लेखक प्रकाश पुंज

सौजन्य- मनोहर कहानियां

13अगस्त, 2020 की सुबह रुद्रपुर जिले के गांव रामबाग का रहने वाला भवतोष मंडल घूमने के लिए घर  से निकला. वह सड़क पर पहुंचा तो उस की नजर करनैल सिंह के ट्यूबवैल पर जा कर ठहर गई. ट्यूबवैल के सामने एक चटाई बिछी थी, जिस पर 2 लोग पड़े थे.

जिज्ञासावश भवतोष मंडल नजदीक पहुंच गया. उन दोनों को देखते ही उन का माथा ठनका. क्योंकि उन में एक उस का बेटा राहुल मंडल था और दूसरी युवती थी, जो गांव के ही डालचंद की बेटी प्रेमा थी. बेटे को प्रेमा के पास  लेटा देख उन का परेशान होना स्वाभाविक था.

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राहुल रात से ही घर से गायब था. इस से पहले कि भवतोष की समझ में कुछ आता, उस ने अपने बेटे को उठाने की कोशिश की तो वह नहीं उठा. उस ने उसे बारबार उस का नाम ले कर उठाया. लेकिन वह नहीं उठा. आखिरकार भवतोष मंडल ने राहुल का हाथ पकड़ कर उसे उठाने की कोशिश की तो पता चला उस का शरीर ठंडा पड़ कर पूरी तरह अकड़ गया है. भवतोष मंडल समझ गया कि उस का बेटा मर चुका है.

भवतोष ने बेटे की मौत की जानकारी अपने बड़े बेटे सचिन को देते हुए घटनास्थल पर पहुंचने को कहा. घर वहां से कुछ ही दूर था. खबर मिलते ही उस के घर वाले फौरन घटनास्थल पर पहुंच गए.

इस जानकारी ने पूरे गांव में सनसनी फैला दी. सुबहसुबह यह खबर मिलते ही गांव के लोग घटनास्थल पर जमा हो गए. अपनी बेटी की मौत की खबर सुन कर डालचंद भी घटनास्थल पर पहुंच गया. लोगों ने एक बार फिर से दोनों को ठीक से चैक किया तो उन्हें लगा कि प्रेमा की अभी सांस चल रही है.

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तभी किसी ने 108 नंबर पर फोन कर के सरकारी एंबुलेंस बुला ली. एंबुलेंस दोनोें को जिला अस्पताल ले गई.अस्पताल में दोनों का चैकअप  किया गया तो पता चला दोनों की ही मौत हो चुकी है. युवकयुवती की मृत्यु की सूचना पुलिस को दे दी गई. सूचना मिलते ही दिनेशपुर थानाप्रभारी दिनेश सिंह फर्त्याल ने इस मामले से अपने उच्चाधिकारियों को भी अवगत करा दिया और मौके पर पहुंच गए.

घटना की जानकारी मिलते ही बाजपुर सीओ दीपशिखा अग्रवाल भी जिला अस्पताल पहुंचीं और उन्होंने घटना से संबंधित जानकारी हासिल की. उस वक्त घटनास्थल पर युवक और युवती दोनों के परिवार वाले मौजूद थे. पुलिस ने इस संबंध में उन से जानकारी जुटाई.

थानाप्रभारी दिनेश फर्त्याल ने घटनास्थल पर बारीकी से निरीक्षण किया. वहां से पुलिस को 2 चीजें मिलीं. एक सिंदूर की डिब्बी और दूसरा कीटनाशक का डिब्बा. घटनास्थल पर काफी दूर तक सिंदूर बिखरा पड़ा था.

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साफ जाहिर था कि कीटनाशक खाने से पहले सिंदूर से युवती की मांग भरी गई थी. उस के बाद ही दोनों ने जहर खा कर खुदकुशी की थी.

इस मामले को ले कर पुलिस ने प्रेमा के घर वालों से विस्तार से जानकारी ली तो पता चला कि प्रेमा शादीशुदा और एक बच्चे की मां थी. वह काफी समय से मायके में ही रह रही थी. उस की बड़ी बहन ने पुलिस को बताया कि राहुल और प्रेमा के बीच काफी समय से प्रेम प्रसंग चल रहा था. अचानक ऐसा क्या हुआ कि दोनों ने जहर खा कर खुदकुशी कर ली, यह जानकारी किसी को नहीं थी.

मामले की तह तक जाने के लिए पुलिस ने हरसंभव प्रयास किया, लेकिन कोई सच्चाई सामने नहीं आई. हालांकि पुलिस ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए प्रेमी युगल के परिवार वालों के साथसाथ युवती के ससुराल वालों से भी संपर्क साधने की कोशिश की, लेकिन ससुराल वालों के दिल्ली में रहने की वजह से कोई जानकारी हासिल नहीं हो पाई.

इस मामले में दोनों ही परिवारों में से किसी ने भी लिखित तहरीर पुलिस को नहीं दी, जिस के कारण थाने में कोई मुकदमा दर्ज नहीं हुआ.

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पुलिस जांच में जो सच्चाई सामने आई, वह प्रेम प्रसंग की एक ऐसी कहानी थी, जिस की सजा युवती के नवजात शिशु को ताउम्र झेलनी पड़ेगी. साथ ही प्रेमी युगल के इस आत्मघाती कदम ने 3 परिवारों को गमगीन कर दिया था.

उत्तराखंड के जिला रुद्रपुर के गदरपुर दिनेशपुर मार्ग पर एक गांव रामबाग है. इस गांव में ज्यादातर बंगालियों की आबादी है, जिन में अधिकांश लोग दूसरों के खेतों में काम कर के अपनी गुजरबसर करते हैं. डालचंद का परिवार इसी रामबाग गांव में रहता था.

डालचंद के 4 बच्चों में पूनम उर्फ प्रेमा तीसरे नंबर की थी. राहुल और प्रेमा ने गांव के स्कूल में साथसाथ पढ़ाई की थी. दोनों का एकदूसरे के घर पर भी आनाजाना था. लेकिन तब तक दोनों को प्रेम की भाषा की कोई समझ नहीं थी. यही कारण था कि प्रेमा की पढ़ाई बंद होने के बाद दोनों कुछ दिनों में एकदूसरे को भुला बैठे.

प्रेमा ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस की सुंदरता लोगों की नजरों में उतरने लगी. लगभग 3 साल पहले की बात है, शिवरात्रि के दिन डालचंद अपने परिवार के साथ दिनेशपुर में लगने वाले मेले में गया हुआ था. वहीं पर उस की मुलाकात दुलाल से हुई. डालचंद और दुलाल एकदूसरे से अच्छी तरह परिचित थे. वहीं पर दुलाल के घर वालों ने प्रेमा को देखा.

प्रेमा की सुंदरता दुलाल के बेटे दुर्जो सिकदार के मन को भा गई. दुर्जो ने मन बना लिया था कि चाहे कुछ भी हो वह शादी करेगा तो प्रेमा से करेगा. इस के बाद वह प्रेमा के चक्कर में पड़ कर उस का पीछा करने लगा.

दुर्जो सिकदार जानता था कि वह अपने परिवार की इजाजत के बिना कुछ नहीं कर सकता. उस के पिता दुलाल वैसे भी उस की शादी करने की तैयारी कर रहे थे. तभी एक दिन दुर्जो ने अपने पिता को अपने दिल की बात बताते हुए प्रेमा से शादी करने की इच्छा बताई.

दुलाल जानता था कि डालचंद का परिवार उस के परिवार के स्तर का नहीं है, लेकिन बेटे की जिद के आगे उसे झुकना पड़ा. एक दिन डालचंद से मुलाकात कर दुलाल ने अपने बेटे की शादी उस की बेटी प्रेमा से करने की इच्छा जताई.

उस की इच्छा जान कर डालचंद को खुशी हुई. क्योंकि वह जानता था कि दुलाल का परिवार अच्छा खातापीता था. रामबाग के अलावा दिनेशपुर में भी उन का मकान था. डालचंद बेटी की शादी दुर्जो से करने के लिए तैयार हो गया. दोनों परिवारों की रजामंदी के बाद करीब 3 साल पहले दुर्जो और प्रेमा शादी के बंधन में बंध गए. शादी के कुछ दिनों तक दोनों दिनेशपुर में परिवार वालों के साथ रहे. तब तक सब कुछ ठीक चलता रहा. बाद में दुर्जो अपनी बीवी प्रेमा को साथ ले कर दिल्ली चला गया.

दुर्जो की मां पारुल बाहरी दिल्ली के नरेला की जेजे कालोनी में रहती थी. पारुल ने वहीं पर अपना मकान भी बना रखा था. वहां रह कर वह किसी फैक्ट्री में काम करती थी.

हालांकि प्रेमा देखनेभालने में भी सुंदर थी और सब काम भी होशियारी से करती थी. लेकिन पारुल उसे शुरू से अपने परिवार के लायक नहीं समझती थी. क्योंकि वह एक सामान्य परिवार से थी. इसी वजह से दोनों परिवारों का एकदूसरे के घर आनाजाना भी बहुत कम होता था.

दुर्जो ने प्रेमा के साथ अपनी मरजी से शादी की थी. दिल्ली जाने के बाद भी वह हर समय उसी से चिपका रहता था. उस की मां पारुल ने कई बार उसे समझा कर कोई कामधाम करने को कहा. लेकिन उस ने मां की एक न सुनी. जब अपनी

ही औलाद नाकारा हो तो इंसान को गुस्सा आता ही है. यही पारुल के साथ भी हुआ.

वह थकीहारी काम से घर लौटती तो बेटा अपनी बीवी के साथ गुलछर्रे उड़ाता मिलता. जबकि घर का कामकाज भी पारुल को ही करना पड़ता था. उसी कामकाज को ले कर सासबहू में अनबन रहने लगी. दोनों के बीच विवाद बढ़ा

तो पारुल ने बेटे और बहू को गांव भेज दिया. दुर्जो प्रेमा को ले कर गांव तो चला आया लेकिन उस का वहां पर मन नहीं लगा. उस के कुछ समय बाद वह पुन: प्रेमा को ले कर दिल्ली चला गया. दिल्ली जा कर वह काम भी करने लगा था. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. लेकिन प्रेमा एक बार सास की नजरों में गिरी तो फिर से सास का प्यार हासिल नहीं कर पाई.

इसी के चलते दिल्ली से प्रेमा का मन उचट गया. वह फिर से दुर्जो से गांव जाने की जिद करने लगी. उसी दौरान प्रेमा प्रेगनेंट हुई. जब यह खबर दुर्जो को लगी तो वह बहुत खुश हुआ. लेकिन उस की मां पारुल के दिल पर तो जैसे छुरियां चल गई थीं. उस ने प्रेमा को परेशान करना शुरू किया.

अपनी सास के जुल्मों से तंग आ कर प्रेमा अपने मायके आ गई. मायके में ही उस ने बेटे को जन्म दिया. डिलिवरी के दौरान प्रेमा को अस्पताल में एडमिट कराना पड़ा. अस्पताल में जो भी खर्च हुआ, वह डालचंद ने अपने पास से किया था. डालचंद ने फोन कर के बच्चे के जन्म की खुशखबरी दुर्जो के घर को दी. लेकिन इस के बावजूद उस के परिवार का कोई सदस्य नवजात और बहू से मिलने तक नहीं आया.

प्रेमा के बच्चे के जन्म के बाद उस का नामकरण भी डालचंद ने कराया. बच्चे का नाम पप्पू रखा गया था. पप्पू जब काफी समझदार हो गया तो एक दिन दुर्जो आया और प्रेमा व बच्चे को दिल्ली ले गया. प्रेमा को उम्मीद थी कि घर में पोते के आने की खुशी में सब ठीक हो जाएगा. लेकिन पारुल को इस से कोई फर्क नहीं पड़ा.

वह पहले की तरह ही प्रेमा और उस के बच्चे के साथ दुर्व्यवहार करती रही. मां के व्यवहार को देखनेसमझने के बावजूद दुर्जो में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह कुछ कह पाता. जब प्रेमा अपनी सास से ज्यादा परेशान हो गई तो उस ने दुर्जो से उसे फिर से गांव छोड़ने की जिद की. जबकि दुर्जो किसी भी कीमत पर गांव जाने को तैयार न था.

इसी दौरान देश में लौकडाउन लगा तो सभी अपनेअपने घरों में कैद हो कर रह गए. पारुल का काम बंद हुआ तो वह भी घर में रहने लगी. घर में पैसे की कमी आई तो पारुल का स्वभाव और भी चिड़चिड़ा हो गया. अब प्रेमा पारुल को एक आंख नहीं सुहाती थी. उस ने दुर्जो से उसे उस के मायके छोड़ आने को कहा.

लेकिन लौकडाउन के चलते कुछ नहीं हो सकता था. लौकडाउन के चलते सासबहू के बीच विवाद काफी बढ़ गया था, पारुल ने कई बार उस पर हाथ भी उठाया. लेकिन प्रेमा मजबूरी में सब कुछ सहन करती रही. जब सास की ज्यादती कुछ ज्यादा ही बढ़ गई तो वह किसी तरह दिल्ली से अपने मायके रामबाग जा पहुंची. अपने घर पहुंच कर उस ने अपनी सास के जुल्मों की कहानी अपने घर वालों को सुनाई.

लेकिन मायके वालों के सामने सब से बड़ी मजबूरी पैसे की थी. वह चाह कर भी इस मामले में कुछ नहीं कर सकते थे. इसी बात को ले कर डालचंद दिनेशपुर में रह रहे दुलाल से जा कर मिला. लेकिन दुलाल की भी बीवी के सामने कुछ बोलने की हिम्मत नहीं थी.

डालचंद ने इसी बात को ले कर गांव में पंचायत भी बैठाई. लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. तब से प्रेमा अपने मायके में ही रह रही थी. रामबाग आने के दौरान एक दिन उस की मुलाकात राहुल मंडल से हुई. राहुल मंडल प्रेमा को देख कर काफी खुश हुआ. एक बच्चे को जन्म देने के बाद प्रेमा के रंगरूप में और भी निखार आ गया था. दोनों काफी अरसे के बाद मिले तो फिर से दोनों की पहली मोहब्बत जाग उठी. राहुल अभी भी कुंवारा था.

राहुल से मिल कर प्रेमा ने अपनी जिंदगी की सारी दुख भरी दास्तान उसे सुना दी. प्रेमा के दुख के बारे में जान कर राहुल का दिल परेशान हो उठा. उस के बाद पे्रमा और राहुल का मिलनाजुलना बढ़ गया. राहुल से मुलाकात होते ही प्रेमा अपने अतीत के दिनों को भुला कर उस से प्यार करने लगी. दोनों के बीच प्यार परवान चढ़ा तो प्रेमा ने ससुराल और मायके वालों की परवाह किए बिना ही आगे की जिंदगी राहुल के साथ बिताने की ठान ली.

दोनों अपने परिवार वालों की नजरों से छिपतेछिपाते मिलने के साथ ही मोबाइल पर भी बात करने लगे. हालांकि राहुल जानता था कि अभी प्रेमा का दुर्जो से तलाक नहीं हुआ है. इस के बावजूद वह उस की मोहब्बत में इतना पागल हो गया कि किसी भी कीमत पर उसे छोड़ने को तैयार नहीं था.

दोनों की प्रेम कहानी एक दिन राहुल के घर वालों के सामने आई तो उन्हें बहुत बुरा लगा. उन्होंने राहुल को समझाने की कोशिश की. लेकिन उस ने घर वालों की एक नहीं मानी. इस से घर वालों ने उस से बात करनी बंद कर दी. लेकिन प्रेमा और राहुल के बीच प्रेमकहानी यूं ही बराबर चलती रही.

यह बात डालचंद के सामने आई तो वह भी परेशान रहने लगा. उस ने प्रेमा को समझाने की कोशिश की, लेकिन उस ने अपने पिता से साफ शब्दों में कह दिया कि वह किसी भी कीमत पर दुर्जो के साथ नहीं रहेगी.

डालचंद बेटी के दर्द को समझता था. इसलिए उस ने प्रेमा और राहुल के प्रेम संबधों के बीच आना ठीक नहीं समझा. दोनों के बीच चल रही प्रेम कहानी का धीरेधीरे परिवार में सभी को पता चल गया.

उसी दौरान एक दिन प्रेमा अपने बच्चे पप्पू को साथ ले कर राहुल के घर जा पहुंची. उस ने सब के सामने राहुल से प्यार करने वाली बात बता कर उस के साथ शादी करने की बात कही. शादी की बात सुनते ही राहुल के घर वाले बिगड़ गए. उन का साफ कहना था कि वह तो पहले से ही शादीशुदा और एक बच्चे की मां है. फिर ऐसे में राहुल के साथ शादी कैसे कर सकती है. लेकिन प्रेमा अपनी बात पर अड़ी थी.

काफी समझाने के बाद भी जब प्रेमा नहीं मानी तो राहुल ने डालचंद को फोन किया. यह बात सुनते ही राहुल के घर पर काफी लोग इकट्ठा हो गए. वहां मौजूद लोगों ने राहुल और प्रेमा दोनों को समझाने की कोशिश की, लेकिन दोनों में से एक भी किसी की बात मानने को तैयार नहीं था. दोनों की जिद को देखते हुए दोनों के परिवार वालों ने उन्हें घर से बाहर कर दिया. राहुल प्रेमा को साथ ले कर गांव से निकल गया.

गांव से जाने के बाद राहुल ने दिनेशपुर में ही किराए का एक कमरा ले लिया और वहीं से काम करने लगा था. हालांकि राहुल के घर से चले जाने के बाद उस के घर वालों को कोई फर्क नहीं पड़ा था. लेकिन डालचंद और उस की बीवी अपनी बेटी और उस के बेटे को ले कर चिंता में रहने लगे थे.

ममता जागी तो एक दिन प्रेमा की मां ने अपना गुस्सा ठंडा कर के प्रेमा से मोबाइल पर बात की. हालांकि राहुल मेहनती था, लेकिन लौकडाउन के चलते उसे कहीं काम नहीं मिला तो वह भी आर्थिक तंगी से गुजरने लगा.

यह बात जान कर प्रेमा की मां ने उन्हें फिर से अपने गांव बुला लिया. गांव आते ही राहुल अपने घर चला गया और प्रेमा अपनी मां के घर आ कर रहने लगी. राहुल के घर आने के बाद उस के घर वालों ने उस से सीधे मुंह बात तक नहीं की. न तो कोई उस से खानेपीने के बारे में पूछता था और न ही किसी तरह की बात करता था.

घर वालों के रवैए की वजह से उस का मन अशांत रहने लगा था. जब कभी उस का मन दुखी होता तो वह प्रेमा से मोबाइल पर बात कर अपने मन को समझा लेता था. यही हाल प्रेमा का भी था.

राहुल के प्यार के सामने वह अपनी अतीत की जिंदगी को पूरी तरह से भूल कर उसी की बन कर रहना चाहती थी. इस के बावजूद उस के घर वालों ने उसे समझाया, लेकिन तब तक वह राहुल के प्यार में इतनी डूब चुकी थी कि उस के बिना उसे अपनी जिंदगी बेकार लगने लगी थी.

राहुल उस का पहला प्यार था. जिस के साथ रह कर वह अपनी जिंदगी का अगला सफर काटना चाहती थी. लेकिन जल्दी ही उसे लगने लगा कि पारिवारिक अड़चनों के सामने उन की जिंदगी का सफर इतना आसान नहीं है.

गुजरते समय के साथ दोनों को लगने लगा था कि सामाजिक बंधन उन्हें कभी एक नहीं होने देंगे. प्रेमा जानती थी कि राहुल के बिना उस की जिंदगी निरर्थक है. दुर्जो के परिवार वालों के दुर्व्यवहार

से वह पहले ही टूट चुकी थी, जिस के साथ वह एक पल भी गुजारने को तैयार नहीं थी. दोनों पर पारिवारिक दबाव बढ़ना शुरू हुआ, लेकिन इस के बावजूद दोनों चोरीछिपे मिलते रहे. लेकिन एक दिन ऐसा भी आया जब दोनों जिंदगी की कांटों भरी राह पर चलतेचलते टूट गए.

प्रेमा के परिवार ने अपनी बेटी की दुख भरी जिंदगी से तंग आ कर उसे पूरी छूट दे दी. लेकिन उसे केवल राहुल का साथ ही चाहिए था. जिस की राहोें मे उस के परिवार वाले कांटा बने हुए थे.

जब दोनों सामाजिक बंधनों से पूरी तरह से तंग आ गए तो वे जिंदगी के आखिरी पड़ाव की ओर चल पड़े. उन्होंने सोचा कि जीते जी दुनिया वाले एक नहीं होने देंगे, लेकिन साथ मरने से तो कोई नहीं रोक सकता.

राहुल अपने परिवार वालों के व्यवहार से ज्यादा ही तंग आ गया था. उस ने कई बार खुद को संभाला, अपना दुख अपनी प्रेमिका के साथ साझा किया. लेकिन शाम आतेआते वह इतना थक गया कि उस ने जिंदगी और मौत की राह में मौत का रास्ता चुना. उस शाम उस ने प्रेमा से कई बार बात की.

यह 13 अगस्त, 2020 की बात है. शाम होते ही प्रेमा घर से निकली, तो छोटी बहन ने उसे टोका, ‘‘दीदी कहां जा रही हो?’’

जाते समय उस ने इतना ही कहा कि लौट कर आई तो बताऊंगी कहां जा रही हूं. उस के बाद उस ने अपने मासूम पप्पू के सिर पर हाथ रख कर प्यार जताया. फिर निकल पड़ी दुनिया के आखिरी सफर की ओर.

राहुल ने प्रेमा को जिस स्थान पर बुलाया था, वहां से दोनों के घरों तक रास्ता जाता था. राहुल प्रेमा के आने से पहले ही ट्यूबवैल के पास रखी प्लास्टिक की चटाई उठा लाया था. ताकि जिंदगी के आखिरी रास्ते पर गुजरने से पहले वह अपनी प्रेमिका प्रेमा के साथ कुछ पल गुजार सके.

चटाई पर बैठ कर दोनों ऐसे मिले कि जिंदगी के सारे गिलेशिकवे दूर हो गए हों. जुदाई के पलों में दोनों की आंखों से आंसुओं की बरसात हो रही थी. दोनों ने एकदूसरे की आंखों के आंसू रोकने की लाख कोशिश की. लेकिन आंसुओं के सैलाब के आगे कुछ नहीं कर पाए. प्रेमा ने अपने आप को संभाला और हाथ में दबी सिंदूर की डिब्बी उस के हाथ में थमा दी.

राहुल ने कांपते हाथों से डिब्बी खोल कर उस की मांग में सिंदूर भर दिया. मांग में सिंदूर भरते ही प्रेमा ने राहत की सांस ली. फिर बोली, राहुल काश! जिंदगी में पहली बार तुम्हारे हाथों से मेरी मांग में सिंदूर भरा गया होता तो तुम्हारी उम्र शायद इतनी कम न होती. प्रेमा की बात सुन कर राहुल भावुक हो उठा. उस के बाद उस ने अपने हाथ में लिया कीटनाशक आधा गले से नीचे उतार लिया,फिर वही शीशी उस ने प्रेमा की ओर बढ़ा दी.

दोनों ही प्रेम की आखिरी राहों में जहर का प्याला पी कर निकल गए. पलभर के लिए दोनों गले मिले और फिर दोनों ने मौत की राह पकड़ ली. उस दिन जन्माष्टमी थी. गांव में जन्माष्टमी का कार्यक्रम भी था. जिस की वजह से न तो राहुल के परिवार ने ही उस की परवाह की और न ही प्रेमा के परिवार वालों ने.

प्रेमा की मां ने उस की चिंता जताई तो डालचंद ने उसे समझा दिया कि वह जरूर राहुल के साथ होगी. इस के बाद दोनों निश्चिंत हो कर सो गए.

अगली सुबह दोनों के घर वालों को दोनों की मौत की खबर मिली. दोनों के मोबाइल उसी चटाई पर पड़े मिले.

फोन से इस घटना की जानकारी पे्रेमा की ससुराल दिल्ली भेज दी गई थी, लेकिन वहां से कोई नहीं आया और न ही दिनेशपुर में रह रहे दुर्जो के घर वाले इस शोक में शामिल हुए. प्रेमा का डेढ़ वर्षीय मासूम इस समय अपनी ननिहाल में पल रहा है. लेकिन दुर्जो ने अपनी सगी औलाद का मुंह देखने की भी जरूरत नहीं समझी.

इस प्रेम कहानी का दुखद अंत तो हो गया, लेकिन गांव वालों की जुबान पर एक ही बात थी कि अगर उन्हें साथसाथ रहना ही था तो घर वापस क्यों आए. मौत को गले लगाने से तो अच्छा था कि दोनों कहीं दूर चले जाते.

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