लखनऊ में बाटीचोखा कारोबार के जनक सीबी सिंह को माना जाता है. बलिया के नरायनगढ़ गांव के रहने वाले सीबी सिंह 1980 में अपने गांव से ठेकेदारी करने लखनऊ आए थे. यहां विधायकों के रहने वाली कालोनी दारुलशफा में वह रहने लगे थे.
2 साल मेहनत करने के बाद भी ठेकेदारी में सीबी सिंह को कोई लाभ नहीं हुआ. इस बीच उन्होंने अपने गांव में बनने वाली ‘बाटीचोखा’ बना कर खाना और खिलाना शुरू किया.
सीबी सिंह ने सोचा कि क्यों न बाटीचोखा बनाने का काम शुरू किया जाए. इस के बाद सीबी सिंह ने बाटीचोखा का धंधा शुरू कर दिया. दारुलशफा में एक दुकान ले कर 1,800 रुपए से बाटीचोखा की दुकान खोली. इस का नाम ‘बाबा वाली बाटीचोखा’ रखा.
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आज भले ही सीबी सिंह नहीं हैं, पर उन का शुरू किया यह कारोबार खूब फलफूल रहा है. दूसरे लोगों ने इस कारोबार को शुरू किया. बड़े रेस्त्रां से ले कर सड़क पर ठेलों में बिकने वाली दुकानों को मिला लें तो 200 से अधिक लोग इस कारोबार को कर रहे हैं.
उस समय लखनऊ और आसपास के शहरों में बाटीचोखा खाने का प्रचलन कम था. धीरेधीरे बाटीचोखा खाने का प्रचलन बढने लगा. पहले लोग इस को समोसा और पकौड़ी के मुकाबले कम पसंद करते थे. बाद में जब सेहत को ले कर लोग जागरूक होने लगे, तो समोसा पकौड़ी की जगह पर इस को ज्यादा पसंद करने लगे.
बाटी में, जिन लोगों को पसंद नहीं होता है, उस में चिकनाई नहीं लगाई जाती है, इसलिए सेहत की नजर से लोगों ने इस को खाना शुरू किया. समोसा पकौड़ी के मुकाबले यह ताजी होने के कारण भी खूब पसंद की जाने लगी.
“बाटीचोखा” को अब शादीविवाह और दूसरी पार्टियों में भी एक अलग डिश के रूप में खूब पसंद किया जाने लगा है.
सोंधी बाटी तो चटक चोखा
बाटीचोखा के कारीगर विजय साहनी कहते हैं, “बाटीचोखा 2 अलगअलग चीजें होती हैं. बाटी गोलगोल गेहूं के आटे की बनी होती है. इस के अंदर चनेे का बेसन भून कर मसाला मिला कर भरा जाता है.
“इस के बाद इसे आग में पका कर खाने के लायक तैयार किया जाता है. इस के साथ खाने के लिए चोखा दिया जाता है, जो आलू, बैगन और टमाटर से तैयार होता है.
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“बाटीचोखा के साथ प्याज और मूली का सलाद भी दिया जाता है. कुछ लोग इस में मक्खन लगा कर खाना पसंद करते हैं, तो कुछ लोग इस को ऐसे ही खाते हैं.”
विजय साहनी कहते हैं कि बाटी को तैयार करने के लिए कंडे और लकड़ी की आग को तैयार किया जाता है. इस के लिए लोहे की बड़ी कड़ाही में कंडे और लकड़ी को जला कर राख तैयार की जाती है. इसी में बाटी को डाला जाता है. जब बाटी पूरी तरह से पक जाती है, तो इस को खाने के लिए चोखा के साथ दिया जाता है.
बाटी पकाने में सावधानी रखनी पड़ती है. बाटी जलनी नहीं चाहिए. यह कच्ची भी न रहने पाए, इस का खास खयाल रखा जाता है.
बाटी बनाने के लिए आटा टाइट होना चाहिए. रोटी बनाने वाले आटे से इस को अलग रखा जाता है.
बाटी बनाने के लिए सामग्री
विजय साहनी बताते हैं कि 20 बाटी बनाने के लिए 1 किलो गेहूं का आटा, 250 ग्राम चने का सत्तू, 10 ग्राम अजवाइन,10 ग्राम कलौंजी, 50 ग्राम मिर्च, 20 ग्राम अदरक, 50 ग्राम लहसुन, 50 ग्राम सरसों का तेल, 50 ग्राम हरी मिर्च, 10 ग्राम काली मिर्च का प्रयोग करते हैं.
सब से पहले चने के सत्तू में यह मसाला मिला कर बाटी के अंदर भरने का मसाला तैयार कर लेते हैं. इस के बाद आटा गूंध कर गोलगोल बाटी तैयार करते हैं. सत्तू मिले मसाले को इस में भर देते हैं. तैयार बाटी को आग में पकने के लिए डाल देते हैं.
बाटी के बाद चोखा बनाने के लिए 500 ग्राम आलू, 250 ग्राम बैगन और 250 ग्राम टमाटर लेते हैं. इस में लहसुन, मिर्च और नमक स्वाद के हिसाब से डालते हैं. इस को मिला कर चोखा तैयार किया जाता है.
तैयार बाटी को चोखा और मूली, प्याज और अचार के साथ खाने के लिए दिया जाता है. जिन लोगों को मक्खन के साथ बाटी खाना पसंद होता है. वह मक्खन का उपयोग भी करते हैं.
कम लागत से शुरू होने के कारण बाटीचोखा का धंधा बहुत उपयोगी है. गांव से ले कर शहर और बाजारों में इस को कहीं भी बेचा जा सकता है.
भीड़भाड़ वाले इलाकों में इस की बिक्री खूब होती है. इस को बनाना भी बहुत मुश्किल नहीं होता है, इसलिए यह चोखा धंधा बन गया है.