पीवी सिंधु ने जापान की नोजोमी ओकुहारा को सीधे गेम में हराकर रियो ओलंपिक की बैडमिंटन प्रतियोगिता के महिला एकल के फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बन गई हैं. इसके साथ ही उन्होंने कम से कम रजत पदक पक्का कर लिया है.

विश्व चैंपियनशिप में दो बार की कांस्य पदक विजेता सिंधु ने जापान की आल इंग्लैंड चैंपियन के खिलाफ 49 मिनट तक चले मैच में 21-19, 21-10 से जीत दर्ज की. हैदराबाद की रहने वाली विश्व में दसवें नंबर की सिंधु को फाइनल में दो बार की विश्व चैंपियन और शीर्ष वरीय स्पेनिश खिलाड़ी कारोलिना मारिन से भिड़ना होगा.

बेहद प्रतिभाशाली सिंधु अपनी सीनियर साइना नेहवाल से भी एक कदम आगे निकलने में सफल रही जिन्होंने लंदन 2012 में कांस्य पदक जीतकर भारत को बैडमिंटन में पहला पदक दिलाया था.

सिंधु का ओकुहारा के खिलाफ रिकॉर्ड 1-3 था लेकिन भारतीय खिलाड़ी अच्छी रणनीति के साथ उतरी थी और उन्होंने अपने रिटर्न और ड्राप्स से जापानी खिलाड़ी को लंबी रैलियों में उलझाकर रखा.

पहला गेम 29 मिनट तक चला. सिंधु ने शुरू में ही 4-1 की बढ़त बना ली और फिर ओकुहारा की गलतियों का फायदा उठाकर जल्द ही इसे 8-4 कर दिया. भारतीय खिलाड़ी ने अपनी प्रतिद्वंद्वी को लंबी रैलियों में उलझाये रखा और इस बीच अपने खूबसूरत ड्राप्स से अंक बनाए.

सिंधु ने 32 स्ट्रोक्स चली रैली में फोरहैंड रिटर्न से अंक बनाकर अपनी बढ़त 9-6 की और फिर मध्यांतर तक वह 11-6 से आगे रही. इस हैदराबादी खिलाड़ी ने अपने स्मैश और ड्राप्स से ओकुहारा को बैकफुट पर भेज दिया. इस बीच ओकुहारा ने बेसलाइन से लगातार नेट पर शॉट लगाए.

सिंधु जब 14-10 से आगे चल रही थी तब उनका शॉट बाहर चला गया. जब स्कोर 18-16 था तब सिंधु ने जापानी खिलाड़ी के एक अच्छे रिटर्न को बेहतरीन तरीके से वापस किया और फिर अपने कद का फायदा उठाकर अंक बनाया. इसके बाद ओकुहारा के शॉट के नेट पर पड़ने से वह गेम प्वाइंट पर पहुंची. ओकुहारा ने इसके बाद फिर से नेट पर शॉट मारा जिससे सिंधु पहला गेम जीतने में सफल रही.

दूसरे गेम में सिंधु ने फिर से 3-0 से बढ़त बनाई लेकिन जापानी खिलाड़ी भी हार मानने के मूड में नहीं थी. उन्होंने वापसी करके 5-3 से बढ़त बना दी. सिंधु को तब शटल को कोर्ट के अंदर रखने में दिक्कत हुई.

इसके बाद दोनों खिलाड़ी 5-5 से 8-8 तक बराबरी पर चलती रही. सिंधु ने फिर से बढ़त बनायी लेकिन इसके बाद उनका शॉट फिर से बाहर चला गया. मध्यांतर तक हालांकि सिंधु ने 11-10 से मामूली बढ़त बना रखी थी.

मध्यांतर के बाद सिंधु ने आक्रामक रवैया अपनाया. कोर्ट के दूसरे छोर से उन्होंने लगातार 11 अंक बनाकर जीत दर्ज की. इस बीच उन्होंने कई दर्शनीय स्ट्रोक लगाए और जापानी खिलाड़ी की चुनौती को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया. अपने शानदार रिटर्न से उनके पास दस मैच प्वाइंट थे और फिर करारे स्मैश से इतिहास में अपना नाम दर्ज कर दिया.

इससे पहले मारिन ने लंदन ओलंपिक की चैंपियन चीन की ली झूरेई को 21-14, 21-14 से हराया. मारिन भी पहली बार ओलंपिक फाइनल में पहुंची हैं.

जब भारत का अधिकतर दल बिना मेडल के देश लौट रहा है, वही सिंधु का मेडल खास हो जाता है.

सिंधु बारे में खास बातें

पुसरला वेंकटा सिंधु (पीवी सिंधु) का जन्म 5 जुलाई 1995 को हुआ था. पीवी सिंधु के माता-पिता दोनों ही पेशेवर वॉलीबॉल खिलाड़ी रह चुके हैं. सिंधु के पिता पीवी रमन्ना को वॉलीबॉल के लिए अर्जुन पुरस्कार मिल चुका है.

सिंधु ने 7-8 साल की उम्र में ही बैडमिंटन खेलना शुरू कर दिया था. बेटी की रुचि को देखते हुए उनके पिता ट्रेनिंग के लिए रोज घर से 30 किलोमीटर दूर गाचीबौली ले जाते थे.

पीवी सिंधु हैदराबाद में गोपीचंद बैडमिंटन अकैडमी में ट्रेनिंग लेती हैं और उन्हें 'ओलिंपिक गोल्ड क्वेस्ट' नाम की एक नॉन-प्रॉफिट संस्था सपॉर्ट करती है.

सिंधु को यहां तक पहुंचाने में पूर्व बैडमिंटन खिलाड़ी पुलेला गोपीचंद का अहम योगदान है. सिंधु जब 9 साल की थीं, तब से गोपीचंद उन्हें ट्रेनिंग दे रहे हैं. हालांकि, सिंधु को शुरुआती ट्रेनिंग महबूब अली ने दी थी.

30 मार्च 2015 को सिंधु को भारत के चौथे उच्चतम नागरिक सम्मान, पद्मश्री से सम्मानित किया गया.

2014 में सिंधु ने एफआईसीसीआई ब्रेकथ्रू स्पॉर्ट्स पर्सन ऑफ द इयर 2014 और एनडीटीवी इंडियन ऑफ द इयर 2014 का अवार्ड जीता.

पिछले तीन साल से सिंधु सुबह 4:15 बजे ही उठ जाती हैं और बैडमिंटन की प्रैक्टिस करती हैं. एक रेलवे कर्मचारी और पूर्व वॉलीबॉल खिलाड़ी सिंधु के पिता ने 8 महीने की छुट्टी ली थी, ताकि वह अपनी बेटी का ट्रेनिंग के दौरान समर्थन कर सके.

2010 में वह महिलाओं का टूर्नमेंट उबेर कप में भारतीय टीम का हिस्सा रही थीं. 2014 में ग्लासगो राष्ट्रमंडल खेलों में सिंधु सेमीफाइनल तक पहुंचने में कामयाब रही थीं. जबकि 2015 में वे डेनमार्क ओपन के फाइनल तक पहुंचीं. इसी साल उन्होंने मलेशिया मास्टर्स ग्रां प्री में एकल खिताब भी जीता है.

10 अगस्त 2013 को सिंधु भारत की पहली एकल खिलाड़ी बनीं, जिन्होंने वर्ल्ड चैंपियनशिप में कोई पदक (कांस्य) जीता. सिंधु के बारे में उनके आदर्श गोपीचंद कहते हैं कि सिंधु कभी हार नहीं मानतीं और वह जो ठान लेती हैं, उसे पूरा करने में जी जान लगा लेती हैं.

पहली बार किए ये कारनामें

सिंधु ओलंपिक के फाइनल में पहुंचने वाली इतिहास की पहली भारतीय खिलाड़ी बनीं. विश्व चैंपियन में पदक हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला एकल खिलाड़ी हैं.

उपलब्धियां

विश्व चैंपियनशिप में पीवी सिंधु ने 2013 और  2014 में 2 कांस्य पदक जीते. 2014 में उन्होंने इंचियोन एशियन गेम्स और कॉमनवेल्थ गेम्स में भी कांस्य हासिल किया.

ताकत

सिंधु की फिटनेस शानदार है. लंबी रैलियां खेलने में वह माहिर हैं और उनके ताकतवर स्मैश का विपक्षी खिलाड़ी के पास कोई जवाब नहीं होता. उनकी लंबाई उनको घातक बना देती है.

विरासत में खेल

पीवी सिंधु को खेल की स्पिरिट विरासत में मिली है. उनके पिता पीवी रमन्ना और मां पी विजया, दोनों वॉलीबॉल के खिलाड़ी रहे हैं. रमन्ना को तो अपने खेल में शानदार प्रदर्शन के लिए साल 2000 में अर्जुन पुरस्कार भी मिल चुका है.

पॉजीटिव माइंड

पिछले साल एक इंटरव्यू में सिंधु ने कहा था कि टॉप-10 में आना भी आसान नहीं होता, लेकिन वहां बने रहना बहुत मुश्किल है. इसके लिए लगातार अच्छा खेलना होता है. जहां तक मेरे वर्ल्ड नंबर एक बनने की बात है, मैं खुद को अभी तीन-चार साल देना चाहूंगी.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...