बैंक शब्द की उत्पत्ति इटैलियन शब्द बेंको से हुई. बेंको का मतलब बैंच होता है, जिस पर बैठ कर रुपएपैसे के लेनदेन की बात की जाती है. यानी, आजकल के सेठ लोगों की गद्दी या गल्ला.
कर्ज लेने के लिए बैंक लोन एक बेहतरीन तरीका है अपने जीवन में वह सब खरीदने, बनाने, और पाने का, जिस के आप ने सपने देखे हों. आप बैंक ऋ ण लेते हैं क्योंकि हर महीने आप के पास छोटी रकम तो होती है पर एकमुश्त बड़ी रकम नहीं होती.
रिटेल ऋण
आप ने हर बैंक में लगा यह इश्तिहार जरूर देखा होगा – ‘लोन लीजिए, सपने पूरे कीजिए.’
यह इश्तिहार रिटेल लोन यानी घरगृहस्थी से जुड़े लोन के लिए होता है. सभी बैंकों के व्यापार का आधार उस का व्यापक जनाधार होता है. बड़े कर्जों के लिए बैंकों की रणनीति बिलकुल अलग होती है और विशेष शाखाएं भी.
जितना ज्यादा लोन पोर्टफोलियो का आधार बड़ा होगा, उतना ही बैंकों का जोखिम, बंट कर कम हो जाएगा. सीधे शब्दों में कहें तो, एक व्यक्ति को एक करोड़ रुपए का लोन देने से अच्छा है 10 लोगों को 10-10 लाख रुपए दिए जाएं. अब दसों लोग एकसाथ डिफौल्ट तो नहीं होंगे. रिस्क बंट गया और बैंक ज्यादा सुरक्षित महसूस करने लगे.
निजी बैंकों का फंडा
कर्ज के कारोबार में निजी बैंक खूब आए, जैसे आईसीआईसीआई बैंक, सिटी बैंक, एचडीएफसी बैंक आदि.
क्रैडिट कार्ड को इन्होंने ही बाजार में उतारा और लोग जाल में फंसते चले गए. यह भी एक तरह का क्लीन लोन ही था. लोगों ने इसे फ्रीफंड का पैसा समझ कर खूब उड़ाया और निजी बैंकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा. क्रैडिट कार्ड का प्रचलन कम हुआ और डैबिट कार्ड सब के हाथों में आ गया.
शुरू में इन बैंकों की शाखाएं महानगरों तक ही सीमित थीं. शहर, कसबा, देहात में ये नहीं उतरे थे. इन के पास आईटी का बेस अच्छा रहा. युवा स्टाफ और सब से महत्त्वपूर्ण इन का ग्राहकवर्ग उच्चमिडिल और उच्च श्रेणी का था. शाखाओं में भीड़ न के बराबर थी. इसलिए सेवाएं उच्चस्तरीय और निर्णय तुरंत होते थे. यहां लालफीताशाही और हरामखोरी बेहद कम थी.
फंड मैनेजमैंट बढि़या होने से ये डिपौजिट्स पर ब्याजदर राष्ट्रीयकृत बैंकों से थोड़ी ज्यादा रख कर ग्राहकों को लुभाते और होम सर्विस भी देते रहे.
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बैंकों की बदलती कर्ज नीति
धीरेधीरे सरकारी बैंकों ने भी अपने उच्चतम स्तर पर रिटेल लोन के अलग विभाग खोले और विज्ञापन पर जम कर खर्च किया जाने लगा. बैंकों में रिटेल मेगामार्ट जैसा शुरू हो चुका था.
होम लोन, कार लोन ये 2 क्षेत्र बैंकों और ग्राहकों के सर्वप्रिय थे और आज भी हैं. बैंकों ने बिल्डर्स और कार निर्माताओं से टाईअप किया ताकि दोनों को फायदा हो सके.
आइए, सस्ती और मनमाफिक किस्तों पर लोन लीजिए और आप भी मुसकराइए.
बैंक लोन और मिडिल क्लास
पहले बैंक रिटेल लोन देने में आनाकानी करते थे. उन के लोन कृषि, लघु उद्योग, छोटे व्यवसाय और ट्रक, लारी, टैंपो, टैक्सी, बस, आदि खरीदवाने के लिए दिए जाते थे. शायद देश और समय की यही मांग थी. वह 70 का दशक था, बैंक सोशल बैंकिंग सीख रहे थे.
शुरू में बैंक मिडिल क्लास घरों में घुसने से भी कतराते थे. उस समय इस तबके पर बैंकों का विश्वास कम था. इस का मुख्य कारण कम तनख्वाह थी. किस्त जमा करेंगे या नहीं, यह सवाल भी था.
यानी बैंकों के अनुसार, रिपेमैंट कल्चर शायद उस समय मिडिल क्लास में नहीं था. पर बात वही थी, पहले मुर्गा आया या अंडा. लोन दोगे तभी तो रिपेमैंट की बात आएगी. धीरेधीरे यह मिथ भी टूट गया और सारे बैंक बड़े पैमाने पर समाज के हर तबके व व्यवसाय के लिए अलगअलग प्रोडक्ट ले कर बाजार में उतर आए.
आजीवन कर्जदार
कर्ज लेना आसान है पर अदायगी मुश्किल. यह कड़वा सच है. कर्ज लेने वाले के मन में अपने समीकरण चलते हैं, जो बैंक के नियमों से मेल नहीं खाते.
पहला समीकरण कि हाउसिंग लोन के प्रोजैक्ट में घर का एक रुपया न लगे, यानी पूरा खर्चा बैंकलोन में एडजस्ट हो जाए. दूसरा समीकरण, बाइक भी इसी लोन से निकल आए, तो मजा ही आ जाए. तीसरा समीकरण, कुछ कैश भी हाथ में आ जाए.
यानी कि लोन के दुरुपयोग की नींव कर्जदार ने खुद ही डाल दी. यानी, जरूरत से ज्यादा लोन लेना. अब इस में बैंक की गलती क्या है? नीयत में खोट कर्जदार की हुई कि नहीं? चलिए अब लोन मिल गया तो अदायगी मय ब्याज के शुरू होनी है. ईएमआई यानी इक्वेटेड मंथली इंस्टौलमैंट जिस में मूल और ब्याज दोनों शामिल होते हैं, अगर सैलरी से काट लिया जा रहा है, तब तो मजबूरी है, पर अगर खुद से देना हो तो समीकरण फिर बदल जाता है.
अदायगी की रकम आ जाएगी खर्चों की लिस्ट में सब से आखिरी पायदान पर. कभी मेहमानों का खर्चा तो कभी हारीबीमारी, कभी बच्चों को ऐडमिशन तो कभी डोनेशन. कुछ नहीं, तो सैरसपाटे. यानी, बैंक महोदय खड़े रहेंगे सब से पीछे.
आप ही बताइए, इस में बैंक की कोई गलती है क्या? आप भूलना चाहते हैं, पर बैंक तो आजीवन आप को नहीं भूलेगा बेचारा. नौकरी उस की भी है.
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पहले बैंकसाहब दाता थे, अब याचक बन कर किस्त की गुहार लगा रहे हैं. भीख मांग रहे हैं. याद रखिए, बैंक न छोड़ता है और न ही भूलता है.
यह शुद्ध आय नहीं
बहुत से लोग बैंक लोन ले कर छोटेमोटे रोजगार खोलते हैं, कुछ चालू व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए लोन लेते हैं. नए युवा उद्यमी एक गलती कर जाते हैं. दुकान के टोटल कलैक्शन को आय मान बैठते हैं, जो कि गलत है. बिजली, पानी, मजदूरी, तनख्वाह, दुकान का भाड़ा, टेबलकुरसी, कंप्यूटर लाइटफिटिंग, मरम्मत, रखरखाव, कच्चे माल, इंक, पैट्रोल खर्च, स्टेशनरी, इनकम टैक्स, डैप्रिसिएशन और सब से बड़ी बात बैंक की ईएमआई को वे खर्चा ही नहीं मानते.
यहीं पर वह धोखा हो जाता है और सारी इकोनौमिक्स फेल हो जाती है. महीनेभर में हुई कुल प्राप्ति में से इन मदों पर हुए खर्च को घटाने के बाद जो बचे, वह आप की शुद्ध आय होगी. दुकान पर जितने नोट मिलें, वे प्रौफिट नहीं होते.
एनपीए
नौन परफौर्मिंग एसेट्स यानी जिस ऋ ण खाते में पिछले 3 महीने से न ब्याज जमा किया गया और न ही मूल या दोनों में से कोई एक डिफौल्ट किया गया, तो ऋ ण खाता एनपीए हो जाएगा. यानी अगर ईएमआई एक हजार रुपए महीने की है तो 3 हजार रुपए जमा न करने पर लोन की पूरी बकाया रकम, जो हो सकता है 3 लाख रुपए हो, एनपीए हो जाएगी. 3 हजार रुपए के डिफौल्ट पर 3 लाख रुपए का एनपीए बैंक को दर्ज करना पड़ेगा.
अब आप समझ गए होंगे कि एनपीए की पूरी राशि डिफौल्ट नहीं होती. बस, कुछ किस्तें न दिए जाने के कारण एनपीए का पोर्टफोलियो करोड़ोंअरबों तक चला जाता है.
बैंक अब चाह कर भी आप के ऋ ण खाते को हैल्दी कैटेगरी में नहीं रख पाते. कंप्यूटर हर तिमाही एक लिस्ट निकाल कर बैंक को आप के कर्ज की सेहत बताता रहेगा.
आप का ऋ ण एनपीए हो गया है तो अब बैंक अपनी नजरें टेढ़ी कर लेगा. सिबिल में आप का नाम आ जाएगा जो बाकी के बैंकों में भी पहुंच जाएगा, ताकि आप की करतूत वे भी देख लें. यानी, लोन के दरवाजे आप के लिए बंद. मतलब यह है कि लेने के देने पड़ने वाली कहावत चरितार्थ हो जाएगी.
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एनपीए होने के कारण
एक तो वह कारण है जिस की चर्चा विस्तार से ऊपर की गई. यानी ऋण लेने वाले की नीयत में खोट यानी विलफुल डिफौल्टर. दूसरा कारण, प्राकृतिक आपदा, बाजार में उतारचढ़ाव, राजनीतिक या सामाजिक उथलपुथल अर्थात वे सभी कारण जिन पर कर्जदार का वश नहीं होता, अर्थात नौन विलफुल डिफौल्टर.
दूसरी परिस्थिति में सरकार या बैंक कर्जदारों को किस्तों में छूट, समय आगे बढ़ाना, ब्याज में छूट आदि मदद करने के लिए आगे आते हैं ताकि कर्जदार को राहत दी जा सके और वह फिर से यथावत अपना धंधा कर सके.
ओटीएस
वन टाइम सैटलमैंट के अंतर्गत कर्जदार और बैंक अधिकारी बैठ कर एक समझौता करते हैं जो दोनों को मान्य
होता है. इस के अंतर्गत, नियमानुसार अनअप्लाइड ब्याज को बैंक छोड़ देता है. कर्जदार या जमानती या वारिस दूसरे स्रोतों से पैसे जमा कर के एनपीए खाते में पैसा डाल कर उसे बंद कर के नजात पा जाता है. ऐसा अकसर ऋ णी की मृत्यु की हालत में या दूसरे नौन विलफुल डिफौल्ट की हालत में किया जाता है ताकि बैंक और कर्जदार दोनों ही इस त्रासदी से मुक्ति पा सकें. बैंक की रिकवरी पौलिसी में इस संबंध में स्पष्ट दिशानिर्देश दिए हुए होते हैं.
बैंकिंग का मूल तत्त्व
अब आप ही बताइए, बैंक ने आप पर विश्वास किया, लोन दिया, आप ने लोन वापस नहीं किया, फिर बैंक ने वापसी का नोटिस भेजा, तो बैंक अधिकारी भ्रष्ट कैसे हो गए? यह सच है कि एनपीए होने में कर्जदार की नीयत का बहुत बड़ा हाथ होता है.
बैंक हो या कोई और आर्र्थिक संस्थान, चलता तो ईमानदार और कर्मठ कर्मचारियों से ही है. बुरे, भ्रष्ट लोग न हों, तो सोने पे सुहागा.
बैंकिंग का मूल तत्त्व ही है विश्वास, भरोसा, ट्रस्ट. इसे दोनों को ही नहीं तोड़ना है. बैंक आप के डिपौजिट्स के साथ धोखा नहीं करता, आप बैंक के कर्ज के साथ न करें. बस, बन गई बात.
ये जरूर करें
अकसर लोग बैंक से लोन लेने के बाद बैंक से नाता तोड़ लेते हैं, जो कि एकदम गलत है. बैंक आप के बिजनैस का सीनियर फाइनैंशियल पार्टनर होता है.
उसे समयसमय पर बिजनैस की स्थिति की जानकारी देते रहें. चाहे अच्छी खबर हो या बुरी, बैंक को बताते रहें. ऐसा करने पर बैंक को एक तरह की कम्फर्ट फीलिंग आती है कि आप अपने लोन और अदायगी को ले कर संजीदा हैं.
बैंक जो भी वांछित सूचना जैसे बीमा, स्टौक स्टेटमैंट आदि मांगे तो तुरंत दें.
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अपने स्तर पर बिजनैस संबंधी खाते जरूर रखें जिन में खरीदबिक्री को दिनवार दर्ज करें. लेनदेन पारदर्शी रखें. इस से आप को ही मदद मिलेगी.
सब से अहम बात, देय तारीख पर किस्त जरूर जमा करें, यदि देर हो रही है तो व्यक्तिगत रूप से बैंक को सूचित अवश्य करें, गायब तो बिलकुल भी न हों. ऐसा करने से आप को फायदा ही होगा.
अगर बिजनैस में कोई बड़ी रुकावट आ गई हो तो उस की लिखित सूचना प्रूफ के साथ बैंक को तुरंत दें ताकि उसे यदि कोई मदद करनी हो तो वह कर सके या आप की सूचना आप की फाइल में मौजूद रहे और वक्तजरूरत काम आए.