रेटिंगः तीन स्टार

निर्माताः स्वप्ना कृष्णा

निर्देशकः एस कृष्णा

लेखकः कृष्णा, डी एस कानन और मधू

संगीतकारः अरूण जन्या

कैमरामैनः करूणाकर ए

कलाकारः किच्चा सुदीप, आकांक्षा सिंह, सुनील शेट्टी, सुशांत सिंह, कबीर दुहन सिंह, अविनाश अपन्ना, शरत लोहिताश्व, रघु गौड़ा व अन्य.

अवधिःदो घंटे 46 मिनट

‘फूंक’, रन’, ‘रक्तचरित्र 2’, ‘बाहुबली एक’ के अलावा हिंदी में डब दक्षिण भारतीय फिल्म ‘‘मक्खी’’ में नजर आ चुके दक्षिण भारतीय सुपर स्टार किच्चा सुदीप इस बार ‘‘पहलवान’’ में हीरो बनकर आए  हैं. ‘पहलवान’ मूलतः कन्नड़ भाषा की फिल्म है, जिसे तमिल, तेलगू, मलयालम व हिंदी में डब कर एक साथ ही प्रदर्शित किया गया है. बौलीवुड में खेल खासकर कुष्ती को लेकर ‘दंगल’ व ‘सुल्तान’ सहित कुछ अच्छी फिल्में आ चुकी हैं, मगर ‘पहलवान’ खेल जगत की पृष्ठभूमि पर बनी एक अलग तरह की एक्शन व रोमांचक फिल्म है. ‘पहलवान’ में कुष्ती’ के साथ साथ ‘बाक्सिंग’, राजे रजवाड़े खत्म होने के बावजूद राजवंश के वंषज का दंभ तथा स्पोर्ट्स जगत की असलियत पर भी रोशनी डाली गयी है. फिल्म में एक जगह एक बच्ची जो कि अब दौड़/ रेसिंग के लिए प्रैक्टिस करने की बजाय मजदूरी कर रही है, का संवाद है- ‘‘दुर्भाग्य से हम प्लेअर (खिलाड़ी) से लेबरर(मजदूर) बन गए है.’’एक छोटी बालिका का यह कथन समाज व सरकार पर करारा तमाचा है.

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कहानीः

मशहूर पहलवान सरकार (सुनील शेट्टी) अविवाहित रहने का फैसला करते हुए एक अनाथ बालक में एक बलशाली पहलवान बनने के तमाम गुण मौजूद होने का अंदाजा लगाकर वह उसे अपने घर ले आते हैं. वह उस बच्चे की परवरिश अपने बेटे की तरह करते हैं. बड़ा होकर वह बच्चा किच्चा उर्फ कृष्णा पहलवान (किच्चा सुदीप) के नाम से मशहूर होता है. सरकार का एक ही सपना है कि कृष्णा उर्फ किच्चा राष्ट्रीय स्तर का पहलवान बनकर देश को स्वर्ण पदक दिलाए. इसके लिए वह किच्चा को लड़कियों से दूर रहने की सलाह देते हैं. किच्चा भी उनकी सलाह पर अमल करता है और पवनपुत्र का भक्त है. किच्चा सरकार को अपना भगवान मानता है और उसे बर्दाश्त नहीं कि कोई उनके भगवान पर उंगली उठाए. एक कुष्ती प्रतियोगिता के दौरान रणस्थली के राजा व कुष्तीबाज राणा साहब (सुशांत सिंह) का खास चमचा सरकार पर छींटाकशी करता है, तो दूसरे दिन किच्चा उसकी जमकर पिटाई कर दते हैं. इसी दौरान एक अमीर बाप (अविनाश) की बेटी रुक्मिणी (आकांक्षा सिंह) के प्यार में किच्चा पहलवान पड़ जाते हैं.

रूक्मिणी के पिता ने अपने व्यापारिक फायदे के लिए रूक्मिनी का विवाह एक व्यापारी के बेटे से तय की है. अब रूक्मिनी के पिता, सरकार से मदद मांगते हैं. सरकार उन्हें वचन देते हैं. सरकार को दिए वचन के अनुसार किच्चा पहलवान रणस्थली में राणा साहब से कुष्ती लड़ने जाता है और राणा साहब को हराकर विजयी भी होता है. मगर उसी दिन हो रही रूक्मिणी की शादी में रूक्मिणी जहर खाए, उससे पहले ही किच्चा पहलवान, शादी के मंडप में पहुंचकर रूक्मिणी से विवाह कर लेत हैं, उन्हें रोकने की हिम्मत कोई नहीं कर पाता. इससे नाराज होकर सरकार उससे सारे रिश्ते खत्म करते हुए वचन लेते हैं कि अब किच्चा पहलान भविष्य में कभी पहलवानी नहीं करेगा, कुष्ती नही लड़ेगा. अनपढ़ किच्चा मेहनत मजदूरी करके पत्नी के साथ खुशहाल जिंदगी जीने लगता है. उनकी एक बेटी जानू भी हो जाती है. मगर राणा साहब(सुशांत सिंह) अभी तक अपनी हार व अपमान को भूले नहीं है. वह किच्चा पहलवान की बेटी को बंदी बनाकर किच्चा पहलवान को कुष्ती लड़ने के लिए कहते हैं, पर किच्चा पहलवान, सरकार को दिया वचन तोड़ने को तैयार नही. अंततः सरकार आकर उससे कहते हैं कि खुद की रक्षा के लिए कुष्ती लड़ने से नही मना किया था. उसके बाद सरकार फिर से किच्चा पहलवान को बेटे, रूक्मिणी को बहू व जानू को पोती के रूप में स्वीकार कर लेते हैं. पर अंतरराष्ट्रीय स्तर के बाक्सर टोनी(कबीर दुहन सिंह) का दंभ और ख्ेाल के मैदान में आगे बढ़ने के लिए गरीब बच्चों की मदद करने का मकसद किच्चा हलवान को टोनी के विरुद्ध बाक्सिंग रिंग में उतरने पर मजबूर करता है और जीत किच्चा पहलवान की होती है.

कहानी व निर्देशनः

निर्देशक एस कृष्णा की फिल्म ‘‘पहलवान’’ बाक्स आफिस के लिए आवश्यक सभी मसालों से भरपूर होते हुए भी लोगों के दिलो दिमाग में रह जाने वाली फिल्म है. इसमें एक्शन, इमोशन, रिश्तों की अहमियत के साथ एक मकसद और संदेश भी है. माना कि फिल्म कुछ लंबी हो गयी है और इंटरवल से पहले फिल्म को बेवजह खींचा गया है, मगर इंटरवल के बाद एक कसी हुई फिल्म है, जो कि दर्शकों को बांधकर रखती है. खेल जगत में खिलाड़ियों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार पर एक सटीक टिप्पणी है. क्लाइमेक्स पर कैंची चलाकर छोटा किया जाना चाहिए था. सुनील शेट्टी व किच्चा सुदीप के बीच अटूट बंधन व रिश्ते पर गहराई से बात नही की गयी है. कहानी व पटकथा पर मेहनत की गयी होती, तो यह क्लासिक फिल्म बन सकती थी.

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जिस तरह से सलमान खान अपनी लगभग हर फिल्म में ‘‘बीइंग ह्यूमन’ के कार्य से संबंधित बात रखते रहते हैं, उसी तरह बंगलोर के नजदीक शिमोगा गांव में जो कर्म किच्चा सुदीप बच्चों के लिए कर रहे हैं, उसी दिशा में हर किसी को काम करने का संदेश दिया है, मगर भाषणबाजी नही है. फिल्म का गीत संगीत साधारण है.

फिल्म के कैमरामैन करुणाकर ए बधाई के पात्र हैं, कुछ दृश्यों में उनके कैमरे का कमाल नजर आता है.

अभिनयः

यह फिल्म पूरी तरह से किच्चा सुदीप की है. उन्होंने एक्शन, रोमांस, इमोशंस हर दृश्य में बाजी मारी है. मगर नृत्य के मामलें में वह थोडा कमतर हैं. मगर वह एक दिग्गज अभिनेता हैं, इसमें कोई दो राय नहीं. सुनील शेट्टी ने अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया है. आकांक्षा सिंह मासूम व खूबसूरत लगी हैं, वैसे उनके हिस्से कुछ खास करने को नहीं आया. अन्य कलाकार ठीक ठाक हैं.

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