कोरोना से देश की जनता को बचाने के लिए केंद्र सरकार ने पूरे देश में 21 दिन का लोक डाउन कर दिया है। यह लोक डाउन 14 अप्रैल 2020 तक चलेगा.हालात को देखते हुए सरकार इस अवधि को आगे भी बढ़ा सकती है.ऐसे में सबसे बड़ी दिक्क्क्त कारोबार की है.जरूरी सामान तैयार करने वाली फैक्ट्रियों को वैसे तो बन्द नही किया गया है.पर वँहा मजदूर ही नही जा पा रहे है जिससे वँहा काम नही हो पा रहा है.

दूध, पनीर, खोया और मक्खन जैसी जरूरी उत्पाद करने वाली कम्पनी के डायरेक्टर राहुल पांडये कहते है “हमारी फैक्ट्री के अंदर ही मैनेजर से लेकर वर्कर और खुद हमारा परिवार रहता है. सरकार के नियमो के अनुसार हम फैक्ट्री चलाने को तैयार भी है पर सबसे अधिक दिक्क्क्त फैक्ट्री तक गांव गांव से दूध लाना है. इसके अलावा जलाने के लिए लकड़ी कोयला की जरूरत है.यह नही मिल रहा है। जनता में दूध की खपत तो है पर पनीर, खोया और मक्खन की क्या खपत होगी अंदाजा लगाना कठिन है. ऐसे में समझ नही आ रहा कि फैक्ट्री चलाये तो कैसे और अगर बन्द करते है तो मजदूरों को कैसे रोजगार दे”.

लखनऊ में जिम चलाने वाली आस्था मिश्रा कहती है “हमारे यँहा 20 लोग काम करते हैं. लोग अब जिम में आयेगे नहीं. ऐसे में हम अपने वर्कर को सेलिरी कैसे देगें ? हर बिजनेस को चलाने के लिए बैंक से लोन लिया गया है.उसकी किश्त कैसे भरेंगे। जगह का किराया कैसे देगें ? इसके साथ बिजली, पानी और इंटरनेट का किराया कैसे देगें. इस तरह की बहुत परेशानियां है.

ये भी पढ़ें-#coronavirus: सब्जियों फल और जरूरी वस्तुओं की कीमतें बढ़ी

“काशवी फैशन स्टोर” की नेहा सिंह बताती है “नोटबन्दी, जीएसटी और फेस्टिवल सीजन में बिजनेस पूरी तरह से टूटा हुआ था. अब कॅरोना के कारण बाजारों के बन्द होने से बहुत खराब हालत हो गई है.कपड़े की सिलाई और कढ़ाई में लगे कारीगर घरो पर बैठ गए है. यह लोग मजदूर है इनके पास पैसा नहीं होता.ऐसे में यह एक माह में भुखमरी की कगार पर पहुँच गए है.

सरकार ने भले ही फैक्टरीयो के बंद करने का आदेश ना दिया हो पर हालात ऐसे हो गए है कि यँहा पूरी तरह से बंदी हो गई है. कुछ फैक्ट्रियों में “करोना” संकट का बहाना बना कर वर्कर को परेशान कर उसको जॉब से निकालने का काम भी किया जा रहा है. आजमगढ़ की एक चीनी मिल में काम करने वाला वर्कर अंजुमन कहता है कि एक तरफ पुलिस सड़कों पर चलने नही दे रही दूसरी तरफ चीनी मिल प्रशासन काम पर ना आने की धमकी दे कर लोगो को काम से निकालने की जुगत में लगा है.

ये भी पढ़ें-#coronavirus: लंबी कवायद के बाद भी नही मिला सरकारी इलाज

लोग भले ही करोना का शिकार होने के डर से घर मे कैद हो पर उनकी असल चिंता रोजीरोजगर की है.ज्यादातर निजी कर्मचारी अपने गांव घर से दूर रोटी रोजी की तलाश में दूसरे शहरों में रहने आये है. वो बिना वेतन के किराए के घर, खाने, दवा और अपनी

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...