लंदन में बसे अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अप्रवासी भारतीय कलाकार आदि चुघ बॉलीवुड से जुड़ने के लिए मुंबई आए थे.आदि चुघ ने “जी 5”  की वेब सीरीज ‘नेवर किस्स योर बेस्ट फ्रेंड’ में अभिनय भी किया.मगर नेपोटिज्म के साथ-साथ गंदे दढ़ियल और अति घटिया कास्टिंग डायरेक्टरों  के रवैया से त्रस्त होकर आदि चुघ का बॉलीवुड से मोहभंग हो गया और वह वापस लंदन लौट गए  .उन्हें लगा कि बॉलीवुड की बजाय ऑस्कर अवॉर्ड और एम्मी अवॉर्ड पुरस्कार विजेता फिल्मकारों के साथ पहले की ही तरह उन्हें काम काम करते रहना चाहिए. मगर बॉलीवुड उनके साथ लंदन पहुंच गया .लंदन वापस पहुंचने के 1 माह बाद उन्हें

विनय पाठक के साथ बॉलीवुड फिल्म “थ्री  डॉट वन डैश” में  सेकंड लीड के तौर पर अभिनय करने का अवसर मिल गया. इसके बाद लंदन में रहते हुए उन्हें विद्या बालन के साथ फिल्म ‘शकुंतला देवी’ में अभिनय करने का अवसर मिल गया. अब ‘शकुंतला देवी’ 31 जुलाई को अमेजॉन प्राइम पर आ रही है,इससे आदि चुघ काफी उत्साहित है.

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प्रस्तुत आदि चुप से ई-मेल द्वारा हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश:

आपने अभिनय को कैरियर बनाने की बात कैसे सोची?

 

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– मेरा जन्म भारत में ही छत्तीसगढ़ के भिलाई शहर में हुआ था. मेरे पिता लक्ष्मी मित्तल स्टील प्लांट में नौकरी कर रहे थे .जब छह माह  का था ,तब मैं अपनी मां के साथ दिल्ली चला आया था. जबकि मेरेे पिता भिलाई में हींं काम कर रहे थे .8 वर्ष की उम्र में मैंं जर्मनी चला आया और जर्मनी में हीं मेरे अंदर अभी अभिनय शौक विकसित हुआ.  सात वर्ष तक मैं जर्मनी में रहा. उस वक्त सिर्फ जर्मन भाषा में ही बात करता था . मेरी शिक्षा भी जर्मन भाषा वाले स्कूल में ही हुई.  फिर कुछ समय के लिए मैं दक्षिण अफ्रीका गया.  बहुत खूबसूरत देश है. मैंने वहां पर हाई स्कूल में कई नाटकों में अभिनय किया. मेरे इस शौक से घरवाले व मेरे दोस्त भी आश्चर्यचकित थे.क्योंकि वहां पर ज्यादातर भारतीय डॉक्टर या इंजीनियर बनने का ही सपना देखते थे और अभी यही सोच  रखते  हैं. मैंने यूनिवर्सिटी के साथ-साथ प्रोफेशनल नाटकों में भी अभिनय किया.इसके बाद मैंने इकोनॉमिक्स और फाइनेंस में उच्च शिक्षा हासिल की.पर मेरा अभिनय का सिलसिला लगातार चलता रहा.मैंने यूनिवर्सिटी में पढ़ते हुए अभिनय का छोटा सा कोर्स किया था .यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करते हुए ही मैंने पहली बार कैमरे के सामनेे अभिनय किया था. पढ़ाई पूरी होने के बाद मुझे ‘सिटी बैंक’ में नौकरी मिल गई. उस वक्त अभिनय करने के लिए वक्त कम मिलता था, पर मैंनेे फिल्म व टीवी में अभिनय करने के लिए कुछ छोटे कोर्स जरूर किए .

बैंक की नौकरी छोड़कर अभिनय को कैरियर चुनने के पीछे क्या सोच रही?

– जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि मेरे लिए अभिनय बहुत मायने रखता है जब मैं बच्चा/ छोटा था तब स्टेज पर अभिनय करने में मुझे आनंद मिलता था. अभिनय मुझे मेरी चिंताओं से मुक्ति दिलाता है. आप जो हैं उसे भूल कर जिसे आप नहीं जानते उसे अपने अभिनय से गढ़ना परम आनंद का अनुभव देता है. हर किरदार मुझे पैंम्पर्ड करता है ,आप जब दूसर किरदार में खुद को ढाल लेतेे हैं, तब भी उसमें आप खुद भी  कहीं ना कहीं मौजूद  रहते हैं .यह बात मुझे आकर्षित करती थी. स्टेज पर जब मैं नाटकों में अभिनय करता था, तब हजार से डेढ़ हजार लोग मेरा नाटक देखने आया करते थे. वह प्रशंसाा करते थे. अब जब लोग मेरी कमर्शियल विज्ञापन या वेब सीरीज या फिल्म देखकर अपनी प्रतिक्रिया देतेे हैं, तो एक अलग तरह की रचनात्मक संतुष्टि और खुशी देता है. मुझ इस बात की खुशी मिलती है कि मैंने कुछ ऐसा रचा /गढ़ी है जो मुझसे भिन्न है.मैं तो हॉलीवुड और बॉलीवुड दोनों जगह काम कर रहा हूं.  ऐसा करते समय मुझे खुद को पूर्णरूपेण बदलना / ट्रांसफार्म करना पड़ता है.  इसमें मुझे जो खुशी और सुख का अहसास होता है, वह बैंक की नौकरी करते समय नहीं मिल रहा था. मुझे अपनी जिंदगी में खुशी से बढ़कर कुछ नहीं चाहिए .

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अभिनय का प्रशिक्षण….?

– मैंने इंग्लैंड में ही ‘लंदन अकादमी ऑफ़ आर्ट्स’ और ‘ब्रिस्टल ओल्ड विक थियेटर स्कूल’ से अभिनय का प्रशिक्षण हासिल किया. इसके अलावा जब मैं दिल्ली गया था ,तो मैंने दिल्ली में अनुराग अरोड़ा से भी अभिनय की ट्रेनिंग ली. अनुराग अरोड़ा बेहतरीन कलाकार हैं वा कुछ फिल्मों के अलावा ‘पाताललोक’ और ‘दिल्ली क्राइम’ जैसी वेब सीरीज में अभिनय कर चुके हैं. उन्होंने ‘फुकरे’, ‘ओए लक्की लक्की ओए’,  ‘दंगल’, ‘कबीर सिंह’ में आमिर खान के भाई का किरदार कर चुके हैं. दिल्ली मेंंअनुराग से अभिनय का प्रशिक्षण लेते समय मैंने कई मिश्रित भावनाओं का अहसास किया. इंग्लैंड/ यूके में हमें जो अभिनय का प्रशिक्षण मिला, उसमें हमें कलाकार के तौर पर खुद को अंदर से तोड़ने आत्मविश्वास को बढ़ाने के साथ इंसान के तौर पर  पूरी तरह से खुद को  बदलना सीखा. यूके में काफी कठिन और कड़ी मेहनत करायी गयी. इसमें नकारात्मक बात नहीं है .यह तो सीखने वाली बात है .हमेंं कलाकार के तौर पर किरदार के अनुरूप खुद को बदलना आना चाहिए .तो यूके में अभिनय का जो प्रशिक्षण दिया जाता है ,उसमें कलाकार की आदतों को बदलने के साथ ही किसी भी तरह के चुनौतीपूर्ण किरदार को निभाने लायक बनााया जाता है .यह प्रशिक्षण काफी मुश्किल रहा, पर मैंने प्रशिक्षण लिया. यूकेे और दिल्ली में अभिनय का प्रशिक्षण लेकर मैंनेे बहुत कुछ सीखा मेरे अंदर का आत्मविश्वास बढ़ा. मैंंने अभिनय क्राफ्ट सीखा. मैंनेे जाना कि अभिनय करनेेे के लिए क्या जरूरी है .इसी के साथ मुझे यह जानकर अफसोस भी हुआ कि मैं अपनी निजी जिंदगी में कितना छोटा इंसान हूं मुझे क्या क्या सीखना चाहिए .अभिनय का प्रशिक्षण लेने के बाद मेरा पूरा व्यक्तित्व बदल चुका है .मैं एक नया इंसान बन गया हूं .मैं हर दिन अपने अभिनय प्रशिक्षण को दोहराता रहता हूं .मैंने वॉयस ट्रेनिंग ली .रंगमंच पर कलाकार की आवाज बहुत मायने रखती है ,तो मैंने उस पर भी काफी काम किया. अब मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि अभिनय के प्रशिक्षण में ‘वॉयस आवाज’ का प्रशिक्षण बहुत मायने रखता है .मैंने सांस रोकना , वोकल ट्रेंनिंग लेने के साथ ही यह भी सीखा कि कलाकार के लिए कई तरह की किताबें पढ़ना कितना लाभदायक होता है .मैंने संवादों को डब करने से लेकर गायन भी सीखा. मैंने नृत्य व मूवमेंट ट्रेनिंग भी ली. मैंने कसरत करना शुरू किया .कलारी पट्टू सीखा .’किनी डांस’ सीखा. मैंने पुराने समय में लोग किस तरह से नृत्य करते थे ,वह सीखा . जिससे जब हम पीरियड फिल्म या पीरियड वेब सीरीज करूंगा, तो पुराने वक्त के नृत्य को करना आसान होगा .मैंनेे कुछ हथियार चलाना भी सीखा .कैमरे के सामने ‘फाइट’ करने की कला होती है ,क्योंकि कैमरे का अपना एंगल होता है ,तलवार बाजी सीखी,हाथापाई करना सीखा. तो मैंनेे काफी विस्तार और गहराई वाला प्रशिक्षण हासिल किया.  तो मैंने बहुत कुछ सीखा .

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आपने कुछ हिंदी नोटों में भी अभिनय किया है?

-मैंने अपने पूरे जीवन में बहुत थियेटर किया है. आठ बरस की उम्र में जर्मनी से शुरू करके बगदाद तक, जहां मैं ट्रेनिंग के लिए गया था. मुझे पता नहीं कि आज तक मैंने कितने नाटकों में काम किया. लेकिन संभवतः 25 से 30 नाटक कह सकता हूं. इनमें शेक्सपीयर के मैकबेथ, ट्वेल्थ नाइट, मर्चेंट ऑफ वेनिस शामिल हैं. साउथ अफ्रीका में युनिवर्सिटी कॉम्पीटीशन में जब मैं हाईस्कूल में था, तो टेनिसी विलियम्स का नाटक मैंने किया था. मैरी शैली का फ्रेंकेस्टाइन पर आधारित नाटक में मैंने काम किया है.ब्रिस्टल में जेन ऑस्टिन के नॉवेल नॉर्थएंगर ऐबी पर आधारित नाटक किया था.खास तौर पर मैंने लंदन में कई प्रतिष्ठत निर्देशकों और प्रसिद्ध थियटर कंपनियों के साथ शेक्सपीयर के नाटक किए.


मैंने दिल्ली में भी मुंशी प्रेमचंद के हिंदी नाटक “अपने फन का उस्ताद” में भी काम किया है. लंदन समेत मैंने न्यूयॉर्क और फ्रांस में नाटक किए है. मैंने कुल पांच भाषाओं के नाटकों में काम किया है. अंग्रेजी, जर्मनी, हिंदी, पंजाबी और तेलुगु. मैंने करीब दस शॉर्ट फिल्में की हैं. जिनमें दुनिया भर में सराही जा चुकी फिल्म ऑक्सीजन शामिल है. जिसके डायरेक्टर एमी अवार्ड विजेता एडवर्ड वाट्स थे और कैमरामैन माइकल पैलोडिमोस को ऑस्कर मिल चुका था. इसमें मैंने एक हत्यारे का रोल किया था. फिल्म में कोई डायलॉग नहीं था और यह 16 मिमी ओल्ड स्कूल कैमरा पर शूट की गई थी. इसे कई अवार्ड भी मिले. कई फेस्टवल्स के बाद इसे अब 2020 में रिलीज करने की योजना है. अमेरिका में मैंने कुछ शॉर्ट फिल्में की. टीवी सीरियल “नेवर किस योर बेस्ट फ्रेंड” भी मैंने किया, नकुल मेहता और आनिया सिंह के अपोजिट. इसे जी5 पर देखा जा सकता है. यह हिंदी और इंग्लिश दोनों में है.नौ विज्ञापन फिल्मों में मैंने काम किया है.

शकुंतला देवी में मैंने विद्या बालन के साथ एक छोटा मगर महत्वपूर्ण रोल किया है. इसी साल मेरी एक और फिल्म आएगी थ्री डॉट्स ऐंड अ डैश, जिसमें विनय पाठक हैं. इसमें मैं सेकेंड लीड में हूं. एक ब्रिटिश फिल्म भी है मेरी, जो इसी साल रिलीज हो सकती है. मैंने अधिकतर ड्रामा, कॉमेडी और ऐक्शन फिल्मों में काम किया है. मैंने एलजीबीटी रोल भी किए हैं. मैं खुशकिस्मत हूं कि मुझे अलग-अलग तरह के रोल करने को मिले हैं. खास तौर पर मैंने ऑक्सीजन में जो रोल निभाया, जिसमें मुझे बहुत ही बड़े डायरेक्टर ने एक बेहतरीन रोल दिया. यह एक बहुत ही तनावपूर्ण परिस्थितियों की कहानी थी, जिसमें मेरा रोल बहुत इंटेंस था. इसमें कहानी दिखाई गई थी, रिफ्यूजियों को अवैध तरीके से लेकर एक छोटा ट्रक यूके में जा रहा है और कैसे उसमें ठसाठस बैठे लोगों के बीच ऑक्सीजन लेवल कम हो रहा है. कैसे फिर रिफ्यूजियों की मौत होने लगती है. इस फिल्म की शूटिंग के दौरान मैंने अपने डायरेक्टर और कैमरामैन से बहुत कुछ सीखा. जिसमें ऐक्टिंग के साथ कई तकनीकी चीजें भी थी.

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अब तो अब बालीवुड से भी जुड़ गए?

-जब मैं बॉलीवुड में अभिनय करने के लिए आया था तो मेरा अच्छे नहीं रहे. अभिनय को कैरियर बनाने का निर्णय लेने व अभिनय  का प्रशिक्षण हासिल करने के बाद मैंने मुंबई जाकर कई सीरियल और कई फिल्मों के लिए ऑडिशन दिया. मेरे साथ सैकड़ों कलाकार ऑडिशन दे रहे थे .मैंने महसूस किया कि तमाम सुंदर दिखने वाले लड़के भी ऑडिशन में असफल हो रहे हैं. क्योंकि हर किरदार की अलग मांग होती है. ऑडिशन देते समय मैंने महसूस किया कि मैंने जो कुछ सीखा ,उसे सही ढंग से उपयोग नहीं कर रहा हूं .मैंने पाया कि कास्टिंग डायरेक्टर गलत ढंग से व्यवहार कर रहे हैं, जिसका मैं अभ्यस्त नहीं था.मैंने पाया कि बड़े स्टारों /घरानों के कलाकारों को आसानी से काम मिल रहा है.मैं उन किरदारों को निभाना चाहता था, जो मेरे व्यक्तित्व के विपरीत हो. बालीवुड के गंदे दढियल और घटिया कास्टिंग डायरेक्टर के व्यवहार से परेशान होकर मैं वापस इंग्लैंड चला आया.इसलिए बालीवुड को भूल कर इंग्लैंड वापस आ गया. मैं ऑडिशन के दौरान  की गंदगी देखकर बॉलीवुड को छोड़कर कर वापस इंग्लैंड यूके आ गया था, पर हकीकत में बॉलीवुड मेरे साथ आ गया .इंग्लैंड पहुंचने के बाद मुझे विनय पाठक के साथ फिल्म “थ्री डॉट्स वन डैश”मिल गयी.इस फिल्म में मैं सेकंडलीड में हूं . फिल्म ‘थ्री डॉट्स वन डैश’ बॉलीवुड फिल्म होते हुए भी हिंदी व अंग्रेजी मिश्रित है. मसलन ” दिल्ली बेले” की ही तरह .फिल्म “शकुंतला देवी” मुझे मेरे एजेंट के माध्यम से मिली.मैंने इंग्लैंड में रहते हुए ही फिल्म “शकुंतला देवी” के लिए ऑडिशन दिया और मुझे इस फिल्म में अभिनय करने का अवसर मिल गया. इस फिल्म के लिए मैंने 35 दिन शूटिंग की.

फिल्म शकुंतला देवीके अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगे?

– मैंने इस फिल्म में करतार का किरदार निभाया है ,जो कि शकुंतला देवी के लंदन पहुंचने पर गेस्ट हाउस दिलाता है .फिर मुलाकातें होती रहती हैं. और करतार की शकुंतला देवी से दोस्ती हो जाती है. यह उन दिनों की बात है ,जब हमारी भारतीय सभ्यता व संस्कृति में एक  अकेली भारतीय औरत का विदेश यात्रा करना आम बात नहीं थी. तो जब वह गेस्ट हाउस में कुंवारी भारतीय नारी के रूप में आती हैं, तो वहां पर आए दिन करतार से शकुंतला देवी की  गपशप होते होते बहुत अच्छी दोस्ती हो जाती है.

फिल्म शकुंतला देवी में अभिनय करने के अनुभवों को लेकर क्या कहना चाहेंगे?

– “शकुंतला देवी”  में अभिनय करना उत्साह जनक रहा. हमने लंदन में कई लोकेशन में शूटिंग की .कुछ सेट 60 और 70 के दशक बनाए गए थे .सेट पर विद्या बालन की एनर्जी देखते ही बनती थी.ती है.फिल्म “शकुंतला देवी ” में कमाल का गेस्ट हाउस रचा गया है.

फिल्म “थ्री  डॉट्स वन डैश”के किरदार  को लेकर क्या कहेंगे?

-किरण वालिया वेंकट निर्देशित फिल्म ‘थ्री  डॉट्स वन डैश’  में मैंने रोनी का किरदार निभाया है.यह फिल्म लंदन में रह रहे अप्रवासियों मजदूरों के इर्द गिर्द घूमने वाली अपराध व हास्य फिल्म है.

किस तरह के किरदार निभाना चाहेंगे?

– मैं विविधता पूर्ण और चुनौतीपूर्ण किरदार निभाना चाहता हूं.मैं केवल एक ‘अच्छा इंसान’ अथवा ‘बुरा इंसान’ का किरदार नहीं निभाना चाहता, मुझे वह किरदार निभाने हैं, जिसमें एक नहीं कई परतें हों .मल्टी लेयर किरदार हो . बॉलीवुड में हर प्रोटोगॉनिस्ट  सिर्फ अच्छा इंसान नजर आता है ,पर ऐसा जरूरी नहीं है. प्रोटोगॉनिस्ट मेें भी कई परतें शेड्स  हो सकते हैं . कोई भी इंसान अपनी जिंदगी में केेवल अच्छा नहीं होता है. निजी जीवन में हर इंसान  समय व परिस्थिति के साथ बदलता रहता है . निजी जीवन में भी इंसान के अंदर कई तरह की जटिलताएं होती है .मैं ऐसा रोमांटिक लीड किरदार करना चाहूंगा, जिसमें कुछ रहस्य हो.मैंं वेब सीरीज ‘पाताललोक’ के  प्रोटोगॉनिस्ट जैसा किरदार निभाना पसंद करूंगा .मैं साइंस फिक्शन फिल्म भी करना चाहूंगा .अभी बीबीसी ने विक्रम सेठ की किताब पर वेब सीरीज ‘ए सूटेबल  ब्वॉय’ बनवाई है.मैं इस वेब सीरीज का हिस्सा बनना चाहता था, जिसे मीरा नायर ने निर्देशित किया है.

आपके शौक क्या हैं ?आपने लॉकडाउन में कैसे समय बिताया?

-फिल्म व टीवी सीरियल देखना पसंद है .नृत्य करने का भी शौक है. कुकिंग भी करता हूं .किताबें पढ़ने का भी शौक है .लॉकडाउन के दिनों में मैंने कुछ  फिल्मों की पटकथा पढी़, जिनके ऑफर मुझे मिले हैं .कुछ किरदारो पर मैंने अपनी तरफ  से काम किया. मैंने कुछ मशहूर अमेरिकन नाट्य लेखकों के नाटक पढ़ें. मैंने कुछ बेहतरीन पेंटिंग्स  बनायी  है. मुझे प्रकृति से प्रेम है. यह प्रेम मेरी पेंटिंग्स में नजर आ रहा है. मुझे बाहर घूमने जाना पसंद है, जोकि लॉकडाउन की वजह से संभव नहीं हो पा रहा है.

सोशल मीडिया पर आप कितना सक्रिय हैं?

– सोशल मीडिया में इतनी गहरी, खुशी नहीं मिल सकती जितना आप सोचते हैं. जब आप सोशल मीडिया पर जाते हैं, तो आप देखते हैं कि लोग तरह तरह की हरकतें कर रहे हैं .पर सच में यह सब दिखावा होता है. सोशल मीडिया पर हकीकत से परे चीजें नजर आती हैं. जिंदगी यह नहीं है. हम सोशल मीडिया पर लोगों की हरकतों को देख कर उस पर अमल करें .सोशल मीडिया पर अपने पसंदीदा सेलिब्रिटी को फॉलो करना, या उनकी चीजों को पसंद करना अलग बात है. सोशल मीडिया ने युवा पीढ़ी को तनाव देने के साथ-साथ उन्हें  मानसिक रूप से बीमार बनाया है. क्योंकि सभी खुशहाल सफल जिंदगी जीना चाहते हैं .पर सोशल मीडिया के अवसाद चलते हुए हम एक दिन महसूस  करते हैं कि हम अपने आप से और अपने परिवार से दूर जा चुके हैं.

मैं सोशल मीडिया पर सक्रिय हूं .मगर बहुत ही अधिक सतर्क होकर. मेरे लिए सोशल मीडिया ही जिंदगी नहीं है. मैं वही करता हूं, जिसे करना मेरी क्षमता के अनुरूप हो. मैं यह भी मानता हूं कि मनोरंजन उद्योग से जुड़े कलाकारों व अन्य हस्तियों के सोशल मीडिया से जुड़े रहना आवश्यक है. मगर मैं हर दिन सोशल मीडिया पर नहीं जाता .फेसबुक पर हर दिन बहुत कुछ होता रहता है. मैं फेसबुक पर अपने काम के बारे में पोस्ट करता हूं, जिससे यदि कोई मेरे साथ काम करना चाहता है, तो उसे अंदाजा लग सके कि मैं किस तरह का काम कर रहा हूं. मेरे अंदर किस तरह की अभिनय क्षमता है. मसलन,  जब लंदन में लंदन इंडिया कला फेस्टिवल में अनुराग कश्यप आए थे .तो उनके साथ मैंने रात्रिभोज किया था, उस वक्त हमने जो तस्वीरें खींची थी, उन्हें मैंने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था. क्यों कि यह मेरे लिए एक यादगार लम्हा था .क्योंकि मुझे अपने विश्व के प्रिय निदेशक के साथ डांस करने व रात्रि भोज कर कुछ समय बिताने का मौका मिला था. यह मेरे लिए यादगार पल था. जिसका सोशल मीडिया पर जिक्र करना उचित लगा .

बॉलीवुड को लेकर आपकी राय?

– पिछले 10- 12 वर्षों के दौरान कलाकारों की जो युवा पीढ़ी आ रही है, बेहतरीन काम कर रही है .अब बॉलीवुड में चेहरे की खूबसूरती के बजाय टैलेंट मायने रखती है. तभी तो नवाजुद्दीन सिद्दीकी जैसे कलाकार बेहतरीन काम कर पा रहे हैं. अनुराग कश्यप के क्राफ्ट का फैन हूं. विद्या बालन ने फिल्म “शकुंतला देवी” में लाइफटाइम किरदार निभाया है.

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