बदलते समय के साथ माता पिता को बेटी के साथ बेटों को संस्कार सिखाये जाने की पहल शुरू कर देनी चाहिए. वजह अब चाहे बेटा हो या बेटी, सबको समान शिक्षा, फिर नौकरी और जीवन की भागदौड़ करनी पड़ती है. जहां परिवार में बेटा-बेटी, बहू-दामाद सभी को बाहर के साथ घर के भी काम करने पड़ते हैं और अगर ये बचपन से ही सीखा दिए जाए तो खुद उनके लिए और उनके लाइफ पार्टनर के सुकून भरा होता है.

बचपन में जो भी सीखा दिया जाता है वो जिंदगी भर साथ देता है. खुद घर में पुरुष को भी कुछ न कुछ घर के काम में हाथ बंटाना चाहिए तो बेटे स्वतः ही सीखने लग जाएंगे. केवल घर के काम ही नहीं बल्कि घर में बड़ों की इज्जत करना, बहनों के साथ प्यार से पेश आना और महिलाओं के प्रति संवेदनशील और गरिमामयी सोच रखना भी सिखाये.

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महिला अपराध की एक बड़ी वजह भी यही है कि पुरुष महिलाओं के लिए न तो अच्छी सोच रखते हैं और न ही संवेदनशील होते हैं. उन्हें कई बार तो आभास तक नहीं होता है कि उनकी किसी भी हरकत जो मजे, मस्ती के लिए की गई है. वो लड़कियों के मन पर कितना बुरा प्रभाव डालती है. कई बार छोटी ही उम्र में किसी बुरे अनुभव से गुजरने के बाद लड़कियां जिंदगी भर उस तकलीफ से मुक्त नहीं हो पाती है. केवल किसी भी छेड़छाड़ या अपराध की सजा दे देने भर से अपराध नहीं थमने वाला है. इसके लिए परवरिश पर भी ध्यान देना होगा.

लड़कों को स्कूल से ही लड़कियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाए, ये बताया जाना चाहिए और साथ ही घर में माता पिता को महिलाओं के प्रति संवेदनशील होना, उनसे अच्छा व्यवहार करना सिखाया जाना चाहिए. ये शिक्षा हर दिन के साथ दी जानी चाहिए. समाज में अच्छा-बुरा जो भी दिख रहा हो उसे उदाहरण के तौर पर पेश करते हुए चर्चा करनी चाहिए.

अब लड़कों को भी लड़कियों की तरह घर के काम में हाथ बटाना सिखाया जाना चाहिए. घर में केवल बेटियों से ही काम न कराकर बेटे बेटियों दोनों को काम बांट दें. आगे चलकर जब बच्चे बाहर जाएंगे तो ये काम करने की आदत और काम करने का तरीका पता होने से खुद उनके लिए भी सुकून भरा होगा, क्योंकि हर समय हम मेड के सहारे नहीं रह सकते हैं.

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बेटों को अपने महिला मित्र, बहन से बात करते वक़्त जरूर ध्यान दे कि उनका लहजा और व्यवहार का तरीका कैसा है? कुछ ठीक न लगे तो उसी वक़्त टोककर समझाये.

खुद माता पिता को भी ये ध्यान रखना चाहिए कि आपस में उनका व्यवहार और बातचीत करने का तरीका अच्छा होना चाहिए क्यू कि घर में जो भी कुछ अच्छा/बुरा होता है बच्चे भी वही सीखते हैं.

देखा गया है कि जिस घर में घरेलू हिंसा और महिलाओं के साथ बुरा बर्ताव होता है वहाँ लड़के भी वही सोच के साथ बड़े होते हैं वही आगे चलकर अपनी बहन /पत्नी या अन्य महिलाओं के साथ बुरा बर्ताव और हिंसा करते हैं.

लड़कों में महिलाओं के प्रति संवेदना का पाठ पढ़ाया जाना जरूरी है. उन्हें पता होना चाहिए कि कोई भी महिला गलत सहने और बर्दाश्त करने के लिए नहीं होती है और उनके पास ठीक वैसी ही भावनाएं और इच्छाएं है जैसी लड़कों के पास हैं. अब वो भी बाहर निकलना, घूमना, फिरना चाहती है जो उनका हक है. तो ऐसे में रात में भी और सुनसान जगहों पर भी लड़कियां दिखेंगी जिसे देखकर उन्हें ये नहीं सोचना है कि रात में लड़की आखिर कर क्या रही है?

लड़कियों के लिए असुरक्षित माहौल में हम बेटियों को निडर रहना, आत्मरक्षा के तरीके तो सीखा रहे हैं लेकिन केवल इससे ही लड़कियां सुरक्षित नहीं रह सकती है, लड़कों को भी उनकी सीमा और लड़कियों के साथ मर्यादा में रहकर बातचीत का तरीका सिखाया जाना चाहिए. अगर हम अपने अपने घर के लड़कों/पुरुषों को महिलाओं के साथ कैसे पेश आया जाए ये सिखा दें तो अपराध में खुद ही कमी आएगी और बेटियों के लिए माहौल सुरक्षित हो जाएगा.

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