मोदी सरकार के कार्यकाल में माब लिंचिंग की घटनाएं थमने का ना नहीं ले रही हैं. कभी मंदिर मस्जिद के नाम पर तो कभी भारत पाकिस्तान के नाम पर देश में शांति और सौहार्द्र का वातावरण खराब करने की घटनाएं आम हो गई हैं. महाराष्ट्र के पालघर में भीड़ द्वारा की गई साधुओं की हत्या को भी सांप्रदायिक रंग देने की खूब कोशिश की गई, लेकिन जल्द ही असलियत उजागर हो गई .इसी तरह मध्यप्रदेश के एक कोरोना पीड़ित के मेडिकल से भागने पर सोशल मीडिया पर  वातावरण कुछ इस तरह बन गया था कि यदि उसे कोरोना की बीमारी नहीं होती तो भीड़ उसे मार ही डालती.

19 अप्रैल 2020 को जबलपुर मेडीकल अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड में भर्ती कोरोना पाज़ीटिव जावेद खान पुलिस कर्मचारियों की लापरवाही के कारण भाग निकला.

अपनी जान की परवाह न करते हुए पुलिस की नाक के नीचे से भागने वाला चंदन नगर इंदौर निवासी 30 साल का यह युवक वही जावेद है,जिस पर इंदौर के चंदन नगर इलाके में जांच के लिए ग‌ई मेडिकल टीम पर पत्थर बरसाने का आरोप लगा है.

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इंदौर का यह चंदन नगर इलाका तभी सुर्खियों में आया था ,जब वहां रहने वाले वाशिंदों ने कोरोना टेस्ट न कराने के विरोध में मेडिकल टीम और पुलिस पर हमला बोला था. इंदौर पुलिस द्वारा जब जावेद पकड़ा गया तो  उसके विरुद्ध राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत मामला कायम कर जेल भेजा गया था. इंदौर प्रशासन ने ज़ावेद का कोरोना टेस्ट  किए बिना जल्दबाजी में उसे  9 अप्रैल को जबलपर जेल शिफ्ट कर दिया. 11 अप्रैल को जब जावेद की कोरोना रिपोर्ट पाज़ीटिव आई तो जबलपुर जेल में हड़कंप मच गया. आनन फानन में जावेद को जबलपुर मेडिकल कॉलेज के आइसोलेशन वार्ड में पुलिस की निगरानी में रखा गया था.

रविवार 19 अप्रैल को मेडिकल कॉलेज में आइसोलेशन वार्ड के मरीजों को जबलपुर सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में शिफ्ट करने का काम चल रहा था.अस्पताल के कमरे खोले गए थे.जावेद के कोरोना पाज़ीटिव होने के कारण पुलिस टीम भी जावेद से दूरी बनाकर निगरानी रखती थी . दोपहर 2 बजे के लगभग जावेद पुलिस को  चकमा देकर वहां से फरार हो गया.शाम 4 बजे जब ड्यूटी पर तैनात चार पुलिस कर्मियों ने उसे वार्ड से नदारत पाया तो उनके पैरों तले से जमीन खिसकने लगी.

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जबलपुर जिला प्रशासन ने जबलपुर की सीमाओं को सील करते हुए आसपास के जिलों में भी अलर्ट कर दिया .एस पी अमित सिंह ने ड्यूटी पर तैनात चारों पुलिस कर्मियों की लापरवाही पर उन्हें बर्खास्त कर दिया और फरार जावेद की गिरफ्तारी पर 11 हज़ार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया.

20 अप्रैल की सुबह साढ़े सात तेंदूखेड़ा पुलिस थाना से 7 किमी दूर रायसेन जिले की सीमा से लगे मदनपुर गांव में बने चैक पोस्ट से कुछ दूरी पर एक मोटरसाइकिल आकर रुकी तो चेक पोस्ट पर तैनात कर्मचारी मुस्तैद हो गये.मोटर सायकिल से आने वाला शख्स अपनी मोटरसाइकिल को किक मारकर स्टार्ट कर रहा था,मगर वह स्टार्ट नहीं हो रही थी. ड्यूटी पर तैनात फारेस्ट के वन रक्षक प्रिंस साहू ने युवक के पास जाकर देखा कि बढ़ी हुई दाढ़ी वाला यह युवक काफी परेशान लग रहा था. प्रिंस ने ध्यान से देखा कि कल वाट्स एप मैसेज में जावेद के फरार होने की जो फोटो डाली गई थी, उससे इस युवक का चेहरा मेल खा रहा था.अंतर केवल इतना था , उस फोटो में दाढ़ी नहीं थी. प्रिंस ने युवक को संदिग्ध जानकर तेंदूखेड़ा पुलिस थाने में सूचना देकर जब सख्ती से पूछताछ की तो युवक घबरा गया . इतने में तेंदूखेड़ा पुलिस थाने के एएसआई बसंत शर्मा और तहसीलदार पंकज मिश्रा भी चैक पोस्ट पहुंच गये थे . पुलिस टीम ने जब उससे पूछताछ की तो  उसने अपना नाम जावेद पिता नासिर खान बताया और जबलपुर मेडिकल कॉलेज से भागने की बात स्वीकार कर ली.

चन्दन नगर इंदौर पुलिस थाने के चंदू वाला रोड की गली नं 10 में रहने वाले जावेद के घर में उसकी मां, बहिन ,बीबी और दो लड़कियां हैं. इंदौर में कोरोना की जांच के लिए ग‌ई मेडिकल टीम पर  उसी इलाके के कुछ लोगों ने पथराव कर दिया . इस खबर को स्थानीय मीडिया ने संप्रदायिक रंग में रंग दिया . जावेद का घर मेन रोड पर होने के कारण पुलिस ने उससे पूछताछ की.जावेद और उसके परिवार के लोग मिन्नतें करते रहे कि उन्होंने पथराव नहीं किया है. पुलिस ने सन्देह के आधार पर उसे गिरफ्तार कर लिया.और रासुका के तहत जबलपुर जेल भेज दिया. जेल अधीक्षक ने जेल में रखने की बजाय उसे कोरोना परीक्षण हेतु विक्टोरिया अस्पताल भेज दिया और जब रिपोर्ट पाज़ीटिव आई तो मेडिकल कॉलेज के आइसोलेशन वार्ड में शिफ्ट कर दिया. रासुका में बंद होने और ऊपर से कोरोना पाज़ीटिव होने की वजह से जावेद बुरी तरह डर गया था. दस दिनों में ही उसे अपने बीबी, बच्चों की चिंता सताने लगी थी.

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कोरोना पीड़ित जावेद के मेडिकल कॉलेज से फरार होने की घटना दिन भर टीवी चैनलों पर छाई रही  और सरकार में बैठे भगवाधारी पंडे मजदूरों की त्रासदी को भूलकर इस घटना के लिए संप्रदाय विशेष पर दोषारोपण करते दिखाई दिए. लौक डाउन में पुलिस प्रशासन और तीन चेक पोस्टों पर तैनात अमला असहाय, लाचार मजदूरों को आगे बढ़ने से तो रोक देता है , परन्तु जावेद को रोकने में कितना लापरवाह रहा .

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