सोशल मीडिया पर एक मैसेज आजकल बहुत चल रहा है कि लॉक डाउन में रामायण और महाभारत का जीवन पर जिस तरह असर हो रहा उससे लगता है कि लोक डाउन के बाद ऑफिस जयेगे तो बोस को देख कर मुँह से यह ना निकल जाए कि “महाराज की जय हो ” असल मे सरकार भी यही चाहती है कि रामायण और महाभारत के जरिये धर्म की सत्ता को स्थापित किया जा सके।
राजा की याचना मे भी आदेश छिपा रहता है. रामायण और महाभारत की कहानियों में राजा और प्रजा के बीच संबंधों को बताया गया है. इसमें राजा के हर कार्य को भगवान का काम बताया गया है. रामायण और महाभारत में जीवन और मृत्यू के मर्म को भी बखूबी समझाया गया है. यही वजह है कि जब देश में करोनो का संकट आया रामायण और महाभारत का प्रसारण शुरू किया गया. जिससे जनता राजा और धर्म की शिक्षा में उलझ कर स्वास्थ्य और इंसान की जरूरतो पर सवाल ना कर सके.
रामायण और महाभारत के सहारे देश में धर्म के राज्य की स्थापना संभव हो सके. धार्मिक ग्रंथों में मरने के समय इंसान को जीवन और मृत्यू के गूढ़ रहस्यों को बताया जाता है. धर्म में कई तरह के कर्मकांड भी इसके लिये बने है. मोक्ष की प्राप्ति के लिये धार्मिक कहानियां को सुनने का कर्मकांड भी किया जाता है. रामायण और महाभारत दोनो धार्मिक ग्रंथो में जीवन के प्रति मोह पर दाशर्निक अंदाज में व्यख्यान दिया गया है.
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महाभारत में कृष्ण ने गीता का जो भी ज्ञान दिया है वह जीवन के प्रति मोह को खत्म करता है. रामायण और महाभारत दोनोग्रंथो में राजा और जनता के बीच संबंधों को भी बताया गया है.
जीवन और मृत्यू का सार
कोरोनावायरस के संकट भरे दौर में जब पूरी दुनिया अपने देश के वैज्ञानिकों को बायरस से निपटने के लिये दवाये बनाने के लिये तैयार कर रही उस समय भारत में अपने देश के लोगों को रामायण और महाभारत दिखाने में लग गई. वैसे तो यह दोनो ग्रंथ काफी लंबे समय तक चलने वाले थे. पर इसको इस तरह से प्रसारित किया जा रहा कि जीवन और मृत्यू के सार और राजा प्रजा के बीच के कर्तव्य वाली कहानियो के एपिसोड जरूर दिखाई दे जाये.
असलमें धर्म ही वह चाशनी है जिसमें लपेट कर कोई भी चीज जनता को परोसी जा सकती है. किसी को भी इस पर कोई आपत्ति भी नहीं होती है.
धर्म की चाशनी में डूबी मौत का भी खौफ खत्म हो जाता है. धर्म के प्रचार के लिये ऐसे ऐसे उदाहरण पेश किये जाते है कि जनता सच और झूठ के अंतर को नही समझ पाती है.
मंदिर जरूरी या अस्पताल:
सोशल मीडिया पर एक संदेश भरा मैसेज आता है. जिसमे यह बताया जाता है कि आज के इस दौर में मंदिर की जरूरत है या अस्पताल की. मैसेज में कहा जाता है कि विदेशों में अस्पताल सबसे ज्यादा है. इसके बाद भी वहां पर मरने वालों की संख्या सबसे अधिक रही है. ऐसे में समझने की बातहै कि हमें अस्पताल जरूरत है या मंदिर की.
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यह मैसेज उस समय वायरल किया गया जब कोरोना से लडने में अस्पतालों की भूमिका अधिक बताई जा रही थी. उस समय कहा गया था कि संकट के जिस समय में मंदिरों के दरवाजे लोगों के लिये बंद हो गये तो अस्पतालों के दरवाजे खुले थे ऐसे में हमें मंदिर नहीं अस्पताल चाहिये. मदिरों पर उठे सवालों से धर्म की सत्ता प्रभावित न हो जाये इसके लिये जवाब में विदेशों में कम मंदिर और ज्यादा मौत के सवाल का उठाते हुये मैसेज सोशल मीडिया पर वायरल होने लगे. कोरोना संकट के समय में धर्म की सत्ता बनी रहे इसके लिये थाली बजाने से लेकर दीये जलाने तक के काम किया गया.
इसका उददेश्य कोरोना संकट में लगे कर्मचारियों का उत्साह बढाना बताया गया पर असल में इसका उददेश्य जनता में यह देखना था कि अभी राजाऔर धर्म दोनो में उनका यकीन कायम है या नहीं.