वो कहते हैं न. जिसके पास हथोडा होता है उसे हर कोई कील नजर आता है. यही हाल योगी सरकार का हो चला है. सत्ता का घमंड और लाठी का जोर इतना हो गया है कि उनके खिलाफ बोलने वालों पर सीधा एफआईआर हो जाती है. इसी फेहरिश्त में एक और नाम जुड़ गया है.
इसका ताजा शिकार हुए हैं पूर्व आईएएस अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह. मामला बीते बुधवार का है. सूर्य प्रताप ने एक ट्वीट किया था जिसमें उन्होंने लिखा “सीएम योगी की टीम-11 की मीटिंग के बाद क्या मुख्यसचिव ने ज्यादा कोरोना टेस्ट कराने वाले कुछ डीएमस को हडकाया कि ‘क्यों इतनी तेजी पकड़े हो, क्या इनाम पाना है, जो टेस्ट-2 चिल्ला रहे हो?’
यह ट्वीट यूपी में कम कोरोना टेस्टिंग के चलते किया गया. लखनऊ के हजरतगंज थाणे में हुई इस एफआईआर में आईएएस के ट्वीट को भ्रामक बताया गया. उनके खिलाफ धारा 188, 505, डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया गया.
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अपने ऊपर किये एफआईआर का जवाब पूर्व अधिकारी ने फिर से एक ट्वीट कर के दिया. जिसमें उन्होंने कहा कि ‘टीम-11 पर किये मेरे ट्वीट को लेकर सरकार ने मेरे खिलाफ मुकदमा कर दिया है. सबसे पहले तो मैं ये साफ़ कर देना चाहता हूँ कि यूपी सरकार की पालिसी पर दिए ‘नों टेस्ट, नों कोरोना’ वाले बयान पर मैं अडिग हूँ, और सरकार से निरंतर सवाल पूछता रहूँगा.’
यही नहीं योगी सरकार पर असहमति की आवाज को दबाने के आरोप में एक ट्वीट करते हुए उन्होंने लिखा कि ‘मैंने आईएएस रहते पिछली सरकार के खिलाफ आन्दोलन चलाया, तब भाजपा के नेता मेरी पीट थपथपाते थकते नहीं थे. आज ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ की बात करने वाली सरकार का रवैया देख कर चकित हूँ.’
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टेस्ट न हो तो देश में कोरोना ख़त्म समझो
जाहिर है भारत में प्रवासी समस्या उभरने के बाद मजदूर अपने गृह राज्यों की तरफ बड़ी संख्या में गए हैं. ऐसे में एक बड़ी संख्या उत्तर भारत के मजदूरों में यूपी में आने वालों की रही है. जिनमें कोरोना खतरा होने की आशंका जताई जा रही है. 10 जून को स्क्रोल डॉट इन पर आई खबर के मुताबिक प्रदेश के पूर्वी उत्तर प्रदेश में 3 करोड़ लोगों पर मात्र एक कोरोना टेस्टिंग लैब है.
वहीँ हिन्दुस्तान टाइम्स में छपी खबर के मुताबिक देश के सबसे बड़े जनसंख्या घनत्व वाले राज्य में मात्र 33 कोरोना टेस्ट लैब हैं. वो भी बड़े शहरों के भीतर. वहीँ अगर टेस्टिंग दर को देखा जाए तो, प्रदेश में हर 10 लाख में मात्र 1,740 लोगों का टेस्ट किया जा रहा है. जो भारत के औसतन 3,797 के आधे से भी कम है. साथ ही यह देखने में भी आ रहा है कि टेस्टिंग लैब से रिपोर्ट आने में काफी इन्तेजार करना पड़ता है. जाहिर है इन आकड़ों को देखते हुए कम टेस्टिंग को लेकर सवाल करना जरुरी बन जाती है.
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भारत में कम कोरोना टेस्टिंग को लेकर पहले भी सवाल उठते रहे हैं. अभी बीते दिनों अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने यहां तक कह दिया कि “भारत व चीन कारोना टेस्ट नहीं कर रहा वरना मामले अमेरिका से ज्यादा निकल सकते हैं.” देखा जाए तो जनसंख्या घनत्व के हिसाब से कोरोना टेस्टिंग मामले में भारत काफी नीचे स्थान पर है.
ऐसे में यह सोचने वाली बात है अगर कल को सरकार एक भी कोरोना टेस्ट नहीं करती है तो कोरोना का एक मामला भी दर्ज नहीं होगा. मामले दर्ज होने का मसला इसी पर निर्भर करता है कि सरकार कितने बड़े स्तर पर टेस्टिंग प्रक्रिया चला रही है. ज्यादातर मामलों में कोरोना के हलके लक्षण पाए जा रहे हैं, जिसमें मरीज घर के भीतर ही बुखार की दवाई खाकर ठीक हो रहे हैं. कई लोग अस्पतालों तक नहीं जा रहे, पास के झोला छाप डॉक्टर से दवाई लेकर काम चला रहे हैं. ऐसे में सरकार सभी राज्यों की सरकारों की मंशा इसी पर है कि कम से कम लोग अस्पतालों में आए ताकि कोरोना आकड़ों में वृद्धि दर्ज न हो पाए.
ऐसा पहले भी हो चुका है.
यह कोई पहला मामला नहीं जब सरकार के खिलाफ बोलने वालों पर योगी सरकार ने मामला दर्ज किया हो. इससे पहले भी पहले लाकडाउन में ही ‘द वायर’ के फौन्डिंग एडिटर सिद्धार्थ वर्धराजन के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था.
वहीँ मिर्जापुर के प्राइमरी स्कूल से एक वीडियो वायरल हुआ था. जिसमें मिड डे मील में नमक रोटी परोसी जा रही थी. इस पुरे मामले की खबर बनाने के चलते पत्रकार पवन जायसवाल पर धारा-120-बी, 186, 193 और 420 के चलते मुकदमा कर दिया गया. वहीँ प्रशांत कनोजिया का मामला तो पिछले साल पिछले दौरान देश में चर्चा का विषय बन गया. जब एक ट्वीट के चलते कनोजिया को गिरफ्तार कर दिया गया. इस गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश की सरकार को रिहा करने का आदेश दिया.
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वही अगर देखा जाए तो पुरे देश में सबसे ज्यादा मौतें सीएए विरोधी आन्दोलन में किसी प्रदेश में हुई हैं तो वह यूपी में हुई. जहां 23 लोगों की मौत रिपोर्ट की गई. जिसमें 21 लोगों की जान बुलेट इंजरी से बताई गई, 1 की मौत लाठी चार्ज के दौरान, और एक की पत्थर लगने के कारण बताई गई. जिसमें कई पार्टियों और फैक्ट फाइंडिंग टीम का कहना था कि अधिकतर मौतें पुलिस की गोलियों से हुई.
सरकार से सवाल करना ही नागरिकता है
प्राय यह देखा जा रहा है कि एक अजीब किस्म की राजनीति देश में हावी हो रही है. सरकार की किसी नीति से असहमति रखना मानो जुर्म हो गया हो. सरकारों की सहनशीलता लगातार कम होती जा रही है. मात्र एक ट्वीट पर एफआईआर दर्ज हो जा रही है. कभी आपदा एक्ट के नाम पर तो कभी यूएपीए के नाम पर विरोधी आवाज को कुचला जा रहा है. गिरफ्तारी होने लगती है. सरकार की नीतियों या कार्यवाहियों पर प्रश्नचिन्ह लगाना देश से गद्दारी बतायी जा रही है. खासकर यह भाजपा राज्यों में देखा जा रहा है.
ऐसे में सरकार द्वारा इस प्रकार की गतिविधियाँ भारत के लोकतंत्र के लिए खतरा है, जहां सरकार द्वारा असहमतियों की आवाज को दबाया या कुचला जा रहा हो. बेहतर होता कि तमाम असहमतियों को सरकार द्वारा अपना पक्ष रख आकड़े जारी करते हुए जवाब दिया जाता. भाजपा जिन राज्यों में विपक्ष की भूमिका में है वहां सत्तापक्ष पर आरोप लगाती है. जाहिर है यह आरोप गलत व सही दोनों हो सकते हैं, ऐसे में सत्ता में बैठे व्यक्ति की जिम्मेदारी उन आरोपों पर अपनी सफाई देने की होनी चाहिए. यह बात योगी सरकार को भी बेहतर तरीके से समझने की जरुरत है. वह लोगों के सवालों या असहमतियों का जवाब दे न की आवाज को दबाए.