रबड़ की गुडि़या के नाम से मशहूर 22 साल की दीपा कर्माकर आज एक बड़ी सैलिब्रिटी बन गई है. उस का सैलिब्रिटी बनना तो तय था, क्योंकि वह लंबे अरसे से जिमनास्टिक जैसे साहसिक खेल में लगातार उम्दा प्रदर्शन कर रही थी. रियो टैस्ट इवैंट में स्वर्ण पदक जीत कर उस ने दिखा दिया कि वह बड़े मुकाबले को तैयार है. इस ऐतिहासिक सफलता के साथ दीपा को उस युवा ब्रिगेड में शामिल होने का गौरव हासिल हुआ है जो ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व करेगी. जिमनास्टिक में दीपा ओलंपिक क्वालिफाई करने वाली एकलौती भारतीय खिलाड़ी है. उस ने कलात्मक स्पर्धा में खेलने का हक हासिल किया है.

आज पूरा देश पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा जैसी जगह की लड़की दीपा कर्माकर का कायल है. आखिर कायल क्यों न हो, 52 साल बाद ओलंपिक में देश के लिए एकलौती भागीदारी इस खिलाड़ी के जज्बे की कहानी बयां करती है. वाकई यह एक बहुत बड़ी कामयाबी है. इस से पहले वर्ष 1964 में टोक्यो ओलंपिक में भारत ने आखिरी बार जिमनास्टिक में भाग लिया था. दीपा अब ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में  ओलंपिक में भाग ले रही है. इसी शहर में आयोजित टैस्ट इवैंट चैंपियनशिप में उस ने अपने अद्भुत प्रदर्शन से उन नामीगरामी जिमनास्टों को हैरत में डाल दिया, जिन की इस खेल में लंबे समय से बादशाहत कायम थी. दीपा जिमनास्टिक की जिस विधा ‘प्राडूनोवा वौल्ट’ में कुलांचें भरती है, यह सब से मुश्किल विधा है. दुनिया की महज 5 महिलाओं ने अब तक इसे किया है. रियो में दुनिया के 14 जिमनास्टों में उस का प्रदर्शन सब से बेहतरीन (15,066 अंक) रहा था. ओलंपिक में उस ने कलात्मक स्पर्धा में खेलने का हक हासिल किया है. कुल मिला कर करीब 5 दशक बाद कोई भारतीय युवती जिमनास्टिक में भारत की नुमाइंदगी कर रही है.

अनोखी संघर्षगाथा

महज 6 साल की उम्र में दीपा के पिता दुलाल कर्माकर, जो भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) में भारोत्तोलन कोच हैं, ने बेटी को जबरन जिमनास्टिक कोच बिश्वेश्वर नंदी के हाथों सौंप दिया. यह देख कर नंदी खुद हैरानपरेशान थे, क्योंकि नन्ही दीपा पौस्चुरल डिफौर्मिटी की शिकार थी. उस के पैर सपाट थे, जो जिमनास्टिक के लिए प्रतिकूल स्थिति नहीं मानी जाती. खुद दीपा का खेलों के प्रति ज्यादा लगाव भी नहीं था, लेकिन पिता 2 बेटियों में से एक को खेल में उतारना चाहते थे. दीपा ने अपने पैरों में लोच लाने के लिए रातदिन एक कर दिया.

आखिर उसे सफलता मिल ही गई. फिर तो कोच नंदी दीपा के जज्बे को देख कर पूरे उत्साह से उसे प्रशिक्षण देने में जुट गए. प्रशिक्षण का यह दौर काफी लंबा चला. लंबे इंतजार के बाद वर्ष 2007 में जलपाइगुड़ी में आयोजित जूनियर नैशनल चैंपियनशिप  में 14 साल की दीपा ने अपना सिक्का जमाया. तब से जीत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है, अब तक उस की झोली में 77 पदक आ चुके हैं. इन में 67 स्वर्ण पदक हैं. ये पदक उस ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में जीते हैं. दीपा अर्जुन पुरस्कार से भी सम्मानित हो चुकी है.

दिल्ली कौमनवैल्थ खेल

राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में शानदार प्रदर्शन का इनाम दीपा को वर्ष 2010 में दिल्ली में आयोजित कौमनवैल्थ खेलों में भारतीय टीम के सदस्य के रूप में जुड़ने से मिला. उस दौरान उस ने टीम सहयोगी आशीष कुमार के प्रदर्शन को देखा था, जिस ने भारतीय जिमनास्टिक के इतिहास में पदक जीतने का गौरव हासिल किया था. कैंप के दौरान आशीष से उसे खेल के कई गुर सीखने को मिले. इस नैशनल कैंप से जुड़ने का फायदा उसे 2011 के नैशनल गेम्स में मिला. त्रिपुरा राज्य का प्रतिनिधित्व करते हुए उस ने 5 स्वर्ण पदक जीते.

वर्ष 2014 में कौमनवैल्थ खेल दीपा के लिए नई सौगात ले कर आए. वह क्वालिफाई करने के बाद फाइनल में पहुंची. एक समय पैर में सूजन आने से उस का भाग लेना तय नहीं था, लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी और कांस्य पदक जीत कर इतिहास रच दिया. इस के बाद तो उस की जिंदगी ही बदल गई. खेल पंडितों ने उसे गंभीरता से लेना शुरू कर दिया. 2015 की एशियाई चैंपियनशिप में जीते कांस्य पदक ने दीपा की पदकों की भूख और बढ़ा दी. वह रियो ओलंपिक के लिए टिकट पाने की तैयारियों में जुट गई. वह विश्व चैंपियनशिप में अपने इस सपने को साकार करना चाहती थी, लेकिन मामूली अंतर से पिछड़ गई,  लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी बल्कि हार को प्रेरणा बनाया और 6 महीने के भीतर ही वह कमाल कर दिखाया जो भारतीय जिमनास्टिक इतिहास में कोई खिलाड़ी न कर पाया. दीपा को मिला कर कुल 12 खिलाडि़यों को ओलिंपियन कहलाने का हक मिला.

जिमनास्टिक में आशीष कुमार याद आते हैं. आशीष ने ग्वांगझू एशियाई खेलों में पदक जीता था. आशीष से भारत को बहुत उम्मीदें थीं, लेकिन उसे बेहतर कोच नहीं मिला. यह सवाल लाजमी है कि क्या दीपा आगे बेहतर कर पाएगी?

सपना साकार करना चाहती हूं

दीपा कहती है कि ओलंपिक के लिए क्वालिफाई करने का मेरा वर्षों पुराना सपना पूरा होने के बाद अब मैं पदक जीतने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हूं. जिमनास्टिक शुरू करने के बाद मैं ओलंपिक में खेलना चाहती थी और देश का नाम रोशन करनाचाहती हूं. राजधानी दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में बुनियादी ढांचा अच्छा है. भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) ने वहां नया स्पिंग बोर्ड लगाने का वादा किया है. मैं पिछले साल विश्व चैंपियनशिप में रियो के लिए टिकट पाना चाहती थी, लेकिन सफल नहीं हो पाई, इसलिए मैं ने रियो टैस्ट इवैंट को लक्ष्य बनाया. मैं उस में सफल हो गई. नंदीजी मुझे 16 साल से कोचिंग दे रहे हैं, लेकिन उन की भी अपनी सीमाएं हैं. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बेहतर करने के लिए अच्छे कोच की जरूरत है. मैं खुश हूं कि खेल मंत्रालय ने मुझे टारगेट ओलंपिक स्कीम में शामिल किया है.

दीपा का ओलंपिक में पदक जीतने का सपना है, लेकिन यह राह आसान नहीं है. उस के पास विश्वस्तरीय कोचिंग की कोई सुविधा तक नहीं है.

त्रिपुरा में टेलैंट

त्रिपुरा में जिमनास्टिक की लोकप्रियता कुछ ज्यादा ही रही है. 70 के दशक में मंटू देबनाथ और कल्पना देबनाथ जैसे जिमनास्ट उभर कर आए थे. हालांकि वे ओलंपिक तक नहीं पहुंच पाए थे, लेकिन दीपा के प्रदर्शन ने त्रिपुरा के युवा खिलाडि़यों के लिए रास्ते खोल दिए हैं

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