दुनिया, देश या समाज में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो किसी व्यक्ति की काबिलियत पर ध्यान देने के बजाए उस की शारीरिक कमतरी पर ज्यादा ध्यान देते हैं. इतना ही नहीं कुछ लोग तो यही समझ बैठते हैं कि शारीरिक दोष वाले व्यक्ति प्रतिभाशाली नहीं होते. जबकि दुनिया इस बात को जानती है कि शारीरिक विकलांगता वाले लोगों ने जब भी हठ और जुनून के साथ काम किया तो उन्होंने नया इतिहास ही रचा है.

बेंगलुरु के प्रतिष्ठित कालेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले सुशांत झा के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ. उन के शरीर में एक मामूली सा दोष था. उन का ऊपरी होंठ कटा हुआ था. सुशांत ने इसे कोई कमी नहीं समझा बल्कि अपनी आंखों में ढेरों सपने ले कर एक प्रतिष्ठित संस्थान से इंजीनियरिंग करने लगे. उन का सपना था कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद उन का कैरियर सफल होगा.

पर कालेज प्लेसमेंट के दौरान किसी भी कंपनी ने उन्हें नहीं लिया. इस की वजह यही रही कि उन का होंठ कटा हुआ था, जिस की वजह से वह ठीक से बोल भी नहीं पाते थे. सारी कंपनियों ने उन्हें पहली स्पीच के बाद ही रिजेक्ट कर दिया था.

किसी ने भी उन से पढ़ाई से संबंधित टैक्निकल सवाल नहीं किया. सुशांत को खुद के सलेक्ट न होने का ज्यादा दुख तो नहीं हुआ लेकिन उन्हें इस बात का अफसोस जरूर हुआ कि किसी ने उन की योग्यता को परखने तक की कोशिश नहीं की.

इस के बाद सुशांत ने बाहर भी नौकरी ढूंढी पर वही निराशा ही हाथ लगी. उन्होंने अपनी स्किल्स और बढ़ाने का फैसला लिया. उन्होंने पोस्ट ग्रैजुएशन किया. मैट (रू्नञ्ज) में अच्छा स्कोर करने के बावजूद बिजनैस स्कूलों में भी उन्हें नजरअंदाज किया. अनेक जगह इंटरव्यू देने पर भी सफलता नहीं मिली. यानी एमबीए करने के बाद भी उन्हें तकरीबन 40 कंपनियों से रिजेक्शन का सामना करना पड़ा.

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