इसे सामाजिक दायित्व कहें या जलसापसंद स्वभाव कि अरसे से लोग अपनी खुशियों में रिश्तेनातेदारों, पासपड़ोसियों व दोस्तों को शरीक करने के लिए निमंत्रण की रस्म पूरी करते हैं. अनोखे अंदाज में निमंत्रणपत्र दिए जाते हैं. कोई अपने करीबी को व्यक्तिगत तौर पर खुद बुलावा देने जाता है तो कोई निमंत्रणपत्रों में बुलावे को विनम्र अंदाज में पेश कर अपनों तक पहुंचा देता है. कोई फोन पर या ईमेल के जरिए सूचित करता है तो कोई कोरियर के जरिए यह काम करता है.
कुल मिला कर निमंत्रण का चलन आज भी बदस्तूर जारी है. कुछ बदला नहीं है. बदला है तो सिर्फ यह कि कहीं निमंत्रण देने का अंदाज सब के लिए मौका और हैसियत देख कर होने लगा है तो कहीं निमंत्रण की आड़ में अपनी अमीरी या शानोशौकत का लिफाफा बढ़े वजन के साथ रिश्तों में खटास घोल रहा है. बहरहाल, जलसे, शादी, बर्थडे, मृत्युभोज और खुशीगमी के मौकों पर निमंत्रण कार्डों का आनाजाना मानअपमान की शक्ल में जारी है.
निमंत्रणपत्र भी कई श्रेणी के छपवाए जाने लगे हैं, साधारण, मध्यम और उच्च. प्रथम श्रेणी के वीआईपी कार्ड के साथ उच्चतम श्रेणी के कीमती उपहार या मेवा आदि लगे होते हैं. द्वितीय श्रेणी में उस से कम श्रेणी के उपहार और काजूबादाम की मिठाई लगी होती है. तृतीय श्रेणी के निमंत्रणपत्र के साथ बूंदी के लड्डू और चतुर्थ श्रेणी के साथ कुछ चौकलेट आदि लगी होती हैं. एक होता है चालू कार्ड. कभी जब अलगअलग व्यक्ति से मिले अलगअलग प्रकार के निमंत्रणपत्र एक ही कार्यक्रम के लिए होते हैं तब निमंत्रित व्यक्ति को कैसा लगता है?
साथ ही, निमंत्रित किए जाने के लिए अलगअलग मानदंड है. एक श्रेणी के व्यक्तियों के लिए मुख्य व्यक्ति सपत्नी बुलाने जाता है. एक श्रेणी जहां वह स्वयं निमंत्रित करता है. कुछ निमंत्रणपत्र भाईबहनों, मित्रों से वितरित कराए जाते हैं और एक वर्ग ऐसा होता है जिसे कोरियर कर दिया जाता है. एक ही विवाह में अलगअलग निमंत्रण विधान हो जाते हैं. यह उन की अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का नहीं, सामने वाले की प्रतिष्ठा का सवाल है कि वह आप को कितनी इज्जत देता है.
अब जबकि एकल परिवार का चलन है लेकिन सामाजिक संबंध भी आदमी बना कर रखना चाहता है, इसलिए वह अधिक से अधिक लोगों को बुलाना चाहता है और मौके बारबार आते नहीं हैं. अगर 100 लोगों को बुलाना है तो 110 लोगों को बुला लीजिए, यह भावना रहती है लेकिन अब आदरमान नहीं, न जाने वाले के अंदर न बुलाने वाले के अंदर. केवल निबटाने की भावना रहती है. अगर निमंत्रित व्यक्ति से भोजन को कहेंगे तो वह सिर हिलाते कहेगा, ‘अरे नहीं, 3 जगह और जाना है’.
‘अरे नहीं, कुछ तो जरूर लीजिए’, वैसे यह बहुत कम जगह सुनने को मिलेगा. घुसिए, लिफाफा थमाइए और सीधे भोजन पंडाल में घुस कर भोजन कर बाहर निकल आइए. कभीकभी तो निमंत्रित केवल स्थान और तिथि देख लेता है. उसे यह भी ज्ञात नहीं होता है कि वह लड़की के विवाह में आया है या लड़के के रिसैप्शन में. और कभीकभी तो लोग मृत्युभोज में जन्मदिन की बधाई दे बैठते हैं.
प्रश्न उठता है निमंत्रित व्यक्ति के मानअपमान का जब, 10 व्यक्ति एक ही स्थान पर खड़े हों और कोई कहे, ‘अरे, कितने फोन आए भाईसाहब के, जरूर आना है तो कैसे नहीं आता.’ कोई कहे, ‘खुद आए थे बुलाने, बहुत कह गए थे’, तब किसी ग्रुप में एकत्रित हुए या किसी संस्था के कार्यक्रम के समय आए और उस समय बांटे गए निमंत्रणपत्र के जरिए आया व्यक्ति कैसा महसूस करेगा.
एक जैसा मान दें
आप कोई कार्यक्रम कर रहे हैं तो वह अपनी खुशी के लिए करते हैं. ऐसे में आप यह न देखें कि कोई गरीब है या अमीर, या फिर कोई अधिकारी, सभी को एकजैसा ही मान दें. इस से कोई भी अपनेआप को अपमानित नहीं महसूस करेगा.
यह तो हमेशा से ही होता आया है कि जैसा व्यवहार वैसी पत्तल या मिठाई जो कि व्यक्ति द्वारा दिए जाने के बाद दी जाती थी. फर्क तो मां भी अपनी गरीबअमीर बेटी में कर देती है. अमीर बेटी के यहां साधारण मिठाई कोई नहीं खाता. वहां तो बादामपिस्ता आदि ही की मिठाई जाएगी. गरीब बेटी के बच्चे तो सब खा लेते हैं, इसलिए उस के लिए कोई भी मिठाई रख दें. लेकिन समाज तो समाज है, किसी का व्यवहार हजारों का है, किसी का
200-250 का. पर आजकल दूरदूर घर, समय की कमी और ऊपर से परिवारजनों की कमी की वजह से दोबारा सामान भेजना भी बहुत मुश्किल होता है.
हालांकि कुछ व्यक्तियों की आदत होती है कि वे सामने वाले व्यक्ति के हर काम में नुक्स निकालते हैं, ‘अरे, यह भी कोई इंतजाम है. लाला, तुम्हें दावत करना नहीं आता, इस के लिए जिगरा चाहिए. खिलाने के लिए हम ने की थी दावत, लोग उंगलियां चाटते रह गए थे.’ जब ऐसी बातें सुनने को मिलती हैं तब सारी मेहनत पर पानी फिर जाता है और मन में एक अपमान की लहर दौड़ जाती है. निमंत्रणपत्रों का बदलता स्वरूप
एक समय में विवाह का निमंत्रणपत्र हलदी वाले पीले चावलों के साथ दिया जाता था, जिसे पीली चिट्ठी कहा जाता था. लेकिन अब बदलते दौर के साथ निमंत्रणपत्रों का रंगरूप पूरी तरह से बदल गया है. अब निमंत्रणपत्र में केवल आयोजनों के मैटर पर ही ध्यान नहीं दिया जाता, बल्कि इस के साथ ही कार्ड के पैटर्न व रंगों पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है. कहीं एलबमनुमा निमंत्रणपत्र ट्रैंड में हैं तो कहीं मिनीकार्ड. अभी तक तो सिल्वर, गोल्डन ग्लिटर से कार्ड को आकर्षक बनाया जाता था लेकिन अब तो कार्ड में असली सोने व चांदी की जरी लगा कर उस को खूबसूरत बनाया जा रहा है.
हाल ही में मैसूर के महाराज की शादी के लिए गोल्ड प्लेटेड इन्विटेशन कार्ड छपवाए गए. ये कार्ड खासतौर से वीवीआईपी मेहमानों को भेजे गए. एक अन्य ट्रैंड, कार्ड पर परिवार के साथ गुजारे वक्त और अच्छी यादों को फोटोग्राफ्स के साथ पिं्रट करवाने का भी है. टैक्नोलौजी का असर निमंत्रणपत्रों पर भी साफसाफ दिखाई देने लगा है. अब प्री वैडिंग शूट के जरिए सीडी व डीवीडी तैयार की जा रही हैं जिन में दूल्हादुलहन के साथ परिवार के अन्य सदस्यों की व वैवाहिक आयोजनों की जानकारियां दी जाती हैं.
आजकल निमंत्रणपत्र का मकसद केवल आमंत्रण देना नहीं, बल्कि स्टेटस शो करना हो गया है. दिखावे के चक्कर में लोग यह भूलते जा रहे हैं कि खुशियों में निमंत्रण देने का मकसद आप के अपनों को अपनी खुशियों में शामिल करना है, न कि अपने स्टेटस का दिखावा करना. इसलिए निमंत्रणपत्र ऐसा होना चाहिए जिस में बुलाने वाले के लिए प्यार और सम्मान हो. अगर दिखावे से बचना हो तो आज के हाईटैक तरीकों जैसे व्हाट्सऐप, ईमेल, एसएमएस से निमंत्रण भेजे जाने चाहिए ताकि धन व समय दोनों की बचत हो सके और किसी को अपमानित भी न होना पडे़.