जब ताली और थाली बजाने से कोरोना नहीं रोका जा सका तो नदियों की पूजा करके बाढ को कैसे रोका जा सकता है. इसका परिणाम यह होगा कि जनता अव्यवस्था और निकम्मेपन के लिये सरकार की जगह पर भाग्य या नियति को दोष दे सके.

बरसात के दिनों में नदियों के पानी से बाढ का खतरा कम करने के लियं बांध, तालाब और सहायक नदियों में पानी को छोडकर बाढ रोकने की बातें पुराने जमाने की है. 21 वीं सदी और कंप्यूटर युग में अब नदियों से होने वाली बाढ कोे रोकने के लिये उनकी पूजापाठ करने की जरूरत है. उत्तर प्रदेश के जलमंत्री डाक्टर महेन्द्र सिंह ने सरकारी अफसरों को आदेश दिया किया है. अब हर षाम सिंचाई विभाग के लोग नदियों की पूजा करेगे. जिससे नदी खुश होगी और वह बाढ का पानी रोक लेगी. उत्तर प्रदेष सरकार में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब मुख्यमंत्री के रूप में अपने सरकारी आवास में गये तो वहां के शुद्वीकरण के लिये पूजापाठ हवन के साथ गंगा के जल से सफाई भी हुई.

जिस प्रदेश के मुख्यमंत्री खुद ऐसा करते हो और वह खुद मठ के पुजारी रहे हो वहां इस तरह के काम चैकानें वाले नहीं होते है.यह बात जरूर है कि ऐसे बहुत सारे कामों के बाद भी उत्तर प्रदेश के हालात जस के तस है. केवल उत्तर प्रदेश  सरकार ही नहीं भाजपा की अगुवाई वाली मोदी सरकार के केन्द्रीय मंत्री भी ऐसे टोटके कर चुके है. लडाकू विमान राफेल की खरीददारी के समय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह का फोटो चर्चा में आया था. जिसमें राजनाथ सिंह लडाकू विमान राफेल के टायर के नीचे नारियल फोड कर पूजा करते है. राफेल की बौडी पर स्वास्तिक और ओम का निशान बना रहे थे. चीन के साथ तनातनी के समय एक कार्टून जारी हुआ था जिसमें राजनाथ सिंह को भारतचीन सीमा पर लगें कटीले तारों पर नींबू मिर्चा बांधते दिखाया गया था. कार्टून की बात को सच साबित करते हुये जब राजनाथ सिंह ने लेह में अपने दौरे के समय वहां बाबा बर्फानी के मंदिर में पूजा की और उन फोटो को पूरी प्रमुखता के साथ प्रसारित भी किया गया.

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ना ताली काम आई ना थाली:

भारत में इससे बडी घटनायें भी घट चुकी है. पूरा विश्व जब कोविड 19 के संक्रमण से गुजर रहा था. भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोरोना को भगाने के लिये ताली, थाली और शंख बजाने के साथ ही साथ सरसों के तेल से 5 दीयें जलाने के लिये देष की जनता से कहा. देश के अधिकांश लोगों ने यह काम बडी हंसी खुशी से किया. मार्च के तीसरे सप्ताह में जब भारत में कारोना ने दस्तक दी थी तब कोरोना को रोकने के लिये यह काम किया गया. इसके बाद भी देश में करोना का फैलना जारी रहा. देश करोनो के रेस में सबसे उपर के देशों से मुकाबला करने लगा. करोनो ने देश की आर्थिक और सेहत दोनो स्तर पर बेहद नुकसान पहुंचाया. इस तरह के टोटको से किसी भी समस्या का समाधान नहीं हा रहा. इसके बाद भी टोटके फैलाने का काम जारी है.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में जल संसाधन मंत्री महेंद्र सिंह ने बाढ़ रोकने के लिए सिंचाई विभाग को उन नदियों की नियमित पूजा करने के निर्देश दिए हैं जहां जल स्तर बारिश के चलते हाल-फिलहाल में काफी बढ़ा है. नदियों की पूजा करने के साथ ही साथ उनको फूल भी अर्पित करने के लिये कहा गया. जलमंत्री महेन्द्र सिंह ने खुद भी बलरामपुर की राप्ती नदी के कटान स्थल बेलहा चरनगहिया गांव के पास राप्ती नदी की विधिवत पूजा पाठ किया. जल संसाधन मंत्री महेंद्र सिंह ने कहा कि सभी नदियां मां के समान है. यह पूरी मानवता को जीवन प्रदान करती है. इनकी निर्मलता एवं पवित्रता बनाये रखने के लिए सभी लोगों को जागरूक करना चाहिए. जलशक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ने बताया कि नदियों की पूजा कोई नहीं परंपरा नहीं है. ऐसा नदियों के आसपास रहने वाले ग्रामीण भी लंबे समय से करते आ रहे हैं. हिंदू परंपरा में नदियों को देवी के तौर पर मानते हैं और उनकी पूजा भी की जाती है. बाढ़ पर काबू करने के लिए भी फील्ड स्टाफ को भी ग्रामीणों की ही नदियों की पूजा करनी चाहिए.

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जब पूजा ही करनी तो साधनों की क्या जरूरत ?

एक तरफ जल संसाधन मंत्री महेंद्र सिंह नदियों की पूजा करने को कहते है. दूसरी तरफ  602.86 लाख रुपये की लागत से तटबंध को बचाने के लिए जीओ बैग, परक्यूपाइन व पैचिंग कार्य करने के लिये भी कहा गया. अधिकारियों को निर्देश दिए कि तटबंध के संवेदनशील स्थानों पर कैम्प लगाकर 24 घंटे निगरानी रखी जाय. बाढ़ से संवेदनशील स्थलों व तटबंधों पर सीसीटीवी कैमरे व ड्रोन कैमरे से नजर भी रखी जाय. जलशक्ति मंत्री ने बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोण्डा, बाराबंकी व सीतापुर के बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों का हवाई सर्वेक्षण भी किया. सवाल उठता है अगर नदियों की पूजा से ही बाढ रूक सकती है तो यह पैसे खर्च करने और निगरानी की क्या जरूरत है ? मंत्री जी भी हवाई दौरे करके जनता के पैसे को क्यों बरबाद कर रहे है ? नदियों की पूजा से ही बाढ को रोक लिया जायेगा.

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अगर पूजापाठ से ही बाढ और आपदा रूकती तब तो धार्मिक स्थलों पर ऐसे संकट आने ही नहीं पडते. केदारनाथ मंदिर देश का सबसे शक्तिशाली मंदिर माना जाता है. वहां बाढ के पानी से हुई तबाही को कौन भूल सकता है ? कुंभ के दौरान तमाम ऐसे हादसे हो जाते है. जिनमें सैकडों की जान जाती है. तमाम मंदिरों में होने वाले हादसे नहीं होने चाहिये. बाढ का सबसे बडा कारण गंगा नदी होती है. गंगा के किनारे रिषीकेष से लेकर हरिद्वार और वाराणसी जैसी तमाम जगहांे पर गंगा की पूजा होती है. इसके बाद भी गंगा कई प्रदेष में बाढ का कारण बनती है. पूजापाठ से नदियों की बाढ रूक सकती है यह सबसे बडा भ्रम है. इसे केवल सरकार इसलिये फैला रही जिससे जनता बाढ के समय सरकार की व्यवस्था को नहीं अपने भाग्य को दोशी मान सके. बाढ की जिम्मेदारी जनता सरकार पर नहीं नियति पर डाल सके.

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