफी हलकान हो चुकी है.वे एक प्रकार की भारी असुरक्षा में जी रहे हैं. कब क्या सरकार द्वारा नया घटित हो जाए उसे ले कर आतंकित हैं.औफ रिकौर्डमालिक तबका अपनी परेशानियां खुल कर बताते लेकिनओन रिकौर्ड बात करने से कतरा रहे थे कि ना जाने उन पर कब क्या कार्यवाही हो जाए.इस इलाके में कई पुरानी छोटी फैक्ट्रीयां बंद पड़ीं हैं जो चालू हैं भी उन में चरमराए बाजार के चलतेअसर साफ़ देखा जा सकता है. कहीं मजदूरों की छटनी की गई है तो कहीं ओवर टाइम काफी कम होने लगा है.
पिछले 18 सालों से दिल्ली के रामा रोड इंडस्ट्रियल इलाके (कर्मपुरा)में ग्राफिक डिजाइनिंग और बोर्ड साइनेज बनाने वाले मंझोले व्यापारी राजकुमार ने ‘सरिता’ पत्रिका की टीम से बात की. उन का औफिस रामा रोड पर ‘सावन बैंक्वेट’ और ‘ला अमौर बैंक्वेट’ के बीच से निकलने वाली गली नंबर 54 में हैं. उन का यह औफिस पहली मंजिल पर 400 गज के स्पेस में किराए पर है. नोटबंदी और जीएसटी की मार झेलतेझेलते उन का काम दोबारा से पटरी पर आने ही लगा था कि लौकडाउन ने उन का पूरा बिसनेस खा लिया. पहले जहां 40 वर्कर से औफिस में खुशनुमा माहौल था अब वहां मुश्किल से 3 लोग काम कर रहे हैं.
हमारी जब उन से बात हुई तो उन के मुंह से उदास मुस्कान में पहला वाक्यनिकला,“आप को इस “बर्बाद नगर” का पता किस ने दिया?” फिर अपने लैपटौप में डिजाइनिंग के काम में 5 मिनट के लिए व्यस्त हुए. काम निपटाने के बाद वे हम से मुखातिब हुए.
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राजकुमार दिल्ली के रमेश नगर इलाके में रहते हैं. उन का टर्नओवर लगभग 4-5 करोड़ का है. वह सरकार की बनाई पौलिसियों को सिर्फ बड़े उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने वाला बताते हैं. वे कहते हैं कि, “नोटबंदी के बाद से ही सभी छोटे व्यापारियों के पास काम गिरना शुरू हो चुका था. लेकिन जैसेतैसे लोग मैनेज कर रहे थे. इस सेक्टर का अधिकतर काम कैश में चलता था जिस कारण काफी परेशानी हुई, पार्टियां बिखरीं और बाजार पर इस का असर पड़ा. मार्किट हमारा टूटा, लेकिन आप को कहीं सुनाई दिया कि बड़े बिसनेसमेन ने दिक्कत झेली?” वे हंसते हैं और सवाल करते हैं, “जिस काम के लिए नोटबंदी हुई उस का कोई फायदा आप को कहीं दिखाई दे रहा है?”
राजकुमार नई जीएसटी प्रक्रिया से भी नाराज दिखाई दिए और इसे काफी बौझिल प्रकिया का हिस्सा मानते हैं. “जीएसटी उन लोगों के लिए अच्छा है जो इमानदारी से काम करना चाहते हैं लेकिन इस में दिक्कतें होने की वजह से हमें बहुत नुकसान झेलना पड़ा है. गवर्नमेंट ये सोच कर चल रही है की सब हवा में है जबकि ऐसा होता नहीं है. अब सरकार को जीएसटी का पैसा 11वे दिन चाहिए और 20वें दिन टैक्स चाहिए.
“मार्किट में तो उधार चल जाता है लेकिन जीएसटी में किसी तरह का कोई उधार नहीं चलता. पैसे टाइम से नहीं देने पर इमीडिएटली कई पैनल्टी लग जाती है. इसी की वजह से लोग वापस कैश में लेनदेन करना शुरू कर रहे हैं. सरकार की पौलिसीज ने ही बिजनस करने वालों को चोर बना के रख दिया दिया है. सरकार खुद तो 5-6 महीने या कई बार सालसाल भर व्यापारी का पैसा नहीं देती और हम जैसे व्यापारी अगर 11वें दिन जीएसटी का पैसा नहीं जमा करवा पाए तो हम डिफाल्टर बन जाते हैं. हमें बिजनस नहीं करने दिया जाता और इन सब का इफैक्ट सब से ज्यादा एमएसएमई सेक्टर में हम जैसे व्यापारियों को झेलना पड़ रहा है.”
कुछ लोगों की मौनोपौली करने की मोदीनीति
राजकुमार थोड़ी देर सोचते हुए कहते हैं, “पूरे हिन्दुस्तान में आज कल सिर्फ कुछ लोगों की मोनोपोली बनाए जाने का काम किया जा रहा है. सरकार ऐसे कानून बना रही है जिस से कुछ ही लोगों को फायदा हो सके. पूरा एमएसएमई सेक्टर बर्बाद हो रहा है, लोगों की नौकरियां जा रही हैं और सरकार 2-3 “अच्छे कदम” (हाथ का इशारा कर दिखाते हुए) को पब्लीसाइज कर 97 कदम ऐसे उठा रही है जिस से हम लोग मर रहे हैं.
“लौकडाउन लगा तो सरकार ने बड़े बिजनसमैन को जीएसटी की छूट दे दी.6 महीने तक उन से कोई इंटरेस्ट नहीं लिया.उन्हें पूरी तरह से सब्सिडी दे दी लेकिन एक मंझोले और छोटे व्यापारी को सरकार ने क्या दिया जो उन्हें हर महीने 4-5 लाख रूपए का टैक्स जमा करवा रहा था?”
राजकुमार द्वारा उठाए सवाल आज अधिकतर लोगों के जहन में हैं कि भाजपा सरकार अदानी-अंबानी के इशारों पर काम करती है. यहां तक कि विपक्ष इसी बात पर हमलावर भी रहा है कि भाजपा की अधिकतर नीतियां इन्ही चंद पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने की रही है. विपक्ष के नेता राहुल गांधी तो सीधे नरेंद्र मोदी पर “हम दो, हमारे दो” कहते हुए कटाक्ष कर रहे हैं. यह बात हकीकत भी है कि जिस समय देश भारी आर्थिक मंदी से जूझ रहा है उस समय कुछ गिनेचुने पूंजीपतियों की संपत्ति में लगातार इजाफा हो रहा है.
जनवरी 2021 की ओक्सफेम की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 10 महीनों में भारतीय अरबपतियों की संपत्ति में 35 प्रतिशत की उछाल वृद्धि हुई है. ध्यान देने वाली बात यह है कि यह वही पैंडेमिक का समय था जब देश की अर्थव्यवस्था माइनस 23 प्रतिशत गर्त में जा चुकी थी. ब्लूमबर्ग के डाटा के अनुसार कोरोना महामारी के समय गौतम अदानी की संपत्ति में 174.8 प्रतिशत की उछाल वृद्धि देखने को मिली. ब्लूमबर्ग के इसी डाटा के अनुसार 2021 में अदानी ने विश्व के सब से अमीर व्यक्ति का खिताब हांसिल करने वाले जेफ बेजोस और एलोन मस्क को भी पछाड़ते हुए अपनी संपत्ति में रिकौर्ड वृद्धि दर्ज कराई. वहीं रिलायंस इंडस्ट्री के चेयरमैन मुकेश अंबानी भारत के सब से अमीर व्यक्ति बन कर उभरे जिन की कुल संपत्ति 83 बिलियन डॉलर आंकी गई और 2021 ग्लोबल रिचलिस्ट के 8वें पायदान पर हैं.
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इसी प्रकार नोटबंदी के बाद 2017 की ‘फोर्ब्स मैगजीन एनुअल इंडियन रिचलिस्ट’ में मुकेश अंबानी की संपत्ति में 26 फीसदी का इजाफा देखा गया. इस के साथ ही यह भी कहा गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “आर्थिक प्रयोगों” ने भारत के अरबपतियों को मुश्किल से ही प्रभावित किया है. 2017 की ओक्सफेम इनइक्वलिटी रिपोर्ट के अनुसार भारत के शीर्ष 1 प्रतिशत भारतीयों का देश के 58 प्रतिशत संपत्ति पर कब्जा है. वहीँ57 अरबपतियों के पास 70 फीसदी भारत की संपत्ति पर कब्जा है. यह सत्य है कि इस आकड़े के बाद भी लगातार भारत में चंदबिजनेसमैनकी संपत्ति में लगातार इजाफा होता गया है. मौजूदा किसान आन्दोलन में भी यह बात खुल कर लोगों के सामने आने लगी है कि भाजपा कार्यकाल में मोदीनीति किसानों को दरकिनार कर कुछ गिनेचुने पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने का काम कर रही है.
राजकुमार का मानना है कि आज का छोटा व्यापारी सरकार और उस की पौलिसी से खुश नहीं है, “सरकार ने ऐसी पौलिसीज बनाई है जिस से 2 डिफाल्टर को पकड़ने के चक्कर में 98 वे लोग पिस जाते हैं जिन्होंने कोई गलत काम किया ही नहीं और ये जो 2 डिफाल्टर होते हैं ये भी सरकार के अपने लोग ही होते हैं जिस का सरकार को सब कुछ पता रहता है. यह चीज नोटबंदी में भी हुई और जीएसटी में भी. फायदा क्या हुआ किसी को कुछ नहीं पता.सरकार की गलत पौलिसीज का हमारे बिजनेस पर 90% बुरा प्रभाव पड़ा है.”
फैक्ट्रियां ठप, काम मंदा
18 सालों से अपना बिजनस संभालने वाले राजकुमार की स्थिति ऐसी है कि आज वह फिर से जीरों पर आ चुके हैं. राज कुमार कहते हैं, “जिस तरह से सरकार काम कर रही है अगर इसी तरह से आगे भी करती रही तो आने वाले समय में हमें और बर्बादी देखनी पड़ सकती है. आजकल सेंसेक्स को देख कर हालात, अच्छे हैं या खराब, इस का अंदाजा लगाया जाता है लेकिन असलियत में हम एमएसएमई सेक्टर के लोग ही इकौनमी की रीढ़ हैं जिस की स्थिति आज के समय में बेहद खराब है.”
कहींना कहीं राजकुमार की बातों में वजन है. भारत में कुल उत्पादन का 45% हिस्सा एमएसएमई पर निर्भर करता है,वहीँ देश में कुल 6 करोड़लोगों को रोजगार भी देता है जिससे उनके परिवार चलते हैं. यही असंगठित क्षेत्र है जो देश की जीडीपी में कुल 45% का हिस्सेदार है. उस के बावजूद अगर केंद्र की सरकारी नीतियों का सीधा कुप्रभाव पड़ा है तो इसी क्षेत्र पर सब से अधिक पड़ा है. साथ ही यह भी हकीकत है कि अकेले नोटबंदी के समय ही स्माल स्केल मेनूफैक्चरिंग इंडस्ट्री में 30 प्रतिशत लोगों ने अपनी नौकरी गंवाई थी. एआईएमओ के इसी सर्वे में पता चला कि स्माल स्केल इंडस्ट्री ने उस दौरान 55 प्रतिशत रेवेन्यु का नुकसान उठाया था.
इसी को ले कर सरिता टीम ने दिल्ली की काली घाटी रोड की उंचाई पर बसे आनंद पर्बत इंडस्ट्रियल इलाके में मजदूरों से बात की. यहां की स्थिति इस समय भयानक दिखती नजर आ रही है. कई फैक्ट्रियों के बंद पड़े शटर इस बात की गवाही देने के लिए काफी थे कि इन सात सालों में देश ने विकास के नाम पर लोगों ने क्या पाया है?
दिल्ली के आनंद पर्बत औद्योगिक इलाके के गली नंबर 8में पिछले 30साल से राम (33) की छोटी सी चाय की दुकान चल रही है. इस से पहले उन के पिता यह चाय की दुकान चलाते थे. लेकिन 7साल पहले उन के देहांत के बाद इस की जिम्मेदारी राम ने संभाल ली. उन की दुकान से वहां आसपास मौजूद फैक्ट्रियों के मजदूरों से ले कर मालिकों तक के लिए चाय जाती है. वह रोज सुबह 8बजे मजदूरों के आने के साथ ही यहां आ जाते हैं औरतब तक दुकान पर रहते हैं जब तक फैक्ट्री से मशीनों की खटपट सुनाई देती है. दिल्ली के नांगलोई इलाके के नजदीक नाग मंदिर के पास उन का 32 गज का मकान है जिस में उन के पिताजी के 5 भाइयों का भी परिवार रहता है.
वे बताते हैं, “उन के पास लगभग 10-12 के आसपास फैक्ट्रियां हैं जहां वे चाय पहुंचाते हैं, बाकी यहांवहां के लोग आ जाते हैं चाय पीने. अभी काम बहुत डाउन हुआ है. पहले हम 40 लीटर दूध लगाते थे अब मुश्किल से 20 लीटर दूध लग पाता है.
“फक्ट्रियों में जो ओवर टाइम लगता था वह कम हो गया है. अब आप यह लगा लो इस पुरे गली में 15 बड़ी फक्ट्रियां हैं और छोटी 40 के आसपास हैं. इन में से 60 फीसदी में ही काम हो रहा है. पहले ओवर टाइम लगता था तो 2-3 घंटे यहां मजदूर काम करते थे जिस से हमारी चाय भी उसी हिसाब से फक्ट्रियों में सप्लाई होती थी. मजदूरों का ओवर टाइम का मतलब हमारा ओवरटाइम. अब काम ही नहीं है तो वे जल्दी चले जाते हैं तो हम यहां रुक कर क्या करेंगे?मेरा काम पूरी तरह मजदूरों पर निर्भर करता है. मालिकों ने इन की भी तनख्वाह काट ली है. जब इन के पास पैसा नहीं होगा तो यह खर्च कैसे करेंगे. पहले 8 बजे तक चाय बनाते थे लेकिन अब 6 बजे बंद कर के घर चले जाते हैं.”
जनवरी 2021 की ओक्सफेम की रिपोर्ट कहती है कोरोना महामारी के दौरान अप्रैल 2020 में हर घंटे 1 लाख 70 हजार भारतीय अपनी जौब खो रहे थे. इसी प्रकार वर्ष 2020 मेंआई सीएमआईई की रिपोर्ट के अनुसार देश में बेरोजगारी दर 23.52 प्रतिशत के साथ भारत के इतिहास में सब से ज्यादा रहा. लेकिन क्या इस त्रासदी को सिर्फ कोरोना के सर बांधा जाना ठीक होगा?दरअसल देश में बेरोजगारी अचानक से नहीं बढ़ी है, बल्कि इसका बढ़ता असर नोटबंदी के बाद से ही देखने को मिल रहा था. स्टेटिस्टा की रिपोर्ट के अनुसारभारत में युवा बेरोजगारी दर साल 2016 में 22.34 प्रतिशत था. जो सन 2021 तक आतेआते बढ़ कर 23.75 प्रतिशत हो चुका है. प्रधानमंत्री की भाषा में कहें तो नोटबंदी और जीएसटी का दूरगामी असर तो हुआ लेकिन रोजगार पर हुआ.सीएमआईई की रिपोर्ट के अनुसार अगस्त 2017 से भारत में बेरोजगारी दर लगातार बढ़ते क्रम में रही है.श्रम मंत्रालय के 2019 में लीक हुए डाटा के अनुसार भारत में उस दौरान 6.1 प्रतिशत के साथ 45 साल की सब से अधिक बेरोजगारी दर भारत में रही जो इस समय बढ़ कर 6.9 प्रतिशत हो चली है.
राम की दुकान नोटबंदी के समय से ही डामाडोल होने लगी थी. वे कहते हैं, “दुकान का काम पहले से ही डाउन होते जा रहा है. यह सभी को पता है कि कामधंधा नोटबंदी के टाइम से ही डाउन होने लगा था. सोचा देश का भला हो रहा है लेकिन अब तो काम बुरी तरह पिट ही गया है. नोटबंदी में ही हमारा काम 19-20होने लगा था.”
राम कुछ और बताते कि तभी एक अज्ञात व्यक्ति ने राम पर कटाक्ष मारते हुए कहा कि, “चाय की दुकान से तो लोगों ने कोठियां बना लीं हैं और बंगला-गाड़ी खरीद रहे हैं.” जिस के जवाब में लोहे की फैक्ट्री में काम कर ने वाले मजदूर (विनोद मिश्रा) तपाक से कह उठते हैं, “हां, यह सही कहा लेकिन कुछ तो देश भी बेच रहे हैं.”
ऊपर से महंगाई खा रही है
दिल्ली के बलजीत नगर इलाके में रहने वाले विनोद मिश्रा मधुवनी जिला से आते हैं. वह आनंद पर्बत औद्योगिक इलाके के 4 नंबर गली में एक फैक्ट्री में लोहे लंगर का काम पिछले 11 सालों से कर रहे हैं. विनोद के 3 बच्चे हैं, जिस में से 2 बेटियां, जयंती मिश्रा (11) और अनु मिश्रा (9) है और एक बेटा अभी छोटा है. वह अपने बच्चों को पढ़ना चाहते हैं लेकिन बताते हैं कि हालात ऐसे ही रहे तो वे भी काफी मजबूर हो जाएंगे. वह अपना छोटा सा कीपैड वाला फोन दिखाते हुए कहते हैं, कि “हम ने तो कभी एंड्राइड फोन चलाया नहीं, लेकिन आज कल बच्चों की पढ़ाई नेट पर हो रही है इसलिए बच्चों के लिए कर्जा ले कर एक फोन खरीदना पड़ा जिसे अभी तक सदाया (चुकाया) भी नहीं है. ऊपर से पहले एक फोन का रिचार्ज का खर्चा आता था अब दो का आ रहा है. 500 रूपए तो बस रिचार्ज कराने में ही लग जाते हैं. ऊपर से दिक्कत यह है कि तीनों की पढ़ाई एक साथ हो रही है तीनों बच्चे एक साथ पढ़ ही नहीं पाते. और दूसरा फोन लेने की औकात मेरी है नहीं.”
वे आगे कहते हैं, “यह सब बर्बादी का मामला नोटबंदी से ही शुरू हुआ. यहां मालिकों के पास हद से हद 15-20मजदूर ही होते हैं और मालिकों का लेनदेन कैश में ही चलता है. नोटबंदी से सरकार ने सब से पहले इन्ही मालिकों को नुकसान पहुंचाया और इस का असर तो मजदूरों पर पड़ना ही था. यह सब चीजें जुडी हैं. मेरी तनख्वाह पिछले 4 साल से बढ़ी नहीं है.”
विनोद बताते हैं कि उन्होंने चुनावों में मोदी को वोट दिया था. लेकिन फिलहाल सरकार से खीजे हुए हैं. जब हम ने उन से पूछा की मोदी उन्हें कैसे लगते हैं वे हमें हंसते हुए कहते हैं, “लगते तो अच्छे हैं बस काम गड़बड़ कर रहे हैं. महंगाई से हम लोगों का बहुत बुरा हाल कर दिए. जो सिलेंडर 500का था वो 850 रूपए मान लीजिए. वह 1 महीने में खतम हो जाता है फिर टेंशन बनी रहती है की चूल्हा कैसे चलेगा. हर एक सामान महंगा हो रहा है. आप सरसों तेल की कीमत देखो. पहले हम 130 रूपए का खुल्ला तेल लेते थे अब वह 160 हो गया है और अगर अच्छी कंपनी का लेना है तो वह तो 180 पर चला गया है. बहुत ही बुरा हाल है जी.
“सरकार का काम क्या है? यही की चीजों को ठीक करना. कोरोना तो पिछले साल ही आया. इस से पहले तो नहीं था न? हमारी तो स्थिति पहले से ही खराब है. जब पता है कि लोगों के पास काम नहीं है तो महंगाई कम क्यों नहीं करती? जिस के पास पैसा नहीं है वह सामान खरीदेगा कैसे? अच्छा दिन बोल कर हम थोड़ी आए थे.”
कोरोना का झुनझुना
जाहिर है पिछले 7 सालों में आकड़ों के हेरफेर, ‘पिक एंड चूज’ और भटकाऊ मुद्दों से भाजपा सरकार वही चीजें जनता के सामने एक्स्पोज करती रही है जिस में वह वाहवाही बटोर सके. वहीँ बाकि उन चीजों को छुपाती या दबाती रही जो आज के बिगड़ते हालातों से उस समय रुबरु करा रहे थे. लेकिन इन चीजों का प्रबंधन करने और बेहतर सुशासन की जगह मोदी सरकार राष्ट्रवाद के पीछे छुप कर अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने का काम लगातार करती रही है.
हाल ही में हर दिन पेट्रोल डीजल के बढ़ते दामों और बढ़ती महंगाई ने आम जनता कीबचीकुची जमापूंजी कोख़त्म करने का काम किया है. लोगों के पासरोजगार नहीं है. जिन्हें काम मिल भी रहा है वे बहुत कम मेहनताने में काम करने कोमजबूर हैं. मार्किट में लोग सिर्फ अपनी आवश्यकता का सामान खरीदने ही निकलते हैं, बाजार का फ्लो रुका पड़ा है. कहाजाए तो आमजन, मजदूर और कारोबारी सभी इस समयपरेशान हैं किन्तु इस त्रासदी को लौकडाउन की भेंट चढ़ा देना भारी बेवकूफी होगी.
उपरोक्त आकड़ों और ग्राउंड पर लोगों से हुई बातचीत यह दर्शाती है कि देश कीआर्थिक दुर्दशा की जिम्मेदार मोदी कार्यकाल में बनी गलत आर्थिक नीतियां रहीं और इस के चलते देश के गरीब, पिछड़े, महिलाओं, दलितों व अन्य को इस समय हर्जाना भुगतना पड़ रहा है. कहीं ना कहीं मौजूदा समय में महंगाई उसी आर्थिक नीतियोंकी भेंट हैं जिसे आमजन को कोरोना का झुनझुना दिखा कर भटकाया जा रहा है.