कांग्रेस पार्टी का हाल उस ढोल की तरह हो गया जिसे दोनों तरफ से बजाया जा रहा है. एक, अन्य पार्टियों द्वारा, दूसरा, खुद पार्टी के भीतर के नेताओं द्वारा. कर्नाटका और मध्यप्रदेश के बाद अब राजस्थान की कांग्रेस सरकार बिखराव की तरफ बढ़ चली है. राजस्थान में अशोक गहलोत की अगुवाही में चल रही कांग्रेस सरकार अपने ही उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट की वजह से संकट में दिखाई दे रही है.
अब यह किस प्रकार का संकट है इसे जानने के लिए हाल ही में मध्यप्रदेश में पूर्व कांग्रेसी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा पार्टी के खिलाफ बगावत का उदाहरण से देखा जा सकता है. उसी प्रकार राजस्थान में कांग्रेस के युवा नेता सचिन पायलट ने इस समय बगावत कर दी है. साथ ही सचिन पायलट ने दावा भी किया कि उनके समर्थन में 30 विधायक है. फिलहाल इसे लेकर कांग्रेस ने मुख्यमंत्री आवास पर 13 जुलाई सुबह 10.30 बजे विधायकों की मीटिंग रखी गई थी. जिसमें सचिन पायलट और उनके कुछ समर्थक विधायक शामिल नहीं हुए.
यह मामला यूं तो खुल कर पिछले दो दिन में सामने आया है लेकिन इस कलह की जड़ सरकार बनने के बाद से ही फैलने लगी थी. ताकत, महत्वकान्शा और पार्टी पकड़ यह कुछ कारण है जो टकराव पैदा करते हैं. कांग्रेस पार्टी का इतिहास ही बिखराव का रहा है, न जाने कितने नेताओं के टूटने और उनसे जन्मी नयी पार्टी के गठन का. यह बात 2018 में राजस्थान के चुनाव को जीतने के बाद ही सामने आ गया था. सचिन पायलट का खेमा चाहता था कि राज्य का मुख्यमंत्री सचिन को बनाया जाए. खुद सचिन पायलट मुख्यमंत्री बनाए जाने की आशा में भी थे. लेकिन कांग्रेस ने सत्ता की कमान अनुभवी अशोक गहलोत को देना बेहतर समझा.
ये भी पढ़ें-राजस्थान में सत्ता की रेस
इस बार का संकट इस साल के जून से लगातार बढ़ता हुआ सामने आया. जब राज्यसभा के लिए चुनाव होना था. तब कांग्रेस से 2 प्रत्याशियों को टिकेट दी गई. दोनों अशोक गहलोत खेमे के थे. लेकिन मूल यह कि इनमें से एक नीरज डांगी थे जो वर्तमान में राज्यसभा सांसद हैं. जिस पर सचिन खेमा ख़ासा नाराज भी हुआ था.
सचिन पायलट के ख़ास वेदप्रकाश सोलंकी ने नीरज डांगी के चुने जाने पर सवाल खड़े किये थे. उनका कहना था कि “3 बार के असेंबली इलेक्शन में हारे हुए नेता को राज्यसभा की टिकेट देना ठीक नहीं इससे पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटता है.” तब यह खबर आ रही थी कि सचिन पायलट भी इस निर्णय से खासा नाराज थे.
इसके अलावा क्रॉस वोटिंग को लेकर भी पायलट और उसके समर्थक विधायकों पर शंका जाहिर की गई थी. जानकारों का कहना है कि भाजपा ने जानबूझकर दो कैंडिडेट राज्यसभा के लिए खड़े किये थे. जबकि वह अच्छी तरह जानती थी कि उनके पास जितने विधायक है उसमें सिर्फ एक कैंडिडेट ही जीत सकता था. लेकिन दो कैंडिडेट खड़ा करने से उन्होंने कांग्रेस के भीतर कन्फ्यूजन क्रिएट करने की पूरी कोशिश की. उसी समय कांग्रेस द्वारा विपक्ष पर हॉर्स ट्रेडिंग के आरोप लगाए गए थे. जिसका बाहरी निशाना भाजपा तो थी ही लेकिन भीतरी निशाना सचिन पायलट और उसके समर्थक के विधायक भी थे.
ये भी पढ़ें-विकास दुबे इस राजनीति की पहचान है वह मर नहीं सकता
यह मसला यही नहीं थमा राज्यसभा वाले मसले पर विधायकों को लालच देकर तोड़ने की बात सामने आने पर सीएम गहलोत ने एसओजी समिति का गठन किया था. इसी को लेकर 10 जुलाई को इस समिति ने सचिन पायलट को समन भेजकर पूछताछ के लिए बुलाया था. जिसे लेकर यह समझा जा रहा था कि सचिन पायलट को खरीद फरोख्त में शामिल होने के चलते कार्यवाही की जा रही है. इसे लेकर दोनों खेमों की गुटबाजी जोरों पर थी. सचिन खेमें का मानना था कि यह कार्यवाही सचिन पायलट को बदनाम करने के लिए किया गया. जिसने “सीमाएं लांघ” दी हैं.
वही इसे लेकर सीएम गहलोत का रविवार को ट्वीट आया कि
“एसओजी को जो कांग्रेस विधायक दल ने बीजेपी नेताओं द्वारा खरीद फरोख्त की शिकायत की थी, उस सन्दर्भ में मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, चीफ व्हिप व अन्य कुछ मंत्री व विधायकों को समान्य बयान देने के लिए नोटिस आए थे. मीडिया द्वारा इसे अलग ढंग से प्रस्तुत न किया जाए.”
जाहिर है यह ट्वीट सचिन पायलट के “समन भेजे जाने से नाराजगी” वाले तर्कों को ख़ारिज करने के लिए किया गया है. और बताया गया की इस विषय में जांच के लिए सभी जिम्मेदार लोगों को नोटिस भेजा गया था. ध्यान देने वाली बात यह कि एसओजी राजस्थान पुलिस ने इस मामले में दो लोगों की गिरफ्तारी की है जिन पर विधायकों की खरीद फरोख्त का आरोप लगा है. इनका नाम अशोक शिंह और भारत मालानी है. इन दोनों का पिछला संबंध भाजपा से बताया जा रहा है.
ये भी पढ़ें-विकास दुबे एनकाउंटर: कानून और न्याय से नहीं, बंदूक की नोक पर होगा शासन!
इन दोनों के बीच हुई बातचीत को एफआईआर में दर्ज किया किया गया जिसमें पायलट का नाम गहलोत सरकार गिराने को लेकर आया है. जिसमें लिखा है “सरकार गिरने के बाद, नया सीएम बनेगा. भाजपा कहती है सीएम उनका होगा और डिप्टी सीएम केंद्र सरकार चुनेगी. लेकिन उपमुख्यमंत्री कहता है कि वह सीएम बनेगा.”
इसे लेकर गहलोत ने प्रेस कांफ्रेंस की थी. जिसमें केंद्र सरकार पर निशाना साधा था. उन्होंने कहा कि “भाजपा नेताओं ने महामारी के समय मानवता की सारी सीमाएं लांघ दी हैं. ये अपने केन्द्रीय नेतृत्व के कहने पर गेम खेल रहे हैं.”
यानी मामले की गंभीरता राज्यसभा इलेक्शन के बाद ज्यादा होने लगी थी. जहां दोनों खेमों के बीच तनातनी चल रही थी. और यह तनातनी इतनी बढ़ गई है कि सचिन पायलट के कांग्रेस में बने रहने की संभावना कम ही दिख रहे हैं. हांलाकि खुद को सँभालते हुए अभी किसी पार्टी में जाने की बात उन्होंने सार्वजनिक तौर पर नहीं की है. और भाजपा में जाने की अटकलों को नकार दिया है. तो इसका अर्थ यह हो सकता है कि वह अपनी पार्टी फॉर्म कर सकते हैं. या कांग्रेस में लौटकर आते हैं तो बड़े समझौते के साथ ही वापसी कर पाएँगे.
किन्तु इतना सब होने के बावजूद भाजपा अभी भी फ्रंट फुट पर आकर मोर्चा सँभालने से कतरा रही है. उसका सीधा सा कारण है सीटों का नंबर गेम व खुद राजस्थान की भाजपा इकाई है. भाजपा इस समय माहौल को भांप रही है. भाजपा, कांग्रेस के भीतर गुटबाजी जरूर कर सकती है या इसका राजनीतिक फायदा उठा सकती है लेकिन इसका इतना लाभ होता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है कि वह कमलनाथ सरकार की तरह गहलोत सरकार ही पलट दें.
इसमें सबसे बड़ी समस्या सीटों का है. मध्यप्रदेश में जहां कांग्रेस और भाजपा में सीटों का अंतर 5 था वहीँ राजस्थान में यह अंतर 35 का है. आज कांग्रेस की मीटिंग में संख्या को देखकर लगता है कि कांग्रेस बहुमत का आकड़ा गहलोत के बल पर ही पार कर सकती है. लेकिन अगर कांग्रेस से 30 इस्तीफ़ा देते भी हैं तो उपचुनाव में सरकार बनाने के लिए भाजपा को लगभग सभी सीटों पर जीत हांसिल करनी होगी. साथ उपचुनाव का रिस्क इस समय कोई विधायक नहीं लेना चाहता.
इसके अलावा सचिन पायलट की दावेदारी मुख्यमंत्री बनने की है. यह अपने आप में भाजपा के लिए बड़ी दिक्कत वाली बात है. भाजपा के लिए राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सख्सियत को कम आंकने जैंसा होगा. जिस पर खुद राजस्थान इकाई तैयार नहीं होगी. वहीँ भाजपा इतनी जल्दी दूसरी पार्टी से आए नेता को सीएम बनाने की भूल कतई नहीं कर सकती हैं. अगर मान भी लिया जाए वह अपने साथ 30 विधायक लेकर भी आते हैं तो उसके विधायकों को सत्ता के बंटवारे में समस्या झेलनी पड़ सकती है. एमपी में वैसे ही कैलाश विजवार्गीय खेमा भाजपा की कार्यवाहियों से नाखुश चल रहे हैं.
ये भी पढ़ें-अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव 2020,ले डूबेंगे ट्रंप के तेवर
फिलहाल खबर यह आ रही है कि मुख्यमंत्री आवास पर रखी गई मीटिंग में लगभग 100 से अधिक विधायक शामिल हुए थे. जिन्हें अब जयपुर के होटल फैर्मोंट में ठहराया गया है. यह विधायक होटल में क्यों रुके है बताने की जरुरत नहीं है. यानी देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्य में छाए सियासी संकट को फिलहाल नियंत्रण में रखा हुआ है. लेकिन, मामला इतनी आसानी से शांत होता दिखता नहीं. अभी तो खेमें बटने शुरू हुए हैं. पार्टी ने अभी 4 महीने पहले ही बगावत के चलते एक युवा नेता को खो दिया है. अब फिर वही चीज का दोहराव राजस्थान में खुल कर सामने आ चुका है.
यानी इन सब से अंदाजा लगाया जा सकता है कि फिलहाल गहलोत सरकार बचा तो लेंगे जिसमें उनकी जीत होगी लेकिन पार्टी में बिखराव और सचिन पायलट के अलग होने से पार्टी की बड़ी हार भी होगी. वहीँ भाजपा तो बाहर से ही इस मामले में अपनी पारी सेट करने में लगी थी. उसके हाथ सत्ता आती तो वह गद्गद होती लेकिन अगर नहीं भी आती है तो कम से कम कांग्रेस के बड़े नुकसान से खुद को सांत्वना जरूर दे सकती है.
प्राय यह लगातार देखा जा रहा है कि सियासी राजनीति में दलबदल की राजनीति अधिकाधिक हो चली है. खासकर जो पार्टी केंद्र सत्ता में है उसकी तरफ जाने का दल बदलने का झुकाव अधिक हो रहा है. मौजूदा समय में भाजपा पार्टी “बाय हुक ओर बाय क्रूक” की नीति पर सरकार बना रही है. अगर खुद जनता के वोट से सरकार नहीं बना पाए तो दुसरे की सरकार गिरा कर सत्ता पर काबिज हो रही है. इसके उदाहरण हमारे सामने हैं. किन्तु इसके साथ खतरनाक बात यह कि देश में राजनेताओं के भीतर साधारण नैतिकता भी ख़त्म हो रही है. जनता द्वारा दिए मैंडेट को राजनेता जैसा चाहे वैसा इस्तेमाल कर रहा है. आज मामला यह कि जो नेता भाजपा में नहीं है अगर पूजापाठी हैं तो देर सबेर उन्हें घेर का भाजपा में ले ही लिया जाएगा. यह दलबदल पैसें, ताकत, महत्कांश के साथ साथ जातिगत अहम् और धार्मिक भेदभाव के कारण हो रहा है. देश उन हाथों में जा रहा है जिन्हें न उत्पादन की समझ है, न व्यापार की, न विज्ञानं की, और न ही तर्क की.
फोटो- सचिन पायलट और गहलोत की एक साथ फोटो,
कीवर्ड- राजस्थान सरकार, सचिन पायलट, सीएम अशोक गहलोत, कांग्रेस, भाजपा, एमएलए, होटल फैर्मोंट, सत्ता, गुटबाजी, एसओजी, ट्वीट.