लेखक-मोहन लाल जाट, मंजू वर्मा और मनीषा

अब तक अजोला का इस्तेमाल खासकर धान में हरी खाद के रूप में किया जाता था, लेकिन अब इस में छोटे किसानों के पशुपालन के लिए चारे की बढ़ती मांग को पूरा करने की जबरदस्त क्षमता दिखती है. अजोला खेती की प्रक्रिया  किसी छायादार स्थान पर पशुओं की संख्या के अनुसार किसान 1.5 मीटर चौड़ी, लंबाई जरूरत के मुताबिक (3 मीटर) और 0.30 मीटर गहरी क्यारी बनाएं. क्यारी को खोद कर या ईंट लगा कर भी बनाया जा सकता है.

क्यारी में जरूरत के मुताबिक सिलपुटिन शीट को बिछा कर ऊपर के किनारों पर मिट्टी का लेप कर व्यवस्थित कर दें.  सिलपुटिन शीट को बिछाने की जगह पशुपालक पक्की क्यारी बना कर तैयार कर सकते हैं. 100-120 किलोग्राम साफ उपजाऊ मिट्टी की 3 इंच मोटी परत क्यारी में बना दें. नोट : आजकल बाजार में कृत्रिम अजोला टब भी उपलब्ध हैं. किसान चाहें तो उन्हें भी खरीद सकते हैं. अब इस में 5-10 सैंटीमीटर तक जलस्तर आ जाए, इतना पानी क्यारी में भरते हैं.

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5-7 किलोग्राम गोबर (2-3 दिन पुराना) 10-15 लिटर पानी में घोल बना कर मिट्टी पर फैला दें. यदि जानवर गोबर के घोल वाले अजोला को नहीं खाते हैं, तो इस के लिए रासायनिक खाद भी तैयार कर के डाला जाता है, जैसे : एसएसपी – 5 किलोग्राम मैग्नीशियम सल्फेट – 750 ग्राम पोटाश – 250 ग्राम इन का मिश्रण तैयार कर लें. तैयार मिश्रण का 10-12 ग्राम 1 वर्गमीटर 1 सप्ताह के अंतराल पर क्यारी में डालें. इस मिश्रण पर 2 किलोग्राम ताजा अजोला को बिछा दें. इस के बाद 10 लिटर पानी को अच्छी तरह से अजोला पर छिड़कें, जिस से अजोला अपनी सही स्थिति में आ सके.

ध्यान रहे कि मिट्टी और जल का अनुपात 5-7 और क्यारी का तापमान 25-30 डिगरी सैंटीग्रेड अजोला की अच्छी बढ़वार के लिए सही रहता है. क्यारी को नायलोन की जाली से ढक कर 20-21 दिन तक अजोला को बढ़ने दें. लागत अजोला उत्पादन इकाई स्थापना में क्यारी निर्माण, सिलपुटिन शीट, छायादार नायलोन जाली और अजोला बीज की लागत पशुपालक को प्रतिवर्ष नहीं देनी पड़ती है. इन कारकों को ध्यान में रखते हुए अजोला उत्पादन लागत लगभग 10 रुपए प्रति किलोग्राम से कम आंकी गई है. अजोला क्यारी से हटाए पानी को सब्जियों व पुष्प खेती में काम लेने से यह एक वृद्धि नियामक का काम करता है. अजोला लगाने के लिए उचित समय अक्तूबर महीने से ले कर मार्च महीने तक इस को शुरू किया जा सकता है. अप्रैल, मई, जून महीने में अजोला उत्पादन काफी कम हो जाता है.

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लेकिन छाया का इस्तेमाल किया जा सके, तो अजोला का उत्पादन उपरोक्त महीनों में भी किया जा सकता है. रखरखाव शीत ऋतु व गरमी में तापमान कभीकभी कम और अधिक होने की संभावना रहती है, इसलिए उस स्थिति में क्यारी का तापमान उचित बनाए रखने के लिए क्यारी को पुरानी बोरी के टाट अथवा चादर से ढक सकते हैं. क्यारी के जलस्तर को 10 सैंटीमीटर तक बनाए रखें. हर 3 महीने के बाद अजोला को हटा कर पानी व मिट्टी बदलें और नई क्यारी के रूप में पुन: संवर्धन करें. किस्म : अजोला पीनाटा, अजोला माइक्रो फाईला. उपज : 200 से 250 वर्गफुट. अजोला का पशुओं के लिए चारे के रूप में उपयोग क्यारी में तैयार अजोला को छलनी की सहायता से बाहर निकाल कर इस को अलग से साफ पानी से भरी बालटी में धोया जाता है, ताकि जानवर को इस की गंध न आए. बड़े जानवर (गाय, भैंस) : 1 से 1.5 किलोग्राम/प्रतिदिन. छोटे जानवर (बकरी, भेड़) : 150-200 ग्राम/प्रतिदिन. मुरगियां : 30-50 ग्राम/

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प्रतिदिन. नोट : जो जानवर 3-4 लिटर/प्रतिदिन दूध देते हैं, उन को अजोला खिलाने से प्रोटीन की पूर्ति हो जाती है. लाभ : अजोला को रोज दाने या चारे में मिला कर पशुओं को खिलाने से ऐसा पाया गया है कि इस से मिलने वाले पोषण से दूध उत्पादन में 10-15 फीसदी तक की वृद्धि होती है. इस के साथ 20-25 फीसदी चारे की बचत होती है. अजोला को मुरगियों को खिलाने से उन का वजन 10-12 फीसदी ज्यादा बढ़ता है. अजोला की पोषण क्षमता शुष्क मात्रा के आधार पर प्रोटीन (20-25 फीसदी), कैल्शियम (67 मिलीग्राम/100 ग्राम) और लोहा (73 मिलीग्राम/100 ग्राम), रेशा (12-15 फीसदी), खनिज (10-15 फीसदी) और 7-10 फीसदी एमिनो एसिड, जैव सक्रिय पदार्थ व पौलीमर्श आदि पाए जाते हैं.

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