दीवाली के बाद से ही दिल्ली-एनसीआर सहित उत्तर भारत के अनेक राज्यों में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर से ऊपर है. वाहनों का धुआं, पराली जलाए जाने का धुआं, फैक्ट्रियों और मिलों की चिमनियों से निकलने वाला धुआं और निर्माण कार्यों के कारण उड़ने वाली धूल नवम्बर माह में वायुमंडल के कम हुए तापमान और कोहरे के साथ मिलकर हमारे चारों ओर जम सी गयी है. बादल होने के कारण वायुमंडल साफ नहीं हो पा रहा है. लिहाजा इसी गंदी हवा में सांस लेने की मजबूरी उत्तर भारतीयों के सामने बनी हुई है. दिल्ली-एनसीआर में तो इमरजेंसी जैसे हालात हैं. जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर जनता नहीं जानती कि यह जहरीली हवा उनके स्वास्थ्य को किसकदर नुकसान पहुंचा रही है. दमा, कैंसर, थायरौयड, अस्थमा जैसे रोग बढ़ते जा रहे हैं. सबसे ज्यादा खतरे में तो वह नन्हें जीव हैं जो अभी मां की कोख में हैं.

नेशनल इंस्टीट्यूट औफ़ हेल्थ की मानें तो लगातार बढ़ते वायु प्रदूषण की वजह से गर्भवती महिलाओं में समय से पहले प्रसव का खतरा और कम वजन का बच्चा पैदा होने का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ गया है. जब गर्भवती महिला वाहनों से निकलने वाले धुएं या कोयले के जलने पर निकलने वाले ब्लैक कार्बन पलूशन को सांस के जरिए शरीर के अंदर लेती है तो उसमें उपस्थित हानिकारक तत्व महिला के फेफड़ों के जरिए गर्भनाल को छेदकर प्लेसेंटा के जरिए गर्भस्थ शिशु तक सीधे पहुंच जाते हैं. शोध में सामने आया है कि प्रदूषित इलाकों की 28 गर्भवती महिलाओं की गर्भनाल में ब्लैक कार्बन पाया गया है. प्रदूषित हवा और हानिकारक तत्व अगर गर्भवती महिला की सांस के जरिए गर्भस्थ शिशु तक पहुंच जाए तो मिसकैरिज, प्रीमच्योर डिलिवरी और जन्म के वक्त बच्चे का वजन बेहद कम जैसी समस्याएं बढ़ने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है. प्लेसेंटा एक ऐसा और्गन है जो प्रेग्नेंसी के दौरान खुद-ब-खुद गर्भाशय से अटैच हो जाता है जो मां के खून के जरिए गर्भनाल के माध्यम से गर्भ में पल रहे शिशु तक औक्सीजन और पोषक तत्वों की सप्लाई करता है.

एक स्टडी के अनुसार गर्भावस्था के दौरान मां का अत्यधिक वायु प्रदूषण के संपर्क में बने रहने से उसकी कोख में पल रहे बच्चे का विकास बाधित हो जाता है. ऐसे में विकृत बच्चे के जन्म लेने की आशंका बढ़ जाती है. इन बच्चों में संवहन प्रणाली और यौन अंगों में विकृति भी पैदा हो सकती है. प्रदूषण की वजह से महिलाएं ‘लो बर्थ वेट’ शिशुओं को जन्म देती हैं. ऐसे शिशुओं का सर्वाइव कर पाना मुश्किल होता है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के अनुसार 2500 ग्राम से कम वजन वाले नवजात शिशु ‘लो बर्थ वेट’ श्रेणी में आते हैं. लो बर्थ वेट वाले शिशुओं का भविष्य में स्वास्थ्य भी सही नहीं रहता है. स्टडी में पाया गया कि पूरी दुनिया में पैदा होने वाले शिशुओं में 15 से 20 प्रतिशत बच्चे लो बर्थ वेट से प्रभावित होते हैं. इनमें से ज्यादातर बच्चे उन जगहों पर पैदा होते हैं, जहां वायु और जल प्रदूषण अत्यधिक है.

गौरतलब है कि भ्रूण को गर्भाशय चारों ओर से किसी भी तरह के बाहरी नुकसान से सुरक्षा प्रदान करता है. लेकिन गर्भवती महिलाओं में विषैले रसायनों की मौजूदगी का प्रभाव गर्भाशय के अंदर भी पहुंच सकता है. वायु प्रदूषण का असर शिशु के मस्तिष्क पर पड़ता है. स्टडी के मुताबिक जब मां बनने जा रही कोई महिला इन रसायानों और वायु प्रदूषण तत्वों के संपर्क में आती है तो उसकी कोख में पल रहे शिशु के स्वस्थ मस्तिष्क के विकास में अवरोध पैदा होता है. इसलिए भविष्य में बच्चों के स्वभाव और व्यवहार में असर दिखायी देता है.

जिन गर्भवती महिलाओं को दमे की समस्या है, उनके और उनकी कोख में पल रहे बच्चे के लिए तो वायु प्रदूषण जानलेवा है. गर्भवती द्वारा औक्सीजन की सही मात्रा ग्रहण न कर पाने के कारण गर्भ का विकास प्रभावित होता है. गर्भधारण करने से तीन महीने पहले तक नाइट्रोजन ऑक्साइड के 30 हिस्से प्रति बिलियन ज्यादा संपर्क में आने से, दमा से पीड़ित महिलाओं में यह खतरा 30 प्रतिशत तक बढ़ जाता है. वहीं, बिना दमा वाली महिलाओं में इसके होने की संभावना आठ प्रतिशत होती है. इतने ही समय के लिए कार्बन मोनोऑक्साइड के संपर्क में आने से दमा पीड़ित महिलाओं में समयपूर्व प्रसव का खतरा 12 प्रतिशत अधिक हो जाता है. दमा पीड़ित गर्भवती महिलाओं के लिए आखिरी छह सप्ताह का समय भी काफी गंभीर होता है. अत्यधिक प्रदूषण वाले कणों जैसे एसिड, मेटल और हवा में मौजूद धूल के संपर्क में आना समयपूर्व प्रसव के खतरे को बढ़ा देता है.

वायु प्रदूषण से गर्भवती महिलाओं को थायरौयड की समस्या भी पैदा हो सकती है. गर्भावस्था के पहले तिमाही के दौरान वायु प्रदूषण के संपर्क में आने वाली महिलाओं को थायराइड रोग होने की आशंका रहती है. वायु प्रदूषण स्त्री-हार्मोन (एस्ट्रोजन) को प्रभावित करता है. यहां यह उल्लेखनीय है कि भ्रूण के मस्तिष्क के विकास में भी थायरौयड की अहम भूमिका होती है. मां में थॉयराइड हार्मोन का विघटन भ्रूण के विकास पर वायु प्रदूषण से पड़ने वाले प्रभाव के कारण होता है.

वायु प्रदूषण हमारी श्वसन प्रणाली को बुरी तरह प्रभावित करता है, जिससे सांस लेने में परेशानी होती है. इससे दमा, ब्रौन्काइटिस, फेफड़ों का कैंसर, टीबी और निमोनिया जैसे कई रोगों का खतरा बढ़ जाता है. वायु प्रदूषण से ओजोन लेयर को नुकसान पहुंचता है और यूवी किरणें धरती पर पहुंच कर स्किन कैंसर, आंखों और रोग प्रतिरोधक क्षमता को क्षति पहुंचा सकती हैं.

गर्भवती महिलाओं को वायु प्रदूषण से बचने के लिए प्रदूषण रहित साधन और मास्क के साथ-साथ कई अन्य उपाय करने चाहिए. वायु प्रदूषण अधिक हो तो सुबह-शाम बाहर टहलने का कार्यक्रम रद्द कर देना चाहिए. गर्भावस्था के दौरान हो सके तो उन जगहों पर शिफ्ट हो जाएं जहां वायु शुद्ध हो. बच्चे के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए महिलाएं एयर फिल्टर मास्क लगाएं. इसके साथ ही आउट डोर एक्टिविटीज को भी कम कर दें. भीड़-भाड़ वाली सड़कों से जितना हो सके कम गुजरें. ऐसी जगह शिफ्ट हो जाएं जहां पर गाड़ियों की आवाजाही कम और पेड़-पौधे ज्यादा से ज्यादा लगे हों. दमा से पीड़ित गर्भवती महिलाओं को वायु प्रदूषण से बचने के लिए अत्यधिक प्रदूषण के समय घर से बाहर जाने से परहेज करना चाहिए. वहीं, उन्हें घर में भी वायु प्रदूषण को कम करने के उपाय खोजने चाहिए. घर में जितना ज्यादा हो सके हरे-भरे पौधे लगाएं. मार्किट में भी कई तरह के विकल्प मौजूद हैं, जो हवा को साफ करने में मदद करते हैं. घर में ऐसे एयर फिल्टर लगवाएं जिससे आप और आपका होने वाला बच्चा सेफ रहे.

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