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सूना आसमान (अंतिम भाग) : क्या अनुज अमिता को हमसफर बना पाया

पूर्वकथा :

अमिता और अनुज दोनों बाल्यकाल से दोस्त होते हैं और धीरेधीरे उन की दोस्ती परवान चढ़ती है, लेकिन बाद में दोनों का अलगअलग स्कूल में ऐडमिशन हो जाता है और उन का मिलनाजुलना कम हो जाता है. क्या अनुज अमिता को अपनी हमसफर बना पाया.

आगे पढ़िए…

मैं अमिता के घर कभी नहीं गया था, लेकिन बहुत सोचविचार कर एक दिन मैं उस के घर पहुंच ही गया. दरवाजे की कुंडी खटखटाते ही मेरे मन को एक अनजाने भय ने घेर लिया. इस के बावजूद मैं वहां से नहीं हटा. कुछ देर बाद दरवाजा खुला तो अमिता की मां सामने खड़ी थीं. वे मुझे देख कर हैरान रह गईं. अचानक उन के मुंह से कोई शब्द नहीं निकला. मैं ने अपने दिल की धड़कन को संभालते हुए उन्हें नमस्ते किया और कहा, ‘‘क्या मैं अंदर आ जाऊं?’’

‘‘आं… हांहां,’’ जैसे उन्हें होश आया हो, ‘‘आ जाओ, अंदर आ जाओ,’’ अंदर घुस कर मैं ने चारों तरफ नजर डाली. साधारण घर था, जैसा कि आम मध्यवर्गीय परिवार का होता है. आंगन के बीच खड़े हो कर मैं ने अमिता के घर को देखा, बड़ा खालीखाली और वीरान सा लग रहा था. मैं ने एक गहरी सांस ली और प्रश्नवाचक भाव से अमिता की मां को देखा, ‘‘सब लोग कहीं गए हुए हैं क्या,’’ मैं ने पूछा.

अमिता की मां की समझ में अभी तक नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दें. मेरा प्रश्न सुन कर वे बोलीं, ‘‘हां, बस अमिता है, अपने कमरे में. अच्छा, तुम बैठो. मैं उसे बुलाती हूं,’’ उन्होंने हड़बड़ी में बरामदे में रखे तख्त की तरफ इशारा किया. तख्त पर पुराना गद्दा बिछा हुआ था, शायद रात को उस पर कोई सोता होगा. मैं ने मना करते हुए कहा, ‘‘नहीं, रहने दो. मैं उस के कमरे में ही जा कर मिल लेता हूं. कौन सा कमरा है?’’

अब तक शायद हमारी बातचीत की आवाज अमिता के कानों तक पहुंच चुकी थी. वह उलझी हुई सी अपने कमरे से बाहर निकली और फटीफटी आंखों से मुझे देखने लगी. वह इतनी हैरान थी कि नमस्कार करना तक भूल गई. मांबेटी की हैरानगी से मेरे दिल को थोड़ा सुकून पहुंचा और अब तक मैं ने अपने धड़कते दिल को संभाल लिया था. मैं मुसकराने लगा, तो अमिता ने शरमा कर अपना सिर झुका लिया, बोली कुछ नहीं. मैं ने देखा, उस के बाल उलझे हुए थे, सलवारकुरते में सिलवटें पड़ी हुई थीं. आंखें उनींदी सी थीं, जैसे उसे कई रातों से नींद न आई हो. वह अपने प्रति लापरवाह सी दिख रही थी.

‘‘बैठो, बेटा. मेरी तो समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूं? तुम पहली बार मेरे घर आए हो,’’ अमिता की मां ऐसे कह रही थीं, जैसे कोई बड़ा आदमी उन के घर पर पधारा हो.

मैं कुछ नहीं बोला और मुसकराता रहा. अमिता ने एक बार फिर अपनी नजरें उठा कर गहरी निगाह से मुझे देखा. उस की आंखों में एक प्रश्न डोल रहा था. मैं तुरंत उस का जवाब नहीं दे सकता था. उस की मां के सामने खुल कर बात भी नहीं कर सकता था. मैं चुप रहा तो शायद वह मेरे मन की बात समझ गई और धीरे से बोली, ‘‘आओ, मेरे कमरे में चलते हैं. मां, आप तब तक चाय बना लो,’’ अंतिम वाक्य उस ने अपनी मां से कुछ जोर से कहा था.

हम दोनों उस के कमरे में आ गए. उस ने मुझे अपने बिस्तर पर बैठा दिया, पर खुद खड़ी रही. मैं ने उस से बैठने के लिए कहा तो उस ने कहा, ‘‘नहीं, मैं ऐसे ही ठीक हूं,’’ मैं ने उस के कमरे में एक नजर डाली. पढ़ने की मेजकुरसी के अलावा एक साधारण बिस्तर था, एक पुरानी स्टील की अलमारी और एक तरफ हैंगर में उस के कपड़े टंगे थे. कमरा साफसुथरा था और मेज पर किताबों का ढेर लगा हुआ था, जैसे अभी भी वह किसी परीक्षा की तैयारी कर रही थी. छत पर एक पंखा हूम्हूम् करता हुआ हमारे विचारों की तरह घूम रहा था.

मैं ने एक गहरी सांस ली और अमिता को लगभग घूर कर देखता हुआ बोला, ‘‘क्या तुम मुझ से नाराज हो?’’ मैं बहुत तेजी से बोल रहा था. मेरे पास समय कम था, क्योंकि किसी भी क्षण उस की मां कमरे में आ सकती थीं और मुझे काफी सारे सवालों के जवाब अमिता से चाहिए थे.

वह कुछ नहीं बोली, बस सिर नीचा किए खड़ी रही. मैं ने महसूस किया, उस के होंठ हिल रहे थे, जैसे कुछ कहने के लिए बेताब हों, लेकिन भावातिरेक में शब्द मुंह से बाहर नहीं निकल पा रहे थे. मैं ने उस का उत्साह बढ़ाते हुए कहा, ‘‘देखो, अमिता, मेरे पास समय कम है और तुम्हारे पास भी… मां घर पर हैं और हम खुल कर बात भी नहीं कर सकते, जो मैं पूछ रहा हूं, जल्दी से उस का जवाब दो, वरना बाद में हम दोनों ही पछताते रह जाएंगे. बताओ, क्या तुम मुझ से नाराज हो?’’

‘‘नहीं, उस ने कहा, लेकिन उस की आवाज रोती हुई सी लगी.’’

‘‘तो, तुम मुझे प्यार करती हो? मैं ने स्पष्ट करना चाहा. कहते हुए मेरी आवाज लरज गई और दिल जोरों से धड़कने लग गया. लेकिन अमिता ने मेरे प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया, शायद उस के पास शब्द नहीं थे. बस, उस का बदन कांप कर रह गया. मैं समझ गया.’’

‘‘तो फिर तुम ने हठ क्यों किया? अपना मान तोड़ कर एक बार मेरे पास आ जाती, मैं कोई अमानुष तो नहीं हूं. तुम थोड़ा झुकती, तो क्या मैं पिघल नहीं जाता?’’

वह फिर एक बार कांप कर रह गई. मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘मेरी तरफ नहीं देखोगी?’’ उस ने तड़प कर अपना चेहरा उठाया. उस की आंखें भीगी हुई थीं और उन में एक विवशता झलक रही थी. यह कैसी विवशता थी, जो वह बयान नहीं कर सकती थी? मुझे उस के ऊपर दया आई और सोचा कि उठ कर उसे अपने अंक में समेट लूं, लेकिन संकोचवश बैठा रहा.

उस की मां एक गिलास में पानी ले कर आ गई थीं. मुझे पानी नहीं पीना था, फिर भी औपचारिकतावश मैं ने गिलास हाथ में ले लिया और एक घूंट भर कर गिलास फिर से ट्रे में रख दिया. मां भी वहीं सामने बैठ गईं और इधरउधर की बातें करने लगीं. मुझे उन की बातों में कोई रुचि नहीं थी, लेकिन उन के सामने मैं अमिता से कुछ पूछ भी नहीं सकता था.

उस की मां वहां से नहीं हटीं और मैं अमिता से आगे कुछ नहीं पूछ सका. मैं कितनी देर तक वहां बैठ सकता था, आखिर मजबूरन उठना पड़ा, ‘‘अच्छा चाची, अब मैं चलता हूं.’’

‘‘अच्छा बेटा,’’ वे अभी तक नहीं समझ पाई थीं कि मैं उन के घर क्यों आया था. उन्होंने भी नहीं पूछा. इंतजार करूंगा, कह कर मैं ने एक गहरी मुसकान उस के चेहरे पर डाली. उस की आंखों में विश्वास और अविश्वास की मिलीजुली तसवीर उभर कर मिट गई. क्या उसे मेरी बात पर यकीन होगा? अगर हां, तो वह मुझ से मिलने अवश्य आएगी.

पर वह मेरे घर फिर भी नहीं आई. मेरे दिल को गहरी ठेस पहुंची. क्या मैं ने अमिता के दिल को इतनी गहरी चोट पहुंचाई थी कि वह उसे अभी तक भुला नहीं पाई थी. वह मुझ से मिलती तो मैं माफी मांग लेता, उसे अपने अंक में समेट लेता और अपने सच्चे प्यार का उसे एहसास कराता. लेकिन वह नहीं आई, तो मेरा दिल भी टूट गया. वह अगर स्वाभिमानी है, तो क्या मैं अपने आत्मसम्मान का त्याग कर देता?

हम दोनों ही अपनेअपने हठ पर अड़े रहे. समय बिना किसी अवरोध के अपनी गति से आगे बढ़ता रहा. इस बीच मेरी नौकरी एक प्राइवेट कंपनी में लग गई और मैं अमिता को मिले बिना चंडीगढ़ चला गया. निधि को भी जौब मिल  गया, अब वह नोएडा में नौकरी कर रही थी.

इस दौरान मेरी दोनों बहनों का भी ब्याह हो गया और वे अपनीअपनी ससुराल चली गईं. जौब मिल जाने के बाद मेरे लिए भी रिश्ते आने लगे थे, लेकिन मम्मी और पापा ने सबकुछ मेरे ऊपर छोड़ दिया था.

निधि की मेरे प्रति दीवानगी दिनबदिन बढ़ती जा रही थी, मैं उस के प्रति समर्पित नहीं था और न उस से मिलनेजुलने के लिए इच्छुक, लेकिन निधि मकड़ी की तरह मुझे अपने जाल में फंसाती जा रही थी. वह छुट्टियों में अपने घर न जा कर मेरे पास चंडीगढ़ आ जाती और हम दोनों साथसाथ कई दिन गुजारते.

मैं निधि के चेहरे में अमिता की छवि को देखते हुए उसे प्यार करता रहा, पर मैं इतना हठी निकला कि एक बार भी मैं ने अमिता की खबर नहीं ली. पुरुष का अहम मेरे आड़े आ गया. जब अमिता को ही मेरे बारे में पता करने की फुरसत नहीं है, तो मैं उस के पीछे क्यों भागता फिरूं?

अंतत: निधि की दीवानगी ने मुझे जीत लिया. उधर मम्मीपापा भी शादी के लिए दबाव डाल रहे थे. इसलिए जौब मिलने के सालभर बाद हम दोनों ने शादी कर ली.

निधि के साथ मैं दक्षिण भारत के शहरों में हनीमून मनाने चला गया. लगभग 15 दिन बिता कर हम दोनों अपने घर लौटे. हमारी छुट्टी अभी 15 दिन बाकी थी, अत: हम दोनों रोज बाहर घूमनेफिरने जाते, शाम को किसी होटल में खाना खाते और देर रात गए घर लौटते. कभीकभी निधि के मायके चले जाते. इसी तरह मस्ती में दिन बीत रहे थे कि एक दिन मुझे तगड़ा झटका लगा.

अमिता की मां मेरे घर आईं और रोतेरोते बता रही थीं कि अमिता के पापा ने उस के लिए एक रिश्ता ढूंढ़ा था. बहुत अच्छा लड़का था, सरकारी नौकरी में था और घरपरिवार भी अच्छा था. सभी को यह रिश्ता बहुत पसंद था, लेकिन अमिता ने शादी करने से इनकार कर दिया था. घर वाले बहुत परेशान और दुखी थे, अमिता किसी भी तरह शादी के लिए मान नहीं रही थी.

‘‘शादी से इनकार करने का कोई कारण बताया उस ने,’’ मेरी मां अमिता की मम्मी से पूछ रही थीं.

‘‘नहीं, बस इतना कहती है कि शादी नहीं करेगी और पहाड़ों पर जा कर किसी स्कूल में पढ़ाने का काम करेगी.’’

‘‘इतनी छोटी उम्र में उसे ऐसा क्या वैराग्य हो गया,’’ मेरी मां की समझ में भी कुछ नहीं आ रहा था. पर मैं जानता था कि अमिता ने यह कदम क्यों उठाया था? उसे मेरा इंतजार था, लेकिन मैं ने हठ में आ कर निधि से शादी कर ली थी. मैं दोबारा अमिता के पास जा कर उस से माफी मांग लेता, तो संभवत: वह मान जाती और मेरा प्यार स्वीकार कर लेती. हम दोनों ही अपनी जिद्द और अहंकार के कारण एकदूसरे से दूर हो गए थे. मुझे लगा, अमिता ने किसी और के साथ नहीं बल्कि मेरे साथ अपना रिश्ता तोड़ा है.

मेरी शादी हो गई थी और मुझे अब अमिता से कोई सरोकार नहीं रखना चाहिए था, पर मेरा दिल उस के लिए बेचैन था. मैं उस से मिलना चाहता था, अत: मैं ने अपना हठ तोड़ा और एक बार फिर अमिता से मिलने उस के घर पहुंच गया. मैं ने उस की मां से निसंकोच कहा कि मैं उस से एकांत में बात करना चाहता हूं और इस बीच वे कमरे में न आएं.

मैं बैठा था और वह मेरे सामने खड़ी थी. उस का सुंदर मुखड़ा मुरझा कर सूखी, सफेद जमीन सा हो गया था. उस की आंखें सिकुड़ गई थीं और चेहरे की कांति को ग्रहण लग गया था. उस की सुंदर केशराशि उलझी हुई ऊन की तरह हो गई थी. मैं ने सीधे उस से कहा, ‘‘क्यों अपने को दुख दे रही हो?’’

‘‘मैं खुश हूं,’’ उस ने सपाट स्वर में कहा.

‘‘शादी के लिए क्यों मना कर दिया?’’

‘‘यही मेरा प्रारब्ध है,’’ उस ने बिना कुछ सोचे तुरंत जवाब दिया.

‘‘यह तुम्हारा प्रारब्ध नहीं था. मेरी बात को इतना गहरे अपने दिल में क्यों उतार लिया? मैं तो तुम्हारे पास आया था, फिर तुम मेरे पास क्यों नहीं आई? आ जाती तो आज तुम मेरी पत्नी होती.’’

‘‘शायद आ जाती,’’ उस ने निसंकोच भाव से कहा, ‘‘लेकिन रात को मैं ने इस बात पर विचार किया कि आप मेरे पास क्यों आए थे. कारण मेरी समझ में आ गया था. आप मुझ से प्यार नहीं करते थे, बस तरस खा कर मेरे पास आए थे और मेरे घावों पर मरहम लगाना चाहते थे.

‘‘मैं आप का सच्चा प्यार चाहती थी, तरस भरा प्यार नहीं. मैं इतनी कमजोर नहीं हूं कि किसी के सामने प्यार के लिए आंचल फैला कर भीख मांगती. उस प्यार की क्या कीमत, जिस की आग किसी के सीने में न जले.’’

‘‘क्या यह तुम्हारा अहंकार नहीं है?’’ उस की बात सुन कर मुझे थोड़ा गुस्सा आ गया था.

‘‘हो सकता है, पर मुझे इसी अहंकार के साथ जीने दीजिए. मैं अब भी आप को प्यार करती हूं और जीवनभर करती रहूंगी. मैं अपने प्यार को स्वीकार करने के लिए ही उस दिन आप के पास मिठाई देने के बहाने गई थी, लेकिन आप ने बिना कुछ सोचेसमझे मुझे ठुकरा दिया. मैं जानती थी कि आप दूसरी लड़कियों के साथ घूमतेफिरते हैं, शायद उन में से किसी को प्यार भी करते हों. इस के बावजूद मैं आप को मन ही मन प्यार करने लगी थी. सोचती थी, एक दिन मैं आप को अपना बना ही लूंगी. मैं ने आप का प्यार चाहा था, लेकिन मेरी इच्छा पूरी नहीं हुई. फिर भी अगर आप का प्यार मेरा नहीं है तो क्या हुआ, मैं ने जिस को चाहा, उसे प्यार किया और करती रहूंगी. मेरे प्यार में कोई खोट नहीं है,’’ कहतेकहते वह सिसकने लगी थी.

‘‘अगर अपने हठ में आ कर मैं ने तुम्हारा प्यार कबूल नहीं किया, तो क्या दुनिया इतनी छोटी है कि तुम्हें कोई दूसरा प्यार करने वाला युवक न मिलता. मुझ से बदला लेने के लिए तुम किसी अन्य युवक से शादी कर सकती थी,’’ मैं ने उसे समझाने का प्रयास किया.

वह हंसी. बड़ी विचित्र हंसी थी उस की, जैसे किसी बावले की… जो दुनिया की नासमझी पर व्यंग्य से हंस रहा हो. वह बोली, ‘‘मैं इतनी गिरी हुई भी नहीं हूं कि अपने प्यार का बदला लेने के लिए किसी और का जीवन बरबाद करती. दुनिया में प्यार के अलावा और भी बहुत अच्छे कार्य हैं. मदर टेरेसा ने शादी नहीं की थी, फिर भी वह अनाथ बच्चों से प्यार कर के महान हो गईं. मैं भी कुंआरी रह कर किसी कौन्वैंट स्कूल में बच्चों को पढ़ाऊंगी और उन के हंसतेखिलखिलाते चेहरों के बीच अपना जीवन गुजार दूंगी. मुझे कोई पछतावा नहीं है.

‘‘आप अपनी पत्नी के साथ खुश रहें, मेरी यही कामना है. मैं जहां रहूंगी, खुश रहूंगी… अकेली ही. इतना मैं जानती हूं कि बसंत में हर पेड़ पर बहार नहीं आती. अब आप के अलावा मेरे जीवन में किसी दूसरे व्यक्ति के लिए कोई जगह नहीं है,’’ उस की आंखों में अनोखी चमक थी और उस के शब्द तीर बन कर मेरे दिल में चुभ गए.

मुझे लगा मैं अमिता को बिलकुल भी नहीं समझ पाया था. वह मेरे बचपन की साथी अवश्य थी, पर उस के मन और स्वभाव को मैं आज तक नहीं समझ पाया था. मैं ने उसे केवल बचपन में ही जाना था. अब जवानी में जब उसे जानने का मौका मिला, तब तक सबकुछ लुट चुका था.

वह हठी ही नहीं, स्वाभिमानी भी थी. उस को उस के निर्णय से डिगा पाना इतना आसान नहीं था. मैं ने अमिता को समझने में बहुत बड़ी भूल की थी. काश, मैं उस के दिल को समझ पाता, तो उस की भावनाओं को इतनी चोट न पहुंचती.

अपनी नासमझी में मैं ने उस के दिल को ठेस पहुंचाई थी, लेकिन उस ने अपने स्वाभिमान से मेरे दिल पर इतना गहरा घाव कर दिया था, जो ताउम्र भरने वाला नहीं था.

सबकुछ मेरे हाथों से छिन गया था और मैं एक हारे हुए जुआरी की तरह अमिता के घर से चला आया.

शादी का पहाड़ा जो कोई बांचे

वे काफी देर तक ऐसे बैठे रहे, जैसे रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़े गए हों. उन्हें झकझोरा गया, तब बड़े अफसोस के साथ उन्होंने आहिस्ता से अपना सिर हिलाया. गहरे कुएं से आती हुई आवाज में वे बोले, ‘‘अच्छे दिनों के हल्ले में कैसे बुरे दिन आ गए हैं कि अभी एक दुलहन ने विवाह मंडप में शादी करने से इसलिए इनकार कर दिया, क्योंकि दूल्हा 15 का पहाड़ा नहीं बोल पाया. लाख मिन्नतों के बावजूद दूल्हे को बैरंग लौटना पड़ा.’’

‘‘यह कहो न कि सेर को सवा सेर मिलने की टीस है. इसे ही अच्छे दिन कहते हैं कि आज की लड़कियां होने वाले पति के हिसाबकिताब करने की ताकत को चैक कर रही हैं, वरना अभी तक तो मर्द ही औरत के हुनर का इम्तिहान लेता आया है,’’ मैं ने इतना कहा, तो उन्होंने मुझे यों घूरा, जैसे वह ठुकराया हुआ दूल्हा मैं ही होऊं. वे मुझे नीचे से ऊपर तक घूरते हुए बोले, ‘‘चलो, एकबारगी बोल भी देता तो क्या, सारे पहाड़े तो वैसे भी शादी के बाद भूल जाने थे.’’

‘‘लगता है कि एक दुलहन द्वारा ठुकराए जाने पर तुम्हारे जैसे मर्दों की मर्दानगी को ठेस पहुंची है.’’ ‘‘देखो, तुम मुझे गलत समझ रहे हो. दरअसल, बात यह है कि…’’

बात को बीच में ही काटते हुए मैं ने टोका, ‘‘तो तुम क्या समझाना चाहते हो? हम जब कोई सामान खरीदते हैं, तो पहले अच्छी तरह ठोंकबजा कर देखते हैं कि नहीं? वैसे भी यह तो होना ही था. बैरंग लौटने वालों की फेहरिस्त अब बढ़ती ही जा रही है. ‘‘अभी पिछले दिनों एक दूल्हे ने वरमाला डालते समय गरदन नहीं झुकाई, तो दुलहन ने उसे चलता कर दिया. एक दूल्हे के मुंह से शराब की गंद आई, तो फेरे उलटे पड़ गए.

‘‘इस से भी आगे बढ़ते हुए एक दूल्हे ने दुलहन की सहेलियों पर थोड़ा बेहूदा कमैंट कर दिया, बस फिर क्या था. दूल्हे को कमैंट करना ही भुला दिया गया, इसलिए यह वक्त चोट खाए जख्मों को सहलाने का नहीं, बल्कि सोचनेविचारने का है.’’

वे रोंआसे हो गए और अफसोस में सिर हिलाते हुए बोले, ‘‘काश, किसी ने मुझ से भी शादी के वक्त पहाड़ा बुलवाया होता.’’

‘‘अगर बुलवाया होता, तो आप तो फर्राटे से पहाड़ों के पहाड़ पर चढ़ जाते. शादी का लड्डू जो खाने को बेताब थे,’’ मैं ने मजाकिया लहजे में कहा. मेरे दोस्त खिसियानी हंसी हंसते हुए कहने लगे, ‘‘बात तो तुम्हारी सच है, लेकिन क्या है कि हम गणित में बचपन से ही कमजोर थे. किसी तरह बोर्ड का वाघा बौर्डर पार कर पाए थे. हमारी किस्मत ही खराब थी, जो किसी ने मंडप में हम से पहाड़ा नहीं बुलवाया, वरना हम तो वहीं फेल हो जाते. फिर ताउम्र जिम्मेदारियों के पहाड़े रटने से छुटकारा पा जाते और इस तरह अच्छीखासी जिंदगी पहाड़ा नहीं होती.’’

उन के दर्द का समंदर जैसे बह निकला था. वे कहते गए, ‘‘सारी उम्र रिश्तों के फौर्मूले सुलझाने में गुजार दी, मगर जोड़ हमेशा गलत ही बैठा. किसी ने सही कहा है कि शादी चार दिन की चांदनी है, फिर अंधेरी रात है. चमकता जुगनू है, जिस की कुछ पलों की चमक अच्छी लगती है.’’ ‘‘दोस्त, नर हो न निराश करो मन को… धीरज धरो. वैसे, तुम क्या समझ कर शादी के झाड़ पर चढ़े थे?’’

‘‘काहे के नर, बस वानर समझो, जिन के हिस्से में उछलकूद है. किसी शायर ने सही कहा है, ‘शादी आग का दरिया है और डूब के जाना है’. कई लोग यह कह कर उकसाते पाए जाते हैं कि ‘जो डूबा सो पार गया’, लेकिन यहां जो डूबा, फिर क्या खाक उबरा. ‘‘शादीशुदा जिंदगी नदी के दो किनारों की तरह है, जो जिंदगीभर मिलने की कोशिश करते हैं, लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी मिल नहीं पाते हैं. शादी धरती व आसमान का वह किनारा है, जिस में सिर्फ मिलने का भरम है. पास जाओ, तो सबकुछ साफ है.’’

‘‘दुखी आत्मा, जिसे तुम आग का दरिया कह रहे हो, वह शादी नहीं इश्क है. दो किनारों की खूबसूरती इसी में है कि वे तमाम उम्र चाहत, जुनून और जोश के साथ मिलने की कोशिश में लगे रहें. इस से उन का आपसी खिंचाव बना रहता है.’’ ‘‘यह शादी का दार्शनिक पक्ष है जनाब, हकीकत इस के उलट है. यह ऐसा लड्डू है, जिसे देशी घी के भरम में बड़े चाव से मुंह में डालते हैं और वैजीटेबल घी से ठग लिए जाते हैं. वैसे, इश्क हो तो आग का दरिया क्या, तलवार की धार पर भी दौड़ जाएं. मेरा तो इतना कहना है कि शादी सुख का विलोम है,’’ वे बोले.

‘‘यदि यह विलोम है, तो अनुलोम का अभ्यास कर के इसे एक लय देनी चाहिए. वैसे, अनुलोमविलोम से एक लयकारी, संतुलनकारी रिद्म बनती है. शादी एक अनुशासन पर्व है, सुव्यवस्थित जीवनशैली का नाम है. लेकिन मर्दों के लंपट मन को अनुशासन में बांधना शेरों को ब्रश कराने से कम नहीं है. कोई कोशिश कर ले, तो तिलमिला जाते हैं. सबकुछ छूट रहा है, मगर हेकड़ी नहीं जाती. यही तो मर्दवादी नजरिया है.’’ वे हमारी बातें चुपचाप सुनते रहे, अफसोस में घोड़े की तरह हिनहिनाते रहे, लेकिन मानने को तैयार नहीं दिखे. जिन्हें मनाता समय है, उन्हें तो यही कह सकते हैं कि अबे, मान भी जाओ मर्द, वरना बहुत पछताओगे.

प्याज के आंसू : जब प्याज खरीदने के लिए लगी लंबी कतार

प्याज खरीदने की लंबी कतार में लगे हुए 2 घंटे से ज्यादा का समय बीत चुका था, पर बढ़ती महंगाई की तरह यह लाइन भी दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी. किसकिस लाइन में लगे जनता? बिजली का बिल जमा करने, राशन की दुकान, रेल का टिकट, बैंक का काउंटर और सरकारी अस्पतालों की बिना बेहोशी की दवा के बेहोश करने वाली कतारें. सच, नानी याद दिला देती हैं. खैर, लाइन आगे बढ़ी. मुश्किल से 10 लोग अपने मकसद से दूर रह गए. मुझे संतोष हुआ कि चलो अब मंजिल दूर नहीं है कि तभी अचानक स्टे और्डर सा लग गया.

मालूम हुआ कि प्याज का स्टौक खत्म हो गया है. दूसरा स्टौक आने में कुछ देर लग जाएगी. तभी एक सज्जन ने हद कर दी. उन्होंने ‘हद है भैया’ कहते हुए मेरी ओर पान की पीक थूक दी, तभी आगे से एक वाक्य उछल कर मेरे कानों से टकराया, ‘अरे, आप धक्का क्यों दे रहे हैं?’

जवाब आया, ‘मैं ने कोई धक्का नहीं दिया. आप ने इतनी जोर से मेरे पेट में कुहनी मारी कि मैं गिरतेगिरते बचा.’ यह तो अच्छा हुआ कि इस धक्कामुक्की में मेरी जगह नहीं गई. इसी शोरशराबे में मेरा नंबर आ गया. मैं झपट कर पहुंचा तो देखा कि काउंटर पर निर्धन के धन की तरह मुश्किल से पावभर प्याज पड़े थे. मरता क्या न करता, प्याज के आंसू रोते हुए मैं ने झोला आगे कर दिया. आज समझ में आया कि प्याज के आंसू किसे कहते हैं. जो खरीदने से ले कर पकाने तक में सौसौ आंसू गिरवाते हैं.

प्याज खरीद कर मैं ने अपना स्कूटर स्टार्ट किया. घर की घंटी बजाने से पहले ही पत्नी ने सजग द्वारपाल की तरह ऐसे दरवाजा खोल दिया, जैसे वह पहले ही से दरवाजे पर कान लगाए बैठी थी. ‘‘लो, अब तो खुश हो जाओ,’’ कहते हुए मैं ने झोला पत्नी की ओर बढ़ा दिया और मासूम सी एक मुसकान के साथ उन की ओर देखने लगा.

लेकिन पत्नी ने झोला वापस लौटाते हुए पटक दिया. 2-4 प्याज लुढ़क कर मानो मेरी ओर देखने लगे. जैसे वे कह रहे हों कि क्या बेइज्जती करवाने के लिए तुम हमें यहां लाए थे? इस से अच्छे तो हम कालाबाजारियों के यहां थे. कम से कम बोरों में बंद दूसरे साथियों के साथ सारा दिन गपशप तो होती रहती थी. ठंडीठंडी कूलिंग का मजा अलग था, वरना इस 48 डिगरी टैंपरेचर में क्या हाल होता है, जनता खूब जानती है.

दरअसल, कुछ चीजें ऐसी हैं, जो केवल और केवल जनता के ही हिस्से में आती हैं, जैसे बिन बिजली, बिन पानी सब सून. बिन सड़कें, बिन भ्रष्टाचार जीवन बेकार. बिन महंगाई, जीवन धिक्कार. अहिंसा, परमो धर्म’, ‘संतोषी सदा सुखी’. ‘न बुरा देखो, न बुरा सुनो, न बुरा कहो’. इसी में आम जनता का पूरा जीवन दर्शन छिपा है. जो इन को अपना ले, समझ लीजिए कि उस के सारे दुख खत्म हो गए. पता नहीं, लोग क्यों हर चीज के लिए इतना होहल्ला मचाते हैं? क्या मिट्टी के तेल के लिए लाइन लगाना कोई गुनाह है? आखिर बिजली के जन्म के पहले भी तो आप वहां लाइन लगाते ही थे. पहले भी तो लकड़ी के चूल्हों पर ही खाना बनता था, जो आज से कहीं ज्यादा स्वादिष्ठ और सेहतमंद होता था.

इस बात को मानने से बड़े से बड़ा वैज्ञानिक भी इनकार नहीं कर सकता, तो क्यों भैया इस के लिए झींकते हो? 2-4 घंटे खड़े रहोगे, तो तुम्हारे पैर नहीं टूट जाएंगे. अनुशासन मुफ्त में सीखने को मिल रहा है, जो और जगह लाइन लगाने में काम आएगा. तभी श्रीमतीजी की मधुर आवाज कानों में पड़ी, ‘‘सुनते हो, खाना ले जाओ.’’

मैं विचारों से बाहर निकला और झट से थाली थाम ली. देखा तो रोटियों के साथ आधा कप प्याज खींसें निपोर रहे थे. पहला कौर खाया कि कमबख्त प्याज का तीखापन फिर आंसू रुला गया.

7 तरीके जो संवारें आप के बच्चे का भविष्य

एकल परिवारों के बढ़ते चलन और मातापिता के कामकाजी होने की वजह से बच्चों का बचपन जैसे चारदीवारी में कैद हो गया है. वे पार्क या खुली जगह खेलने के बजाय वीडियो गेम खेलते हैं. उन के दोस्त हमउम्र बच्चे नहीं, बल्कि टीवी, कंप्यूटर, मोबाइल हैं. इस से बच्चों के व्यवहार और उन की मानसिकता पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है. वे न तो सामाजिकता के गुर सीख पाते हैं और न ही उन के व्यक्तित्व का सामान्य रूप से विकास हो पाता है.

क्यों जरूरी है सोशल स्किल सही भावनात्मक विकास के लिए सरोज सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल के मनोवैज्ञानिक, डा. संदीप गोविल कहते हैं, ‘‘मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. वह समाज से अलग नहीं रह सकता. सफल और बेहतर जीवन के लिए जरूरी है कि बच्चों को दूसरे लोगों से तालमेल बैठाने में परेशानी न आए. जिन बच्चों में सोशल स्किल विकसित नहीं होती है उन्हें बड़ा हो कर स्वस्थ रिश्ते बनाने में समस्या आती है. सोशल स्किल बच्चों में साझेदारी की भावना विकसित करती है और आत्मकेंद्रित होने से बचाती है. उन के मन से अकेलेपन की भावना कम करती है.’’

आक्रामक व्यवहार पर लगाम कसने के लिए डा. संदीप गोविल कहते हैं, ‘‘आक्रामक व्यवहार एक ऐसी समस्या है, जो बच्चों में बड़ी आम होती जा रही है. पारिवारिक तनाव, टीवी या इंटरनैट पर हिंसक कार्यक्रम देखना, पढ़ाई में अच्छे प्रदर्शन का दबाव या परिवार से दूर होस्टल वगैरह में रहने वाले बच्चों में आक्रामक बरताव ज्यादा देखा जाता है. ऐसे बच्चे सब से कटेकटे रहते हैं. दूसरे बच्चों द्वारा हर्ट किए जाने पर चीखनेचिल्लाने लगते हैं. अपशब्द कहते हुए मारपीट पर उतर आते हैं. ज्यादा गुस्सा होने पर कई बार हिंसक भी हो जाते हैं.’’ बचपन से ही बच्चों को सामाजिकता का पाठ पढ़ाया जाए तो उन में इस तरह की प्रवृत्ति पैदा ही नहीं होगी.

बच्चों को सामाजिकता का पाठ एक दिन में नहीं पढ़ाया जा सकता. इस के लिए बचपन से ही उन की परवरिश पर ध्यान देना जरूरी है.

जब बच्चा छोटा हो: एकल परिवारों में रहने वाले 5 साल तक की उम्र के बच्चे आमतौर पर मांबाप या दादादादी से ही चिपके रहते हैं. इस उम्र से ही उन्हें चिपकू बने रहने के बजाय सामाजिक रूप से ऐक्टिव रहना सिखाना चाहिए.

अपने बच्चों से बातें करें: पारस ब्लिस अस्पताल की साइकोलौजिस्ट, डा. रुबी आहुजा कहती हैं, ‘‘उस समय से जब आप का बच्चा काफी छोटा हो, उसे उस के नाम से संबोधित करें, उस से बातें करते रहें. उस के आसपास की हर चीज के बारे में उसे बताते रहें. वह किसी खिलौने से खेल रहा है, तो खिलौने का नाम पूछें. खिलौना किस रंग का है, इस में क्या खूबी है जैसी बातें पूछते रहें. नएनए ढंग से खेलना सिखाएं. इस से बच्चा एकांत में खेलने की आदत से बाहर निकल पाएगा.’’

बच्चे को दोस्तों, पड़ोसियों के साथ मिलवाएं: हर रविवार कोशिश करें कि बच्चा किसी नए रिश्तेदार या पड़ोसी से मिले. पार्टी वगैरह में छोटा बच्चा एकसाथ बहुत से नए लोगों को देख कर घबरा जाता है. पर जब आप अपने खास लोगों और उन के बच्चों से उसे समयसमय मिलवाते रहेंगे तो बच्चा जैसेजैसे बड़ा होगा, इन रिश्तों में अधिक से अधिक घुलमिल कर रहना सीख जाएगा.

दूसरे बच्चों के साथ घुलनेमिलने और खेलने दें: अपने बच्चे की अपने आसपास या स्कूल के दूसरे बच्चों के साथ घुलनेमिलने में मदद करें ताकि वह सहयोग के साथसाथ साझेदारी की शक्ति को भी समझ सके. जब बच्चे खेलते हैं, तो एकदूसरे से बात करते हैं. आपस में घुलतेमिलते हैं. इस से सहयोग की भावना और आत्मीयता बढ़ती है. उन का दृष्टिकोण विकसित होता है और वे दूसरों की समस्याओं को समझते हैं, दूसरे बच्चों के साथ घुलमिल कर वे जीवन के गुर सीखते हैं, जो उन के साथ उम्र भर रहते हैं. जब बच्चे बड़े हो रहे हों

परवरिश में बदलाव लाते रहें: डा. संदीप गोविल कहते हैं, ‘‘बच्चों की हर जरूरत के समय उन के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से उपलब्ध रहें, लेकिन उन्हें थोड़ा स्पेस भी दें. हमेशा उन के साथ साए की तरह न रहें. बच्चे जैसेजैसे बड़े होते हैं वैसेवैसे उन के व्यवहार में बदलाव आता है. आप 3 साल के बच्चे और 13 साल के बच्चे के साथ एक समान व्यवहार नहीं कर सकते. जैसेजैसे बच्चों के व्यवहार में बदलाव आए उस के अनुरूप उन के साथ अपने संबंधों में बदलाव लाएं. गैजेट्स के साथ कम समय बिताने दें

गैजेट्स का अधिक उपयोग करने से बच्चों का अपने परिवेश से संपर्क कट जाता है. मस्तिष्क में तनाव का स्तर बढ़ने लगता है, जिस से व्यवहार थोड़ा आक्रामक हो जाता है. इस से सामाजिक, भावनात्मक और ध्यानकेंद्रन की समस्या हो जाती है. स्क्रीन को लगातार देखने से इंटरनल क्लौक गड़बड़ा जाती है. बच्चों को गैजेट्स का उपयोग कम करने दें, क्योंकि इन के साथ अधिक समय बिताने से उन्हें खुद से जुड़ने और दूसरों से संबंध बनाने में समस्या पैदा हो सकती है. एक दिन में 2 घंटे से अधिक टीवी न देखने दें. धार्मिक गतिविधियों से दूर रखें: अपने बच्चों को शुरु से ही विज्ञान और तकनीक की बातें बताएं. उन्हें धार्मिक क्रियाकलाप, पूजापाठ, अवैज्ञानिक सोच से दूर रखें.

रेनी सीजन में त्वचा की 5 समस्याओं से ऐसे निबटें

जहां एक ओर मौनसून तेज गरमी से राहत दिलाता है वहीं दूसरी और इस मौसम में कई तरह की त्वचा की समस्याएं भी आम हैं. इस मौसम में त्वचा की कुछ आम समस्याएं निम्न हैं.

त्वचा की ऐलर्जी: बड़े शहरों में प्रदूषण ज्यादा होने के कारण त्वचा की ऐलर्जी आमतौर पर देखने में आती है. ऐलर्जी का असर ज्यादातर पीठ के ऊपरी हिस्से, हाथों और पैरों पर पड़ता है. ऐलर्जी के कई कारण हो सकते हैं. सही कारण का पता लगाना मुश्किल होता है.

उपाय: अनुभवी डाक्टर ऐलर्जी का सही इलाज करता है. इस से ऐलर्जी से राहत मिलती है. अस्थाई राहत के लिए प्रभावित हिस्से पर आइसक्यूब्स रगड़ें, फिर सुखा कर बेबी टैलकम पाउडर लगा लें. प्रभावित हिस्से पर खुजली न करें. खासतौर पर नाखूनों से बिलकुल न रगड़ें. बहुत ही ज्यादा खुजली हो रही हो, तो हथेली से हलकेहलके सहलाएं.

बहुत ज्यादा पसीना आना: मौनसून में हवा में नमी बहुत ज्यादा बढ़ जाती है, जिस से गरदन, बगलों, हथेलियों, चेहरे, सिर की त्वचा और तलवों में ज्यादा पसीना आता है. मौनसून में कई बार शरीर में दुर्गंध और संक्रमण की समस्या भी बढ़ जाती है.

उपाय: ऐंटीफंगल साबुन और पानी से प्रभावित हिस्से को धो कर सुखा लें. ऐंटीपर्सपिरैंट का इस्तेमाल करें. कौटन के कपड़े पहनें. इस से शरीर में हवा का आवागमन होता रहेगा, जिस से पसीना कम आएगा.

रुखे और बेजान बाल: इस मौसम में बालों का बेजान होना एक बड़ी समस्या होती है. पसीना आने से बालों में नमी कम हो जाती है. जिस से वे बेजान और दोमुंहे हो जाते हैं.

उपाय: बालों में शैंपू करने के बाद कंडीशनर लगाएं. कंडीशनर का इस्तेमाल बालों की जड़ों में न करें. कुछ मिनट बाद पानी से अच्छी तरह धो लें. गीले बालों में चौड़े दांतों वाले कंघे का इस्तेमाल करें ताकि बाल टूटें नहीं. ब्लो ड्रायर का इस्तेमाल न करें ताकि बालों में प्राकृतिक नमी बनी रहे. इस के अलावा गीले बालों को बांधें नहीं. बालों की जड़ों में शैंपू लगाएं और हलके हाथों से रगड़ें. इस से तुरंत फर्क नजर आएगा.

संक्रमण: मौनसून के दौरान कीलमुंहासे, हेयर फौलिकल में सूजन, दाद आदि बहुत आम हैं. इस तरह के संक्रमण आमतौर पर बैक्टीरिया या फंगस के कारण होते हैं. इस मौसम में बहुत ज्यादा पसीना आने, डिहाइड्रेशन, फोटो टौक्सिक प्रभावों और धूप व नमी के कारण संक्रमण की समस्या बढ़ जाती है.

उपाय: इस तरह की समस्याओं से बचने का सब से अच्छा तरीका है अपनी त्वचा को सूखा रखना. सार्वजनिक शौचालय का इस्तेमाल करते समय सावधानी बरतें, क्योंकि साफसफाई न होने से संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है. रोजाना 10-12 गिलास पानी जरूर पीएं. त्वचा को मौइश्चराइजर से हाइड्रेट करती रहें.

ऐथलीट्स फुट: यह समस्या आमतौर पर उन्हें होती है जो मौनसून में जूते पहनते हैं. यह समस्या एक बैक्टीरिया टीनिया के कारण होती है, जो पूरे शरीर में फैल जाता है तथा पैरों पर सुन्नपन पैदा करता है.

उपाय: यह समस्या होने पर जरूरी है कि आप अपने पैरों को सूखा रखें. जब भी आप बारिश में गीली हों जूते और जुर्राबें तुरंत उतार दें. फिर पैरों को धो अच्छी तरह सुखा लें. घर में स्लिपर्स पहनें, खासतौर पर बाथरूम में स्लिपर्स का जरूर इस्तेमाल करें.

क्या करें क्या नहीं

– साफसफाई का ध्यान रखना बहुत जरूरी है. अपने हाथों को साबुन से अच्छी तरह धोएं. साफ कपड़े खासतौर पर साफ अंडरगारमैंट्स पहनें.

– पसीना आने से शरीर से नमक और पानी निकल जाता है. इस से त्वचा में खुजली और सूखापन हो सकता है. अत: पर्याप्त मात्रा में पानी और तरल पदार्थ के सेवन से खुद को हाइड्रेट करें.

– आहार भी त्वचा को संक्रमण से बचाने के लिए महत्त्वपूर्ण है. गरम और मसालेदार भोजन का सेवन न करें. फल (आम और तरबूज का सेवन कम), सब्जियां, बादाम, लहसुन, भूरे चावल, ओट्स आदि का इस्तेमाल भरपूर मात्रा में करें.

– मैडिकेटेड साबुन, ऐंटीफंगल और ऐंटीबैक्टीरियल क्रीम व पाउडर का इस्तेमाल फायदेमंद हो सकता है. अगर समस्या ज्यादा हो तो डर्मैटोलौजिस्ट की सलाह लें.

– अगर त्वचा की कोई भी समस्या संक्रामक हो जाती है, तो एकदूसरे की चीजें शेयर न करें.

– डा. साक्षी श्रीवास्तव , कंसलटैंट डर्मैटोलौजिस्ट, जेपी हौस्पिटल, नोएडा

पैसा बेईमान ही नहीं, हत्यारा भी बना देता है

70 वर्षीय जी.के. नायर एयरफोर्स की सिविल विंग से रिटायर हो कर चाहते तो अपने गृह राज्य केरल वापस जा सकते थे, लेकिन लंबा वक्त एयरफोर्स में गुजारने के बाद उन्होंने मध्य प्रदेश में ही बस जाने का फैसला ले लिया था. इन दिनों वह अपनी 68 वर्षीय पत्नी गोमती नायर सहित भोपाल खजूरीकलां स्थित नर्मदा ग्रीन वैली कालोनी में डुप्लेक्स बंगले में रह रहे थे. इस कालोनी की गिनती भोपाल की पौश कालोनियों में होती है, जिस में संपन्न और संभ्रांत लोग रहते हैं.

दूसरे रिटायर्ड मिलिट्री अफसरों की तरह जी.के. नायर का स्वभाव भी अनुशासनप्रिय था, जो आम लोगों को सख्त लगता था. उन के चेहरे पर छाया रौब और बातचीत का लहजा ही उन के एयरफोर्स अधिकारी होने का अहसास करा देता था. साल 2014 में जब वे पत्नी सहित नर्मदा ग्रीन वैली में आ कर रहने लगे थे, तभी से इस कालोनी के अधिकांश लोग उन के स्वभाव से परिचित हो गए थे.

गोमती नायर ग्वालियर के मुरार अस्पताल में नर्स पद से रिटायर हुई थीं. पतिपत्नी दोनों को ही पेंशन मिलती थी. नौकरी में रहते ही नायर दंपति अपनी तीनों बेटियों की शादियां कर के अपनी इस जिम्मेदारी से मुक्त हो चुके थे. लिहाजा उन के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी.

ग्वालियर से नायर दंपति का खास लगाव था, क्योंकि गोमती वहीं से रिटायर हुई थीं और इन की बड़ी बेटी प्रशुंभा नायर की शादी भी ग्वालियर में ही हुई थी. गोमती की एक बहन भी ग्वालियर में ही रहती थीं. जब भी इन दोनों का मन भोपाल से कहीं बाहर जाने का होता था तो उन की प्राथमिकता ग्वालियर ही होती थी.

पुरसुकून थी नायर दंपति की जिंदगी

भोपाल में बसने की बड़ी वजह उन की यहां फैली रिश्तेदारी थीं. मंझली बेटी प्रियंका नायर की शादी भोपाल में हुई थी और वह अवधपुरी इलाके की फर्स्ट गार्डन कालोनी में रहती थीं. प्रियंका एक नामी प्राइवेट स्कूल में टीचर थीं. छोटी बेटी प्रतिभा की भी शादी भोपाल में हुई थी, जो मिसरोद इलाके की राधाकृष्ण कालोनी में रहती थी. गोमती के बड़े भाई का बेटा प्रमोद नायर भी भोपाल में रहता था.

उन की और 2 बहनें भी भोपाल में रहती थीं. इतने सारे नजदीकी रिश्तेदारों के भोपाल में होने के चलते जी.के. नायर का भोपाल में बस जाने का फैसला स्वाभाविक था, जो उन्हें एक सामाजिक सुरक्षा का अहसास कराता था. हर रविवार कोई न कोई मिलने के लिए उन के घर आ जाता था. इस से बुजुर्ग दंपति का अपनों के बीच अच्छे से वक्त कट जाता था. जी.के. नायर के बैंक खातों का काम और पैसों का हिसाबकिताब प्रियंका के हाथ में था.

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नर्मदा ग्रीन वैली कालोनी में शिफ्ट होने के कुछ दिन बाद ही जी.के. नायर सोसायटी के अध्यक्ष चुन लिए गए थे. लेकिन इस पद पर वे सभी की पसंद नहीं थे. कालोनियों की सोसाइटियों की अपनी एक अलग राजनीति होती है, जिस का अंदाजा या तजुर्बा जी.के. नायर को नहीं था. अध्यक्ष रहते उन्होंने कालोनी के पार्क में बेंच लगवाने की पहल की तो कई सदस्यों ने इस पर असहमति जताई थी, जिस से खिन्न हो कर उन्होंने पद छोड़ दिया था.

वजह यह कि काम कम होता था और रोजाना की चिखचिख ज्यादा होती थी. 70 साल की बड़ी और लंबी जिंदगी में हालांकि इन छोटीमोटी बातों के कोई खास मायने नहीं होते, लेकिन यह साबित हो गया था कि मिलिट्री से रिटायर्ड अधिकारी आमतौर पर समाज में फिट नहीं होते.

पतिपत्नी खाली समय ज्यादातर टीवी देख कर गुजारते थे. गोमती को अपराध से संबंधित धारावाहिक पसंद थे. इन्हें वे बड़े चाव से देखा करती थीं और अपराध और अपराधी की मानसिकता को समझने की कोशिश करती रहती थीं. कई बार ये धारावाहिक देख कर उन्हें अपनी सुरक्षा का ध्यान आता था, पर यह सोच कर वे निश्चिंत हो जाया करती थीं कि उन की कालोनी कवर्ड है और मकान भी सुरक्षित है. बुढ़ापे में सुरक्षा की चिंता एक आम बात है लेकिन जी.के. नायर बहादुर होने के कारण यह चिंता नहीं करते थे.

अचानक कैसे आई कालरात्रि

8 मार्च की रात टीवी देखते समय जी.के. नायर ने गोमती से कुछ बातें की थीं, फिर लगभग साढ़े 9 बजे उन्होंने प्रियंका को फोन किया. वैसे तो सभी रिश्तेदारों खासतौर से बेटियों से उन की रोजाना फोन पर बात हो जाती थी, लेकिन प्रियंका को उन्होंने इस वक्त एक खास मकसद से फोन किया था.

उन्होंने बेटी से कहा कि वह अगले दिन या फिर जब भी बर्थ खाली मिले, उन दोनों का ग्वालियर जाने का रिजर्वेशन करवा दे. क्योंकि उन्हें प्रियंका की मौसी यानी गोमती की बहन को देखने जाना था, जो इन दिनों बीमार चल रही थीं.

9 मार्च की सुबह रोजाना की तरह जब नायर दंपति के यहां काम करने वाली नौकरानी  मोहनबाई आई तो कई बार कालबेल बजाने के बाद भी दरवाजा नहीं खुला. इस पर मोहनबाई ने पहले उन्हें आवाजें लगाईं और फिर जी.के. नायर के मोबाइल पर फोन किया. लेकिन उधर से कोई जवाब नहीं मिला.

दरवाजे पर खड़ेखड़े मोहनबाई को ध्यान आया कि पिछली रात ही गोमती ने उस से जल्द आने को कहा था और 5 के बजाय 10 रोटियां बनवाई थीं, जिस से उस ने अंदाजा लगाया था कि शायद रात को कोई आने वाला है.

जब फोन नहीं उठा तो मोहनबाई पड़ोस में रहने वाली रत्ना मिस्त्री के पास गई और उन्हें यह बात बताई. इस पर रत्ना ने भी नायर साहब का मोबाइल फोन लगाया पर दूसरी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला. यह एक चिंता की बात थी. नायर दंपति द्वारा फोन न उठाए जाने की बात रत्ना ने दूसरे पड़ोसियों को बताई तो धीरेधीरे कालोनी के लगभग सभी लोग इकट्ठा हो गए. किसी अनहोनी की आशंका सभी के दिमाग में थी, पर कोई खुल कर नहीं बोल पा रहा था.

सुबहसुबह जी.के. नायर के घर के बाहर जमा भीड़ देख कर एक और पड़ोसी पी.वी.आर. रामादेव भी जिज्ञासावश वहां पहुंच गए. रामादेव खुद आर्मी में सूबेदार रह चुके थे, इसलिए नायर दंपति से उन की अच्छी पटरी बैठती थी. पूछने पर पता चला कि नायर दंपति के घर का दरवाजा नहीं खुल रहा है और वे फोन भी नहीं उठा रहे हैं. इस पर उन्होंने पहल की और नायर के बंगले से सटे हरिदास मिस्त्री के बंगले की बालकनी से नायर के घर जा पहुंचे.

जी.के. नायर के घर का दृश्य देख कर रामादेव हतप्रभ रह गए. जी.के. नायर और गोमती नायर की लाशें फर्श पर पड़ी थीं. यह बात उन्होंने वहां मौजूद लोगों को बताई तो मानो सन्नाटा फैल गया. कालोनी में ऐसी किसी वारदात की उम्मीद किसी ने सपने में भी नहीं सोची थी. एक व्यक्ति ने इस की सूचना 100 नंबर पर दी और  लोग पुलिस के आने का इंतजार करने लगे. मोहनबाई भी सहमी सी एक तरफ खड़ी थी.

आधे घंटे से कम में अवधपुरी पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. चूंकि नायर के घर का दरवाजा अंदर से बंद था, इसलिए पुलिस वालों को भी नायर के एक और पड़ोसी आदित्य मिश्रा के घर से हो कर अंदर जाना पड़ा. पुलिस बल को यह बात भीड़ में से कोई बता चुका था कि नायर साहब छत का दरवाजा हमेशा बंद रखते थे.

मामला चूंकि एयरफोर्स के रिटायर अफसर की हत्या का था, इसलिए देखते ही देखते अवधपुरी इलाके के अलावा गोविंदपुरा और अयोध्यानगर थानों से भी पुलिस वाले पहुंच गए. पुलिस बल के साथ डीआईजी धर्मेंद्र चौधरी और एसपी राहुल लोढ़ा भी थे.

रिश्तेदारों की मौजूदगी में हुई पुलिस जांच

नायर दंपति की लाशें पहली मंजिल के बैडरूम में आमनेसामने पड़ी थीं. गले से बहता खून बयां कर रहा था कि हत्या गला रेत कर की गई थी. पुलिस वालों ने जब बारीकी से पूरे घर का मुआयना किया तो मामला कहीं से भी चोरी या लूटपाट का नहीं लगा. घर का सारा सामान व्यवस्थित तरीके से रखा हुआ था.

अब तक मातापिता की हत्या की खबर बेटियों को भी लग चुकी थी, लिहाजा प्रियंका और प्रतिभा जिस हालत में थीं, उसी हालत में नर्मदा वैली कालोनी की तरफ निकल पड़ीं.

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पुलिस छानबीन और पूछताछ में जुट गई थी. मोहनबाई, रत्ना मिस्त्री और पी.वी.आर. रामादेव के बयानों से केवल घटना की जानकारी मिल रही थी, हत्यारे की नहीं.

रत्ना मिस्त्री के इस बयान से जरूर पुलिस को कुछ उम्मीद बंधी थी कि रात कोई 12 बजे के आसपास नायर दंपति के घर से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आई थीं, पर उन्होंने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया था क्योंकि तेज आवाज में बातचीत करना मृतक दंपति की आदतों में शुमार था.

जी.के. नायर की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी और घर में कोई लूटपाट या चोरी भी नहीं हुई थी. इस का सीधा सा मतलब यह निकल रहा था कि हत्यारा जो भी था, बेहद नजदीकी था, जिस के रात में आने पर मृतकों को कोई ऐतराज नहीं था. न ही उस पर कोई पाबंदी थी.

हत्या के ऐसे मामलों, जिन में मृतक पैसे वाले हों, में उन की जमीनजायदाद और पैसा खास मायने रखता है. इस तरफ भी पुलिस का ध्यान गया. पूरा घर और आसपास का इलाका छानने के बाद भी हत्यारे का कोई सुराग और हथियार नहीं मिला तो पुलिस की जांच का दायरा नायर दंपति के रिश्तेदारों की तरफ बढ़ गया.

इसी बीच प्रियंका आई तो हत्या की गुत्थी सुलझती नजर आई. प्रियंका से पुलिस को पता चला कि दीवाली के दिनों में पटाखे चलाए जाने पर उस के पिता का विवाद सोसायटी के मौजूदा अध्यक्ष अशोक मनोज से हुआ था. अवधपुरी थाने में इस की शिकायत भी दर्ज हुई थी. दूसरी अहम बात यह सामने आई कि प्रियंका ही मांबाप का एकाउंट्स देखती थी.

पुलिस को संदेह का एक नया आधार मिला लेकिन पुलिस वालों को तीसरी बात ज्यादा महत्त्वपूर्ण लगी. दरअसल प्रियंका ने बताया कि इसी साल जनवरी तक आरती नाम की नौकरानी और उस का पति राजू धाकड़ उस के मातापिता के यहां काम किया करते थे. राजू ने अपनी बहन की शादी के लिए उस के पिता से करीब 2 लाख रुपए भी उधार ले रखे थे.

प्रियंका ने बताया कि आरती जब 8 साल की थी, तभी मम्मीपापा ने उसे अपने साथ रख लिया था और उन्होंने ही उस की शादी राजू से करवाई थी. भोपाल आते समय नायर दंपति उन्हें भी साथ ले आए थे. इतना ही नहीं, जी.के. नायर ने अपने एक परिचित हरिदास से कह कर भोपाल के भेल कारखाने में राजू की नौकरी ठेका श्रमिक के रूप में लगवा दी थी.

आरती और राजू पर जी.के. नायर इतने मेहरबान थे कि उन्होंने इन दोनों को खजूरीकलां में रहने के लिए किराए का मकान भी दिलवा रखा था. प्रियंका ने यह भी बताया कि राजू का विवाद अकसर गोमती से हुआ करता था. वह लिए गए पैसे लौटाना तो दूर की बात, जी.के. नायर के नाम पर कुछ दूसरे लोगों से भी पैसे ले चुका था.

प्रियंका के मुताबिक, अकसर उस के पिता राजू से अपना पैसा वापस मांगा करते थे, लेकिन वह हर बार देने से मना कर देता था. अब आरती और राजू कहां हैं, इस पर प्रियंका ने बताया कि वे दोनों इसी साल जनवरी में काम छोड़ कर चले गए और इंदौर में उन्होंने ब्यूटीपार्लर खोल लिया है, जिस का किराया साढ़े 8 हजार रुपए महीना है.

यह जानकारी महत्त्वपूर्ण थी. लेकिन हत्या राजू ने ही की थी तो वह है कहां? इस सवाल का जवाब हासिल करने के लिए पुलिस ने राजू का फोन नंबर ले कर उसे फोन लगाया तो उस ने खुद के ग्वालियर में होने की बात कही.

हत्यारा राजू ही है, इस पर पुलिस का शक गहराने लगा था क्योंकि अब तक यह स्पष्ट हो चुका था कि नायर दंपति के अपने रिश्तेदारों से संबंध अच्छे थे और पटाखा विवाद बेहद मामूली था. एक राजू ही था जो घर के सदस्य की तरह नायर दंपति के यहां बेरोकटोक आजा सकता था. लेकिन ग्वालियर में होते हुए वह दोहरे कत्ल की वारदात को कैसे अंजाम दे सकता था, यह बात किसी सस्पेंस से कम नहीं थी.

हालांकि यह मुमकिन था कि कोई भी शख्स भोपाल में हत्या कर के ग्वालियर जा सकता है, क्योंकि वहां का रास्ता महज 5 घंटे का था. अब तक की काररवाई में यह तो उजागर हो गया था कि हत्याएं रात साढ़े 9 से 12 बजे के बीच हुई थीं. यानी राजू के हत्या कर के ग्वालियर भाग जाने की बात संभव थी. भोपाल से ग्वालियर के लिए रात में ट्रेनों की भी कमी नहीं थी.

भोपाल सहित पूरे देश में रिटायर्ड एयरफोर्स अधिकारी की हत्या पर चर्चाएं होने लगी थीं. हर कोई पुलिस को कोस रहा था कि वह शहर में रह रहे अकेले बुजुर्गों की हिफाजत के लिए कोई इंतजाम नहीं करती. और तो और, पुलिस के पास अकेले रह रहे बूढ़ों का कोई डाटा या रिकौर्ड तक नहीं है. इन सब आलोचनाओं से परे पुलिस के हाथ हत्यारे के गिरेहबान तक पहुंच चुके थे. देर बस गिरफ्तारी की थी, जो 10 मार्च को हो भी गई और राजू ने अपना जुर्म भी कबूल कर लिया.

दरअसल, पुलिस राजू और आरती के मोबाइल काल्स पर ध्यान रखे हुए थी. दोनों में बातचीत हो रही थी और नायर दंपति की हत्या की खबर सुन कर आरती इंदौर से भोपाल आ गई थी. पुलिस ने आरती को रडार पर लिया तो उस ने बताया कि राजू जरूर उस से मिलने आएगा. भोपाल आ कर आरती गोपालनगर झुग्गी इलाके में रुकी थी.

राजू को कतई अंदाजा या अहसास नहीं था कि भोपाल में पुलिस उस का स्वागत करने को तैयार है. वह तो अपने मालिक की हत्या पर शोक प्रकट करने इसलिए आ रहा था ताकि पुलिस उस पर शक न करे. जैसे ही वह भोपाल आया, सादे कपड़ों में तैनात पुलिसकर्मियों ने उसे स्टेशन से धर दबोचा.

पहले तो वह हत्या की वारदात से नानुकुर करता रहा, लेकिन जल्द ही टूट भी गया. उस ने हत्या का सच उगल दिया.

राजू ने मांबाप सरीखे दंपति को पैसे के लिए लगाया ठिकाने 32 वर्षीय राजू धाकड़ मूलत: ग्वालियर के हीरापुर गांव का रहने वाला था. उस ने वाकई जी.के. नायर से लगभग 2 लाख रुपए उधार ले रखे थे और उस की नीयत पैसे देने की नहीं थी. इस बात पर नायर उसे कभीकभी डांटा भी करते थे, जो उसे नागवार गुजरता था. इतना ही नहीं, राजू को यह शक भी था कि भेल के ठेका श्रमिक की नौकरी से उसे नायर ने ही निकलवाया है.

घटना की रात हत्या के इरादे से राजू कोई 9 बजे ग्वालियर से भोपाल आया. इस बाबत उस ने चाकू भी ग्वालियर से खरीद लिया था. भोपाल आ कर वह एसओएस बालग्राम स्टाप पर उतरा और वहां से पैदल ही नायर के घर तक गया. उस समय नायर दंपति टीवी देख रहे थे.

राजू को देखते ही नायर की भौंहे तन गईं. उन्होंने उसे दरवाजे से ही वापस कर दिया. इस पर राजू ने गिड़गिड़ाते हुए उन्हें पुराने संबंधों का वास्ता दिया तो नरम दिल नायर पिघल उठे और उन्होंने उसे अंदर आने दिया.

उन की यह इजाजत भारी भूल साबित हुई. आदतन नायर ने फिर पैसों का तकादा किया तो राजू हमेशा की तरह बेशर्मी से नानुकुर करने लगा. बात करतेकरते दोनों पहली मंजिल पर आ गए, जहां नायर इत्मीनान से बैठ गए और राजू की खिंचाई करने लगे.

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इस बार राजू तय कर आया था, इसलिए जानबूझ कर विवाद को हवा दे रहा था. पुराने पैसे लौटाने की बात तो दूर राजू ने नायर से और पैसे मांगे तो वे झल्ला उठे और तेज आवाज में उसे डांटने लगे.

डांट सुन कर राजू को भी गुस्सा आ गया. वह हाथ धोने के बहाने बाथरूम में चला गया और मुड़ कर नायर के पीछे आ कर खड़ा हो गया. जेब से चाकू निकाल कर राजू ने नायर की गरदन पर 1-2 नहीं बल्कि गिन कर पूरे 10 प्रहार किए और 11वीं वार में उन का गला रेत डाला.

ताबड़तोड़ हमलों से घबराए और तड़पते जी.के. नायर पत्नी का नाम ले कर चिल्लाए. उन की चीख सुन कर गोमती पहली मंजिल की तरफ दौड़ीं. पैरों में तकलीफ होने के कारण गोमती कभी पहली मंजिल पर नहीं जाती थीं.

मालिक का काम तमाम कर के राजू अभी उठा ही था कि मालकिन सामने आ गईं. गोमती को भी उस ने नहीं बख्शा और उसी चाकू से उन का गला रेत दिया.

चीखें भी रहीं बेअसर

यही वे चीखें थीं, जो रत्ना मिस्त्री ने सुनी थीं. लेकिन रोजमर्रा की आम बातचीत समझ कर उन्होंने उन्हें इसे नजरअंदाज कर दिया था. जी.के. नायर ने बचाव की कोशिश की थी, जिस में हाथापाई के दौरान चाकू उलट कर राजू की जांघ में भी लग गया था. लेकिन उसे ज्यादा चोट नहीं आई थी.

2 हत्याएं कर के राजू ने किचन में जा कर खून से सना चाकू साफ किया और पूरा किचन साफ कर दिया. खून के धब्बे लगी अपनी पैंट उतार कर उस ने घर से उठा कर नीले रंग का लोअर पहना और जाने से पहले सोने के जेवरों पर हाथ साफ कर दिया.

उस ने अलमारी में सोने की 8 चूडि़यां चुराईं और फिर मृत गोमती के गले में पड़ी चेन भी उतार ली. बाथरूम जा कर उस ने खून से सने कपड़े भी धोए और फिर एक नजर घर पर डाल कर बालकनी के रास्ते कूद कर चला गया. स्टेशन तक वह पैदल ही गया और ग्वालियर जाने वाली ट्रेन में बैठ गया. सुबह ही वह वापस भोपाल के लिए रवाना हो गया, जिस का अंदेशा आरती पुलिस वालों के सामने जता चुकी थी.

राजू के मन में लालच और हैवानियत दोनों आ गए थे. नायर दंपति की मेहरबानियों का बदला उस ने बजाय नमक हलाली के नमक हरामी से चुकाया. लगता यही है कि नौकरों पर जरूरत से ज्यादा मेहरबानियां और दयानतदारी जानलेवा भी हो सकती है. इन दोनों के कत्ल की उस की हिम्मत इसलिए भी पड़ी कि दोनों अकेले रहते थे और राजू के बारे में सब कुछ जानता था.

आरती के मन में अपने मालिकों के उपकारों के प्रति कृतज्ञता थी, जिस के चलते उस ने अपने हत्यारे पति को बचाने की कोशिश नहीं की. हालांकि इस दोहरे हत्याकांड में इस बात का कलंक भी लगा कि जी.के. नायर की हत्या की एक वजह उन के आरती से कथित अवैध संबंध भी थे.

भोपाल के डीआईजी धर्मेंद्र चतुर्वेदी के मुताबिक, राजू ने अपने बचाव में हत्या की वजह रुपयों के लेनदेन के अलावा व्यक्तिगत वजह भी बताई है. लेकिन स्पष्ट रूप से इन निजी कारणों का खुलासा पुलिस ने जाने क्यों नहीं किया.

अपने बचाव की कोशिश में राजू ने 24 घंटों में ग्वालियर भोपाल अपडाउन किया, लेकिन वह खुद का गुनाह छिपा नहीं पाया.

एक लड़की का कमाल : पुरुष बन कर रचाई 2 शादियां

हल्द्वानी के कस्बा काठगोदाम की रहने वाली प्रियंका पिछले कई महीनों से महसूस कर रही थी कि उस के पति कृष्णा सेन के व्यवहार में बड़ा परिवर्तन आ गया है. जहां पहले वह उसे अपनी आंखों पर बिठाए रखता था. उस के हर नाजनखरे सहता था. वहीं अब उसे उस की हर बात कांटे की तरह चुभती है. इतना ही नहीं, वह हर समय उस के साथ झगड़े पर उतारू रहता है. प्रियंका यदि किसी बात पर उस से बहस करती तो वह उस की पिटाई कर देता था.

यानी अब वह ज्यादा चिढ़चिढ़ा सा हो गया था. शराब पी कर वह उस से अकसर रोजाना ही झगड़ता था. पति की प्रताड़ना से तंग आ कर वह अपने मायके चली जाती थी.

शादीशुदा बेटी को ज्यादा दिनों तक घर पर बैठाना कुछ लोग सही नहीं समझते. प्रियंका के मातापिता भी उन्हीं में से एक थे. बेटी के हावभाव से वे समझ जाते थे कि वह ससुराल से गुस्से में आई है. तब वह अपनी बेटी के साथसाथ दामाद को फोन पर समझाते थे. मांबाप के समझाने के बाद प्रियंका अपने भाई के साथ ससुराल लौट जाती थी.

एक बार की बात है, एक महीना मायके में रहने के बाद प्रियंका जब अकेली ही हल्द्वानी की तिकोनिया कालोनी में रह रहे पति के पास पहुंची तो वहां कमरे पर एक लड़की मिली. उस के पहनावे और साजशृंगार से लग रहा था, जैसे उस की शादी हाल में ही हुई है. कमरे में पति कृष्णा और उस लड़की के अलावा और कोई नहीं था. प्रियंका ने पति से उस लड़की के बारे में पूछा तो कृष्णा ने बताया कि यह उस की पत्नी सरिता है. उस ने इस से हाल ही में शादी की है.

इतना सुनते ही प्रियंका के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. गुस्से से उस का चेहरा लाल हो गया. कोई भी शादीशुदा औरत हर चीज सहन कर सकती है पर यह बात वह हरगिज सहन नहीं कर सकती कि उस का पति उस के होते हुए शौतन ले आए. वह गुस्से में बोली, ‘‘मुझ में और मेरे प्यार में क्या कमी थी जो तुम इसे ले आए. मैं कहे देती हूं कि मेरे जीतेजी इस घर में कोई और नहीं रह सकती. तुम तो बड़े ही छिपे रूस्तम निकले. लगता है मेरे मायके जाने का तुम इंतजार कर रहे थे, जो मेरे जाते ही इसे ले आए.’’ कहते हुए प्रियंका की आंखों में आंसू भर आए.

पत्नी की बातों पर कृष्णा को गुस्सा तो बहुत आ रहा था, लेकिन गलती कृष्णा की थी, इसलिए वह पत्नी की बातें सुनता रहा. नईनवेली दुलहन के सामने उसे बेइज्जती का सामना करना पड़ रहा था. प्रियंका का गुस्सा शांत हो गया तो कृष्णा ने उसे मनाने की कोशिश करते हुए समझाया, ‘‘प्रियंका, मेरी मजबूरी ऐसी हो गई थी जिस की वजह से मुझे यह शादी करनी पड़ी. इस से तुम हरगिज परेशान मत हो. मैं तुम्हारा पूरा ध्यान रखूंगा. तुम्हारे प्रति मेरा प्यार वैसा ही बना रहेगा. तुम दोनों ही इस घर में रहना.’’

प्रियंका को पति की बात पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था, लेकिन अब बोल कर कोई फायदा नहीं था. पहले ही वह उसे काफी सुना चुकी थी. इसलिए वह चुप्पी साधे रही. उस से कुछ कहने के बजाय वह कमरे में चली गई और रो कर उस ने अपना मन हलका किया.

कृष्णा ने फिर की 5 लाख की डिमांड

अब प्रियंका के मन में पति के प्रति पहले जैसा सम्मान नहीं रहा. खुद भी वह बेमन से वहां रही. कृष्णा उस के बजाए दूसरी पत्नी को ज्यादा महत्त्व देने लगा. वहां प्रियंका की स्थिति दोयम दरजे की हो कर रह गई थी. एक दिन कृष्णा ने प्रियंका से कहा कि बिजनेस के लिए उसे 5 लाख रुपए की जरूरत है. वह अपने मायके से 5 लाख रुपए ला दे.

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‘‘मैं अब और पैसे नहीं लाऊंगी. सीएफएल बल्ब की फैक्ट्री लगाने के लिए तुम मेरे घर वालों से 8 लाख रुपए पहले ही ले चुके हो. तुम ने वो पैसे तो लौटाए नहीं हैं.’’ प्रियंका बोली.

‘‘क्या मैं कहीं भागा जा रहा हूं, जो तुम इस तरह की बात कर रही हो. पिछली बात को तुम भूल जाओ. अब यह बात ध्यान से सुन लो कि तुम्हें हर हालत में 5 लाख रुपए लाने ही होंगे वरना इस घर में नहीं रह सकोगी. यहां तुम्हारी कोई जगह नहीं रहेगी.’’ कृष्णा सेन ने दो टूक कह दिया.

प्रियंका पति के सामने गिड़गिड़ाई कि अब उस के मायके वालों की ऐसी स्थिति नहीं है कि वह इतनी बड़ी रकम की व्यवस्था कर सकें, पर पति का दिल नहीं पसीजा. उस ने प्रियंका को दुत्कारते हुए कहा कि वह यहां से चली जाए. पति के दुत्कारने के बाद प्रियंका के सामने मायके जाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था. लिहाजा उस ने अपने भाई को फोन कर दिया और उस के साथ मायके चली गई.

प्रियंका ने मायके में पति कृष्णा द्वारा दूसरी शादी करने की बात बताई तो सभी आश्चर्यचकित होते हुए बोले, ‘‘पहली पत्नी के होते हुए उस ने दूसरी शादी कैसे कर ली.’’ इस के बाद प्रियंका ने अपने मांबाप को एकएक बात बता दी. कृष्णा के द्वारा प्रियंका पर ढाए गए जुल्मोसितम की बात सुन कर सभी को गुस्सा आ गया. मायके वालों ने तय कर लिया कि वे फरेबी कृष्णा सेन के खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज करा कर उस के किए की सजा दिलाएंगे.

एक दिन प्रियंका अपने मांबाप के साथ थाना काठगोदाम पहुंची. वहां मौजूद थानाप्रभारी को उस ने अपनी प्रताड़ना की सारी कहानी बता दी. उस ने यह भी कह दिया कि शादी में अच्छाखासा दहेज देने के बाद भी पति कृष्णा सेन दहेज के लिए उसे प्रताडि़त करता था. एक बार उस ने पति के कहने पर अपने मांबाप से 8 लाख रुपए ला कर दिए थे वह पैसे तो उस ने लौटाए नहीं, अब 5 लाख रुपए और मांगने की जिद पर अड़ गया. पैसे न देने पर उस ने उसे घर से निकाल दिया.

थानाप्रभारी ने प्रियंका की पीड़ा सुनने के बाद भरोसा दिया कि वह उस के पति के खिलाफ सख्त काररवाई करेंगे. एक सप्ताह गुजर जाने के बाद भी थाना पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज नहीं की तो प्रियंका फिर थाने पहुंची. थानाप्रभारी ने उसे फिर टरका दिया. थाने वाले 4 महीने तक उसे ऐसे ही टरकाते रहे. 4 महीने तक थाने के चक्कर लगातेलगाते वह थक चुकी थी पर थाने वाले कृष्णा सेन के खिलाफ रिपोर्ट नहीं लिख रहे थे.

9 अक्तूबर, 2017 को प्रियंका अपने भाई के साथ हल्द्वानी के एसएसपी जयप्रभाकर खंडूरी से मिली और काठगोदाम थानापुलिस द्वारा उस के पति के खिलाफ अभी तक कोई काररवाई न करने की शिकायत की.

एसएसपी ने प्रियंका की शिकायत को गंभीरता से लिया. उन्होंने उसी समय काठगोदाम एसएसआई संजय जोशी को फोन कर के आदेश दिया कि प्रियंका की तरफ से रिपोर्ट दर्ज कर आरोपी के खिलाफ तत्काल काररवाई करें.

थाने पहुंच कर प्रियंका एसएसआई से मिली तो उन्होंने बड़े गौर से उस की समस्या सुनी और उस की तहरीर पर उस के पति कृष्णा सेन के खिलाफ भादंवि की धारा 417, 419, 420, 467, 468, 471, 323, 504 व 506 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

चूंकि इस मामले में आदेश कप्तान साहब का था, इसलिए एसएसआई संजय जोशी एसआई मंजू ज्वाला और पुलिस टीम के साथ हल्द्वानी स्थित तिकोनिया कालोनी गए. आरोपी कृष्णा सेन तिकोनिया कालोनी में ही रहता था.

पुलिस जब उस के कमरे पर पहुंची तो वह वहां नहीं मिला. पता चला कि वह अपना किराए का मकान खाली कर के कहीं चला गया है.

पुलिस ने आरोपी कृष्णा सेन के बारे में जांच की तो पता चला कि वह कालाढूंगी में रह रहा है. पुलिस टीम ने कलाढूंगी में दबिश दी तो जानकारी मिली कि कृष्णा वहां से भी मकान छोड़ कर कहीं और जा चुका है और अब वह हरिद्वार के ज्वालापुर में अपनी दूसरी बीवी सरिता के साथ रह रहा है.

काठगोदाम पुलिस प्रियंका को ले कर ज्वालापुर पहुंची तो जानकारी मिली कि वह वहां पत्नी के साथ रहता तो था लेकिन कुछ देर पहले पत्नी को ले कर वहां से चला गया है.

पुलिस पड़ गई कृष्णा सेन के पीछे

कृष्णा सेन और पुलिस के बीच चूहेबिल्ली का खेल चल रहा था. कृष्णा सेन इतना शातिर था कि हर बार पुलिस को चकमा दे जाता था. उसे इस बात की तो जानकारी मिल ही गई थी कि उस की पत्नी प्रियंका ने उस के खिलाफ रिपोर्ट लिखा दी है. यदि वह किसी तरह प्रियंका को मना ले तो पुलिस से बचा सकता है. प्रियंका पर मुकदमा वापस लेने का दबाव बनाने के लिए वह 14 फरवरी, 2018 को कोठगोदाम की चांदमारी कालोनी में पहुंचा.

प्रियंका इसी कालोनी में रहती थी. उसी दौरान किसी मुखबिर ने कृष्णा के बारे में थाने में सूचना दे दी. खबर मिलते ही एसएसआई संजय जोशी पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए. उन्होंने कृष्णासेन को हिरासत में ले लिया.

थाने ला कर जब उस से पूछताछ की तो वह अपने ऊपर लगे आरोपों को नकारता रहा. एसआई मंजू ज्वाला ने उस से कहा, ‘‘तुम सीधे नहीं बताओगे. लेकिन जब तुम पत्नी को धोखा देने, उस के साथ मारपीट करने. धमकी देने के अलावा दहेज कानून के तहत जेल जाओगे तब पता लगेगा.’’

‘‘मैडम, दहेज एक्ट तो मेरे ऊपर लग ही नहीं सकता. क्योंकि मैं खुद एक महिला हूं.’’ कृष्णा सेन ने कहा.

यह बात सुनते ही एसआई मंजू ज्वाला के साथ वहां मौजूद सभी पुलिसकर्मी कृष्णा सेन को गौर से देखने लगे.

‘‘मैडम मैं सही कह रही हूं, लड़का नहीं बल्कि मैं लड़की हूं.’’ उस ने फिर जोर दे कर कहा. अब पुलिस को मामला गंभीर नजर आने लगा. एसआई मंजू ज्वाला के दिमाग में एक सवाल यह भी आया कि जब यह लड़की है तो इस ने एक नहीं, बल्कि 2-2 लड़कियों से शादी क्यों की. एसआई संजय जोशी ने यह बात एसएसपी को बताई तो उन्होंने अभियुक्त को उन के सामने पेश करने को कहा.

एसएसआई संजय जोशी और एसआई मंजू ज्वाला अभियुक्त कृष्णासेन को कप्तान साहब के पास ले गए. एसएसपी ने भी आरोपी से पूछताछ की तो कृष्णा ने वही बात उन के सामने भी दोहरा दी.

कप्तान साहब को भी ताज्जुब इस बात से हो रहा था कि कृष्णा सेन ने लड़का बन कर प्रियंका के साथ शादी ही नहीं की बल्कि वह 4 सालों तक उस के साथ रही और प्रियंका को सच्चाई का पता ही नहीं चला. बहरहाल उन्होंने पुष्टि के लिए कृष्णा सेन को डाक्टरी के लिए महिला अस्पताल भेज दिया. महिला डाक्टर ने कृष्णा सेन का मैडिकल किया तो वास्तव में कृष्णा सेन एक महिला निकली. पुलिस को चकित कर देने वाला यह पहला मामला था.

लड़की होते हुए कृष्णा ने क्यों कीं 2 शादियां

कृष्णा सेन जब एक लड़की थी तो उस ने लड़का बन कर 2-2 लड़कियों के साथ शादी क्यों की. फिर वह अपना पति धर्म किस तरह से निभाती थी. इन सब बातों के बारे में पुलिस ने उस से पूछताछ की तो एक ऐसी कहानी निकल कर आई जिसे जान कर आप भी दंग रह जाएंगे.

कृष्णा सेन मूलरूप से उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के धामपुर की गंगा कालोनी की रहने वाली थी. उस के पिता चंद्रसेन की मृत्यु के बाद मां निर्मला देवी ही घर संभालती थीं. कुल मिला कर वे लोग 2 बहन और 2 भाई थे. कृष्णा तीसरे नंबर की थी. कृष्णा सेन को घर में सब प्यार से स्वीटी कहते थे. कृष्णा को बचपन से ही लड़कों की तरह रहने की आदत थी. घर वाले भी उसे लड़कों के कपड़े पहनाते थे. वह लड़कियों के बजाय लड़कों के साथ ही खेलती थी.

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वह खुद को लड़का ही समझती थी. इतना ही नहीं उस ने अपने मांबाप से भी कह दिया था कि उसे लड़का ही समझें. घर में और बाहर भी वह बातचीत लड़कों की तरह करती थी. लड़कों की तरह ही वह छोटेछोटे बाल रखती यानी संबोधन में पुलिंग शब्द प्रयोग करती थी.

जब वह जवान हुई तो हार्मोन असंतुलन की वजह से उस के वक्षों का भी उभार नहीं हुआ. तब उस ने अपनी मां निर्मला देवी से कहा, ‘‘देख मम्मी, मैं लड़की नहीं लड़का ही हूं इसलिए शादी भी लड़की से ही करूंगा.’’ कृष्णा सेन लड़कों के कपड़े पहनती, मोटरसाइकिल भी तेज गति से चलाती थी.

कृष्णा ने फेसबुक पर कई दोस्त बना रखे थे. सन 2012 में उस की दोस्ती काठगोदाम निवासी प्रियंका से हुई. कृष्णा ने खुद को एक बिजनेसमैन का बेटा बताया. उस ने कहा कि उस के पिता चंद्रसेन की अलीगढ़ में सीएफएल बल्ब बनाने की फैक्ट्री है और वह पोस्टग्रैजुएशन कर रहा है.

अपनी लच्छेदार बातों में कृष्णा ने उसे फांस लिया. प्रियंका उसे लड़का ही समझ कर बात करती थी. दोनों ने एकदूसरे को अपने फोटो भी भेज दिए. फिर प्रियंका उसे दिलोजान से चाहने लगी.

करीब 6 महीने बाद 19 जनवरी, 2013 को प्रियंका की छोटी बहन की काठगोदाम में शादी थी. प्रियंका ने बहन की शादी में कृष्णा को भी आने का निमंत्रण दिया. अपनी शानशौकत दिखाने के लिए कृष्णा सेन किराए की कार ले कर प्रियंका की बहन की शादी में शमिल होने के लिए पहुंची.

प्रियंका ने उस की मुलाकात अपने घर वालों से कराई. प्रियंका के घर वाले भी कृष्णा को लड़का ही समझे. घर वालों को जब पता चला कि कृष्णा के पिता की सीएफएल बल्ब बनाने की फैक्ट्री है और वह खुद भी पोस्ट ग्रेजुएट है तो वह बहुत प्रभावित हुए. उन्होंने उस की अच्छी आवभगत की.

कृष्णा और प्रियंका की पहले की तरह ही दोस्ती चलती रही. कृष्णा ने जब प्रियंका से शादी की बात की तो प्रियंका ने कह दिया कि इस बारे में वह खुद आ कर उस के मांबाप से मिल ले.

बनठन कर रहने से कृष्णा जमाती थी अपना प्रभाव  जनवरी 2014 में कृष्णा सेन किसी की सफारी कार ले कर काठगोदाम में प्रियंका के घर पहुंच गई. अचानक कृष्णा को देख कर घर वाले चौंक गए. कृष्णा सेन ने उन्हें बताया कि वह प्रियंका को प्यार करता है और उस से शादी करना चाहता है.

प्रियंका के मातापिता को अब तक कृष्णा सेन के बारे में जो जानकारी मिली थी उस से यही पता चला कि कृष्णा एक अच्छे परिवार का पढ़ालिखा लड़का है. प्रियंका के भविष्य को देखते हुए वह उन्हें सही लगा, इसलिए उन्होंने कृष्णा की शादी वाली बात मान ली. घर वालों के सहमत होने पर प्रियंका और कृष्णा बहुत खुश हुए.

उधर कृष्णा सेन ने अपने घर वालों से कह दिया कि वह काठगोदाम की रहने वाली प्रियंका से शादी करना चाहता है. प्रियंका के घर वाले इस के लिए तैयार हैं.

यह बात सही थी कि प्रियंका और उस के घर वाले नहीं जानते थे कि कृष्णा लड़की है. वह तो उसे लड़का ही समझते थे, लेकिन कृष्णा की मां निर्मला देवी अच्छी तरह जानती थीं कि कृष्णा लड़का नहीं लड़की है. इस के बावजूद उस ने कृष्णा की शादी वाली बात का विरोध नहीं किया बल्कि खुशीखुशी उस की शादी प्रियंका से कराने के लिए तैयार हो गई. इतना ही नहीं, वह इस संबंध में प्रियंका के मांबाप से मिली और बातचीत कर के सगाई का दिन भी निश्चित कर दिया.

होटल में रचाई शादी

प्रियंका के घर वालों ने लेमन होटल में सगाई के कार्यक्रम का दिन निश्चित किया. तब निर्धारित तिथि पर कृष्णा अपनी मां निर्मला देवी, बहन सोनल और भाई गौरव को ले कर लेमन होटल पहुंच गई. सगाई के बाद 14 फरवरी, 2018 को कृष्णा घोड़ी, बैंडबाजे के साथ बारात ले कर प्रियंका के यहां पहुंची. बारात में उस के घर वाले, रिश्तेदार सहित करीब 50 लोग भी शामिल थे.

अब यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि बारात में शामिल अधिकांश लोग जानते थे कि कृष्णा लड़का नहीं लड़की है. वह पति की जिम्मेदारियां कैसे निभाएगी. इस के बावजूद भी वे प्रियंका की जिंदगी बरबाद होने की शुरुआत होने के गवाह बनने को आतुर थे. लड़की वालों ने शादी के लिए हल्द्वानी का देवाशीष होटल बुक करा रखा था.

बहरहाल 14 फरवरी, 2018 को बैंडबाजे के साथ कृष्णा सेन की बारात हल्द्वानी के देवाशीष होटल पहुंची और सामाजिक रीतिरिवाज से विवाह संपन्न होने के बाद प्रियंका कृष्णा सेन की पत्नी बन कर धामपुर चली गई.

प्रियंका के घर वालों ने अपनी हैसियत के अनुसार उसे दहेज भी दिया. शादी के बाद अपनी नवविवाहिता से शारीरिक संबंध बनाने के लिए कृष्णा ने औनलाइन  बुकिंग कर के कृत्रिम लिंग मंगा लिया था. कमरे में अंधेरा करने के बाद उस कृत्रिम लिंग को बेल्ट से बांध कर उस ने अपनी सुहागरात मनाई. इसी के द्वारा वह प्रियंका को संतुष्ट करती थी. प्रियंका उस के साथ रह कर खुश थी.

किसी को उस पर शक न हो इसलिए वह सिगरेट और शराब भी पीने लगी थी. लड़कों की तरह वह तेज गति से मोटरसाइकिल चलाती थी.

एक दिन कृष्णा ने प्रियंका को विश्वास में ले कर कहा, ‘‘प्रियंका मैं भी अपने पिता की तरह सीएफएल बल्ब की फैक्ट्री लगाना चाहता हूं. मैं काम शुरू करने के लिए अपने पिता से कोई आर्थिक सहयोग नहीं लेना चाहता. ऐसा करो कि तुम अपने घर वालों से ही 8 लाख रुपए का इंतजाम करा दो तो मैं हल्द्वानी या हरिद्वार में सीएफएल बल्ब की अपनी फैक्ट्री लगा लूंगा.’’

यह बात प्रियंका को भी अच्छी लगी कि जब अपनी फैक्ट्री लग जाएगी तो वह भी पति के काम में हाथ बंटा दिया करेगी. यही सोच कर प्रियंका ने अपने मांबाप से जिद कर के कृष्णा के लिए 8 लाख रुपए दिलवा दिए.

ससुराल से पैसे मिले ही कृष्णा ने सेवरले कंपनी की एक नई कार और एक बाइक खरीदी. प्रियंका के घर वालों को शक हुआ कि दामाद ने तो बिजनेस शुरू करने के लिए पैसे लिए थे पर वह तो गाडि़यां खरीद लाया. उन्होंने इस बारे में कृष्णा से बात की तो उस ने बताया कि बड़ा कारोबार है. फैक्ट्री खोलने के लिए मेरे पास पैसा है, लेकिन कारोबार चलाने के लिए कार का होना जरूरी है.

शादी के बाद कृष्णा सेन प्रियंका से दूर रहने लगी थी. वह 10-15 दिन तक घर नहीं आती थी. बाद में कृष्णा ने हल्द्वानी की तिकोनिया कालोनी में एक मकान किराए पर ले लिया. किराए के मकान में भी वह 10-15 दिन तक घर नहीं आती तो प्रियंका उस से इस बारे में पूछती. तब वह कह देती कि बिजनैस के सिलसिले में उसे अलगअलग शहरों के चक्कर लगाने पड़ते हैं.

अब वह शराब पी कर भी आने लगी थी. प्रियंका उस से शराब पीने को मना करती तो वह उसे धमका देती थी. इस के अलावा धमकी भी दे देती कि मेरे बडे़ लोगों से संबंध हैं. उस के डर की वजह से प्रियंका डरीसहमी सी रहती थी. धीरेधीरे उन का जुबानी झगड़ा मारपीट पर पहुंचने लगा. इस परेशानी के चलते जब प्रियंका का मन होता, वह कुछ दिनों के लिए अपने मायके चली जाती थी.

इसी बीच कृष्णा सेन ने कालाढूंगी के रहने वाले अपने दोस्त की बहन सरिता को भी अपने प्रेमजाल में फांस लिया. सरिता उस समय 12वीं कक्षा में पढ़ रही थी. फिर दोस्त के घर वालों की सहमति से उस ने 14 अप्रैल, 2016 को सरिता से भी शादी कर ली. प्रियंका उस समय अपने मायके में थी. कृष्णा सेन दूसरी पत्नी सरिता को अपने तिकोनिया कालोनी वाले घर में ले आई. साथ रहने के बावजूद सरिता को यह पता नहीं लग सका कि जिस कृष्णा को वह पति समझती है, वह खुद एक लड़की है.

सरिता को यह भी जानकारी नहीं थी कि कृष्णा पहले से शादीशुदा है. उस के पहले से शादीशुदा होने वाली बात तो तब पता लगी जब प्रियंका ने हंगामा किया था. इस के बाद कृष्णा अपनी दोनों बीवियों को धमकी देती रही कि वे शांत हो कर रहें, नहीं तो उन के मायके वालों को नुकसान हो सकता है.

दोनों पत्नियां करीब 4 महीने तक साथसाथ रहीं. यानी कृष्णा दोनों को धमकाती रही. इस के बाद प्रियंका और सरिता अपने मायके चली गईं. उन के जाने के बाद कृष्णा ने तिकोनिया कालोनी वाला मकान खाली कर दिया.

प्रियंका कृष्णा सेन के साथ करीब 4 सालों तक रही लेकिन वह उस की सच्चाई नहीं जान सकी. पति की कुछ बातों को ले कर प्रियंका को एक दो बार शक जरूर हुआ लेकिन उस ने उसे गंभीरता से नहीं लिया.

कृष्णा कभी भी खुले में अपने कपड़े नहीं बदलती थी. दूसरे वह अन्य मर्दों की तरह खुले में पेशाब नहीं करती थी. जब वह उस के साथ वैष्णो देवी गई तो कृष्णा ने हमेशा दरवाजे वाला बाथरूम ही प्रयोग किया था. अब हकीकत सामने आने पर प्रियंका की समझ में आ गया कि वह ऐसा क्यों करती थी.

कृष्णा के गिरफ्तार होने के बाद पुलिस को एक और जानकारी यह मिली कि वह एक जालसाज है. उस ने शहर के कई लोगों के साथ ठगी की थी. उस ने हल्द्वानी के एक कारोबारी से करीब डेढ़ लाख रुपए का फरनीचर बनवाया था, जिस के पैसे उस ने कारोबारी को नहीं दिए थे.

और लोगों को भी ठगा कृष्णा ने शहर में ही मंगल पड़ाव स्थित मोबाइल की एक दुकान से उस ने करीब डेढ़ लाख रुपए की कीमत का एक आईफोन लिया था. उस ने दुकानदार को इस के बदले जो चेक दिया था वह वाउंस हो गया था. तब दुकानदार ने कृष्णा सेन के खिलाफ न्यायालय में केस दायर कर दिया था.

दूसरी पत्नी सरिता के घर वालों से भी उस ने 65 हजार रुपए ठगे थे. इस के अलावा उस ने हरिद्वार के ज्वालापुर में रहने वाली एक शादीशुदा महिला को भी अपने प्रेमजाल में फांस रखा था.

पुलिस ने कृष्णा सेन उर्फ स्वीटी से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उसे न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया. जेल में बैरक में भेजने से पहले जेल प्रशासन ने उस की 2 बार जांच कराई. जेल अधीक्षक मनोज आर्य ने खुद पुलिस और न्यायालय से आए सभी दस्तावेजों को गौर से देखा.

जेल में महिला कर्मचारियों ने उस की 2 बार सघन तलाशी ली. जब जेल प्रशासन को इस बात की पुष्टि हो गई कि कृष्णा सेन महिला है, तभी उसे महिला बैरक में भेजा गया.

पुलिस को यह बात समझ नहीं आ रही कि कृष्णा सेन के घर वालों को जब उस के लड़की होने की जानकारी थी तो उन्होंने प्रियंका से उस की शादी क्यों कराई. पुलिस उस के घर वालों से पूछताछ कर यह पता लगाएगी कि कहीं ठगी के धंधे में घर वाले तो शरीक नहीं थे.

पुलिस ने कृष्णा सेन का राशन कार्ड बरामद कर लिया है, जिस में वह फीमेल के रूप में दर्ज है. जबकि उस के पैन कार्ड और वोटर आईडी कार्ड में उसे मेल दर्शाया गया है. कथा लिखे जाने तक पुलिस मामले की जांच कर रही थी.

– कथा में सरिता परिवर्तित नाम है.

सैकेंड हैंड किताबों की आउटलेट

दुनिया, देश या समाज में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो किसी व्यक्ति की काबिलियत पर ध्यान देने के बजाए उस की शारीरिक कमतरी पर ज्यादा ध्यान देते हैं. इतना ही नहीं कुछ लोग तो यही समझ बैठते हैं कि शारीरिक दोष वाले व्यक्ति प्रतिभाशाली नहीं होते. जबकि दुनिया इस बात को जानती है कि शारीरिक विकलांगता वाले लोगों ने जब भी हठ और जुनून के साथ काम किया तो उन्होंने नया इतिहास ही रचा है.

बेंगलुरु के प्रतिष्ठित कालेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले सुशांत झा के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ. उन के शरीर में एक मामूली सा दोष था. उन का ऊपरी होंठ कटा हुआ था. सुशांत ने इसे कोई कमी नहीं समझा बल्कि अपनी आंखों में ढेरों सपने ले कर एक प्रतिष्ठित संस्थान से इंजीनियरिंग करने लगे. उन का सपना था कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद उन का कैरियर सफल होगा.

पर कालेज प्लेसमेंट के दौरान किसी भी कंपनी ने उन्हें नहीं लिया. इस की वजह यही रही कि उन का होंठ कटा हुआ था, जिस की वजह से वह ठीक से बोल भी नहीं पाते थे. सारी कंपनियों ने उन्हें पहली स्पीच के बाद ही रिजेक्ट कर दिया था.

किसी ने भी उन से पढ़ाई से संबंधित टैक्निकल सवाल नहीं किया. सुशांत को खुद के सलेक्ट न होने का ज्यादा दुख तो नहीं हुआ लेकिन उन्हें इस बात का अफसोस जरूर हुआ कि किसी ने उन की योग्यता को परखने तक की कोशिश नहीं की.

इस के बाद सुशांत ने बाहर भी नौकरी ढूंढी पर वही निराशा ही हाथ लगी. उन्होंने अपनी स्किल्स और बढ़ाने का फैसला लिया. उन्होंने पोस्ट ग्रैजुएशन किया. मैट (रू्नञ्ज) में अच्छा स्कोर करने के बावजूद बिजनैस स्कूलों में भी उन्हें नजरअंदाज किया. अनेक जगह इंटरव्यू देने पर भी सफलता नहीं मिली. यानी एमबीए करने के बाद भी उन्हें तकरीबन 40 कंपनियों से रिजेक्शन का सामना करना पड़ा.

सुशांत एमबीए करने के बाद करीब 2 साल तक घर पर ही खाली बैठे रहे जबकि परिवार चलाने के लिए नौकरी या कोई काम करना जरूरी था. चारों तरफ से निराशा मिलने के बाद सुशांत ने अपना ही कोई काम करने की सोची.

इस संबंध में सुशांत ने अपने भाई प्रशांत से बात की. उन्होंने सुझाव दिया कि कोई ऐसा काम शुरू करो जिस में किताबें जरूर शामिल हों. ऐसा क्या काम हो सकता है. इसी बारे में दोनों भाइयों ने लंबे समय तक विचारविमर्श किया.

तभी सुशांत को अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई वाले दिन याद आ गए कि छात्र पढ़ाई के लिए महंगी किताबें खरीदते हैं और बाद में वही किताबें सस्ते दामों पर कबाड़ी को बेच दी जाती हैं. उन्होंने सोचा कि क्यों न ऐसा काम शुरू किया जाए कि जरूरतमंदों को महंगी किताबें सैकेंड हैंड वाली उपलब्ध कराई जाएं. इसी सोच के साथ उन्होंने सन 2014 में बोधि ट्री नालेज सर्विसेज ऐंड इनिशिएटिव पढ़ेगा इंडिया इंनिशिएटिव नाम से एक कंपनी रजिस्टर्ड करा ली.

शुरुआत में दोनों भाइयों ने सब से पहले दिल्ली में सैकेंड हैंड बुक्स के बाजार ढूंढे. फिर वहां के 40-50 वैंडरों से उन्होंने टाइअप किया. दक्षिण दिल्ली में औफिस खोलने के बाद अब उन्होंने ऐसे लोगों को तलाशा जो महंगी नई पुस्तकों को नहीं खरीद सकते. ऐसे लोगों को उन्होंने सैकेंड हैंड पुस्तकें उपलब्ध करानी शुरू कर दीं. वह किताबें रेंट पर भी देने लगे.

सुशांत का कहना है कि एक साल में प्रति व्यक्ति 10 किलोग्राम कागज की खपत होती है. सैकेंड हैंड किताबों की विक्री और रेंट पर देने से किताबों की उपलब्धता बढ़ेगी. जिस से देश में कागज की मांग में गिरावट आएगी. जब कागज की मांग कम होगी तो पेड़ों की कटाई में भीकमी आएगी. इस से पर्यावरण का संतुलन भी बना रहेगा.

इस के लिए सुशांत ने अपनी वेबसाइट पर ‘ग्रीन काउंट’ नाम से एक स्केल भी लगाया है जो यह मापता है कि उन की बिक्री या रेंट से कागज की मांग में कितनी कमी आई है और उस से कितने पेड़ कटने से बच गए. एक ग्रीन काउंट का अर्थ 40 ग्राम पेपर को फिर से प्रयोग में लाना माना जाता है.

सुशांत का कहना है कि कोई भी व्यक्ति उन्हें अपनी पुरानी किताबें बेच सकता है या फिर डोनेट कर सकता है. वह सैकेंड हैंड किताबें बिना किसी अतिरिक्त चार्ज के घरों से भी कलेक्ट कर लेते हैं.

पढ़ेगा इंडिया अभी साउथ दिल्ली और एनसीआर में ही उपलब्ध है. लेकिन दोनों भाई जल्द ही बेंगलुरु में एक आउटलेट खोलने की योजना बना रहे हैं. सुशांत के इस इनिशिएटिव को हाल ही में डिपार्टमेंट औफ इंडस्ट्रियल प्रमोशन ऐंड पौलिसी ने स्टार्टअप के रूप में संस्तुति दी है. अब वह किसी इन्वेस्टर की तलाश में हैं, अभी तक उन्हें इन्वेस्टर नहीं मिला है.

सुशांत का सपना भारत के हर जिले में अपना आउटलेट खोलने की है.

रिश्ता : शमा को आखिर क्यों नापसंद था रफीक

शमा के लिए रफीक का रिश्ता आया. वह उसे पहले से जानती थी. वह ‘रेशमा आटो सर्विस’ में मेकैनिक था और अच्छी तनख्वाह पाता था.

शमा की मां सईदा अपनी बेटी का रिश्ता लेने को तैयार थीं.

शमा बेहद हसीन और दिलकश लड़की थी. अपनी खूबसूरती के मुकाबले वह रफीक को बहुत मामूली इनसान समझती थी. इसलिए रफीक उसे दिल से नापसंद था.

दूसरी ओर शमा की सहेली नाजिमा हमेशा उस की तारीफ करते हुए उकसाया करती थी कि वह मौडलिंग करे, तो उस का रुतबा बढ़ेगा. साथ ही, अच्छी कमाई भी होगी.

एक दिन शमा ख्वाबों में खोई सड़क पर चली जा रही थी.

‘‘अरी ओ ड्रीमगर्ल…’’ पीछे से पुकारते हुए नाजिमा ने जब शमा के कंधे पर हाथ रखा, तो वह चौंक पड़ी.

‘‘किस के खयालों में चली जा रही हो तुम? तुझे रोका न होता, तो वह स्कूटर वाला जानबूझ कर तुझ पर स्कूटर चढ़ा देता. वह तेरा पीछा कर रहा था,’’ नाजिमा ने कहा.

शमा ने नाजिमा के होंठों पर चुप रहने के लिए उंगली रख दी. वह जानती थी कि ऐसा न करने पर नाजिमा बेकार की बातें करने लगेगी.

अपने होंठों पर से उंगली हटाते हुए नाजिमा बोली, ‘‘मालूम पड़ता है कि तेरा दिमाग सातवें आसमान में उड़ने लगा है. तेरी चमड़ी में जरा सफेदी आ गई, तो इतराने लगी.’’

‘‘बसबस, आते ही ऐसी बातें शुरू कर दीं. जबान पर लगाम रख. थोड़ा सुस्ता ले…’’

थोड़ा रुक कर शमा ने कहा, ‘‘चल, मेरे साथ चल.’’

‘‘अभी तो मैं तेरे साथ नहीं चल सकूंगी. थोड़ा रहम कर…’’

‘‘आज तुझे होटल में कौफी पिलाऊंगी और खाना भी खिलाऊंगी.’’

‘‘मेरी मां ने मेरे लिए जो पकवान बनाया होगा, उसे कौन खाएगा?’’

‘‘मैं हूं न,’’ शमा नाजिमा को जबरदस्ती घसीटते हुए पास के एक होटल में ले गई.

‘‘आज तू बड़ी खुश है? क्या तेरे चाहने वाले नौशाद की चिट्ठी आई है?’’ शमा ने पूछा.

यह सुन कर नाजिमा झेंप गई और बोली, ‘‘नहीं, साहिबा का फोटो और चिट्ठी आई है.’’

‘‘साहिबा…’’ शमा के मुंह से निकला.

साहिबा और शमा की कहानी एक ही थी. उस के भी ऊंचे खयालात थे. वह फिल्मी दुनिया की बुलंदियों पर पहुंचना चाहती थी.

साहिबा का रिश्ता उस की मरजी के खिलाफ एक आम शख्स से तय हो गया था, जो किसी दफ्तर में बड़ा बाबू था. उसे वह शख्स पसंद नहीं था.

कुछ महीने पहले साहिबा हीरोइन बनने की लालसा लिए मुंबई भाग गई थी, फिर उस की कोई खबर नहीं मिली थी. आज उस की एक चिट्ठी आई थी.

चिट्ठी की खबर सुनने के बाद शमा ने नाजिमा के सामने साहिबा के तमाम फोटो टेबिल पर रख दिए, जिन्हें वह बड़े ध्यान से देखने लगी. सोचने लगी, ‘फिल्म लाइन में एक औरत पर कितना सितम ढाया जाता है, उसे कितना नीचे गिरना पड़ता है.’

नाजिमा से रहा नहीं गया. वह गुस्से में बोल पड़ी, ‘‘इस बेहया लड़की को देखो… कैसेकैसे अलफाजों में अपनी बेइज्जती का डंका पीटा है. शर्म मानो माने ही नहीं रखती है. क्या यही फिल्म स्टार बनने का सही तरीका है? मैं तो समझती हूं कि उस ने ही तुम्हें झूठी बातों से भड़काया होगा.

‘‘देखो शमा, फिल्म लाइन में जो लड़की जाएगी, उसे पहले कीमत तो अदा करनी ही पड़ेगी.’’

‘‘फिल्मों में आजकल विदेशी रस्म के मुताबिक खुला बदन, किसिंग सीन वगैरह मामूली बात हो गई है.

‘‘कोई फिल्म गंदे सीन दिखाने पर ही आगे बढ़ेगी, वरना…’’ शमा बोली.

‘‘सच पूछो, तो साहिबा के फिल्मस्टार बनने से मुझे खुशी नहीं हुई, बल्कि मेरे दिल को सदमा पहुंचा है. ख्वाबों की दुनिया में उस ने अपनेआप को बेच कर जो इज्जत कमाई, वह तारीफ की बात नहीं है,’’ नाजिमा ने कहा.

बातोंबातों में उन दोनों ने 3-3 कप कौफी पी डाली, फिर टेबिल पर उन के लिए वेटर खाना सजाने लगा.

‘‘शमा, ऐसे फोटो ले जा कर तुम भी फिल्म वालों से मिलोगी, तो तुझे फौरन कबूल कर लेंगे. तू तो यों भी इतनी हसीन है…’’ हंस कर नाजिमा बोली.

‘‘आजकल मैं इसलिए ज्यादा परेशान हूं कि मां ने मेरी शादी रफीक से करने के लिए जीना मुश्किल कर दिया है. उन्हें डर है कि मैं भी मुंबई न भाग जाऊं.’’

‘‘अगर तुझे रफीक पसंद नहीं है, तो मना कर दे.’’

‘‘वही तो समस्या है. मां समझती हैं कि ऐसे कमाऊ लड़के जल्दी नहीं मिलते.’’

‘‘उस में कमी क्या है? मेहनत की कमाई करता है. तुझे प्यारदुलार और आराम मुहैया कराएगा. और क्या चाहिए तुझे?’’

‘‘तू भी मां की तरह बतियाने लगी कि मैं उस मेकैनिक रफीक से शादी कर लूं और अपने सारे अरमानों में आग लगा दूं.

‘‘रफीक जब घर में घुसे, तो उस के कपड़ों से पैट्रोल, मोबिल औयल और मिट्टी के तेल की महक सूंघने को मिले, जिस की गंध नाक में पहुंचते ही मेरा सिर फटने लगे. न बाबा न. मैं तो एक हसीन जिंदगी गुजारना चाहती हूं.’’

‘‘सच तो यह है कि तू टैलीविजन पर फिल्में देखदेख कर और फिल्मी मसाले पढ़पढ़ कर महलों के ख्वाब देखने लगी है, इसलिए तेरा दिमाग खराब होने लगा है. उन ख्वाबों से हट कर सोच. तेरी उम्र 24 से ऊपर जा रही है. हमारी बिरादरी में यह उम्र ज्यादा मानी जाती है. आगे पूछने वाला न मिलेगा, तो फिर…’’

इसी तरह की बातें होती रहीं. इस के बाद वे दोनों अपनेअपने घर चली गईं.

उस दिन शमा रात को ठीक से सो न सकी. वह बारबार रफीक, नाजिमा और साहिबा के बारे में सोचती रही.

रात के 3 बज रहे थे. शमा ने उठ कर आईने के सामने अपने शरीर को कई बार घुमाफिरा कर देखा, फिर कपड़े उतार कर अपने जिस्म पर निगाहें गड़ाईं और मुसकरा दी. फिर वह खुद से ही बोली, ‘मुझे साहिबा नहीं बनना पड़ेगा. मेरे इस खूबसूरत जिस्म और हुस्न को देखते ही फिल्म वाले खुश हो कर मुझे हीरोइन बना देंगे.’’

जब कोई गलत रास्ते पर जाने का इरादा बना लेता है, तो उस का दिमाग भी वैसा ही हो जाता है. उसे आगेपीछे कुछ सूझता ही नहीं है.

शमा ने सोचा कि अगर वह साहिबा से मिलने गई, तो वह उस की मदद जरूर करेगी. क्योंकि साहिबा भी उस की सहेली थी, जो आज नाम व पैसा कमा रही है.

लोग कहते हैं कि दूर के ढोल सुहावने होते हैं. वे सच कहते हैं, लेकिन जब मुसीबत आती है, तो वही ढोल कानफाड़ू बन कर परेशान कर देते हैं.

शमा अच्छी तरह जानती थी कि उस की मां उसे मुंबई जाने की इजाजत नहीं देंगी, तो क्या उस के सपने केवल सपने बन कर रह जाएंगे? वह मुंबई जरूर जाएगी, चाहे इस के लिए उसे मां को छोड़ना पड़े.

शमा ने अपने बैंक खाते से रुपए निकाले, ट्रेन का रिजर्वेशन कराया और मां से बहाना कर के एक दिन मुंबई के लिए चली गई.

शमा ने साहिबा को फोन कर दिया था. साहिबा ने उसे दादर रेलवे स्टेशन पर मिलने को कहा और अपने घर ले चलने का भरोसा दिलाया.

जब ट्रेन मुंबई में दादर रेलवे स्टेशन पर पहुंची, उस समय मूसलाधार बारिश हो रही थी. बहुत से लोग स्टेशन पर बारिश के थमने का इंतजार कर रहे थे. प्लेटफार्म पर बैठने की थोड़ी सी जगह मिल गई.

शमा सोचने लगी, ‘घनघोर बारिश के चलते साहिबा कहीं रुक गई होगी.’

उसी बैंच पर एक औरत बैठी थी. शायद, उसे भी किसी के आने का इंतजार था.

शमा उस औरत को गौर से देखने लगी, जो उम्र में 40 साल से ज्यादा की लग रही थी. रंग गोरा, चेहरे पर दिलकशी थी. अच्छी सेहत और उस का सुडौल बदन बड़ा कशिश वाला लग रहा था.

शमा ने सोचा कि वह औरत जब इस उम्र में इतनी खूबसूरत लग रही है, तो जवानी की उम्र में उस पर बहुत से नौजवान फिदा होते रहे होंगे.

उस औरत ने मुड़ कर शमा को देखा और कहा, ‘‘बारिश अभी रुकने वाली नहीं है. कहां जाना है तुम्हें?’’

शमा ने जवाब दिया, ‘‘गोविंदनगर जाना था. कोई मुझे लेने आने वाली थी. शायद बारिश की वजह से वह रुक गई होगी.’’

‘‘जानती हो, गोविंदनगर इलाका इस दादर रेलवे स्टेशन से कितनी दूर है? वह मलाड़ इलाके में पड़ता है. यहां पहली बार आई हो क्या?’’

‘‘जी हां.’’

‘‘किस के यहां जाना है?’’

‘‘मेरी एक सहेली है साहिबा. हम दोनों एक ही कालेज में पढ़ती थीं. 2-3 साल पहले वह यहां आ कर बस गई. उस ने मुझे भी शहर देखने के लिए बुलाया था.’’

उस औरत ने शमा की ओर एक खास तरह की मुसकराहट से देखते हुए पूछा, ‘‘तुम्हारे पास सामान तो बहुत कम है. क्या 1-2 दिन के लिए ही आई हो?’’

‘‘अभी कुछ नहीं कह सकती. साहिबा के आने पर ही बता सकूंगी.’’

‘‘कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम अपने घर से बिना किसी को बताए यहां भाग कर आई हो? अकसर तुम्हारी उम्र की लड़कियों को मुंबई देखने का बड़ा शौक रहता है, इसलिए वे बिना इजाजत लिए इस नगरी की ओर दौड़ पड़ती हैं और यहां पहुंच कर गुमराह हो जाती हैं.’’

शमा के चेहरे की हकीकत उस औरत से छिप न सकी.

‘‘मुझे लगता है कि तुम भी भाग कर आई हो. मुमकिन है कि तुम्हें भी हीरोइन बनने का चसका लगा होगा, क्योंकि तुम्हारी जैसी हसीन लड़कियां बिना सोचे ही गलत रास्ते पर चल पड़ती हैं.’’

‘‘आप ने मुझे एक नजर में ताड़ लिया. लगता है कि आप लड़कियों को पहचानने में माहिर हैं,’’ कह कर शमा हंस दी.

‘‘ठीक कहा तुम ने…’’ कह कर वह औरत भी हंस दी, ‘‘मैं भी किसी जमाने में तुम्हारी उम्र की एक हसीन लड़की गिनी जाती थी. मैं भी मुंबई में उसी इरादे से आई थी, फिर वापस न लौट सकी.

‘‘मैं भी अपने घर से भाग कर आई थी. मुझ से पहले मेरी सहेली भी यहां आ कर बस चुकी थी और उसी के बुलावे पर मैं यहां आई थी, पर जो पेशा उस ने अपना रखा था, सुन कर मेरा दिल कांप उठा…

‘‘वह बड़ी बेगैरत जिंदगी जी रही थी. उस ने मुझे भी शामिल करना चाहा, तो मैं उस के दड़बे से भाग कर अपने घर जाना चाहती थी, लेकिन यहां के दलालों ने मुझे ऐसा वश में किया कि मैं यहीं की हो कर रह गई.

‘‘मुझे कालगर्ल बनना पड़ा. फिर कोठे तक पहुंचाया गया. मैं बेची गई, लेकिन वहां से भाग निकली. अब स्टेशनों पर बैठते ऐसे शख्स को ढूंढ़ती फिरती हूं, जो मेरी कद्र कर सके, लेकिन इस उम्र तक कोई ऐसा नहीं मिला, जिस का दामन पकड़ कर बाकी जिंदगी गुजार दूं,’’ बताते हुए उस औरत की आंखें नम हो गईं.

‘‘कहीं तुम्हारा भी वास्ता साहिबा से पड़ गया, तो जिंदगी नरक बन जाएगी. तुम ने यह नहीं बताया कि तुम्हारी सहेली करती क्या है?’’ उस औरत ने पूछा.

शमा चुप्पी साध गई.

‘‘नहीं बताना चाहती, तो ठीक है?’’

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है. वह हीरोइन बनने आई थी. अभी उस को किसी फिल्म में काम करने को नहीं मिला, पर आगे उम्मीद है.’’

‘‘फिर तो बड़ा लंबा सफर समझो. मुझे भी लोगों ने लालच दे कर बरगलाया था,’’ कह कर औरत अजीब तरह से हंसी, ‘‘तुम जिस का इंतजार कर रही हो, शायद वह तुम्हें लेने नहीं आएगी, क्योंकि जब अभी वह अपना पैर नहीं जमा सकी, तो तुम्हारी खूबसूरती के आगे लोग उसे पीछे छोड़ देंगे, जो वह बरदाश्त नहीं कर पाएगी.’’

दोनों को बातें करतेकरते 3 घंटे बीत गए. न तो बारिश रुकी, न शाम तक साहिबा उसे लेने आई. वे दोनों उठ कर एक रैस्टोरैंट में खाना खाने चली गईं.

शमा ने वहां खुल कर बताया कि उस की मां उस की शादी जिस से करना चाहती थीं, वह उसे पसंद नहीं करती. वह बहुत दूर के सपने देखने लगी और अपनी तकदीर आजमाने मुंबई चली आई.

‘‘शमा, बेहतर होगा कि तुम अपने घर लौट जाओ. तुम्हें वह आदमी पसंद नहीं, तो तुम किसी दूसरे से शादी कर के इज्जत की जिंदगी बिताओ, इसी में तुम्हारी भलाई है, वरना तुम्हारी इस खूबसूरत जवानी को मुंबई के गुंडे लूट कर दोजख में तुम्हें लावारिस फेंक देंगे, जहां तुम्हारी आवाज सुनने वाला कोई न होगा.’’

शमा उस औरत से प्रभावित हो कर उस के पैरों पर गिर पड़ी और वापस जाने की मंसा जाहिर की.

‘‘अगर तुम इस ग्लैमर की दुनिया में कदम न रखने का फैसला कर घर वापस जाने को राजी हो गई हो, तो मैं यही समझूंगी कि तुम एक जहीन लड़की थी, जो पाप के दलदल में उतरने से बच गई. मैं तुम्हारे वापसी टिकट का इंतजाम करा दूंगी,’’ उस औरत ने कहा.

शमा घर लौट कर अपनी बूढ़ी मां सईदा की बांहों में लिपट कर खूब रोई.

आखिरकार शमा रफीक से शादी करने को राजी हो गई.

मां ने भी शमा की शादी बड़े ही धूमधाम से करा दी.

अब रफीक और शमा खुशहाल जिंदगी के सपने बुन रहे हैं. शमा भी पिछली बातें भूलने की कोशिश कर रही है.

संजू : महिमामंडन करने वाली फिल्म में रणबीर कपूर का दमदार अभिनय

‘‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’’ व ‘‘पीके’’ सहित कई सफल फिल्में निर्देशित कर चुके फिल्मकार राजकुमार हिरानी पहली बार अपने दोस्त व अभिनेता संजय दत्त के जीवन पर बायोपिक फिल्म ‘‘संजू’’ लेकर आए हैं. पूरी फिल्म देखकर एक बात उभरकर सामने आती है कि फिल्मकार का मकसद कई बुराइयों के बावजूद संजय दत्त को एक साफ सुथरी इमेज वाला कलाकार बताना ही रहा है और इसके लिए फिल्म में संजय दत्त की इमेज को बिगाड़ने या उन्हें टाड़ा के तहत गिरफ्तार किए जाने पर भी संजय दत्त की इमेज खराब करने के लिए अखबार, न्यूज चैनलों व पत्रकारिता को ही कटघरों में खड़ा किया गया है. इसी के चलते फिल्मकार ने फिल्म में संजय दत्त के व्यक्तिगत जीवन को पेश करने से खुद को दूर ही रखा.

फिल्म शुरू होती है संजय दत्त को पांच वर्ष की सजा सुनाए जाने की खबर से. इस खबर को संजय दत्त व मान्यता दत्त अपने छोटे बच्चों के साथ टीवी पर देखते हैं. संजय नहीं चाहते कि लोग उनके बच्चों को टेरेरिस्ट के बच्चे कहकर बुलाएं, इसलिए आत्महत्या करना चाहते हैं, पर मान्यता दत्त यह कह कर रोक लेती हैं कि इससे उन्हे छुटकारा मिल जाएगा, पर बच्चों को नहीं.

उसके बाद मान्यता के कहने पर संजय दत्त एक मशहूर विदेशी लेखक विनी (अनुष्का शर्मा) को अपने जीवन की दास्तान सुनाते हैं. संजय दत्त चाहते हैं कि विनी उनकी आत्मकथा रूपी किताब लिखें. पर विनी एक टेरेरिस्ट की जिंदगी पर किताब नहीं लिखना चाहती. संजू उन्हें समझाता है कि अखबारों में जो छपा वह सच नहीं है. खैर, संजू की कहानी सुनने के लिए दूसरे दिन शाम को विनी मिलने आने वाली होती है, पर सुबह समुद्र के किनारे बीच पर टहलते हुए जुबिन मिस्त्री (जिम सरभ), विनी से मिलकर कहता है कि वह संजू पर किताब न लिखे, क्योंकि वह टेरेरिस्ट है. पर नाटकीय घटनाक्रम के बाद विनी, संजू से उसकी कहानी सुनने बैठ जाती है.

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फिर कहानी शुरू होती है सुनील दत्त (परेश रावल) और नरगिस दत्त (मनीषा कोईराला) के बेटे संजय दत्त उर्फ संजू बाबा (रणबीर कपूर) की पहली फिल्म ‘‘रौकी’’ की शूटिंग से, जिसे स्वयं सुनील दत्त बना रहे होते हैं. किस तरह संजू का दोस्त बना ड्रग्स पैडलर जुबिन मिस्त्री, संजू को सिगरेट व ड्रग्स की लत डालता है. पहली फिल्म में किस तरह से संजू ने अभिनय किया. संजू का अपने माता पिता से औरतबाजी, शराब, ड्रग्स सहित सभी बुरी आदतों को छिपाना, नरगिस दत्त का बीमार होना, अमेरिका के अस्पताल में नरगिस दत्त जब कोमा में चली जाती हैं तब नरगिस दत्त और सुनील दत्त के प्रशंसक कमलेश उर्फ कमली (विक्की कौशल) से संजू की मुलाकात, फिल्म रौकी’ के प्रदर्शन से तीन दिन पहले नरगिस दत्त की मौत हो जाना, रौकी के बाद बुरी लतों के चलते संजू को फिल्में न मिलना, कमलेश की सलाह पर सुनील दत्त का संजू को अमेरिका के रिहैब सेंटर ले जाना, संजू का रिहैब सेंटर से भागना, सड़क पर भीख मांगकर बस का किराया इकट्ठा कर कमलेश के घर पहुंचना, फिर दुबारा रिहैब सेंटर जाना. बुरी लत छूटने के बाद फिल्में मिलना शुरू होना. जुबिन का सच भी सामने आता है.

तभी 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद तोड़ने की घटना के बाद संजू को अंडरवर्ल्ड से धमकियां मिलना, उनसे बचने के लिए संजू का अपने घर में ‘एके 56’ राइफल रखना व पकड़े जाना. अखबार में संजय दत्त के घर के बाहर आरडीएक्स से भरा ट्रक का पकड़े जाने की खबर का छपना और कमलेश का संजय से दूर हो जाना, सुनील दत्त की मौत सहित कई कहानियां संजू सुनाते हैं.

इस बीच संजू को बाइज्जत बरी कराने के लिए सुनील दत्त की अपनी जद्दोजहद की कहानी भी सामने आती है. पांच साल तक जेल की सजा काटकर जब संजू बाहर निकलते हैं तो कमलेश उनसे मिलता है. संजय दत्त की पत्नी मान्यता दत्त (दिया मिर्जा) हमेशा उनके साथ चट्टान बनकर खड़ी नजर आती हैं.

यूं तो फिल्म की शुरुआत के दस मिनट काफी शुष्क व धीमी गति के हैं, पर फिर फिल्म गति पकड़ती है. फिल्म के पटकथा लेखक – अभिजात जोशी और राज कुमार हिरानी ने संजय दत्त के जीवन की सर्वविदित कहानी को भी इतने रोचक तरीके से सेल्यूलाइड के परदे पर पेश किया है कि दर्शक टकटकी बांधे फिल्म देखता रहता है.

फिल्म में तमाम भावनात्मक दृश्यों के दौरान दर्शकों की आंखे भी नम होती है. राज कुमार हिरानी का निर्देशन भी कमाल का है. मगर फिल्म में कई जगह एडिटिंग कर दृश्यों को छोटा करने की जरुरत महसूस होती है. कई जगह फिल्म ढीली भी होती है. पूरी फिल्म देखने के बाद एक ही बात उभरकर आती है कि यह फिल्म संजय दत्त का महिमा मंडन करने के लिए बनाई गई है और जिस तरह से फिल्म में अखबार, न्यूज चैनल व पत्रकारिता को कोसा गया है, उससे फिल्म खराब ही हुई है और यह लेखक व निर्देशक के तौर पर राज कुमार हिरानी की सबसे बड़ी कमजोरी है. राज कुमार हिरानी ने पूरी फिल्म में संजय दत्त को मीडिया द्वारा शोषित कलाकार ही चित्रित किया गया है. फिल्म का क्लायमेक्स अटपटा सा है.

फिल्म में एक जगह संजय दत्त कबूल करते हैं कि उनके 308 औरतों से संबंध रहे हैं. पर संजय दत्त के कई हीरोईनो संग इश्क की कहानियों, मान्यता दत्त से शादी की कहानी, पहली पत्नी रिचा शर्मा और बेटी त्रिशाला, कलाकारों के बीच दोस्ती, मित्रता, नफरत के रिश्ते आदि को लेकर एक शब्द नहीं कहा गया. ऐसे में फिल्म ‘संजू’ संजय दत्त की बायोपिक फिल्म कैसे हो गई?

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो यह फिल्म रणबीर कपूर, परेश रावल व विक्की कौशल की है. रणबीर कपूर खुद को पूर्णरूपेण संजय दत्त के किरदार में ढालने में सफल रहे हैं. रणबीर कपूर ने साबित कर दिखाया कि उनके अंदर अभिनय क्षमता कूट कूट कर भरी हुई है. मगर उन्हें अच्छे निर्देशक, अच्छी पटकथा व किरदार न मिले, तो वह क्या करें. परेश रावल के साथ रणबीर कपूर के सभी दृश्य जीवंत बनकर उभरे हैं.

संजय दत्त की बौडी लैंगवेज के साथ ही संजय दत्त के माइंडसेट/दिमागी सोच को समझने में भी रणबीर कपूर पूरी तरह से सफल रहे हैं. सुनील दत्त के किरदार में परेश रावल से बेहतर कोई हो ही नहीं सकता था. नरगिस दत्त के किरदार में मनीषा कोईराला का भी अभिनय ठीक ठाक है. कमलेश उर्फ कमली के किरदार में विक्की कौशल ने एक बार फिर अपने अभिनय का जादू दिखा दिया है. वहीं संजय दत्त की प्रेमिका रूबी के छोटे से किरदार में सोनम कपूर अपनी छाप छोड़ जाती हैं.

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अनुष्का शर्मा के हिस्से कुछ खास करने को है नहीं. जिम सरभ ने नकारात्मक जुबिन मिस्त्री के किरदार में जबरदस्त अभिनय किया है. दर्शकों को रणबीर कपूर के बेहतरीन अभिनय का रसास्वादन करने के लिए फिल्म ‘संजू’ देखनी चाहिए. यदि फिल्मकार की ईमानदार कोशिश की चाह रखकर सिनेमाघर जाएंगे, तो सिर्फ निराशा ही हाथ लगेगी.

दो घंटे 21 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘संजू’’ का निर्माण विधु विनोद चोपड़ा व राज कुमार हिरानी ने किया है. फिल्म के निर्देशक राज कुमार हिरानी, पटकथा लेखक अभिजात जोशी व राज कुमार हिरानी, कैमरामैन रवि वर्मन, एडीटर राज कुमार हिरानी तथा कलाकार हैं- रणबीर कपूर, दिया मिर्जा, परेश रावल, मनीषा कोईराला, अनुष्का शर्मा, विक्की कौशल, जिम सरभ, सोनम कपूर, बोमन ईरानी, महेश मांजरेकर, संजय दत्त, अदिति गौतम, अरशद वारसी व अन्य.

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