कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्लूसी) की ऑनलाइन मीटिंग में मचे घमासान के बाद यह तो तय हो गया कि फिलहाल कांग्रेस अध्यक्ष पद पर सोनिया गाँधी के अलावा किसी भी कांग्रेसी नेता को सर्वसम्मति से चुना जाना मुश्किल खीर है. राहुल गाँधी को लेकर भले कुछ लोग नाक-भौं चढ़ाते हों, मगर गांधी परिवार के अलावा किसी भी अन्य कांग्रेसी नेता के नाम पर पूरी पार्टी की एकमत से ‘हाँ’ हो पाना संभव नहीं है. पार्टी में खेमेबाज़ी चरम पर है. अंदर ही अंदर कई गुट बन गए हैं. पुराने घिसे चावल अलग, नए खिले चावल अलग. गौरतलब है कि राहुल गाँधी के इस्तीफा देने के बाद सोनिया गाँधी बीते एक साल से पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बनी हुई हैं. पार्टी के भीतर जड़ें जमाये बैठे बुज़ुर्ग दरख्तों के बीच काफी समय से हलचल मची हुई है कि इस पद पर गांधी परिवार से बाहर का कोई आदमी काबिज़ हो जाए, जिसको वे अपनी उँगलियों पर नचा सकें. जिसको सामने रख कर वे पार्टी में अपनी मर्ज़ी चला सकें. जो इन खाये-अघाये नेताओं की ओर आंख उठाने या सवाल उठाने की जुर्रत ना कर सके. और फिर सोनिया गांधी कब तक अंतरिम अध्यक्ष बनी रह सकती हैं, वो भी तब जब उनका स्वास्थ साथ नहीं दे रहा है. वे अब उस तरह सक्रीय भी नहीं रह पाती हैं जैसा पहले रहा करती थीं. बुज़ुर्ग दरख्तों ने नए अध्यक्ष के लिए खिचड़ी पकानी शुरू कर दी, लेकिन 24 अगस्त को हुई सीडब्लूसी की मीटिंग में पता चला कि खिचड़ी जल गयी और जले के निशान इतने गहरे कि ‘अब तो इन्हें रगड़ना पड़ेगा’. खैर कांग्रेस के पास दाग साफ़ करने के लिए फिर एक साल का समय है क्योंकि मीटिंग में काफी मान-मन्नौवल के बाद सोनिया गाँधी ने अगले एक साल तक अंतरिम अध्यक्ष पद पर बने रहना स्वीकार कर लिया है.

यह बात ठीक है कि किसी भी राजनितिक पार्टी की मजबूती और पार्टी के कामों को सुचारु रूप से चलाने के लिए स्थाई और सक्रीय अध्यक्ष का होना ज़रूरी है. स्थाई अध्यक्ष के लिए खुद सोनिया गाँधी भी चिंतित हैं और इसीलिए उन्होंने सीडब्लूसी की मीटिंग में यह बात कही कि अब पार्टी को उन्हें इस जिम्मेदारी से मुक्त करने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए, यानी नए अध्यक्ष की खोज होनी चाहिए. हालांकि यह बात उन्होंने उस चिट्ठी से आहत होकर कही जो कांग्रेस के 23 वरिष्ठ नेताओं ने उनको उस वक़्त लिखी थी, जब वे बीमार थीं और अस्पताल में भर्ती थीं. नेतृत्व परिवर्तन को लेकर लिखी इसी चिट्ठी पर सीडब्लूसी की ऑनलाइन बैठक में खूब बवाल मचा. पहले ये सोचा जा रहा था कि सीडब्लूसी की बैठक नए अध्यक्ष के नाम की घोषणा के लिए होगी, कई नाम भी हवा में उछल रहे थे, लेकिन पूरी बैठक चिट्ठी के इर्द-गिर्द ही बनी रही. चिठ्ठी पर आंसू बहे, माफियां मांगी गयीं, मान-मन्नौवल हुआ, कुछ नेताओं को राहुल गाँधी ने रगड़ा, कुछ को प्रियंका ने धोया, कुछ तिलमिला कर बैठक के बीच ही ट्वीट-ट्वीट खेलने लगे तो एक सज्जन ने तो बकायदा अपने खून से पत्र लिख डाला. कुल जमा यह कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी की पूरे दिन की बैठक लेटर बम के धुएं में गुज़र गयी और अंत में यही तय हुआ कि अध्यक्ष पद पर अभी सोनिया गाँधी ही बनी रहेंगी.

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सोनिया गाँधी का स्वस्थ ठीक नहीं रहता है, बीते कुछ समय के दौरान वे कई बार अस्पताल में भी दाखिल रही हैं. वो खुद अब पार्टी की जिम्मेदारियों से मुक्त होकर आराम करना चाहती हैं, लेकिन नया अध्यक्ष क्या गाँधी परिवार से बाहर का कोई हो सकता है? क्या है इतना दम किसी में कि पूरी पार्टी  को अपने अनुसार चला ले? क्या है ऐसा कोई चेहरा कि तमाम कांग्रेसी कार्यकर्ता, समर्थक, नए-पुराने बूढ़े-जवान नेता और खुद गांधी परिवार जिसके पीछे चल सके? है कोई चेहरा जो जनता के वोट कांग्रेस की झोली में खींच सके? और सबसे ख़ास बात यह कि क्या गाँधी परिवार के अलावा कोई ऐसा है जो पार्टी में जड़ें जमाये बैठे और ब्राह्मणवादी सोच से लबरेज़ घाघ नेताओं की करतूतों पर उन्हें खुलेआम खरी खोटी सुनाने का दम रखता है? शायद नहीं.

हम भारतीय जनता पार्टी पर उंगली उठाते हैं कि वहां मनुवादी सोच और व्यवस्था को कायम करने वाले लोगों का वर्चस्व है. नरेंद्र मोदी को आगे रख कर ब्राह्मणवादी विचारधारा अमरबेल की तरह फल-फूल रही है. मगर ये बीमारी तो कांग्रेस में भी है. यहां भी सवर्ण और ब्राह्मण नेताओ की जकड़ में पार्टी छटपटा रही है, जो काम कम षड्यंत्र ज़्यादा करते हैं. सच पूछें तो इन्ही के द्वारा अनुसूचित या पिछड़ी जाति के व्यक्ति को अध्यक्ष बनाने की वकालत लम्बे समय से हो रही है. इस सिलसिले में कभी मीरा कुमार का नाम उछाला जाता है तो कभी मुकुल वासनिक का. क्योंकि निम्न जाति के व्यक्ति को अध्यक्ष पद पर बिठा कर सवर्ण जाति के नेताओं के लिए उसको उँगलियों पर नचाना आसान होगा. उसको सामने रख कर मनुवाद का विस्तार आसानी से किया जा सकता है. ब्राह्मणवादी विचारधारा को पोसने वाले इन नेताओं का ऐशो-आराम, ताकत, अधिकार और दबदबा पार्टी में कायम रहेगा. काम करेगा नीची जाति का व्यक्ति और ऐश करेंगे सवर्ण जाति के नेता. कांग्रेस में सिर्फ एक गांधी परिवार ही है जिसके आगे इन मनुवादियों की दाल नहीं गलती है. गाँधी परिवार भले चुनाव के वक़्त मंदिरों के फेरे लगा ले, जनेऊ धारण कर ले, तिलक लगा ले या आरती में शरीक हो जाए, लेकिन सही मायनों में इस परिवार की रगों में वही विविधता खून के साथ बह रही है जिस विविधता के लिए भारत दुनिया भर में जाना जाता है.

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नेहरू जहाँ खुद को कश्मीरी पंडित कहते थे, वहीँ उनकी पुत्री इंदिरा गाँधी ने फ़िरोज़ गाँधी से शादी की, जिनके बारे में कुछ लोग कहते हैं कि वे पारसी थे तो कुछ मानते हैं कि वो मुसलमान थे. इंदिरा और फ़िरोज़ की संतान राजीव ने जहाँ इटालियन ईसाई महिला एंटोनिया एडविजे अल्बिना मेनो उर्फ़ सोनिया गाँधी से विवाह किया, वहीँ संजय गाँधी ने सरदार बाला मेनका से शादी की. राजीव और सोनिया की पुत्री प्रियंका गाँधी ईसाई धर्म को मानने वाले रोबर्ट वाड्रा से शादी करके प्रियंका गांधी वाड्रा कहलाती हैं. सच पूछें तो गाँधी परिवार को विविधधर्मी या गैर धार्मिक परिवार कहा जा सकता है. मनुवादी बंदिशों को तोड़ कर और धर्म के संकीर्ण दायरों से ऊपर उठ कर देश-दुनिया को देखने का नज़रिया सिर्फ उन्हीं के पास हैं. ऐसे में ब्राह्मणवादी संकीर्ण सोच में बंधे नेताओं के लिए गाँधी परिवार पर काबू पाना या उनको अपने मन मुताबिक संचालित करना असंभव ही है. यह बात सीडब्लूसी की बैठक में भी साफ़ हो गयी जब राहुल गांधी की एक लताड़ खा कर कुछ नेता माफी मांगने लगे तो कुछ ने इस्तीफे तक की पेशकश कर दी.

सीडब्लूसी की पूरी बैठक में घमासान उस चिट्ठी को ले कर मचा रहा जो गुलाम नबी आज़ाद की अगुआई में कांग्रेस के बाइस नेताओं ने ‘नेतृत्व परिवर्तन’ के लिए सोनिया गाँधी को तब लिखी जब वे बीमार थीं और अस्पताल में भर्ती थीं. इस चिट्ठी को लेकर पूरा गाँधी परिवार तमतमाया हुआ था. बैठक में राहुल गाँधी ने चिठ्ठी भेजने के वक़्त पर आपत्ति उठाते हुए पूछा कि – ‘सोनिया गांधी के अस्पताल में भर्ती होने के समय ही पार्टी नेतृत्व को लेकर पत्र क्यों भेजा गया था?’ उन्होंने कहा –  ‘पार्टी नेतृत्व के बारे में सोनिया गांधी को पत्र उस समय लिखा गया जब वे बीमार थीं और दूसरी तरफ राजस्थान में कांग्रेस सरकार संकट का सामना कर रही थी.’ राहुल ने इन नेताओ की करनी पर नाराज़गी जताते हुए यह भी कहा कि पत्र में जो लिखा गया था उस पर चर्चा करने का सही स्थान सीडब्ल्यूसी की बैठक है, मीडिया नहीं. उन्‍होंने आरोप लगाया कि यह पत्र भाजपा के साथ मिलीभगत से लिखा गया है.

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प्रियंका गाँधी वाड्रा ने भी भाई की नाराज़गी को सही ठहराते हुए चिठ्ठी लिखने वाले वरिष्ठ कांग्रेसियों की आलोचना की और नेताओं को दोहरे चरित्र का बताया. कांग्रेस के पुराने नेता और गाँधी परिवार के करीबी एके एंटनी ने तो साफ़ कहा कि – ‘चिट्ठी से ज्यादा, चिट्ठी में लिखी गईं बातें क्रूर थीं. इन नेताओं को पार्टी के लिए सोनिया गांधी के बलिदानों को याद रखना चाहिए.’  हरियाणा कांग्रेस की नेता कुमारी शैलजा ने भी पत्र लिखने वालों पर हमला बोलते हुए यह कह दिया कि वो भाजपा के एजेंट की तरह काम कर रहे हैं.
भाजपा से मिलीभगत के आरोप पर गुलाम नबी आजाद चिढ़ गए. आजाद राज्‍यसभा में कांग्रेस के नेता हैं. उनकी अगुवाई में ही वरिष्‍ठ कांग्रेसियों ने सोनिया को चिट्ठी लिखी थी. आजाद ने कहा कि अगर भाजपा से सांठ-गांठ के आरोप सिद्ध होते हैं तो मैं त्‍यागपत्र दे दूंगा.

कपिल सिब्बल भी भाजपा से मिलीभगत के आरोप पर खूब तिलमिलाए और उन्होंने बैठक के दौरान ही ट्वीट किया –  ‘राजस्‍थान हाई कोर्ट में कांग्रेस पार्टी को सफलतापूर्वक डिफेंड किया. मणिपुर में बीजेपी सरकार गिराने में पार्टी का बचाव किया. पिछले 30 साल में किसी मुद्दे पर बीजेपी के पक्ष में कोई बयान नहीं दिया. लेकिन फिर भी हम ‘बीजेपी के साथ मिलीभगत कर रहे हैं.’ हालांकि बाद में उन्‍होंने अपना यह ट्वीट डिलीट कर दिया और कहा कि राहुल गाँधी ने उन्‍हें खुद फोन करके कहा कि उन्‍होंने मिलीभगत वाली कोई बात नहीं कही है.

सोनिया को भेजी गयी चिट्ठी पर साइन करने वाले नेताओं में से एक मुकुल वासनिक तो अपनी बात कहते हुए इतने भावुक हो गए कि उनकी आँखें नम हो गयीं. नए अध्यक्ष के तौर पर मुकुल वासनिक का नाम खूब उछल रहा था, उन्हें उम्मीद भी थी कि सीडब्लूसी की बैठक में उनके नाम पर मुहर लग जाएगी, लेकिन मामला ऐसा पलटा कि आँख में आंसू भर कर उन्हें कहना पड़ा कि अहमद पटेल से ज्यादा मैंने सोनिया गांधी से सीखा है. मैं उनका शुक्रगुजार हूँ. उन्होंने मुझे हर चीज सिखाई. उन्हीं की वजह से मैं आज यहां तक पहुंचा हूँ. अगर मुझसे कोई गलती हो गई है तो मैं उसके लिए माफी मांगता हूँ. उल्लेखनीय है कि मुकुल वासनिक को राजनीती में लाने वाले राजीव गाँधी थे. मुकुल राजीव गाँधी कैबिनेट में मंत्री रह चुके हैं.

दरअसल सोनिया गाँधी को नेतृत्व परिवर्तन और स्थाई अध्यक्ष की ज़रूरत पर चिट्ठी लिखने वालों में तीन तरह के नेता हैं –  एक वो, जिन्हें पार्टी में जो कुछ मनमाने ढंग से चल रहा है उसका दुख है. दूसरे वो नेता हैं, जिन्हें राहुल गाँधी के साथ काम करने में हिचकिचाहट है और तीसरे वो कांग्रेस नेता हैं, जो वाक़ई में पार्टी को नुक़सान पहुँचाना चाहते हैं, जिसको लगता है कि पार्टी में उनका अच्छा नहीं हो रहा है. उनका वर्चस्व कायम नहीं हो पा रहा है और वो मनमानी नहीं कर पा रहे हैं. कांग्रेस को ख़तरा तीसरे प्रकार के नेताओं से है, जिनकी मंशा अगर फलीभूत हो गयी तो ये कांग्रेस को भी मनुवादियों की पार्टी बनाने में देर नहीं करेंगे.
कुछ लोगों का मांनना यह भी है कि वैसे तो राहुल गांधी पार्टी के अध्यक्ष नहीं है, लेकिन वास्तव में अध्यक्ष ही बने हुए हैं. उनकी 100 में से 70 बात आज भी मान ली जाती हैं. आज पार्टी में राहुल का रोल क्या हो, ये बात अधर में अटकी है, वो ना ख़ुद अध्यक्ष बन रहे हैं और ना दूसरे को बनने दे रहे है, ये बात ज़्यादा दिन तक नहीं चल सकती, इसलिए पार्टी अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होना ही चाहिए. हालांकि जानकारों का मानना है कि राहुल गाँधी अगर आज भी अध्यक्ष बनने के लिए अपना मन बना लें तो वो बिना किसी मुश्किल के दोबारा अध्यक्ष बन सकते हैं, लेकिन वे अध्यक्ष ना बनने की अपनी ज़िद पर अड़े हुए हैं. खैर, उनकी ये ज़िद कब टूटेगी कह नहीं सकते, मगर सीडब्लूसी की मीटिंग के बाद सोनिया गांधी को इतनी मोहलत अवश्य मिल गई है, कि पार्टी में जो रायता फैला है उसे समेट लिया जाए.

राहुल गाँधी ने जब चुनाव बाद हार की जिम्मेदारी लेते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था, तब उन्होंने लिखा था कि मेरा संघर्ष कभी भी राजनीतिक सत्ता के लिए साधारण लड़ाई नहीं रहा है. मुझे भाजपा के प्रति कोई नफतर या गुस्सा नहीं है लेकिन मेरे शरीर में मौजूद ख़ून का एक एक क़तरा सहज रूप से भारत के प्रति भाजपा के विचार का प्रतिरोध करता है. यह प्रतिरोध इसलिए पैदा होता है क्योंकि मेरा वजूद जिस भारत की कल्पना से बना है, उसका टकराव भाजपा के भारत की कल्पना से है. यह कोई नई लड़ाई नहीं है. हज़ारों साल से इस धरती पर जारी है. जहां वे मतभेद देखते हैं मैं समानता देखता हूँ. जहां वे नफरत देखते हैं मैं प्रेम देखता हूँ. जहां वे भय देखते हैं मैं गले लगाता हूँ. यह भारत का विचार (आइडिया ऑफ़ इंडिया ) है जिसकी हम रक्षा करेंगे. राहुल ने लिखा कि देश और संविधान पर हो रहा हमला हमारे देश के ताने-बाने को नष्ट करने के लिए हो रहा है. मैं किसी भी तरह से इस लड़ाई से पीछे नहीं हट रहा हूँ. मै कांग्रेस का निष्ठावान सिपाही हूं और भारत का एक समर्पित बेटा हूँ. अपनी अंतिम सांस तक उसकी सेवा और सुरक्षा करता रहूंगा.

एक राजनीतिक दल का नेता, कार्यकर्ता और अध्यक्ष होने के नाते राहुल गांधी ने जो विचार दिए, गाँधी परिवार के अलावा ऐसे विचार किसी भी अन्य कांग्रेसी की बातों में नहीं प्रकट होते हैं. चुनाव के वक़्त कांग्रेस में पैठ जमाये मनुवादी विचारधारा के नेता राहुल और प्रियंका पर दबाव डालते हैं खुद को हिन्दू साबित करने की, मंदिरों और घाटों पर जाकर पूजा अर्चना करने की, तिलक और जनेऊ धारण करने की. इस दबाव में आकर उन्होंने पिछले चुनावों में खुद पर नरम हिंदुत्व का ठप्पा भी लगवा लिया. इस बात का अहसास उन्हें भी बखूबी है और राहुल गांधी का इस्तीफा और इस्तीफे के बाद लिखा गया उनका पत्र यह बताने की कोशिश है कि अब वे मनुवादी विचारधारा वाले किसी भी दबाव को नहीं झेलना चाहते हैं.

राहुल के ‘आइडिया ऑफ़ इंडिया’ के विचार असल कांग्रेसी विचारधारा है, जो उसको भाजपा और अन्य राजनीतिक पार्टियों से अलग करती है. मगर इस विचारधारा को जानने-समझने और पोषित करने की इच्छाशक्ति कांग्रेस के अन्य किसी नेता में नहीं  दिखती. यदि कांग्रेस को बचाये रखना है तो यह ज़रूरी है कि गांधी परिवार से इतर अगर किसी व्यक्ति के हाथ में पार्टी की बागडोर जाती है तो वह इस काबिल हो कि इस विचारधारा को आत्मसात कर सके और इसी के मुताबिक़ पार्टी को आगे बढ़ाने की ताकत रखे. राहुल गाँधी अगर अध्यक्ष पद पर पुनः काबिज़ होते हैं तो ठीक, वरना आल इंडिया कांग्रेस कमेटी की मीटिंग में यदि नए अध्यक्ष के लिए चुनाव की घोषणा होती है तो आवश्यक और अनुकूल परिस्थितियां तैयार करने के साथ ही यह भी देखना होगा कि अध्यक्ष पद की चाहत लेकर मैदान में वही उतरे जो कांग्रेस की खांटी विचारधारा को आगे ले जा सके, ना कि भाजपा का एजेंट बन कर पार्टी को मटियामेट कर दे.

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