आमतौर पर सामान्य प्रजाति के टमाटरों का उत्पादन 400 से 600 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है, लेकिन अब टमाटर की खेती करने वाले किसानों के लिए कानपुर के चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने एक ऐसी नई किस्म तैयार की है, जिस से प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 1,200 से 1,400 क्विंटल तक ली जा सकती है. टमाटर की इस किस्म को नामधारी 4266 का नाम दिया गया है, जो अब किसानों के लिए उपलब्ध है.

चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के संयुक्त निदेशक प्रोफैसर डीपी सिंह ने बताया कि आमतौर पर टमाटर की खेती में निराई, गुड़ाई, बोआई, सिंचाई और खाद वगैरह के खर्च में तकरीबन 50,000 रुपए प्रति हेक्टेयर का खर्च आता है.

उन्होंने बताया कि हम पौलीहाउस में नामधारी 4266 प्रजाति के टमाटर की खेती कर सकते हैं. इस किस्म की खूबी यह है कि इस में रोग व कीट नहीं लगते हैं और टमाटर की फसल लगभग 45 दिनों में तैयार हो जाती है.

उन्होंने आगे बताया कि सितंबर व अक्तूबर माह में इस की नर्सरी लगाई जाती है और दिसंबर से फरवरी माह के बीच फसल तैयार हो जाती है. प्लास्टिक ट्रे में पौध तैयार करने के लिए कोकोपिट यानी नारियल के छिलके का बुरादा वर्मीकुलाइट व परलाइट को 3:1:1 के अनुपात में मिला कर बनाया जाता है. इसे पौध तैयार करने वाली प्लास्टिक ट्रे में डाल कर बीज द्वारा पौध तैयार की जाती है. इस से मिट्टी में मौजूद पोषक तत्त्व पौधों को मिलता है. इस की सिंचाई के लिए भी ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती.

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इस किस्म के टमाटर का वजन सामान्य से ज्यादा : जानकारी में बताया गया कि इस का परीक्षण कामयाबी पूर्वक हो गया है और आसपास के जिलों से किसानों को पौलीहाउस में टमाटर की फसल को देखने को बुलाया गया है. बाहर के किसान भी इस की नर्सरी ले जा सकते हैं.

यह प्रजाति बेलटाइप की है. पौलीहाउस में इस की खेती इसलिए करते हैं कि इस में तापमान लता के हिसाब से होता है. एक गुच्छे में 4 से 5 और पूरे पौधे में 50 से 60 ही होते हैं. टमाटर का वजन भी 100 से 150 ग्राम है, जबकि सामान्य टमाटर का वजन 50 से 80 ग्राम का ही होता है. यह किसानों के लिए बहुत लाभकारी है.

इस प्रजाति को उद्योग के रूप में अपना सकते हैं. प्रोफैसर डीपी सिंह ने बताया कि आने वाले दिनों में दूसरे विश्वविद्यालयों व कालेजों के छात्रों को इस प्रजाति की खेती का प्रशिक्षण दिया जाएगा. इस के अलावा उद्यमिता में रुचि रखने वाले नौैजवान भी इस का प्रशिक्षण हासिल कर इसे उद्योग के रूप में अपना सकेंगे.

उन्होंने कहा कि हम अपने यहां से प्रशिक्षित छात्रों को दूसरी जगह इस विधि को सिखाने के लिए भेजेंगे, जिस से आगे चल कर वे किसी पर आश्रित न रहें.

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कैसे लें टमाटर की अधिक पैदावार

टमाटर के पौधों की रोपाई समय पर की जानी चाहिए, वरना पैदावार पर बुरा असर होता है. अच्छी किस्म के बीजों की बोआई समय पर करें. साथ ही, पौधों को लाइनों में उचित दूरी पर लगाना चाहिए. रोपाईर् सुबह या शाम के समय करनी चाहिए. पौध रोपण के साथ हलकी सिंचाई करनी चाहिए, ताकि पौधों की भलीभांति जमीन में पकड़ बन जाए.

टमाटर के प्रमुख तनों पर कल्ले निकल आने पर उन्हें ऊपर से हटा दें. ऐसा करने से पौधों में अच्छा फुटाव होता है और अनेक नई शाखाएं बनती हैं जिन पर अधिक फल लगेंगे.

टमाटर की फसल में अनेक खरपतवार उग आते हैं, उन की रोकथाम जरूरी है अन्यथा पौधों की बढ़वार रोक कर खुद खेत में हावी हो जाते हैं और खेत की जमीन से नमी, पोषक तत्त्वों की कमी हो जाती है. कीट और रोगों की रोकथाम के लिए निराईगुड़ाई जरूर करनी चाहिए. निराईगुड़ाई करने से खरपतवारों की रोकथाम तो होती ही है, साथ ही, जमीन में हवा का आनाजाना बना रहता है जो पौधों व जड़ों का विकास करते हैं.

सही समय पर सिंचाई करनी चाहिए. यदि बारिश के मौसम में टमाटर के खेत में अधिक पानी जमा हो जाए तो उसे निकालना चाहिए, वरना फसल पीली पड़ कर मर जाएगी.

टमाटर की फसल में अनेक प्रकार के कीट व बीमारी का प्रकोप भी होता है. इस के लिए जैविक तरीकों से रोकथाम करें. अगर फिर भी बात नहीं बन रही है तो विशेषज्ञ को पीडि़त फसल दिखा कर उचित मात्रा में उचित रसायन का प्रयोग करें.

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