बौलीवुड में बतौर हीरो अभिनय करियर की शुरुआत करने वाले अभिनेता सुरेंद्र पाल के पास उपलब्धियों की कमी नहीं है. वह सौ से अधिक फिल्मों के अलावा छोटे परदे पर ग्यारह हजार से अधिक एपीसोडों में अभिनय कर चुके हैं. टीवी सीरियलों में वह गुरु द्रोणाचार्य, अमात्य राक्षस, रावण, रावण के पिता, राजा दक्ष प्रजापति सहित कई पौराणिक व एैतिहासिक किरदार निभा चुके हैं. तो वहीं उन्होंने कुछ सामाजिक सीरियलों मे भी बेहतरीन किरदार निभाए. इन दिनों वह ‘‘स्टार प्लस’’ पर प्रसारित हो रहे सीरियल ‘‘जाना ना दिल से दूर’’ में आर्मी के अवकाशप्राप्त ब्रिगेडियर वशिष्ठ के किरदार में नजर आ रहे हैं. कहा जा रहा है कि सुरेंद्र पाल द्वारा निभाए गए किरदारों में से यह सबसे कमजोर किरदार है. तो क्या अब सुरेंद पाल को भी असुरक्षा का डर सताने लगा है?
लगता है कि आप खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे हैं, इसी के चलते आपने ‘‘जाना ना दिल से दूर’’ में एक कमजोर किरदार निभाना स्वीकार कर लिया?
– ऐसा न कहें. मैं खुद को असुरक्षित कलाकार नहीं मानता. आज से अट्ठाइस वर्ष पहले जब मैने बौलीवुड में कदम रखा था, उस वक्त भी मैंने अपने आपको असुरक्षित नहीं महसूस किया था और आज भी असुरक्षित महसूस नही करता. मेरा मानना है कि मेरे अंदर अभिनय क्षमता व योग्यता न होती, तो मैं इतनी लंबी पारी नहीं खेल सकता था. मैं तो सचिन तेंदुलकर की तरह हूं. सचिन तेंदुलकर एक अच्छे खिलाड़ी हैं. 16 साल की उम्र से दसवीं फेल होने के बावजूद वह एक अच्छे क्रिकेटर की तरह खेलते रहे. पिच पर डटे रहे. वही उनकी योग्यता व क्षमता थी. उन्होंने कई रिकार्ड भी बनाए. पर यह नहीं कह सकते कि उन्होंने हर मैच में रिकार्ड बनाया. सुरेंद्र पाल भी ही कहते हैं कि मैं हर सीरियल में रिकार्ड नहीं बना सकता हूं. लेकिन जहां जहां मेरी प्रतिभा व क्षमता को दर्शाया जाएगा, वहां वहां मैं अपना सिक्का जमाकर ही रहूंगा. अपनी छाप छोड़कर जाउंगा, जो कि अभी तक बहुत कम कलाकार कर पाए हैं. मैं यह मानता हूं कि ‘‘जाना ना दिल से दूर’’ जैसे सीरियलों में एक अच्छे कलाकार को जोड़कर उसे जाया किया जाता है.
हमने इस बारे में प्रोडक्शन हाउस से बात की है. उन्होंने हमें असश्वस्त किया है कि आगे कहानी विकसित होने वाली है. कई नई शाखाएं विकसित होंगी. तो हम इसी उम्मीद में काम कर रहे हैं कि आगे हमारे किरदार को कुछ करने का अवसर मिलेगा. फिर मैं तो यह भी मानता हूं कि जैसा देश वैसा भेष पकड़ लेना चाहिए. अगर हम समय के साथ नहीं चलेंगे, तो समय हमें कहीं न कहीं छोड़ देगा.
तो फिर आपने ‘‘जाना ना दिल से दूर’’ में अभिनय करना क्यों स्वीकार किया?
– जब हमारे पास किसी भी सीरियल का आफर आता है, तो वह हमसे यही दावा करता है कि मेरा किरदार सीरियल में बहुत अहमियत वाला है. मेरे अपने जो अनुभव हैं, उसके अनुसार शुरुआत में पता नहीं होता है कि वह किरदार आगे किस तरह से बढ़ेगा, उसका क्या रूप होगा. कहानी किस करवट बैठेगी. टीआरपी के नाम पर चैनल व सीरियल के निर्माता कभी भी सीरियल की कहानी को मोड़ देते हैं. वह ऐसा इसलिए करते रहते हैं क्योंकि अच्छे लेखकों की कमी है.
आप कहना क्या चाहते हैं?
– मैं खुलकर यह बात कह रहा हूं कि रमेश सिप्पी के सीरियल ‘‘बुनियाद’’ या बी आर चोपड़ा के सीरियल ‘‘महाभारत’’ या डॉ. चंद्र प्रकाश द्विवेदी के सीरियल ‘‘चाणक्य’’ का लेखन करने वाले लोग अब रहे नहीं. आज की तारीख में डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी और डॉ. राही मासूम रजा जैसे लेखकों की कमी हो गयी है. मैं तो यह कहूंगा कि इससे अच्छा सीरियल तो ‘‘शक्तिमान’’ था. कम से कम उसमें यह कह कर तो दिखाया गया कि यह फैंटसी है. जबकि अब जो सीरियल आ रहे हैं, वह सब चूंचूं का मुरब्बा हैं. देसी घी के डिब्बे में केमीकल भरे होने जैसे हालात हैं.
28 वर्ष के करियर में फिल्म व टीवी इंडस्ट्री में जो बदलाव आए, उन्हें आप किस तरह से देखते हैं?
– मैं हमेशा समय के साथ चलता रहा हूं. समय के साथ जिस तरह से से नई नई तकनीक आती गयी, उसका मैंने भी उपयोग करना शुरू किया. पहले मोबाइल नहीं थे. फिर कम्प्यूटर आया. अब तो लोग घर से बाहर हाथ में छोटा सा लैपटाप लेकर घूमते हैं और कहीं किसी काफी शॉप में बैठकर भी काम कर लेते हैं. यह वैज्ञानिक प्रगति का दौर है. इसी तरह टीवी इंडस्ट्री में भी बदलाव आ रहा है. दर्शकों का भी मूड़ बदल रहा है. हमारे माता पिता भारतीय संस्कृति को अहमियत देते थे. जिसके चलते उन दिनों ‘महाभारत’, ‘रामायण’, ‘चाणक्य’, ‘चंद्रकांता’, जैसे सीरियलों को काफी लोकप्रियता मिली, दर्शक मिले. उन दिनों एकमात्र दूरदर्शन था. दर्शकों के पास भी ज्यादा चुनने के अवसर नहीं थे. अब सैकड़ो चैनल हो गए हैं. इसके चलते दर्शक बंट गया है. दर्शक भी तय कर लेता है कि हमें यही सीरियल देखना है, फिर चाहे चैनल व सीरियल निर्माता उस सीरियल को किसी भी अनुपात इधर उधर खींचता रहे. इसके चलते भी कई सीरियल कहानी से भटक कर कुछ भी परोसने लगते हैं.
हर दिन छह सौ सीरियल प्रसारित होते हैं. ऐसे में दर्शक इन सभी सीरियलों को तो वैसे भी नहीं देख सकता. इसी के चलते कलाकारों में बदलाव आ रहा है. पहले के कलाकार अपनी अभिनय क्षमता के बल पर परदे पर जमे या टिके रहते थे. पर अब टिके रहने वाली बात कम नजर आती है. कलाकार तभी तक याद किया जाता है, जब तक वह सीरियल हिट होता है. सीरियल का प्रसारण खत्म होते ही उससे जुड़ा कलाकार गुमनामी की जिंदगी जीने लगता है. आज यह कलाकार खुद को असुरक्षित मानने लगे हैं. मेरे साथ या मेरे बाद आए 99 प्रतिशत कलाकार आज की तारीख में कहीं नहीं हैं. यह कलाकार यदा कदा ही नजर आते हैं अन्यथा गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं. पर मैं यह नही मानता कि इसकी वजह उनके अंदर योग्यता या अभिनय क्षमता की कमी है. उनके अंदर क्षमता आज भी उतनी ही है, जितनी तब थी, जब वह इस इंडस्ट्री का हिस्सा बने थे. पर समय बदला और वह इस समय के बदलाव के साथ खुद के अंदर बदलाव नहीं ला सके.
चैनल कहता है कि हम नए चेहरे लाना चाहते हैं. जिससे हम नई सोच विकसित करते रहें. मगर वह भूल जाते हैं कि नई सोच व नई कहानी होती है, महज नए चेहरों से नई सोच नहीं पैदा की जा सकती. चैनल को चेहरे बदलने की बजाय कहानियां बदलनी चाहिए. हर सीरियल की कहानियां कमोबेश एक जैसी ही लगती है. उनमें नएपन का घोर अभाव नजर आता है.
पर आपने जितने भी पौराणिक या ऐतिहासिक पात्र निभाए, वह लोगों के दिलो दिमाग में छा गए?
– मैं किरदारों को आत्मसात कर लेता हूं. एक समय में एक ही सीरियल करता हूं. यही वजह है कि मेरे निभाए हुए किरदार लोग ज्यादा पसंद करते हैं. भगवान शिव पर कई सीरियल बने हैं, जिसमें राजा दक्ष प्रजापति रहे हैं. मगर किसी भी सीरियल में वह अपनी पहचान नहीं बना पाए, अपनी छाप नहीं छोड़ पाए. मगर जब मैने सीरियल ‘‘देवों के देव महादेव’’ में राजा दक्ष प्रजापति का किरदार निभाया, तो वह लोगों के दिलोदिमाग में बस गया. ‘महाभारत’ में द्रोणाचार्य भी मेरे अलावा दस लोग निभा चुके हैं, मगर वह भी अपनी पहचान नहीं बना पाए. मगर रावण के पिता को लोगों ने पहली बार सीरियल ‘‘सिया के राम’’ में देखा.
पर इस तरह के चुनौतीपूर्ण किरदार निभाने के मौके दूसरे कलाकारों को मिले भी नहीं?
– मेरी जिंदगी कुछ ऐसी रही है कि मुझे मेरे करियर के पहले सीरियल ‘‘महाभारत’’ से आज तक चुनौतीपूर्ण भूमिकाएं ही मिलती आ रही हैं. जब मैं मात्र 24 वर्ष का था, तब मैंने द्रोणाचार्य का किरदार निभाया था. कहने का अर्थ यह कि मेरा करियर हमेशा चुनौतियों से भरा रहा. मैंने हमेशा चुनौतियों को स्वीकार किया. मैंने हर किरदार को उतनी ही संजीदगी के साथ जिया. दर्शकों ने भी मेरे काम को सराहा और अपने सिर आंखों पर बैठाया.
इसके बाद क्या कर रहे हैं?
– फिलहाल हर माह के 25 दिन ‘‘जाना ना दिल से दूर’’ ही ले जा रहा है. एक बार में मैं दो सीरियल नहीं करना चाहता.