लेखक- डा. पूनम कश्यप, डा. आशीष कुमार प्रूष्टि, डा. सुनील कुमार एवं डा. आजाद सिंह पंवार
भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान, मेरठ, उत्तर प्रदेश् टमाटर एक महत्त्वपूर्ण सब्जी है, जिस की अगेती व देर से फसल लेने में अधिक लाभ होता है. टमाटर के पके फलों को सलाद व सब्जी के रूप में प्रयोग होता किया जाता है. इस में प्रर्याप्त मात्रा में विटामिन ए, बी, बी-2 और सी पाया जाता है. इस में पाया जाने वाला लाइकोपीन एंटी कैंसर गुण रखता है. यह पाचन तंत्र को ठीक करता हैं और गुरदे व लिवर से संबंधित रोगों को दूर करता है. भूमि की तैयारी टमाटर की खेती लगभग सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है, परंतु उचित जल निकास वाली रेतीली दोमट या दोमट भूमि इस की खेती के लिए उपयुक्त होती है. इस की खेती 6.5 से 7.5 पीएच मान वाली मिट्टी में अच्छी होती है.
रोपण के लिए खेत की अच्छी तरह 3-4 जुताइयां कर के तैयार किया जाता है. जलवायु टमाटर की फसल के लिए आदर्श तापमान 20 से 25 डिगरी सैंटीग्रेड होता है. अंकुरण के लिए आदर्श तापमान लगभग 25 डिगरी सैंटीग्रेड होना चाहिए. टमाटर में लाल रंग लाइकोपीन नामक वर्णक के कारण होता है. इस का उत्पादन 25 डिगरी सैंटीग्रेड पर होता है और 30 डिगरी से ऊपर इस का बनना बंद हो जाता है, जिस से टमाटर पीला दिखने लगता है. पौधशाला में बीज की बोआई का समय पौधशाला में टमाटर के बीज की बोआई स्थान और किस्म के अनुसार भिन्नभिन्न स्थानों पर अलगअलग समय में की जाती है. शरदकालीन फसल के लिए बीज की बोआई जुलाईसितंबर, बसंत ग्रीष्म ऋतु के लिए नवंबर से दिसंबर में बोआई करते हैं.
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इस प्रकार इस की खेती वर्षभर की जा सकती है. बीज की मात्रा एक हेक्टेयर खेत की रोपाई के लिए मुक्त परागित किस्मों की 350 से 400 ग्राम और संकर किस्मों की 200-250 ग्राम बीज की जरूरत होती है. पौध करें यों तैयार मैदानी भागों में टमाटर वर्ष में दो बार उगाया जाता है, इसलिए पौध 2 मौसमों वर्षा और शरद ऋतु में तैयार किए जाते हैं. पहाड़ी भागों में इसे मार्चअप्रैल में तैयार किया जाता है. एक हेक्टेयर पौधारोपण के लिए 100-120 वर्गमीटर क्षेत्रफल की जरूरत होती है. पौध रोपण आमतौर पर 4-6 पत्तियों वाली तैयार पौध, जिस की ऊंचाई 15-20 सैंटीमीटर हो, रोपण के लिए उपयुक्त होती है. पंक्ति में पंक्ति व पौध से पौध की दूरी, किस्म भूमि की उर्वरता, रोपण के समय के अनुसार कम या ज्यादा की जा सकती है.
यह ध्यान रखना चाहिए कि रोपण के 3-4 दिन पहले ही नर्सरी में सिंचाई बंद कर दें. जाड़े के मौसम में यदि पाला पड़ने का डर हो, तो क्यारियों को पौलीथिन की चादर से ढक दें. उन्नतशील किस्में पौधे की बढ़वार के आधार पर असीमित बढ़वार : बैस्ट औफ आल, पंजाब ट्रौपिक, सोलन गोला, यशवंत-2, मारग्लोब, नवीन आदि
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. अर्द्धसीमित बढ़वार : ए-12, सोलन शुगन आदि. सीमित बढ़वार : एचएस-11, एचएस-102, पूसा अर्ली, रोना ड्वार्फ आदि. फलों के आकार के आधार पर बड़े फलों वाली किस्में : पांडरोजा, पंजाब ट्रौपिक, स्यू, एचएस-110, मारग्लोब, काशी विशेष, काशी अनुपम.
मध्यम फलों वाली किस्में : पूसा रूबी, बैस्ट औफ आल, एस-120, केकस्थ अगेती और एचएस-101. छोटे फलों वाली किस्में : एस-12, एचएस-102, पूसा रैड प्लम. नाशपती के आकार वाली किस्में : गेम्ड टाइप, सलैक्शन-152, इटैलियन रैड, रोमा, कल्याणपुर अंगुरलता.
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उगाए जाने वाले क्षेत्रों के आधार पर मैदानी क्षेत्रों के लिए : पूसा रूबी, पूसा अर्ली ड्वार्फ, एस-120, एचएस-101, एचएस-102, एस-12. पहाड़ी क्षेत्रों के लिए : स्यू, बैस्ट औफ, रोमा. अधिक तापमान पर फल देने वाली किस्में : एचएस-102, मनी मेकर, लाकुलस.
परिवहन के लिए उपयुक्त किस्में : रैड टौप, मेरठी. प्रसंस्करण के लिए उपयुक्त किस्में स्यू, पूसा प्लम. अन्य संस्थान द्वारा विकसित किस्में काशी अनुपम, काशी अमृत, काशी हेमंत, काशी शरद, काशी विशेष, स्यूक्स, पूसा रूबी, पूसा अर्ली ड्वार्फ, पूसा रैड प्लम, पूसा सलैक्शन-120, हिसार ललिता, एचएस आदि. खाद और उर्वरक टमाटर की अच्छी फसल के लिए प्रति हेक्टेयर की दर से 20-25 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद और तत्त्व के रूप में 100-150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस व 60-80 किलोग्राम पोटाश डालें. असीमित वृद्धि वाली किस्मों के लिए नाइट्रोजन की मात्रा 200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से देनी चाहिए. गोबर की खाद रोपण से 3-4 हफ्ते पहले खेत में सब जगह एकसमान डाल कर मिट्टी में अच्छी प्रकार मिला दें.
फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा व नाइट्रोजन की एकतिहाई मात्रा रोपण से पहले खेत में डालें. नाइट्रोजन की बाकी मात्रा 2 बराबर भागों में बांट कर 25-30 व 45-50 दिन बाद खड़ी फसल में टौप ड्रैसिंग करें. सिंचाई पौध रोपण के बाद 2 दिन तक फुहारे से पानी दें या रोपण के बाद हलकी सिंचाई करें. गरमी के मौसम में 7 से 8 दिन तक, सर्दियों में 10 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहें. यह ध्यान रखना चाहिए कि खेत में अधिक पानी न लगने पाए. अधिक पानी देने से पौधों में मुरझान और पत्ती मोड़क विषाणु रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है. खरपतवार नियंत्रण अच्छी फसल के लिए खरपतवार का नियंत्रण करना बहुत जरूरी है. छोटे व मध्यमवर्गीय किसान अपने खेतों में खरपतवार नियंत्रण के लिए खुरपी या कुदाल द्वारा खुद ही कर लेते हैं, नहीं तो रासायनिक दवाओं का छिड़काव कर के खरपतवार पर नियंत्रण कर सकते हैं.
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अंत:सस्य क्रियाएं अच्छी पैदावार लेने के लिए हलकी निराईगुड़ाई करें व पौधों की जड़ों के पास मिट्टी चढ़ानी चाहिए. यदि टमाटर की किस्म असीमित वृद्धि वाली हो तो सहारा दें. फलों की तुड़ाई टमाटर के फलों की तुड़ाई उस के उपयोग पर निर्भर करती है. यदि टमाटर को पास के बाजार में बेचना है, तो फल पकने के बाद तुड़ाई करें और यदि फलों को बेचने के लिए दूर के बाजार में भेजना हो, तो जैसे ही उन के रंग में बदलाव होना शुरू हो, तुरंत तुड़ाई करनी चाहिए.
श्रेणीकरण खेत में टमाटर तोड़ने के बाद रोग से ग्रसित, सड़ेगले आदि फलों को सब से पहले छांट कर अलग करने के बाद उन्हें आकार के अनुसार 3 वर्गों (बड़े, मध्यम और छोटे) में वर्गीकृत कर देते हैं. वर्गीकृत टमाटर बाजार में भेजने पर अच्छा भाव मिलता है. भारतीय मानक संस्थान के अनुसार, टमाटर को मुख्य रूप से 4 वर्गों में आकार के अनुसार सुपर, सुपर-ए, फैंसी और व्यापारिक में बांटा गया है. भंडारण यदि बाजार में मांग न हो, तो टमाटर को कुछ दिनों के लिए भंडारित किया जा सकता है. जैसे पके हरे टमाटर को 12.5 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान पर 30 दिन और पके टमाटर को 4-5 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान पर 10 दिन तक रखा जा सकता है. इस भंडारण के समय आर्द्रता 85 से 90 प्रतिशत होनी चाहिए.
उपज टमाटर की औसत उपज प्रति हेक्टेयर 350-400 क्विंटल होती है. उत्तम तकनीक और अच्छी संकर किस्मों से आमतौर पर 800-1000 क्विंटल प्रति हेक्टेयर टमाटर की उपज ली जा सकती है. प्रमुख कीट व नियंत्रण हरा तेला हरे रंग के छोटेछोटे कीड़े होते हैं, जिन की संख्या पत्तों के निचली सतह पर अधिक होती है. ये कीट रस चूसते हैं. इस के कारण पत्तियां ऊपर की ओर मुड़ कर पीली हो जाती हैं. प्रबंधन 0.04 फीसदी मैलाथियान या रोगर या मैटासिस्टौक्स का छिड़काव करें. दवा का छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर करें. एफिड यह काले रंग के छोटे आकार के कीट पत्तियों का रस चूसते हैं. प्रबंधन 0.02 फीसदी मोनोक्रोटोफास का छिड़काव 2 हफ्ते के अंदर करना चाहिए.
फलछेदक सूंड़ी इस का हरे रंग का लाखा पत्तियों व फलों में छेद करता है, जिस से फल सड़ने लगते हैं. प्रबंधन 0.15 फीसदी सेविन का छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर करें. रोपाइ के समय 16 लाईन टमाटर के बाद एक लाइन गेंदे की लगाएं. एचएनपीवी 250 एलई को गुड़ के साथ (10 ग्राम प्रति लिटर), साबुन पाउडर (05 ग्राम प्रति लिटर), और टीनोपाल (1 मिली प्रति लिटर) को पानी में मिला कर शाम में प्रयोग करें. अंडा परजीवी कीट/2,50,000 प्रति हेक्टेयर की दर से 10 दिनों के अंतराल पर करें. सफेद मक्खी यह सफेद रंग की मक्खी पत्तियों से रस चूसती है और विषाणु रोग फैलाते हैं,
जिस से पत्तियां मुड़ जाती हैं. प्रबंधन बोने से पहले इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यूएस या थायोमेथाक्जाम 70 डब्ल्यूएस का 3 से 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज का उपचार करें. 1 से 2 पीला 1 चिपकने वाला ट्रैप 50-100 वर्गमीटर की दूरी पर रखें. प्रमुख रोग और उन का प्रबंधन आर्द्रगलन रोग जमीन से लगे हुए तने जलीय व नरम हो कर ?क जाते हैं. कभीकभी पत्तियों के मुर?ने और सूखने के लक्षण भी दिखाई देते हैं. प्रबंधन कैपटान, एग्रोसान दवा 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज में मिला कर उपचारित करें. ब्लाईटौक्स 50, 1 किलोग्राम प्रति 300 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करें. अगेती अंगमारी पत्तियों पर गोल और त्रिकोणाकार गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ने पर सूख कर गिर जाती हैं.
यह धब्बे फल को खराब करते हैं और फल सड़ जाते हैं. प्रबंधन बीज बोने के पहले ट्राईकोडर्मा पाउडर से बीज का उपचार करें. डाईथेन एम 45 का 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 10 से 15 दिन के अंतर पर छिड़काव करें. पिछेता ?ालसा पत्तियां पीली पड़ कर गिर जाती हैं और जमीन के संपर्क में होने वाले फल सड़ जाते हैं. फलों पर भूरे रंग के घब्बे बनते हैं, जिस से फल सड़ने लगते हैं. प्रबंधन पौधे को सहारा दे कर जमीन से उपर रखें. खेत में जल निकास का उचित प्रबंध करें. 0.2 प्रतिशत डाईथेन जैड 78 का छिड़काव करेें. फल गलन फल पूरी तरह बदरंग हो जाता है और फलों पर पीले भूरे रंग के संकेंद्र बलयुक्त धब्बे पड़ जाते हैं, जिस से अंदर का गूदा पूरी तरह सड़ जाता है. प्रबंधन फसल में अधिक पानी न दें. टमाटर हमेशा मेड़ों पर लगवाएं. डाईफोल्टान दवा का 0.3 फीसदी का छिड़काव करें.