हैैवान ही नहीं दरिंदा बाप: भाग 1

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पिता की घिनौनी हरकतों से प्रिया बहुत दुखी थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि अपनी पीड़ा किस से कहे. जयप्रकाश ने उस पर इतना कड़ा पहरा बैठा दिया था कि वह किसी से बात तक नहीं कर सकती थी. पिता के अत्याचार से बचने के लिए उस ने घर छोड़ने का फैसला कर लिया.

इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी करने के बाद प्रिया गोरखपुर में अपने एक रिश्तेदार के पास रहने लगी. वहां रहते हुए वह एक मौल में सेल्सगर्ल की नौकरी करने लगी ताकि  किसी पर बोझ न बन सके और उस की जरूरतें भी पूरी होती रहें.

बेटी तो बेटी होती है. भले ही वह कुकर्मी पिता से दूर रह रही थी लेकिन उसे पिता की यादें बराबर सताती रहती थीं इसलिए वह बीचबीच में घर आ जाती थी. वह जब भी घर आती थी, पिता उसे अपनी हवस का शिकार बनाता था.

26 जुलाई, 2019 को प्रिया घर गई थी. इस से अगली रात 27 जुलाई को जयप्रकाश ने उस से संबंध बनाने की कोशिश की. प्रिया ने इस बार पिता की मनमानी नहीं चलने दी और विरोध करने लगी. कामाग्नि में जलते पिता जयप्रकाश ने आव देखा न ताव, उस का गला घोंट कर हत्या कर दी.

पिता से हैवान और हैवान से दरिंदा बना जयप्रकाश पूरी नीचता पर उतर आया था. उस ने बेटी की मौत के बाद उस की लाश के साथ अपना मुंह काला किया. जब उस की कामाग्नि शांत हुई तो उसे होश आया. उस की आंखों के सामने फांसी का फंदा झूल रहा था. वह सोचने लगा कि प्रिया की लाश से कैसे छुटकारा पाए.

काफी देर सोचने के बाद उस के दिमाग में एक योजना ने जन्म लिया. वह कमरे में गया और वहां से तेजधार वाला चाकू ले आया. चाकू से प्रिया का उस ने सिर और धड़ अलग कर दिया. सिर उस की इस करतूत से फर्श पर खून ही खून फैल गया.

फिर उस ने बेटी के शरीर से उस के सारे कपड़े उतार दिए और उन्हीं कपड़ों से फर्श पर फैले खून को साफ किया ताकि पुलिस को उस के खिलाफ कोई सबूत न मिल सके. इस के बाद वह कमरे के अंदर से प्लास्टिक के सफेद रंग के 3 बोरे ले आया. उस ने एक बोरे में सिर, दूसरे में धड़ और तीसरे में प्रिया के खून से सने कपड़े रखे.

रात 2 बजे के करीब जयप्रकाश ने अपनी मोपेड पर तीनों बोरे लाद दिए और उन्हें ठिकाने लगाने के लिए निकल गया. सिर को उस ने उरुवा थाने के अंतर्गत आने वाली एक जगह की झाड़ी में फेंक दिया.

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फिर धड़ और कपड़े वाले बोरों को ले कर वह वहां से गोला के चेनवा नाला पहुंचा. नाले में उस ने दोनों बोरे ठिकाने लगा दिए. इस के बाद वह घर लौट आया और हाथमुंह धो कर इत्मीनान से सो गया.

पते की बात यह रही कि प्रिया के अकसर गोरखपुर में रहने की वजह से उस के अचानक गायब होने पर किसी को शक नहीं हुआ.

अब जयप्रकाश को एक बात की चिंता खाए जा रही थी कि भले ही लोग यह समझते हों कि प्रिया गोरखपुर में नौकरी कर रही है, लेकिन यह बात ज्यादा दिनों तक राज नहीं रह सकेगी. एक न एक दिन पुलिस इस हत्या से परदा हटा ही देगी तो वह उम्र भर जेल की चक्की पीसेगा. उस ने सोचा कि क्यों न ऐसी चाल चली जाए कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

काफी सोचविचार करने के बाद उस ने अपने दामाद पर ही साली यानी प्रिया के अपहरण का आरोप लगाने की योजना बनाई. इस से जयप्रकाश का फायदा ही फायदा था. भविष्य में वह न तो कभी प्रिया की तलाश कर सकता था और न ही उस की हत्या का राज खुल सकता था. वक्त जयप्रकाश का बराबर साथ दे रहा था.

कुछ दिन बाद जयप्रकाश ने दामाद सुनील के पिता को फोन कर प्रिया के गायब होने की सूचना दी. बातचीत में उस ने बेटी के गायब होने के पीछे सुनील का हाथ होने का आरोप लगाया. सुनील के पिता समधी का आरोप सुन कर चौंके.

उन्होंने इस बारे में बेटे सुनील से बात की तो साली के अपहरण का आरोप खुद पर लगने से सुनील सन्न रह गया. उस ने यह बात पत्नी राधा को बताई. राधा भी पति की बात सुन कर हैरान थी.

राधा ने उसी समय पिता को फोन किया तो जयप्रकाश ने सुनील पर बेटी के अपहरण का आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज कराने की धमकी देनी शुरू कर दी. पिता की बात सुन कर राधा और सुनील एकदम परेशान हो गए. जबकि वे खुद भी कई दिनों से प्रिया के मोबाइल पर संपर्क करना चाहते थे. लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ था.

फिर 17 अगस्त, 2019 को जयप्रकाश ने खुद ही बेटी राधा को फोन कर के प्रिया की हत्या करने की जानकारी दे दी.

बहरहाल, घटना की जानकारी होने पर राधा पति सुनील के साथ 17 अगस्त को ही गांव पहुंच गई. पूछताछ में उन्होेंने पुलिस को बताया कि पहले प्रिया उन से फोन पर बातें करती रहती थी, लेकिन बाद में पिता के दबाव में उस ने उन से बात करनी बंद कर दी थी.

बीते 29 मई को एक रिश्तेदार के यहां शादी समारोह में राधा और सुनील भी गए थे. उस समारोह में प्रिया भी आई थी. राधा ने वहीं पर प्रिया से मुलाकात के दौरान उस से पूछा कि वह उसे फोन क्यों नहीं करती, तो प्रिया ने पिता के दबाव की वजह से फोन न करने की बात कही थी.

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जब उस ने वह वजह पूछी तो उस ने कुछ नहीं बताया. इस के बाद से वह कभीकभार बहन और जीजा को फोन कर लेती थी लेकिन पिता की हरकत के बारे में उस ने उन से कभी कोई चर्चा नहीं की थी.

अगर प्रिया ने थोड़ी हिम्मत दिखाई होती तो उसे असमय मौत के आगोश में यूं ही नहीं समाना पड़ता. वह भी जिंदा होती और खुशहाल जीवन जीती.

यही नहीं, मर्यादा की सारी सीमाएं लांघ चुके कलयुगी पिता को भी सलाखों के पीछे पहुंचवा सकती थी, लेकिन सामाजिक लोकलाज और डर के चलते उस ने ऐसा नहीं किया, जिस की कीमत उसे अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी.

पुलिस ने जयप्रकाश गुप्ता से पूछताछ के बाद उसे कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक जयप्रकाश जेल की सलाखों के पीछे कैद था. उस की निशानदेही पर पुलिस हत्या में इस्तेमाल मोपेड, चाकू आदि बरामद कर चुकी थी.

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—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

   सौजन्य: मनोहर कहानियां     

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