वाराणसी स्थित काशी हिंदू विश्व विद्यालय यानी बीएचयू में संस्कृत विद्या धर्म संकाय में डा. फिरोज खान की नियुक्ति को ले कर धर्मांध लोगों ने जितना उपद्रव मचाया, उस से पूरा देश शर्मसार है.
विरोधी उपद्रव और उन्माद फैलाने में लगे हैं और इन का एक ही विरोध है कि कोई मुसलमान संस्कृत कैसे और क्यों पढा सकता है?
अनुचित मांग
यह मांग अनुचित इसलिए भी है कि शिक्षा और भाषा पर किसी जाति व किसी धर्म का एकाधिकार नहीं है और स्वयं पंडित मदन मोहन मालवीय, जिन्होंने इस विश्वविद्यालय की नींव रखी थी, को बनवाने में एक मुसलमान शासक ने चंदा दिया था.
विश्वविद्यालय के सिंहद्वार पर अभी भी मूर्त रूप से खङे पंडित मदन मोहन मालवीय बेहद शर्मसार होंगे कि उन्होंने इस विश्वविद्यालय की नींव क्या इसीलिए रखी कि यहां धर्म, जाति को ले कर फसाद किए जाएंगे?
वैसे, भारत के टौप यूनिवर्सिटी में शुमार बीएचयू में आजकल कुछ अच्छा नहीं चल रहा और हर दूसरेतीसरे दिन यहां कोई न कोई फसाद विश्वविद्यालय के गौरव पर बट्टा लगाने के लिए काफी है.
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काशी की तहजीब और बिस्मिल्ला खां
गंगाजमुना तहजीब के लिए मशहूर काशी को आज भले ही वाराणसी कहते हैं पर यह वही जगह है जहां एक मंदिर में बैठ कर शहनाई बजाने वाला बालक बाद में बिस्मिल्ला खां बना और जिन्हें भारत रत्न दे कर सम्मानित किया गया.
कहते हैं, बिस्मिल्ला खां को काशी से गहरा लगाव था और जीतेजी वे यहां से कहीं और गए नहीं. बिस्मिल्ला खां ने एक बार कहा था,”यों तो पूरा संसार ही मेरा घर है पर काशी से अच्छी जगह दुनिया में कहीं नहीं और मेरी दिली ख्वाहिश है कि काशी में ही मैं अंतिम समय बिताऊं.”
मिसाइलमैन अब्दुल कलाम आजाद जब देश के राष्ट्रपति बने थे तो पूरे देशदुनिया के साथ उस के गवाह बिस्मिल्ला खां भी बने थे, तब इन की शहनाई की धुन सुन कर लोग वाहवाह कर उठे थे.
डा. फिरोज के परिवार को है काशी से गहरा लगाव
काशी की गलियों में पलेबङे डा. फिरोज खान का पूरा परिवार ही यहां की संस्कृति में रचेबसे हैं. डा. फिरोज के पिता रमजान खान खुद एक गौशाला चलाते हैं और जिस गाय को ले कर धर्मांध लोग राजनीति करते हैं, वे नियमित गायों की सेवा करते हैं.
मीडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया,”हमारा पूरा परिवार काशी में हंसीखुशी रहता आया है. लोग मुझे प्यार से मुन्ना मास्टर कहते हैं. पर जो कुछ मेरे बेटे फिरोज के साथ बीएचयू में हुआ उस से पहली बार हमें एहसास हुआ कि हम मुसलमान हैं.”
कक्षा 2 से ही संस्कृत पढना जारी रखने वाले डा. फिरोज ने संस्कृत में शास्त्री और आचार्य के साथसाथ संस्कृत से एम.ए. और पीएचडी की है.
आधुनिक भारत और राही मासूम रज़ा
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के जिन छात्रों को डा. फिरोज खान का संस्कृत पढाना रास नहीं आ रहा क्या उन्हें यह जानकारी नहीं कि काशी के बगल में ही गाजीपुर के रहने वाले राही मासूम रज़ा ने वेदव्यास के बाद वह महाभारत लिखी, जो टैलीविजन के परदे से होते हुए हमारे दिलों में उतर गई थी?
राही मासूम रज़ा ने एक बार कहा था,”मेरा नाम मुसलमानों जैसा है, लेकिन मेरी नसों में गंगा का पानी बहता है.”
उन्होंने आताताइयों को भी ललकारा था जो धर्म और जिहाद के नाम पर समाज में नफरत का माहौल बोते हैं.
नजीर अकबराबादी, बुल्लेशाह, आलम शेख, मुसाहिब लखनवी जैसे भी सैकङों नाम हैं जिन्होंने अपनी भाषा और तहजीब से समाज को नया पैगाम दिया था.
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संविधान से बड़ा कोई नहीं
पर मजहब के मारों को यह जरूर जानना चाहिए कि भारत की आत्मा भारत के संविधान में बसती है और किसी को मजहब के नाम पर भाषायी दुर्भावना का शिकार बनाना कतई उचित नहीं.
सोचने वाली बात यह भी है कि अगर यह नया भारत है तो इसे सिरे से नकारने की जरूरत है. भारत का संविधान सब को समान अधिकार देता है और संविधान से बङा कोई नहीं.