देश को पौराणिक युग में पहुंचाने और पौराणिक परंपराओं के अनुसार चलाने की जिद लिए एक बहुत बड़े वर्ग की इच्छाओं व अंधआस्थाओं का आदर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में अयोध्या की बाबरी मसजिद को नष्ट करने को गैरकानूनी कहने के बावजूद वह जगह उस को नष्ट करने वालों को मंदिर बनाने के लिए दिए जाने का दोमुखी निर्णय सुनाया है. अयोध्या प्रकरण का तो अंत हो गया पर देश की मानसिक बीमारी के कीटाणुओं की बढ़ोतरी का एक नया चैप्टर शुरू हो गया है.
सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या के मामले में निर्णय से साफ है कि एक भीड़ को हक है कि अपनी अंधआस्था को पूरा करने के लिए वह किसी भी कानून, किसी की संपत्ति, किसी दूसरे की अंधआस्था को कुचल दे और यदि सरकार उस का साथ दे, तो उसे सभी संस्थाएं सहयोग देंगी जैसे आपातकाल में 1975 से 1977 के दौरान हुआ था.
बाबरी मसजिद अयोध्या में मुसलमानों की कभी निजामुद्दीन या अजमेर शरीफ की तरह की आस्था नहीं थी. यह किसी भी तरह हिंदुओं पर विजय का प्रतीक नहीं रही थी. फिर भी उसे बलि का बकरा बना कर हिंदू कट्टरवादियों ने पिछले 100-150 सालों से एक हिंदू अस्मिता का निशान बना लिया था मानो भारत का अस्तित्व उसी बाबरी मसजिद में कैद है. 1992 में उसे तोड़ कर देश को जैसे मुक्त कराया गया था और 9 नवंबर, 2019 में उस पर अदालती मुहर लगी है.
ये भी पढ़ें- आर्थिक कदम
यह मामला राजनीति से ओतप्रोत रहा है क्योंकि इस मंदिर की मांग हिंदू साधुसाध्वियां या भक्त नहीं, बल्कि राजनीति में सक्रिय भारतीय जनता पार्टी करती रही है जो अपने को हिंदूवादी पार्टी कहती रही है. वह पौराणिक परंपराओं को ही सर्वाेपरि मानती है.
इस विवाद को अदालतों को सौंप कर एक आसान तरीका अपनाया गया था और जब यह निर्णय आया तो पहले से ही यह स्पष्ट था कि कौन सा पक्ष भारी रहेगा. सरकार ने कोर्ट के इस निर्णय के सुनाए जाने से पहले अदालतों से न उल झने का निर्णय ले लिया था ताकि अदालतों की निष्पक्षता की छवि बनी रहे.
सुप्रीम कोर्ट ने 1,000 से ज्यादा पृष्ठों के एकमत के निर्णय में आखिरकार आस्था, जिसे अंधआस्था कहना गलत न होगा, को ही न्यायिक धरातल माना और उसी आधार पर अपना निर्णय सुनाया कि हिंदुओं की मांग कि राम का जन्मस्थान अयोध्या में वहीं ही है जहां मसजिद के 3 गुंबद बने हुए थे, सही है. हालांकि अदालत यह नहीं बता पाई कि क्या वास्तव में ऐसे सुबूत थे कि किसी मंदिर को तोड़ कर मसजिद बनाई गई, लेकिन फिर भी उस ने सरकार द्वारा मनमाने लोगों को शामिल कर गठित किए जाने वाले ट्रस्ट को मसजिद की भूमि सौंपने का फैसला सुना दिया. यानी, सुबूतों को दरकिनार कर आस्था को विजयी बनादिया.
पर क्या यह जीत उस कलंक को धो पाएगी कि इस देश पर बाहर से आए अहिंदू राजाओं और आक्रांताओं ने मुट्ठीभर सैनिकों के बल पर सदियों राज किया है. क्या सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के बाद हम भूल पाए हैं कि, किंवदंतियों के अनुसार, भारत पर 17 बार हमला करने वाले अफगानी शासक महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर को तोड़ा था, लूटा था? क्या लालकिले की प्राचीर पर हर 15 अगस्त को भाषण दे कर प्रधानमंत्री यह भुला पाते हैं कि इसी लालकिले से फरगना वादी से आए मुगलों ने राज किया था?
कोर्ट के फैसले से हिंदू कट्टरवाद की जीत हुई है पर हिंदू की नहीं. यहां हिंदू का अर्थ दक्षिण एशिया का वह इलाका है जो सांस्कृतिक तौर पर एक रहा है यूरोप की तरह, जिस में अलग जातियों, वर्णों, रंगों, भाषाओं, धर्मों के लोग रहते आए हैं. भारत की कल्पना से उन्हें सुरक्षा का एहसास होता था.
एक ऐसा क्षेत्र जहां सभी बिना रोकटोक आजा सकते थे, जहां चाहे बस सकते थे और कहीं भी अपनी मरजी से रह सकते थे. उस क्षेत्र पर एक बार नहीं, कई बार उन लोगों ने आक्रमण किया जो सिर्फ लूटने की इच्छा से आए थे, जो इस क्षेत्र का कल्याण नहीं चाहते थे, इस में रचबस जाने की इच्छा नहीं रखते थे. जिस की जड़ें टूट गईं. वे यहीं के बन कर रह गए और अब उस सोच और उस प्रवाह के साक्षी हो गए हैं जैसे कि एक विशाल समुद्र में छोटीबड़ी नदियां आ कर अपना वजूद खो बैठती हैं.
अब उस समुद्र को एक छोटी झील में संकुलित कर दिया गया है, इस के चारों ओर की दीवारें ऊंची कर दी गई हैं, उस में आ कर बहने वाली साफ पानी की नदियों को दूसरी ओर मोड़ कर मायेम झील को सूखने को मजबूर कर दिया गया है. हालांकि, यह झील अभी भी विशाल है, लोगों को अचंभित करने वाली है पर है जोहड़ के समान, जिस में वर्षा का साफ पानी गंदे नालों के पानी के साथ मिल कर दूषित होता जा रहा है. सर्वोच्च न्यायालय ने इसी पर न्यायिक हस्ताक्षर किए हैं, विशाल झील की दीवारों को और ऊंचा करने की इच्छा को अनुमति दी है.
वहां जल्दी ही भव्य मंदिर बन जाएगा, वैसे ही जैसे देश के अनेक क्षेत्रों में बने हुए हैं. आजकल हर गलीमहल्ले में बनने वाले मंदिर भव्य, संगमरमर से चमचमाते ही बन रहे हैं. नया मंदिर तीर्थयात्राओं का एक नया केंद्र बन जाएगा. उस जगह उद्योग नहीं लगेंगे, नौकरियां नहीं उगेंगी. वहां तो अगले जनम का हिसाब होगा, मन्नते मांगी जाएंगी, पंडों का व्यापार चमकेगा. यह कुछ भारत के भविष्य की छवि होगी. वहां नारे होंगे, जयजयकार होगी. धन और वोटों की वर्षा होगी.