डा. पीएस शेखावत, रिसर्च डायरैक्टर

अपने नए शोध कामों के लिए स्वामी केशवानंद कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर, राजस्थान देशभर में जाना जाता है. पिछले दिनों यहां कृषि अनुसंधान केंद्र के एक बड़े भूभाग में खड़ी रंगबिरंगी फसल ने बरबस ही ध्यान खींच लिया. जिज्ञासावश हम ने यहां के रिसर्च डायरैक्टर पीएस शेखावत से बात की. पेश हैं उसी बातचीत के खास अंश:

ये इतनी खूबसूरत रंगबिरंगी कोई नई फसल है क्या?

जी हां, इसे किनोआ कहते हैं. यह बथुआ प्रजाति का पौधा है. यह एक ओर्नामैंटल प्लांट है. जब यह कच्चा होता है तो ग्रीन, कुछ पकने पर लाल और कटाई के समय यह पूरी तरह से सफेद हो जाता है, जो देखने में बहुत ही सुंदर लगता है. कुछकुछ हमारे देशी प्रोडक्ट बाजरा एमएच 17 प्रजाति की तरह. इसे दक्षिणी अमेरिका में उगाया जाता है. हमारे देश में इसे हम भविष्य की फसल भी कह सकते हैं. इस के बीजों को पीस कर अनाज की तरह से इस्तेमाल किया जाता है.

क्या आप को लगता है कि यह विदेशी पौधा हमारे यहां की आबोहवा में पनप सकेगा?

बिलकुल पनप सकेगा. यह बहुत हार्डी पौधा है यानी किसी?भी तरह की प्रतिकूल आबोहवा में यह अपनेआप को जिंदा रखने की क्षमता वाला पौधा है. यह रबी की फसल है. इसे बोने का सही समय नवंबर माह है और कटाई अप्रैल माह में होती है. इसे समय से पहले काश्त भी किया जा सकता है. इस की बोआई दोमट मिट्टी में होती है. इस पर सर्दी या पाले का कोई असर नहीं होता. इसे ज्यादा पानी की भी जरूरत नहीं होती. यह एक तरह से खरपतवार है. कहने का मतलब यह है कि इस पौधे के लिए यहां की आबोहवा पूरी तरह से माकूल है.

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इस पर शोध की कोई खास वजह?

इस पौधे की खूबी ही इस पर शोध की वजह है. यह अनाज वाली फसल है. यह लगने, पकने और सिंचाई में तकरीबन गेहूं जैसा ही है लेकिन इस की बढ़वार गेहूं से कई गुना बेहतर है. इसे मेंटेनैंस फ्री फसल भी कहा जा सकता?है यानी वे किसान जिन के पास मैन पावर कम हो, वे भी इसे काश्त कर सकते?हैं. इसे खाने में अकेला या दूसरे अनाज के साथ मिला कर भी उपयोग में लाया जा सकता है.

क्या यह सचमुच किसानों के लिए फायदे का सौदा हो सकता है?

देखिए, हम पिछले 3 सालों से इस पर शोध का काम कर रहे?हैं और यह बात सामने आई है कि इस की खेती से किसानों को बहुत फायदा हो सकता है. हमारे रिसर्च सैंटर में हम ने 22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर इस की पैदावार ली है, लेकिन हमारे प्रोत्साहन से यहां पास ही में रायसर गांव में एक खेत में लगी फसल से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार भी ली गई है.

हमारे देश में फिलहाल इस का ज्यादा प्रचारप्रसार नहीं हुआ है लेकिन विदेशों में इस की कीमत 500-1,000 रुपए प्रति किलोग्राम तक है. वैसे, हम ने अपने यहां उगाए गए किनोआ को 60 रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेचा है.

क्या आप को यह लगता है कि इतना महंगा अनाज आम आदमी की पहुंच में हो सकता है?

यह आमतौर पर मैडिसिनल प्लांट है इसलिए औषधि के रूप में ज्यादा कारगर साबित हो सकता?है. इसे वैल्यू एडेड प्रोडक्ट यानी दूसरे अनाजों के साथ मिला कर इस्तेमाल में लाया जाता है. इस में मैगनीज होता?है जो दिल को मजबूती देता?है. इस में एंटीऔक्सिडेंट है जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है.

इस के अलावा इस में चावल की तरह कार्बोहाइड्रेट भी होता है लेकिन इस में फाइबर की मात्रा ज्यादा होने से यह डायबिटीज के मरीजों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है.

अभी आप ने बताया कि किनोआ का प्रचारप्रसार ज्यादा नहीं हुआ है तो आप इस के लिए क्या कोशिश कर रहे हैं ?

आप जैसे लोग ही हमारी बात दूर तक पहुंचाएंगे. हम किसानों के लिए पैकेज तैयार कर रहे हैं. पैकेज यानी एक तरह की बुकलैट. इस बुकलैट में किनोआ से संबंधित जानकारी होगी, जैसे कितना बीज, कैसी मिट्टी, मिट्टी का कितना पीएच मान, कितना फर्टिलाइजर, कितनी सिंचाई, क्या बीमारी और उस का उपचार वगैरह. हम इच्छुक किसानों को अपने यहां विजिट करवा कर उन की जिज्ञासा का समाधान भी करते हैं.

आप ने इसे भविष्य की फसल क्यों कहा?

क्योंकि इस फसल को हम आने वाले समय में एक विकल्प के तौर पर इस्तेमाल करेंगे. अभी मैं ने बताया था कि यह डायबिटीज और दिल के मरीजों के लिए ज्यादा फायदेमंद है. हम देख रहे?हैं कि इन मरीजों की तादाद में निरंतर बढ़ोतरी हो रही?है. ऐसे में हम इसे दूसरे विकल्प के तौर पर अनाज की तरह इस्तेमाल करेंगे.

दूसरी बात यह भी है कि अब आबोहवा में बदलाव हो रहा?है. इस वजह से आने वाले समय में हमारी कुछ फसलें ज्यादा पैदावार देंगी तो कुछ का उत्पादन बहुत कम हो जाएगा.

अब सोचिए कि किसी एक ऐसे समय में जब हमारी क्रौप डाउन हो गई और हमारे पास सीरियल के?रूप में कुछ न हो, तब यह फसल किनोआ अनाज के रूप में उभरेगी.

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राजस्थान के अलावा इसे देश के किस भूभाग में लगाया जा सकता है?

जैसा कि मैं ने बताया था कि यह एक हार्डी पौधा है और यह किसी भी हालात में उग सकता है. इसे पानी और बेहतर मिट्टी व माकूल आबोहवा के मुताबिक कहीं भी लगाया जा सकता है.

किनोआ विदेशी फसल है. आप हमारे यहां इस का क्या भविष्य देखते हैं?

मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि यह आने वाले समय में अनाज के एक बेहतरीन विकल्प के रूप में सामने आएगा. जैसेजैसे लोगों में इस के बारे में जागरूकता बढ़ेगी, वैसेवैसे लोग इस की मांग करेंगे और किसानों में इसे उगाने के प्रति रुझान बढ़ेगा.

अब आप बताइए कि कुछ साल पहले तक ओट्स के बारे में कितने लोग जानते थे, लेकिन आज उस के प्रचारप्रसार के चलते यह लोगों की जबान पर चढ़ा हुआ है. है तो वह भी एक फोडर क्रौप ही न. उसी तरह से सही प्रचारप्रसार से किनोआ भी जल्दी ही आम लोगों की जिंदगी में शामिल हो जाएगा क्योंकि यह कम मात्रा में अधिक पोषण देने वाला अनाज है.

मेरा दावा है कि यह किसानों के लिए किसी भी तरह से?घाटे का सौदा नहीं?है क्योंकि किसी मेंटेनैंस फ्री फसल का 60 रुपए प्रति किलोग्राम भी हो तो नुकसान नहीं है.

यदि किसान इसे उगाएं तो इस का मार्केट क्या है?

किनोआ लगाने की किसानों में काफी दिलचस्पी है लेकिन फिलहाल परेशानी मार्केट की है क्योंकि लोगों को इस के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है. अभी तो इसे हमारे विभाग ने ही बीज के तौर पर खरीदा है लेकिन इस के पक्ष में मार्केट बनने में ज्यादा समय नहीं लगेगा. इस पर होने वाले शोध के काम और सैमिनार जैसेजैसे आम लोगों के बीच आएंगे, इस का भी अच्छाखासा मार्केट बन जाएगा.

क्या इसे प्रोसैस कर अनाज की तरह दूसरे उत्पाद भी बनाए जा सकते हैं?

सीधे खाने पर इस का स्वाद हलका सा कसैला होता है लेकिन कड़वा होने पर करेला भी तो खाया जाता है न. वैसे, किसी भी दूसरे सीरियल की तरह से इस से भी खीर, बिसकुट, दलिया, सूप वगैरह बनाए जा सकते हैं.

ज्यादा जानकारी के लिए डाक्टर पीएस शेखावत से उन के मोबाइल फोन नंबर 9414604614 पर संपर्क किया जा सकता है.

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