रियो ओलंपिक में मेडल जीतने के लिए इंडियन एथलीट्स कड़ी मेहनत कर रहे हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश के लिए पहला ओलंपिक मेडल किसने जीता था. ये हैं ओलंपिक के गुमनाम हीरो खाशाबा दादासाहब जाधव. दादासाहब जाधव ने फिललैंड में हुए 1952 समर ओलंपिक में कुश्ती में ब्रॉन्ज मेडल जीता था.
कॉलेज के प्रिंसिपल के पास गिरवी रखा घर
दादासाहब जाधव ने 1948 में पहली बार ओलंपिक में हिस्सा लिया. तब कोल्हापुर के महाराजा ने उनकी लंदन यात्रा का खर्चा उठाया था. हालांकि, तब वह कोई भी कुश्ती का मैच नहीं जीत पाए थे.
इसके बाद उन्होंने 1952 ओलंपिक के लिए क्वालिफाई किया, लेकिन यहां जाने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे. उन्होंने इसके लिए लोगों से पैसे मांगे, चंदा इकट्ठा किया. घरवालों ने भी पैसे जुटाने में उनकी मदद की.
राज्य सरकार से बार-बार मदद मांगने के बाद उन्हें चार हजार रुपए की राशि मिली. बाकी के पैसों का इंतजाम करने के लिए उन्हें अपना घर, कॉलेज के प्रिंसिपल के पास गिरवी रखना पड़ा था. इसके बदले प्रिंसिपल ने उन्हें सात हजार रुपए की मदद की थी.
लाइफ पर बन रही है फिल्म
खाशाबा दादासाहब जाधव के लाइफ पर बॉलीवुड अभिनेता रितेश देशमुख ‘पॉकेट डायनेमो’ नाम की फिल्म बना रहे हैं. फिल्म में दादासाहब के बेटे रंजीत जाधव रितेश का सपोर्ट कर रहे हैं. यह फिल्म हिंदी के अलावा मराठी भाषा में भी आएगी.
इसके अलावा राइटर संजय सुधाने ने उन पर वीर के.डी. जाधव के नाम से किताब भी लिखी है.
चूक गए थे गोल्ड मेडल से
जाधव ने ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीता, लेकिन वो गोल्ड जीतने से चूक गए थे. दरअसल, वो यहां मैट सर्फेस पर एडजस्ट नहीं कर पा रहे थे.
इसके अलावा नियम के खिलाफ यहां लगातार दो बाउट रखवाए गए थे. जाधव के गोल्ड नहीं जीत पाने का एक कारण ये भी था.
फिर लड़ी थी फाइट
भारत लौटने के बाद जाधव का जोरदार वेलकम हुआ. उन्हें देखने के लिए स्टेशन पर हजारों की भीड़ थी. लोग कई बैलगाड़ी लेकर उन्हें लेने आए थे.
जाधव अपने प्रिंसिपल का एहसान नहीं भूले थे और अब वो अपना घर वापस चाहते थे. इसके लिए उन्होंने फिर कुश्ती लड़ी.
वापस आते ही उन्होंने कुश्ती प्रतियोगिता आयोजित की. इसमें उन्होंने खुद भी हिस्सा लिया और कई बाउट जीते. कुश्ती में जीते गए पैसे उन्होंने अपने प्रिंसिपल को वापस किए और गिरवी रखा घर छुड़वाया था.
पुलिस डिपार्टमेंट में की स्पोर्ट्स कोटे की शुरुआत
1955 में जाधव को मुंबई पुलिस में स्पोर्ट्स कोटे से सब-इंस्पेक्टर की नौकरी मिली. कई सालों तक वे इसी पोस्ट पर बने रहे. 1982 में उन्हें छह महीने के लिए असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर का पद मिला था.
पुलिस डिपार्टमेंट में स्पोर्ट्स कोटा जाधव के ओलंपिक में मेडल जीतने के बाद ही शुरू हुआ था. आज भी पुलिस में कई लोगों की भर्ती इस कोटे से होती है.
उन्होंने 25 सालों तक पुलिस डिपार्टमेंट में नौकरी की, लेकिन साथ काम करने वालों को पता नहीं चला कि वो ओलंपिक चैम्पियन हैं. रिटायरमेंट के दो साल बाद 1984 में उनकी एक एक्सीडेंट में मौत हो गई थी. दादासाहब के नाम पर दिल्ली के इंदिरा गांधी स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स में रेसलिंग स्टेडियम भी है.
मरने के बाद मिला अर्जुन अवॉर्ड
दादासाहब जाधव को 1983 में फाय फाउंडेशन ने "जीवन गौरव" अवॉर्ड से सम्मानित किया. 1990 में इन्हें मेघनाथ नागेश्वर अवॉर्ड से (मरणोपरांत) नवाजा गया. उनकी मौत के बाद 1993 में शिवाजी छत्रपति पुरस्कार और 2001 में भारत सरकार ने उन्हें अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया.