इसमें कोई शक नहीं कि लॉकडाउन ने खासतौर से रोज कमाने खाने बालों की कमर तोड़ कर रख दी है. परंपरागत व्यवसायों से जीविका चलाने बाले मसलन कुम्हार , नाई , धोबी , मोची , लुहार और बढ़ई बगैरह जैसे तैसे यह वक्त फाँके कर गुजार रहे हैं तो दूसरी तरफ मेकेनिक प्ल्म्बर इलेक्ट्रिशियन आदि का भी पेट पीठ से लगने लगा है. समाज के इस मेहनतकश तबके के बिना आम लोग भी परेशानी में हैं. भीषण गर्मी में कोई कूलर सुधरबाने परेशान है तो कोई अपनी लीक होती पाइप लाइन से हलकान है. कोई पंचर पड़ी गाड़ी की तरफ निहारते आने जाने को मोहताज है तो कोई बढ़े हुये बालों में खुद को असहज महसूस कर रहा है .

कोई सरकार इनके लिए कुछ नहीं कर पा रही है और न ही ये स्वाभिमानी लोग कोई उम्मीद सरकार से रख रहे हैं. ये बस लॉकडाउन खुलने का इंतजार कर रहे हैं कि यह खत्म हो तो ज़िंदगी पटरी पर आए. लॉकडाउन के दिनों में एक बात जो शिद्दत से साबित हुई है वह यह है कि एक दफा बिना पूजा पाठ और भगवान के तो ज़िंदगी चल जाएगी लेकिन इन लोगों के बगैर जो रोजमरराई मुश्किलें पेश आ रहीं हैं उन्हें भुक्त भोगी ही बेहतर बता सकते हैं.

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ये मेहनती लोग सरकार से कुछ मांगते तो उसे जायज करार देने की कई बजहें हैं लेकिन समाज का वह वर्ग जो सदियों से पूजा पाठ कर बिना मेहनत के मालपुए खाता रहा है उसे कतई यह उम्मीद नहीं थी कि कभी भगवान के भी पट बंद होंगे और उनकी दुकान यानि मंदिर भी बंद हो जाएंगे और अब कोरोना के कहर के चलते हो ही गए हैं तो इन्हें भी फाँके करने की नौबत आने लगी है. धर्म कर्म के नाम पर एशोंआराम की ज़िंदगी जीने बाला पंडे पुजारियों का वर्ग अब सब्र खोने लगा है और सरकार से पैसे मांग रहा है तो उस पर तरस आना भी स्वभाविक बात यह तथ्य स्थापित करते हुये है कि ऊपर बाला कुछ दे सकता होता तो सबसे पहले अपने इन सेल्समेनो को देता.

इन दिनों सोशल मीडिया पर एक पत्र वायरल हो रहा है. ब्राह्मण महासभा सेवा समिति के उत्तरप्रदेश इकाई के अध्यक्ष पंडित हरिओम तिवारी गुड्डू ने मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ को लिखा है . इस पत्र में बड़ी मार्मिक शैली में आदित्यनाथ से आग्रह किया गया है कि लॉकडाउन के चलते सभी मठ मंदिर भागवत कथा तथा विवाह पूर्ण रूप से स्थगित हैं और जनता मंदिरों में नहीं जा पा रही है व चढ़ावा नहीं चढ़ रहा है तो पुजारी अपना जीवन यापन कैसे करें. पत्र में गाँव देहातों के महंतो पुजारियों का जिक्र करते हुये सभी ब्राह्मण पुजारियों की सूची बनाकर उन्हें  6-6 हजार रु प्रतिमाह दिये जाएँ की बात भी कही गई है जिससे वे जीवन यापन कर सकें.

इत्तफाक से ठीक इसी तरह की मांग मध्यप्रदेश से भी उठी है कि पंडे पुजारियों को गुजर करने पैसों के लाले पड़ रहे हैं. खासतौर से उनके लिए जो घर घर जाकर कर्मकांड और संस्कार बगैरह कराते हैं उन्हें दक्षिणा मिलना बंद हो गई है लिहाजा सरकार उन्हें आर्थिक मदद दे . मध्यप्रदेश पुजारी संघ के अध्यक्ष पंडित नरेंद्र दीक्षित के मुताबिक ऐसे पुजारियों की संख्या भोपाल में चार हजार के लगभग है और इतनी ही तादाद में कर्मकांडी ब्राह्मण हैं.

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एक और पंडित विष्णु राजौरिया के मुताबिक कर्मकांडी पंडितों की आमदनी का बड़ा जरिया तीज त्योहार , उदघाटन , शिलान्यास , गृह प्रवेश , मुंडन , जनेऊ और विवाह संस्कार जैसे धार्मिक मांगलिक अनुष्ठान बगैरह से मिलने बाली दक्षिणा है जो इन दिनों पूरी तरह बंद है . गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में सरकार हजारों पुजारियों को मंदिर की हैसियत के मुताबिक पगार भी देती है और कई मंदिरों के पुजारियों को 5 एकड़ तक जमीन भी खेती किसानी के लिए दे रखी है .

किस मुंह से मांग रहे–

ये पंडे पुजारी किस काम के पैसे सरकार से मांग रहे हैं बात सिरे से समझ से परे है. अब दान दक्षिणा नहीं मिल रही तो इसमें किसका क्या दोष, असल दोष तो उस भगवान का है जो इनके ही मुताबिक सबका पालनहार है इसलिए इन्हें पैसा उसी से मांगना चाहिए और सीधे तौर पर यह मान लेना चाहिए कि भगवान कहीं नहीं है. इसके बाद भी अब तक ये उसके नाम पर ठगी और चालाकी दिखाते दक्षिणा झटकते रहे थे लिहाजा कायदे से तो इन्हें अपने यजमानों का पैसा मय ब्याज के वापस करना चाहिए.

यह शुद्ध चालाकी और मुफ्तखोरी है गोया कि पूजा पाठ कोई समाजसेवा या देशसेवा का काम हो और इसके लिए सरकार इन्हें पाले पोसे. देश भर में कोई 1 करोड़ पंडे पुजारी इसी तरह दान दक्षिणा की खाते हैं जिसमें कोई मेहनत इन्हें नहीं करना पड़ती उल्टे आम लोगों के दिलो दिमाग में बैठा दिये इस डर को पुख्ता करना होता है कि बिना पूजा पाठ और कर्मकांडों के कोई काम किया तो घोर अनिष्ट हो जाएगा.

लेकिन कोरोना ने इनकी पोल खोल दी है. अब बारी आम लोगों की है कि वे भी आंखे खोलकर देखें कि बिना पंडे पुजारियों और दान दक्षिणा के भी काम इतमीनान से होते हैं बल्कि पहले से ज्यादा सुकून से होते हैं. दान दक्षिणा के चलते आम लोगों ने ही पंडे पुजारियों को निकम्मा बना दिया है लिहाजा अब इन्हें मेहनत की खाने एक मौका दिया जाये जिससे ये भी गैरत की ज़िंदगी जिए और खून पसीने की कमाई का जायका और लुत्फ ले सकें.

उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश में भगवा सरकारें हैं इसलिए इन्हें लग रहा है कि दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री इन्हें मुफ्त का पैसा मुहैया कराएंगे, हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर ऐसा हो भी जाये. इन पंडे पुजारियों को देश की बिगड़ती अर्थ व्यवस्था से कोई लेना देना नहीं , भूख प्यास से दम तोड़ते गरीब मजदूरों से इन्हें कोई सरोकार नहीं. ये कोई इन्कम टेक्स नहीं देते , समाज और देश के विकास में भी इनका कोई योगदान नहीं उल्टे पिछड़ेपन की बड़ी वजह ये हैं. ये तो बस ब्राह्मण होने भर के आधार पर सरकार से पैसा झटकना चाहते हैं जिससे मेहनत न करना पड़े.

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