मई 1948, कश्मीर घाटी, शाम का समय था. सूरज पहाड़ों के पीछे धीरेधीरे अस्त हो रहा था और ठंड बढ़ रही थी. मेजर वरुण चाय का मग खत्म कर ही रहा था कि नायक सुरजीत उस के सामने आया, और उस ने सैल्यूट मारा.

 ‘‘सर, हमें सामने वाले दुश्मन के बारे में पता चल गया है. हम ने उन की रेडियो फ्रीक्वैंसी पकड़ ली है और उन के संदेश डीकोड कर रहे हैं. हमारे सामने वाले मोरचे पर 18 पंजाब पलटन की कंपनी है और उस का कमांडर है मेजर जमील महमूद.’’

नायक सुरजीत की बात सुनते ही वरुण को जोर का धक्का लगा और चंद सैकंड के लिए वह कुछ बोल नहीं सका. फिर उस ने अपनेआप को संभाला और बोला, ‘‘शाबाश सुरजीत, आप की टीम ने बहुत अच्छा काम किया. आप की दी हुई खबर बहुत काम आएगी. आप जा सकते हैं.’’

सुरजीत ने सैल्यूट मारा और चला गया. उस के जाने के बाद वरुण सोचने लगा, ‘18 पंजाब-मेरी पलटन. मेजर जमील महमूद-मेरा जिगरी दोस्त. क्या मैं उस की जान ले लूं जिस ने कभी मेरी जान बचाई थी. यह कहां का इंसाफ होगा?’

वरुण अतीत में खो गया…

देश के बंटवारे के पहले, लाहौर में उन दोनों के घर आसपास थे. दोनों खानदानों में अच्छा मेलमिलाप था. उन दोनों के पिता एक ही दफ्तर में काम करते थे.

दोनों तरफ के सब बच्चों में दोस्ती थी पर जमील और वरुण के बीच खास लगाव था. दोनों लंगोटिया यार थे. इस की वजह थी कि दोनों न सिर्फ हमउम्र थे, दोनों महाबदमाश भी थे. शैतानी करने में माहिर थे, पर साथसाथ पढ़ाई करने में भी काफी तेज थे. क्लास में दोनों बहुत अच्छे नंबर पाते थे, इसलिए शैतानी करने पर आमतौर पर उन्हें केवल डांट ही पड़ती थी.

स्कूली शिक्षा हासिल कर लेने के बाद दोनों एक ही कालेज में पढ़ने लगे. तब तक दूसरा महायुद्ध शुरू हो गया था. कालेज की पढ़ाई पूरी होने पर दोनों ने तय किया कि वे सेना में अफसर बनेंगे. जमील के अब्बा को उस का इरादा काफी नेक लगा और उन्होंने फौरन अपनी रजामंदी दे दी. उस की मां ने कुछ नहीं कहा, पर सब देख सकते थे कि वे खुश नहीं थीं. वरुण के मातापिता दोनों ही उस के फौजी बनने के खिलाफ थे. वे कहते थे, ‘यह तो अंगरेजों की सेना है. हमारा बेटा क्यों उन की लड़ाई में लड़े और उन के लिए अपनी जान खतरे में डाले.’

बड़ी मुश्किल से वरुण ने उन को मनाया. फिर दोनों दोस्तों ने अफसर बनने के लिए इंटरव्यू दिए. दोनों चुन लिए गए. अफसर ट्रेनिंग स्कूल में 6 महीने की शिक्षा पा कर उन को कमीशन मिल गया, और वे अफसर बन गए. वह समय था दिसंबर, 1943. जमील और वरुण दोनों की पोस्टिंग एक ही पलटन में हुई- ‘18 पंजाब’. उन की पलटन उस समय देश की पूर्वी सीमा पर थी. वह जापानी सेना का सामना कर रही थी. जब जमील और वरुण पलटन में पहुंचे तो पता चला कि उन पर हमला होने की आशंका थी. वैसे तो पिछले 18 महीने से जापानी सेना शांत बैठी थी. पूरे बर्मा पर कब्जा करने के बाद लगता था कि अब वह आगे नहीं बढ़ेंगी. पर जासूसों ने बताया कि वह किसी बड़े हमले की तैयारी कर रही है. 18 पंजाब पलटन को कोहिमा का मोरचा मिला था.

अप्रैल 1944 के पहले हफ्ते में जापानी सेना ने धावा बोल दिया. पूरी ताकत से जापानी सेना कोहिमा और उस के आसपास के इलाके पर टूट पड़ी. उस का जोश इतना था कि 18 पंजाब पलटन और उन की साथी पलटनों को पीछे हटना पड़ा. पर उन्होंने जल्द ही स्थिति पर काबू पा लिया. उन को मालूम था कि उन के पीछे बहुत ही कम सेना थी. सो, अगर जापानी उन का मोरचा तोड़ कर आगे निकल गए तो पूरे भारत को खतरा हो जाएगा.

कई दिनों तक घमासान युद्ध चलता रहा. एक मोरचे पर दोनों जमील और वरुण तकरीबन साथसाथ ही लड़ रहे थे. वरुण की नजर सामने आते जापानी सैनिकों पर थी. जमील ने देखा कि दाहिनी ओर से कुछ और जापानी उन की तरफ बढ़ रहे थे जिन में से एक सैनिक वरुण को निशाना बना रहा था.

‘वरुण बच के,’ जमील चिल्लाया और कूद कर उस ने वरुण को धक्का दे दिया. वरुण नीचे गिरा और जापानी सिपाही की गोली जमील के कंधे में लगी. फिर जापानी सिपाही उन तक पहुंच गए और दोनों गुटों में हाथापाई होने लगी. आखिर 18 पंजाब पलटन के बहादुर सैनिकों ने जापानियों को खदेड़ दिया. उस के बाद ही वे जमील को डाक्टर के पास ले जा सके.

जमील का समय अच्छा था कि गोली केवल मांस को छू कर निकल गई थी. हड्डी बच गई थी. इसलिए वह जल्दी ही ठीक हो गया.

वरुण उस से मिलने डाक्टरी तंबू में गया. उस ने कहा, ‘यार जमील, तू ने मेरी जान बचाई है.’

‘उल्लू के पट्ठे,’ (दोनों दोस्त एकदूसरे को ऐसे प्यारभरे शब्दों में अकसर बुलाया करते थे), ‘अगर तुझे नहीं बचाता तो किस को बचाता, दुश्मनों को,’ जमील ने जवाब दिया.

आखिर लड़ाई समाप्त हुई. जापानी हार गए. 18 पंजाब पलटन मेरठ छावनी में वापस आई.

समय बीता और 15 अगस्त, 1947 का महत्त्वपूर्ण दिन आया. हिंदुस्तान को आजादी मिल गई पर देश का बंटवारा हो गया. जमीन बंटी, आजादी बंटी, सामान बंटा और फौज भी बंटी.

18 पंजाब पलटन पाकिस्तान के हिस्से में आई. वरुण की पोस्टिंग किसी और पलटन में हो गई. जाने से पहले वह जा कर जमील से गले मिला.

‘अब हम अलगअलग मुल्कों के बाशिंदे हो गए हैं,’ जमील ने कहा.

‘पर फिर भी हम दोस्त रहेंगे, हमेशाहमेशा के लिए,’ वरुण ने जवाब दिया.

तभी वरुण की तंद्रा भंग हुई और वह वर्तमान में लौट आया. वरुण कशमकश में फंसा हुआ था कि महज 8 महीने बाद ही दोनों दुश्मन बन कर, एकदूसरे का सामना कर रहे थे.

उस रात वरुण को नींद नहीं आई. वैसे तो जब लड़ाई में विराम होता, जैसे अब था, वरुण रात को 2 बार उठ कर संत्रियों को जांचता था. उस रात वह केवल एक बार गया. बाकी समय वह इस सोच में डूबा था कि कैसे वह जमील से मिले.

देर रात उस के दिमाग में एक खयाल आया और वरुण ने उस पर अमल करने का पक्का इरादा तय किया. खतरनाक तरीका था पर वरुण को कोई और रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था.

सुबह होते ही उस ने नायक सुरजीत को बुलवाया. सुरजीत उस के सामने आया, सैल्यूट मारा और उस ने पूछा, ‘‘जी सर?’’

‘‘सुरजीत, क्या तुम हमारे सामने वाले दुश्मन की टोली से रेडियो द्वारा संपर्क कर सकते हो?’’ वरुण ने उस से पूछा.

सुरजीत थोड़ा चौंका, फिर बोला, ‘‘कर सकते हैं, सर. हमें उन की रेडियो की फ्रीक्वैंसी मालूम है.’’

‘‘तो अभी जा कर उन को यह संदेश भेजो,’’ वरुण ने एक कागज पर लिखा-

‘‘मेजर जमील महमूद, मैं तुम से थोड़ी देर के लिए मिलना चाहता हूं. अगर तुम्हें मंजूर है तो आज दोपहर 3 बजे दोनों मोरचों के बीच चिनार के पेड़ के नीचे मिलो. पौने 3 बजे से 2 घंटे के लिए मैं अपनी तरफ से गोली चलाना बंद करवा दूंगा.’’

सुरजीत ने संदेश पढ़ा. यह स्पष्ट था कि वह कुछ पूछना चाह रहा था, पर फौज के सीनियर अफसर से कोई भी सवाल नहीं करता है. उस ने सैल्यूट मारा और आज्ञा का पालन करने के लिए वहां से चला गया.

2 घंटे बाद वह वरुण के पास वापस आया, ‘‘सर, मेजर जमील आप की बात मान गए गए हैं. वे 3 बजे आप को चिनार के पेड़ के पास मिलेंगे. उन की तरफ से भी 2 घंटे के लिए गोलाबारी बंद रहेगी,’’ उस ने बताया.

ठीक 3 बजे वरुण चिनार के पेड़ के पास पहुंचा. जमील उस का इंतजार कर रहा था. वरुण को देखते ही वह बोल उठा, ‘‘अबे उल्लू के…सौरी मेजर वरुण, मैं भूल गया कि अब हम दुश्मन हैं.’’

‘‘हां यार,’’ वरुण ने जवाब दिया. ‘‘दो दोस्त, बिना चाहे, एकदूसरे पर गोलियां बरसाने जा रहे हैं. हाय रे इंसान की मजबूरियां.’’

‘‘यह दुनिया है कठोर, बेरहम और मतलबी,’’ जमील बोला, ‘‘अगर हमें इस दुनिया में रहना है तो सबकुछ सहना पड़ेगा. पर अब बातें खत्म करो. अगर हमारे सीनियर अफसरों को पता चलेगा कि हम मिले हैं, तो हम दोनों के कोर्ट मार्शल हो जाएंगे. दुश्मन से संपर्क करना गद्दारी मानी जाती है. वैसे, मैं कोशिश करूंगा कि लड़ाई के दौरान तुम मेरे सामने न आओ.’’

‘‘मैं भी ऐसा ही चाहता हूं कि हम दोनों को एकदूसरे पर गोलियां न बरसानी पड़े,’’ वरुण ने जवाब दिया.

‘‘पर जाने से पहले मेरी तुम से एक विनती है,’’ जमील ने आगे कहा, ‘‘अगर मैं तुम से पहले मर जाऊं और हमारे मुल्कों के बीच सुलह हो जाए, तो तुम मेरी कब्र पर आ कर मुझे बता देना कि मुबारक हो जमील, अब हम फिर दोस्त बन सकते हैं.’’

‘‘मैं जरूर ऐसा ही करूंगा,’’ वरुण ने वादा किया, ‘‘काश, मैं भी तुम से ऐसा करने को कह सकता, पर मेरी तो कब्र ही नहीं होगी. अलविदा मेरे दोस्त.’’

‘‘अलविदा मेरे भाई,’’ जमील ने जवाब दिया. और दोनों मेजर घूम कर, बिना पीछे देखे, अपने अपने मोरचे को लौट गए.

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