सलाद से ले कर हर वक्त के खाने में मिर्च शामिल होती है. तीखा खाने वाले तो बगैर मिर्च के रह ही नहीं पाते. यही वजह है कि मिर्च की खेती से किसान काफी फायदा उठा सकते हैं. मिर्च की वैज्ञानिक खेती बहुत कारगर रहती है. हम मिर्च को किसी भी मौसम में उगा सकते हैं, लेकिन मिर्च की खेती सर्दी के मौसम में करने से ज्यादा फायदा होता है. इसे उगाने के लिए कम तापमान की जरूरत होती है. उत्तर भारत में जहां सिंचाई की सुविधाएं मौजूद हैं, वहां मिर्च का बीज मानसून आने से करीब 6 हफ्ते पहले बोया जाता है और मानसून आने के साथसाथ इस की पौध खेतों में लगा दी जाती है. इस के अलावा दूसरी फसल के लिए बोआई नवंबरदिसंबर में की जाती है और फसल मार्च से मई तक ली जाती है.
मिर्च कैप्सिकम वंश का एक फल माना जाता है. यह सोलेनेसी कुल का एक सदस्य है. मिर्च भारतीय व्यंजन में डाला जाने वाला खास मसाला है. देश में मिर्च का इस्तेमाल हरी मिर्च की तरह व मसाले के रूप में किया जाता है. इसे सब्जियों और चटनियों में डाला जाता है. इस को हरी खाने के साथसाथ मसाले व अचार की तरह भी इस्तेमाल किया जाता है. इस की खेती जायद व खरीफ दोनों मौसमों में की जाती है.
मिर्च की खेती की शुरुआत दक्षिण अमेरिका से हुई थी और अब सभी देशों में इस की खेती की जाती है. भोजन में तीखापन लाने वाली हरी मिर्च, स्वाद के साथ ही सेहत के लिए भी फायदेमंद है. यह आप के स्वास्थ्य को कई तरह से बेहतर बनाए रखने में मदद करती है. हरी मिर्च कई तरह के पोषक तत्त्वों जैसे विटामिन ए, बी 6, सी, आयरन, कौपर, पोटेशियम, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट से भरपूर होती है. यही नहीं इस में बीटा कैरोटीन वगैरह की भी काफी मात्रा होती है. हरी मिर्च में भरपूर मात्रा में विटामिन सी होता है, जो रोगों से लड़ने की कूवत में बढ़ोतरी करता है. इस में भरपूर मात्रा में एंटी आक्सीडेंट्स होते हैं, जो शरीर की आंतरिक सफाई करने के साथ ही शरीर को फ्री रेडिकल से बचा कर कैंसर के खतरे को कम करते हैं. विटामिन ई से भरपूर हरी मिर्च त्वचा के लिए भी फायदेमंद होती है.
भारतीय नाम : लाल मिर्च, हरी मिर्च, मोरची, लाल मिरचा आदि.
जलवायु : मिर्च गरम व नम आबोहवा में अच्छी तरह उगती है. लेकिन फलों के पकते समय शुष्क मौसम का होना जरूरी है. गरम मौसम की फसल होने के कारण इसे उस समय तक नहीं उगाया जा सकता, जब तक कि मिट्टी का तापमान बढ़ न गया हो और पाले का खतरा टल न गया हो. बीजों का अच्छा अंकुरण 18-30 डिगरी सेंटीग्रेड तापमान पर होता है. अगर फूलते समय और फल बनते समय जमीन में नमी की कमी हो जाती है, तो छोटे फल गिरने लगते हैं. मिर्च के फूल व फल आने के लिए सब से सही तापमान 25-30 डिगरी सेंटीग्रेड है. फूलते समय ओस गिरना या तेज बारिश होना फसल के लिए नुकसानदायक होता है, क्योंकि इस की वजह से फूल व छोटे फल टूट कर गिर जाते हैं.
मिर्च की उन्नतशील प्रजातियां
मिर्च की 2 तरह की प्रजातियां होती हैं. पहली प्रजाति में पूसा ज्वाला, पंत सी 1, पूसा सदाबहार, जी 4, आजाद मिर्च 1, चंचल, कल्यानपुर चमन वगैरह शामिल हैं. दूसरी संकर प्रजातियां होती हैं, जिन में तेजस्वनी, अग्नि, चैंपियन, ज्योति व सूर्या वगैरह खास हैं.
निजी कंपनियों द्वारा विकसित किस्में
सिजेंटा इंडिया : रोशनी, हाटलाइन, पीकाडोर, अभिरेखा, एचपीएच 2424.
नामधारी सीड्स : एनएस 686, 222, 1701, 408, 407, 250, 208, प्रगति.
अंकुर सीड्स : आचारी, गुलजार, एआरसीएच 226, 32, 313, 162, 547, 531.
जेके एग्री जेनेटिक्स : जेकेएचपीएच 301, जेके दिव्या 178, जेके 1020.
सेमिनिस वेजीटेबल्स : ज्वालामुखी, दिल्ली हाट, रविंदू, सितारा, रेडहाट, मेगाहाट, हाट पेपर.
नुनहेम्स सीड्स : क्रांति रुद्रा, सोल्जर, उजाला 2680, न्यू वरदान, अभिरेखा, वीरू, सिंदूर.
बेजो शीतल : अनमोल, अर्जुन, सावित्री, अग्रीमा 269, गरिमा 378, सुपर अर्जुन, झनकार, जलवा.
बीज दर : संकर किस्मों के बीजों की 120-150 ग्राम व अच्छी पैदावार देने वाली किस्मों के बीजों 200-250 ग्राम मात्रा प्रति एकड़ की दर से लगती है. 1 से डेढ़ किलोग्राम अच्छी मिर्च का बीज करीब 1 हेक्टेयर रकबे में रोपने लायक पौधे बनाने के लिए काफी होता है. साथ ही ऐसी किस्मों का चुनाव करना चाहिए, जो इलाके के मौसम, बाजार व उपभोक्ता के अनुसार अच्छी पैदावार देने वाली हों.
पौधशाला (नर्सरी) : पौधशाला के लिए उपजाऊ, अच्छी पानी सोखने वाली व पानी निकास वाली, पेड़ की छाया रहित, खरपतवार मुक्त जमीन का चुनाव करना चाहिए. पौधशाला में सही मात्रा में धूप का आना भी जरूरी है. पौधशाला को पाले से बचाने के लिए नवंबरदिसंबर की बोआई में पानी का अच्छा इंतजाम होना चाहिए.
पौधशाला की लंबाई 10-15 फुट व चौड़ाई 2.3-3 फुट से ज्यादा नहीं होनी चाहिए, ताकि निराई व दूसरे कामों में परेशानी न हो. पौधशाला की ऊंचाई आधा फुट रखनी चाहिए. जमीन बराबर करने के बाद 5 से 10 सेंटीमीटर के अंतर पर 2 से 2.5 सेंटीमीटर गहरी नाली बना कर उस में बीज बोने चाहिए. बोआई कतारों में करें और कतारों का फासला 5-7 सेंटीमीटर रखें. लगभग 6 हफ्ते में पौधे तैयार हो जाते हैं.
पौधशाला की देखभाल: पौधशाला में जरूरत के हिसाब से फुहारे से पानी देते रहें. गरमियों में एग्रोनेट का इस्तेमाल करने से भी जमीन से नमी जल्दी उड़ जाती है, लिहाजा कभीकभी दोपहर के बाद 1 दिन के अंतर पर पानी छिड़कें. बारिश के मौसम में पानी के निकास का इंतजाम करें. बीजों के अंकुरण के 4 से 5 दिनों बाद घास वगैरह हटाएं. नर्सरी में खरपतवार न उगने दें. अगर सूक्ष्म तत्त्वों की कमी दिखे तो पानी में घुलनशील सूक्ष्म तत्त्वों का छिड़काव करें.
मिट्टी व खेत की तैयारी : मिर्च कई तरह की मिट्टियों में उगाई जा सकती है, पर अच्छी जल निकास व्यवस्था वाली कार्बनिक तत्त्वों वाली दोमट मिट्यिं इस के लिए सब से अच्छी होती हैं. जहां फसल काल छोटा है, वहां बलुई व बलुई दोमट मिट्टियों को प्राथमिकता दी जाती है. बरसाती फसल भारी और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में बोई जानी चाहिए. जमीन 5-6 बार जोत कर व पाटा चला कर समतल कर लेनी चाहिए. खेती की ऊपरी मिट्टी को महीन और समतल कर लिया जाना चाहिए और उचित आकार की क्यारियां बना लेनी चाहिए.
खाद व उर्वरक : गोबर की सड़ी हुई खाद लगभग 300-400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से जुताई के समय मिट्टी में मिला देनी चाहिए. रोपाई से पहले 150 किलोग्राम यूरिया, 175 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 100 किलोग्राम म्यूरिएट औफ पोटाश का प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. 150 किलोग्राम यूरिया बाद में प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करनी चाहिए. यूरिया फूल आने से पहले जरूर दे देने चाहिए.
रोपाई : 1 एकड़ में 60 हजार पौधे और हर जगह 2 पौधे के हिसाब से रोपाई करनी चाहिए. मिर्च के पौधे को गड्ढे में इस प्रकार रोपें, जिस से पौधे का आखिरी पत्ता जमीन में सटे. रोपाई के लिए 60×60 सेंटीमीटर का अंतर रखें. पौधे को लाल कीड़ी, दीमक, केंचुआ, कृमि व रस चूसक कीट से बचाने के लिए खाद के साथ 300 ग्राम कार्बोफ्यूरान प्रति हेक्टेयर की दर से डाल कर जमीन में मिला दें. मिर्च को शाम के वक्त लगभग 4 बजे के बाद रोपना चाहिए ताकि धूप कम हो जाए. धूप में मिर्च के पौधे को रोपने से वह मुरझा जाता है.
ड्रिप सिंचाई प्रणाली में रोपाई : अनिश्चित बढ़वार, झाड़ीनुमा सीधे बढ़ने वाली किस्मों को 5 फुट की दूरी पर ड्रिप लाइन पर एकल कतार विधि से रोपना चाहिए. पौधे से पौधे की दूरी व कतार से कतार की दूरी 30 से 40 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. संकर किस्मों को युगल कतार विधि द्वारा लगाना चाहिए. मिर्च के पौधे की सिंचाई ड्रिप विधि से की जानी चाहिए, क्योंकि ड्रिप सिस्टम मिर्च की जड़ों को हमेशा जीवित रखता है.
सिंचाई : पहली सिंचाई रोपाई के एकदम बाद की जाती है. बाद में गरम मौसम में हर 5-7 दिनों और सर्दी में 10-12 दिनों के अंतर पर फसल को सींचा जाता है.
निराईगुड़ाई : पौधों की बढ़वार की शुरुआती अवस्था में खरपतवारों पर नियंत्रण पाने के लिए निराई करना जरूरी होता है. रोपाई के 2 या 3 हफ्ते बाद पौधों पर मिट्टी चढ़ाई जानी चाहिए.
अन्य देखभाल : अगर खेत में जिंक, लौह या बोरौन की कमी दिखे तो 40 ग्राम फेरस सल्फेट, 20 ग्राम जिंक सल्फेट और 10 ग्राम बोरिक एसिड को 10 लीटर पानी में मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.
सूक्ष्म तत्त्वों का घोल बनाने का तरीका : 10 लीटर पानी में 250 ग्राम चूना रात में भिगो कर रख दें. दूसरे दिन इस घोल में से 1 लीटर चूने का पानी तैयार करें. फिर 1 लीटर पानी में 40 ग्राम फेरस सल्फेट, 20 ग्राम जिंक सल्फेट और 10 ग्राम बोरिक एसिड को मिक्स कर छान लें. इस में 1 लीटर चूने का पानी, 8 लीटर सादा पानी मिला कर 10 लीटर का घोल बनाएं. घोल में टीपोल या साबुन का घोल डाल कर प्रति हेक्टेयर की दर से सुबह जल्दी या शाम को 7 दिनों के अंतर पर 2 बार छिड़कें.
रोपाई का सही समय 15 अगस्त से 15 सितंबर के बीच का है. हलकी बारिश गिरते समय रोपाई करने से पौधे अच्छी तरह से लग जाते हैं. अच्छी बढ़वार के लिए बोआई के 5 से 6 हफ्ते बाद 15 से 20 सेंटीमीटर के सही पौधे की 60×60 सेंटीमीटर के अंतर पर रोपाई करें. एक जगह पर 5 सेंटीमीटर के अंतर पर 2 पौधे लगाएं. पौधों की सही संख्या के लिए रोपाई के 10-15 दिनों बाद खाली जगह में नए पौधे लगाएं.
उपज : सिंचित क्षेत्रों में हरी मिर्च की औसत पैदावार करीब 88-94 क्विंटल और सूखी मिर्च की औसत पैदावार करीब 18-22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.
मिर्च की खेती के लिए सुझाव
* टमाटर व मिर्च की खेती एक ही खेत में या आसपास के खेतों में न करें, क्योंकि इन में कीड़े व रोग एक जैसे होते हैं. सह फसलों से एंथ्रेक्नोज और बैक्टीरियल झुलसा रोग फैल सकते हैं.
* प्याज व धनिया के साथ मिश्रित खेती करने से ज्यादा आमदनी मिलती है व खरपतवारों की संख्या कम करने में भी सहायता मिलती है.
* यदि मिर्च के साथ प्याज, लहसुन और गेंदे की मिश्रित खेती की जाए, तो सूत्रकृमि की रोकथाम में मदद मिलती है.
मिर्च फसल में कीट व रोगों से बचाव
आर्द्रगलन रोग : यह रोग ज्यादातर नर्सरी के पौधों में आता है. इस रोग में जमीन से सटा हुआ तना गलने लगता है और पौधा मर जाता है. इस रोग से बचाने के लिए बोआई से पहले बीजों का उपचार फफूंदनाशक दवा कैप्टान से करना चाहिए. दवा का 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. इस के अलावा कैप्टान की 2 ग्राम मात्रा का प्रति लीटर पानी में घोल बना कर सप्ताह में 1 बार नर्सरी में छिड़काव किया जाना चाहिए.
एंथ्रेक्नोज रोग : इस रोग में पत्तियों और फलों में खास आकार के हरे, भूरे और काले रंग के धब्बे पड़ते हैं. इस के असर से पैदावार बहुत घट जाती है. इस रोग से बचाव के लिए वीर एम 45 या बाविस्टीन नामक दवाओं की 2 ग्राम मात्रा का प्रति लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए.
लीफ कर्ल रोग : यह मिर्च की एक भयंकर बीमारी है. यह रोग बरसात की फसल में ज्यादातर आता है. इस से शुरू में पत्ते मुरझा जाते हैं व बढ़वार रुक जाती है. अगर इस को समय रहते काबू नहीं किया जाता तो यह पैदावार को भारी नुकसान पहुंचाता है. यह एक विषाणु रोग है, जिस को किसी दवा से काबू नहीं किया जा सकता है. यह बीमारी सफेद मक्खी से फैलती है. लिहाजा इस की रोकथाम भी सफेद मक्खी से छुटकारा पा कर ही की जा सकती है. इस बीमारी से बचने के लिए बीमारी लगे पौधों को उखाड़ कर खत्म कर दें और 15 दिनों के अंतर पर कीटनाशक रोगर या मैटासिस्टाक्स की 2 मिलीलीटर मात्रा का प्रति लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें. इस रोग की प्रतिरोधी किस्में जैसे पूसा ज्वाला, पूसा सदाबहार और पंत सी 1 को लगाना चाहिए.
मौजेक रोग : इस रोग में हलके पीले रंग के धब्बे पत्तों पर पड़ जाते हैं. बाद में पत्तियां पूरी तरह से पीली पड़ जाती हैं व बढ़वार रुक जाती है. यह भी एक विषाणु रोग है, जिस का नियंत्रण मरोडि़या रोग की तरह ही है.
थ्रिप्स व एफिड : ये कीट पत्तियों से रस चूसते हैं और उपज के लिए हानिकारक होते हैं. इन कीटों की वजह से पत्तियां सिमट छोटी हो जाती हैं और एक ओर मुड़ जाती हैं, जिस से पौधे का विकास रुक जाता है. कीट लग जाने की वजह से पौधे में फूल बहुत ही कम निकलते हैं. साथ ही फल भी कम हो जाते हैं. रोगर या मैटासिस्टाक्स दवा की 2 मिलीलीटर मात्रा का प्रति लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करने से इन को काबू किया जा सकता है.
मिर्च तोड़ाई में सावधानी
* हरी मिर्च तोड़ते समय यह खयाल रखें कि फूल व बढ़ रही मिर्चें खराब न होने पाएं. हरी मिर्च की तोड़ाई 6 से 8 बार औसतन 5 से 6 दिनों के अंतर से करें.
* गरमी व सर्दी के मौसम में मिर्च पकने पर सुखा कर बेचते हैं. कभीकभी अचार वाली जातियों को गीला बेचने के लिए तोड़ा जाता है.
* अमूमन पकी हुई मिर्चों को थोड़ेथोड़े समय के अंतर पर हाथ से तोड़ लिया जाता है. मिर्च की 3 से 6 बार तोड़ाई की जाती है. आमतौर पर मिर्च को सूरज की रोशनी में सुखाते हैं.
* तोड़ाई के बाद मिर्च की फलियों को ढेर के रूप में रातभर के लिए रखते हैं, जिस से आधे पके फल पक जाते हैं.
* दूसरे दिन मिर्च को ढेर से उठा कर सुखाने के स्थान पर 2-3 इंच मोटी परत में फैला देते हैं.
* 2 दिनों के बाद, हर दिन सुबह मिर्च को उलटनेपलटने से सूरज की रोशनी हर परत पर समान रूप से पड़ती है.
* सूरज की रोशनी में मिर्च को सुखाने के लिए 10-25 दिन लगते हैं.
* सौर ऊर्जा से चलने वाली मशीन का इस्तेमाल भी मिर्च को सुखाने के लिए किया जाता है. इस से 10-12 घंटे में मिर्च को सुखाया जा सकता है.
* सौर ऊर्जा द्वारा सुखाई गई मिर्च अच्छे गुणों वाली होती है.
डा. बालाजी विक्रम, डा. दिनेश कुमार