पिछले 15, दिनों से गायत्री परिवार के लोगों के दिलों और शांति कुंज में एक अजीब सी अशांति थी कि अब क्या होगा उनके मुखिया प्रणब पंड्या हाल फिलहाल गिरफ्तारी से बच गए हैं लेकिन सवाल ज्यों के त्यों हैं.
9 मई को इसी वैबसाइट पर प्रकाशित मेरे लेख सकते में 16 करोड़ अनुयायी – क्या वाकई में बलात्कारी हैं डा प्रणव पंडया ? में विस्तार से घटना और उससे जुड़े पहलुओं की जानकारी दी गई थी. तब गायत्री परिवार के कई साधकों ने बहुत तीखी प्रतिक्रियाएँ दी थीं जिनका सार और अभिप्राय यह था कि शांति कुंज के प्रमुख डाक्टर प्रणव पंडया निर्दोष हैं और बदनाम करने की गरज से उन्हें फंसाया जा रहा है. यह एक साजिश है और मुझे ऐसा नहीं लिखना चाहिए था क्योंकि सवाल गायत्री परिवार और हिन्दू धर्म की प्रतिष्ठा का है.
हरियाणा की एक साधिका ने तो कोर्ट तक जाने की धमकी दी थी उसके हिसाब से यह यानि इस घटना पर लिखा जाना ही डा पंडया की मानहानि है . इन सभी प्रतिक्रियाओं का उल्लेख यहाँ कर पाना संभव नहीं लेकिन एक दिलचस्प बात (जिसके अपने अलग दूरगामी माने हैं) अधिकतर भक्तों ने कही थी कि प्रणव पंडया उनके गुरु नहीं हैं, उनके गुरु तो सिर्फ और सिर्फ श्रीराम शर्मा आचार्य हैं. पंडया तो दूसरों की तरह शांतिकुंज के एक साधारण कार्यकर्ता मात्र हैं जिन्हें वरिष्ठता की वजह से कई जिम्मेदारियाँ मिली हुई हैं . कुछ ने यह भी कहा कि हमारा उनसे कोई लेना देना नहीं.
ये भी पढ़ें- बसों को नही मजदूरों को “बे- बस” किया
अब नैनीताल हाइकोर्ट ने पीड़िता द्वारा दिल्ली में दर्ज कराई एफआईआर के मामले पर सुनवाई करते शांतिकुंज गायत्री परिवार के प्रमुख प्रणव पंडया की गिरफ्तारी पर रोक लगाते याचिकाकर्ता को पुलिस जांच में सहयोग करने के निर्देश दिये हैं. गौरतलब है कि डा प्रणव पंडया व अन्य ने हाइकोर्ट से अपनी गिरफ्तारी पर रोक व दायर एफआईआर को निरस्त करने की गुहार लगाई थी. यह सुनवाई नैनीताल हाइकोर्ट के न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की एकल पीठ में हुई . कोर्ट ने सरकार को जबाब दाखिल करने के निर्देश देते हुए अगली सुनवाई की तारीख 12 जून तय की है . इस मामले में प्रणव पंडया की पत्नी शैलबाला भी नामजद आरोपी हैं जिनहे श्रद्धा और सम्मान से शैल दीदी गायत्री परिवार के लोग कहते हैं.
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ की एक 25 वर्षीय युवती ने दिल्ली के विवेक विहार पुलिस स्टेशन में 5 मई को अपने साथ शांतिकुंज हरिदद्वार में हुई ज्यादती की नामजद रिपोर्ट लिखाई थी . इस पर दिल्ली पुलिस ने मामला हरिद्वार भेज दिया था. मामले की जांच के लिए मीना आर्य को नियुक्त किया गया है जिन्हें सभी दस्तावेज़ सौंप दिये गए हैं. पीड़िता 2010 में नाबालिग थी जब उसका पहली दफा बलात्कार प्रणव पंडया ने शांति कुंज हरिदद्वार के अपने कमरे में किया था. इसके बाद यह सिलसिला आम हो गया था लेकिन 2014 में पीड़िता की तबीयत बिगड़ी तो उसे उसके घर रायपुर भेज दिया गया इस धौंस के साथ कि अपना मुंह बंद रखना . बाद में भी पीड़िता को फोन पर इस आशय की धमकियाँ दी जाती रहीं.
इस मामले का एक दिलचस्प पहलू पाक्सो एक्ट भी है जो साल 2012 में वजूद में आया इसे प्रणव पंडया पर लागू होना चाहिए या नहीं इसे पंडया पर लागू करने न करने को लेकर पुलिस असमंजस में है क्योंकि 2010 में पीड़िता नाबालिग थी . देखा जाये तो यह कोई बहुत बड़ा मुद्दा नहीं है क्योंकि एफआईआर में पीड़िता ने अपना जन्म वर्ष 1995 लिखाया है इस लिहाज से वह 2013 तक 17 साल की यानि नाबालिग थी इस नाते पाक्सो एक्ट इस मामले में लागू होता है. अब यह आगे की जांच में साफ होगा कि पीड़िता का जन्म माह और दिनांक क्या है इससे यह तय होगा कि बलात्कार के वक्त यह बालिग थी या बालिग नहीं थी .
ये भी पढ़ें- बसों की जगह चल रहे दांव पेंच
पिछले लेख पर जिन अनुयायियों ने आपत्तियाँ उठाई इनमें कोई तर्क नहीं थे सिर्फ एक अंध आस्था कि प्रणव पंडया ऐसा नहीं कर सकते . क्यों नहीं कर सकते, इसका जबाब देने कोई तैयार नहीं . क्या दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक संस्थान का मुखिया होना और पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य का दामाद होना बलात्कारी न होने का सर्टिफिकेट है और अगर है तो कानूनन इस मामले के कोई माने नहीं रह जाते . मुमकिन यह भी है कि प्रणव पंडया बलात्कारी न हों लेकिन यह फैसला अब अदालत को करना है.
देश के धर्मस्थलों और आश्रमों में कौन से पाप नहीं होते इस पर भी सोचा जाना जरूरी है यह वाक्य सुनते ही किसी भी धार्मिक संस्था से जुड़े लोग तुरंत अग्रिम बचाव करते हुए कहते हैं और यह उनका हक भी है कि हमारे यहाँ ऐसा नहीं होता , हमारी तुलना उनसे न करें . यह एक अजीब सी बात , तर्क , आग्रह या चलन है जिस पर पूछा जा सकता है कि क्यों न करें और क्यों न कहें . दर्जनों ब्रांडेड नामी धर्म गुरु बलात्कार और अय्याशी की सजा जेलों में काट रहे हैं उनके नाम सभी जानते हैं और यह भी जानते हैं कि आरोप सिद्ध होने तक वे भी भगवान की तरह पूजे जाते थे . और दुख की बात तो यह है कि देश में व्यक्ति पूजा और भगवानबाद का आलम तो यह है कि कई बाबा और धर्मगुरु आरोप सिद्ध होने के बाद भी पूजे जाते हैं .
और महज आस्था धर्म कर्म और प्रतिष्ठा के तराजू पर किसी गरीब पिछड़े समुदाय की लड़की की अस्मत का जिक्र छिपाने की बात ही अन्याय स्थापित करने की मंशा लिए हुए और समाज को पिछड़ा साबित करती हुई है . प्रणव पंडया अगर बलात्कारी नहीं हैं तो गायत्री परिवार के लोगों को अदालती फैसले तक धैर्य रखना चाहिए . सच्चा न्याय ऊपर बाले की नहीं बल्कि लोकतान्त्रिक अदालतों में होता है .